Intzaar ek had tak - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

इन्तजार एक हद तक - 8 - (महामारी)

रमेश बहुत घबराया हुआ था।
सुबह होते ही जल्दी से तैयार हो कर रत्ना और रवि को भी तैयार होने को कहा।


फिर नाश्ता करके सभी निकले और फिर चन्दू एक आटो रिक्शा लेकर आ गया और फिर सभी बैठ कर स्टेशन चले गए।

रमेश ने पहले से ही रिजर्वेशन करवा लिया था।

स्टेशन पहुंच कर प्लेटफार्म पर गाड़ी का प्रतिक्षा करने लगें।

रत्ना बोली चाचू मुझे एक कामिक्स चाहिए पिंकी का।

रमेश बोला अच्छा चलो। तुम लोग यहां पर रूको।
फिर रमेश और रत्ना बुक स्टॉल पर जाकर एक कामिक्स खरीद लिया । और फिर रत्ना कामिक्स को बैग में रख दिया।


फिर कुछ देर बाद हकीम पुर गांव में जाने वाली गाड़ी की एनाउनमेनट हो गई थी।

फिर कुछ देर बाद गाड़ी आ गई।
कूली ने सामान समेट उन लोगों को उनके सीट नंबर पर पहुंचा दिया।

फिर बच्चे खिड़की के पास जाकर बैठ गए।
चंदू भी सामान ठीक से लगा दिया।

फिर रमेश ने कूली को पैसे दिए और फिर गाड़ी चल पड़ी।

चाय वाला आया तो रमेश और चन्दू ने चाय पी कर सभी ने नाश्ता किया।

चंदू ने बहुत कुछ बना कर रख लिया था वहीं खाते हुए रात के ग्यारह बजे तक हकीम पुर गांव पहुंच गए।


रमेश ने देखा कि पहले के हकीम पुर में और अभी के हकीम पुर में बहुत फर्क हो गया है।

स्टेशन पर लोगों की भीड़ भी थी।

ये लोग उतरकर एक तांगा स्टैंड पर गए और फिर एक तांगे पर बैठ गए।

रमेश सोचने लगा कि अम्मा क्या कहना चाहती थी।

फिर ये लोग एक गेस्ट हाउस में पहुंच गए।

हकीम पुर गांव में दो तीन गेस्ट हाउस भी था।

वहां पहुंच कर एक कमरा बुक करवाया एक हफ्ते के लिए।

चंदू बोला यहां आकर जैसे लगा कि अम्मा जी और बाबूजी को देख पायेंगे।

ये सुनकर बच्चे रोने लगे।

फिर सब फै्स होकर गेस्ट हाउस के होटल में खाना खाने गए। रोटी सब्जी और दाल में सब खा कर वापस कमरे में आ गए।

सभी थक चुके थे इसलिए सो गए।

रात को रमेश फिर उठ बैठा जैसे लगा कि किसी ने उसे जगाया हो।
रमेश सोचने लगा कि अम्मा क्या कहना चाहती है कुछ समझ नहीं आ रहा था।

अगली सुबह चाय पी कर सब तैयार हो गए।

रत्ना बोली चाचू हमें बहुत याद आ रही हैं। कहा गए सब क्या कभी वापस नहीं आएंगे। मेरी दादी मां और बाकी सब।।

रमेश बोला हां रत्ना रो मत बेटी।होनी को कोई नहीं टाल सकता है।
चलो हमें अस्पताल निकलना होगा।

फिर सभी अपने घर की तरफ निकल गए।

चंदू ने सब जरूरत का सामान लेकर रखा था।


फिर वहां पहुंच कर बाहर ही अम्मा और बाबूजी की मूर्ति स्थापित थी वहां पर पहले रमेश ने माल्यार्पण किया दीया जला कर सबने पुजा किया।

फिर रमेश बच्चों को लेकर अन्दर पहुंच गए जिसमें रमेश ने एक अतिथि घर बनाया गया था वहां पर जाकर बैठ गए ।

चंदू बोला मैं जाकर रसोई देख लेता हूं।

कुछ देर बाद गांव के लोग इकट्ठे होते गए।
बाहर ही खाने पीने की व्यवस्था करवाई गई थी।

रमेश ने वही जो अम्मा जी ने कहा था अपनी पसंद। एक गुलाबी रंग बिरंगी शाॅल को अम्मा जी की मूर्ति में ओढ़ा दिया और बोला अम्मा तेरे रहते तेरी ये इच्छा पूरी न कर पाया इसलिए आज आपके नाम पर सभी औरतों के लिए शाॅल भेंट करूंगा।


फिर एक, एक शाॅल सभी औरतों को अम्मा जी के नाम पर दान कर दिया।
फिर रत्ना ने एक बड़ा सा केक काट कर सबको सर्व कर दिया अपने दादी मां को याद करते हुए।

फिर चन्दू ने अस्पताल के सभी सदस्यों को मरीजों को केक खिलाया।

खाना खाने सभी लोग आ रहे थे।
खाना बहुत ही स्वादिष्ट बना था वो भी अम्मा जी की पसंद का।

फिर रमेश रवि रत्ना भी खाना खाने लगे।


रमेश बोल पड़ा अरे वाह अम्मा क्या बनाई हो।
आम रस तो बहुत अच्छा बना है।
कोफ्ते आलू पालक मसाला, कचौड़ी हींग वाली,दाल, चटनी, गाजर का हलवा, पनीर कोफ्ते सब बहुत ही अच्छा बना है।


सब ने बहुत ही मन से अच्छी तरह से खाया।


रमेश ने देखा चन्दू बहुत ही घबराया हुआ बैठा था।
रमेश बोला अरे चन्दू क्या हुआ। ऐसे बैठे हो?
चंदू बोला हां बेटा। अब हमलोग वापस गेस्ट हाउस चलें।

रमेश बोला हां चलते हैं बहुत थकावट हो गई है।


फिर सब वापस आ गए।

बच्चे जल्दी ही सो गए।

रमेश बोला अरे भाई तुमने तो आज कमाल कर दिया।
क्या लजीज खाना बनाए थे। आज अम्मा जी के जन्मदिवस पर बहुत ही यादगार पल हो गया।

अम्मा को शांति मिल गई।


चंदू बोला भाई हम्ममम। रमेश बोला ये हम्मम क्या कर रहे हो? क्या बात है।।


चंदू बोला वो जब हम रसोई घर में गया तो देखा कि वहां कोई रसोईया नहीं था। और समय भी कम था दूसरा रसोईया लाने में।

फिर हम काउंटर पर पुछने गया तो पता चला कि आज वो आया ही नहीं।


रमेश बोला अच्छा,तो तुम सब कुछ बहुत जल्दी बना लिए?

चंदू बोला अरे नहीं, नहीं मैंने तो कुछ बनाया ही नहीं था।वो वो व व व।।

रमेश आश्चर्य हो कर बोला अरे क्या कहना चाहते हो?

चन्दू बोल पड़ा की जब मैं वापस रसोई घर पहुंचा तो देखा कि सारा खाना बन चुका था और गैस भी गर्म था और और औ और अम्मा जी जो बालों पर गुलाब का तेल लगाती थी वो महक रहा था।।।

रमेश बोला अरे ये क्या बोल रहे हो?

चंदू बोला मैं सच बोल रहा हूं और तो और हम दस किलो आम अपने घर ही भूल गए तो ये आम रस कहां से आया?

चंदू बोला अम्मा जी आकर सब कुछ बना कर चली गई बेटा।
रमेश बोला हां मुझे भी ये लगता है पर इसका जिक्र तुम कहीं मत करना।

अब हमें सोना चाहिए।
फिर रमेश और चन्दू सो गए।


दूसरे दिन सुबह रत्ना, रवि रमेश और चन्दू सब निकल गए।


पहले एक मंदिर शिव मंदिर गए।
वहां जाकर पुजा पाठ किया और फिर वहां से बाहर निकल आए।



कुछ दूर चलने के बाद वहां से डाकिया चाचा निकले तो रत्ना बोली अरे चाचू वो डाकिया काका।।

रमेश रूक कर बोलें अच्छा।

चंदू बोला अरे छगन भाई कैसे हो?

डाकिया देखा और फिर बोला अरे चन्दू तुम जिन्दा हो।

चंदू बोला हां।

रमेश बोला अरे डाकिया चाचा कैसे हो?

डाकिया देखता रहा और फिर बोला अरे रमेश बेटा। बहुत दिनों बाद। रत्ना और रवि कैसे हो।।


डाकिया बोला बहुत दुःख हुआ जान कर ।। उर्मी बहु तो बहुत भली थी पर ना जाने कोलेरा सभी को डस लिया।

रमेश बोला काका और कुछ बताओं ना।।
कोई ऐसी बात है क्या?

डाकिया बहुत देर तक सोचता रहा और फिर बोला अरे हां एक अम्मा की चिठ्ठि थी जो पोस्ट ना हो पाया था।

क्योंकि उर्मी बहु की हालत गंभीर बनी थी उस समय एक नर्स ने मुझे चिट्ठी ये कह कर थमाई थी कि ये पोस्ट कर देना।पर मैं उस समय अपने परिवार को लेकर शहर चला गया था और जब वापस आया तो सब कुछ खत्म हो गया था।


रमेश बोला अरे चिठ्ठी कहां है?


डाकिया बोला हां मेरे बैग में ही है। अच्छा हुआ तुम मिल गए। वरना।


फिर बहुत देर बाद वो बैग में से वो चिठ्ठी निकल कर दिया।

चिठ्ठी बहुत ही पुरानी हो गई थी पर वो तो रमेश के लिए किसी खजाने से कम नहीं था।

फिर सब गेस्ट हाउस लौट आए और हकीम पुर में इसी तरह चार दिन बीत गया और रमेश लोग घर लौट आए।

रमेश को अब कुछ समझ में आ रहा था कि कुछ तो था उस चिट्ठी में।

अलीगढ वापस आ कर सभी अपने अपने काम में व्यस्त हो गए।

रमेश आफिस से आकर ही एक प्याली चाय के साथ वह चिठ्ठी लेकर बैठ गया।

रमेश को मन ही मन बहुत सारी बातें उठ रही थी कि क्या होगा इस चिट्ठी में।।
उर्मी को भला क्या हुआ होगा वो तो फोन पर बात किया करती थी मैं तो हर महीने ही जाता था पर उस समय पता नहीं इतना काम का प्रेशर था कि चाह कर भी ना जा सका।


आखिर उर्मी ने मुझे एक बार कुछ कहा क्यों नहीं।
क्या हुआ होगा उसके साथ।।


हे भगवान मैंने क्यों नहीं उन सभी को बचाने की कोशिश नहीं किया। डाकिया काका तक अपने परिवार की रक्षा करने के अपनी जान जोखिम में डालकर कर सबको शहर लेकर आ गए।

और मैं नाकाम रहा मैं शायद कुछ भी ना कर सका।
खुद को कभी माफ नहीं कर सकता हूं।


क्रमशः

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