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एक वरदान - संभोग - 3

एक वरदान संभोग – 03

दैवीय संभोग : दैवीय संभोग में मनुष्य भगवान से संपर्क करने, किसी विशेष सिद्धि की कामना के लिए एवं कई और दैवीय अनुष्ठानों के लिए संभोग करता है। जहाँ एक तरफ सामाजिक संभोग मनुष्य की काम वासना की पूर्ति और वंश को आगे बढ़ाने का साधन है वहीं दैवीय संभोग मनुष्य को विरक्ति के भाव में रहते हुए ईश्वर के साथ संपर्क बनाने का साधन है।

प्राचीन काल में संभोग को बहुत ही सम्मान की नज़र से देखा जाता था, कई धार्मिक ग्रंथों एवं मान्यताओं के अनुसार संभोग उस समय ईश्वरीय उपासना का एक प्रमुख माध्यम था। परन्तु धीरे- धीरे युग और काल परिवर्तन के साथ इन मान्यताओं की जगह कलुषित और विकृत मानसिकता ने जगह ले ली जहाँ संभोग को निंदनीय और अशुभ कर्म के रूप में जाना जाने लगा।

सामाजिक संभोग में जहाँ स्त्री और पुरुष परस्पर आलिंगन, चुम्बन, घर्षण, और मैथुन करते हैं और स्त्री पत्नी या प्रेमिका के रूप में एवं पुरुष पति या प्रेमी के रूप में होता है। वही दैवीय संभोग में स्त्री को भैरवी और पुरुष को भैरव कहा जाता है, भैरवी को पूजनीय मानकर योनि पूजा द्वारा उसे खुश किया जाता है ये विधान हमारे पुराणों और मान्यताओं में मिलाता है।

भारत के असम राज्य में गुवहाटी से कुछ ही दूरी पर कामरूप पर्वत प्रदेश है जहाँ माँ कामाख्या का शक्ति पीठ है, कहते है माता सती के देहांत की कहानी में जब भगवन विष्णु नें तीर द्वारा माता सती के अंगों को उनके शरीर से अलग किया था तो जो अंग जहाँ गिरा वहां माता का शक्ति पीठ बना बैसे कामरूप पर्वत पर माता की योनि गिरी थी जिस वजह से यहाँ माता की पूजा योनि रूप में की जाती है यह शक्ति पीठ भारत का सबसे अधिक जागृत शक्ति पीठ है यहाँ माता साल में एक बार तीन दिन के लिए रजस्वला होतीं है और उस समय यहाँ एक मेला लगता है। प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार उस समय पुजारी पहले दिन पूजा पाठ करके माता की योनि रूप की शिला को सफ़ेद कपड़े से ढक देता है और फिर तीन दिन तक वहां कोई नहीं जाता तीसरे दिन पूजा पाठ के बाद जब मंदिर में जाते हैं तो वो सफ़ेद कपड़ा खून से लाल हो जाता है। क्योंकि यहाँ माता योनि रूप में हैं इस वजह से यहाँ पर योनि पूजा का विधान है पर इसके अलावा भी देश के कई हिस्सों में योनि पूजा की जाती है।

दैवीय संभोग को भी अलग – अलग पुस्तकों और मान्यताओं के आधार पर कई भागों में बांटा गया है परन्तु यहाँ में उन प्रकारों के बारे में बात नहीं करूँगा। यहाँ हम सरल भाषा में दैवीय संभोग के प्रकारों की बात करेंगे। मेरी समझ और बुद्धि के आधार पर दैवीय संभोग 5 (पाँच) प्रकार का होता है,

1. संभोग ध्यान

2. संभोग साधना

3. संभोग तंत्र

4. संभोग पूजा

5. संभोग चक्र

संभोग ध्यान : ध्यान ईश्वर को पाने का एक प्राचीनतम तरीका का है जिसके द्वारा हम अपने मन और शरीर को एकाग्र करके अपना पूरा ध्यान भगवन के चरणों में लगा देते हैं। संभोग द्वारा ध्यान और भी आसन हो जाता है क्योंकि ध्यान के लिए जरूरी है की हम सब कुछ छोड़ कर अपने दिमाग को पुरे तरह शांत रखें जिससे उसमें कोई और विचार न आये, ध्यान के अंतिम चरण में पहुँचने पर हमारी एकाग्रता इतनी हो जाती है की हमें अपने शरीर का भी ध्यान नहीं रहता इसलिए आपने सुना होगा की कई शांत और महात्मा बिना कुछ खाए, बिना कुछ पिये वर्षों तक ध्यान में रहते हैं।

हम उन महात्माओं की बराबरी तो कभी नहीं कर सकते पर हम संभोग के द्वारा बहुत जल्दी ध्यान की अवस्था में जरूर पहुँच सकते हैं (विस्तृत जानकारी के लिए संपर्क करें)। हम जब संभोग में बहुत अधिक उत्तेजित हो जाते हैं तब हमें भी अपने आजू – बाजू हो रही किसी भी चीज के बारे में नहीं पता होता है और तो और अगर हमारे हाँथ, पैर या शरीर में कहीं पर भी दर्द है तो भी संभोग की उत्तेजना के कारण हमें कुछ देर के लिए उस दर्द का आभास भी नहीं होता जो कुछ देर पहले हमें हिलने भी नहीं दे रहा था। संभोग की इसी खासियत की वजह से कई साधक इसका उपयोग ध्यान के लिए करते हैं।

संभोग साधना : हमारे ऋषि मुनि कई प्रकार की साधनाओं के जरिये देवी देवता से सिद्धि प्राप्त करते थे आज के समय में उन सभी साधनाओं को करना बहुत कठिन है क्योंकि उनमें से किसी भी साधना को करने के लिए आपको हिमालय जैसे किसी एकांत जगह की जरूरत होगी और करीब सौ साल का समय भी चाहिए होगा जो की आज के समय में किसी साधारण इंसान के पास बिलकुल नहीं है तो क्या ये सब कुछ अब मुमकिन नहीं है? नहीं इन सभी परेशानियों को जानकर और कलियुग में मानव जीवन की सीमित शक्तियों को ध्यान में रख कर इन्हीं महात्माओं ने इन साधनाओं को संभोग के जरिये पूरा करने का रास्ता दिया।

संभोग के जरिये साधना करना केवल तभी संभव है जब हमारा संभोग के ऊपर पूरा नियंत्रण पा लेते हैं क्योंकि किसी भी साधना के लिए हमें नियंत्रण की जरूरत होती है ये नियंत्रण भावनाओं पर, शरीर पर, हलचल पर और मन पर, परन्तु अगर आप वो साधना संभोग के माध्यम से करते हैं तो संभोग पर भी।

संभोग तंत्र : तंत्र में संभोग का बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है जैसा की हम सभी जानते हैं की तंत्र अलग- अलग क्रियाओं और प्रयोगों के माध्यम से कुछ शक्तियां प्रदान करता है जो काम हम अपने साधारण मानव जीवन में नहीं कर सकते जो काम हमारे लिए असंभव होते हैं उन सभी कामों को करने के लिए हमें तंत्र का सहारा लेना पड़ता है। संभोग के जरिये कई ऐसे तांत्रिक प्रयोग और तंत्र किये जाते हैं जिन्हें हम अगर बिना संभोग के करें तो वर्षों लग जायेंगे।

कई शक्तियां ऐसी हैं जो संभोग के माध्यम से खुश होकर हमारे सभी काम कर देते हैं जैसे अप्सरा, यक्षिणी, आदि इसके अलावा भी कई और प्रयोग ऐसे हैं जो की संभोग के बिना नामुमकिन हैं।

संभोग पूजा : पूजा दो प्रकार की होती हैं एक सात्विक और एक तामसिक, सात्विक पूजा के लिए हमें पंडित की जरूरत होती है जो की मंत्र और पूजन सामग्री के माध्यम से किसी विशेष भगवन की पूजा करता है। संभोग का उपयोग तामसिक पूजा में किया जाता है हम जिन भी देवी या देवता को जानते हैं उन सभी की पूजा के कई प्रकार से की जाती हैं पर ये पूजा उनके अलग – अलग रूप के लिए अलग – अलग होती हैं क्योंकि सभी देवी और देवताओं के सात्विक और तामसिक दोनों रूप हुआ करते हैं जैसे सबसे अधिक सात्विक अगर आप किसी को मानेंगे तो वो हैं सरस्वती माता पर उनका भी तामसिक रूप है जिसे मातंगी माता कहा जाता है, जहाँ माता सरस्वती को फल, मिठाई, फूल और नारियल चढ़ाया जाता है उसके विपरीत मातंगी माता हो मांस, मछली, वासी और जूठा भोजन चढ़ता है। इसी तरह कई देवी देवताओं के तामसिक रूप को संभोग के द्वारा प्रसन्न किया जाता है और ये सब आज से नहीं बल्कि प्राचीन समय से ही इनकी पूजा इसी तरह से की जाती है।

संभोग चक्र : हमने हमेशा सुना है की मनुष्य अगर सही तरीके से ध्यान और साधना को अपने जीवन में उपयोग करें तो वो भगवन के समान हो सकता है, पर कैसे? तो उत्तर है चक्र को जाग्रत करके क्योंकि हमारे शरीर में कई चक्र होते हैं जिनमें से सात प्रमुख चक्र होते हैं जिन्हें क्रमशः मूलाधार चक्र स्वाधिस्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र, और सहस्रार चक्र।

इन सभी चक्रों को जागृत करने के केवल दो माध्यम होते हैं पहला है ध्यान और दूसरा है संभोग, कई लोग समय की कमी और एकाग्रता के अभाव में संभोग के माध्यम से इन चक्रों को जागृत करते हैं इन्हें कुंडलिनी भी कहा जाता है जिसका एक सिरा पुरुष में लिंग और गुदा के मध्य में और स्त्री में योनि और गुदा के मध्य में तो दूसरा सिरा मस्तिष्क के सबसे ऊपर के भाग में होता है।

(नोट : यहाँ पर इन सभी प्रकारों के अंतर्गत आने वाली किसी भी साधना को विस्तृत इसलिए नहीं बताया गया क्योंकि इन सभी क्रियाओं को करने के लिए योग्य गुरु की आवश्यकता होती है कृपया किसी भी साधना का पूर्ण ज्ञान होने पर ही गुरु की आज्ञा से करें)

अगला भाग क्रमशः – एक वरदान संभोग – 04

सतीश ठाकुर