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अनजान कातिल - 2

अपने भाग 1 में पढ़ा

तावड़े इंस्पेक्टर मिश्रा की तरफ देखकर कहता है- सर! खूनी ने गोली अंधेरे मे चलाई। इसका मतलब वो उस अधेड़ शख्स के नज़दीक ही था।
इं. मिश्रा- हां लाश की हालत देखकर लगता तो है गोली यही बाई ओर से नज़दीक से ही चली है। और वह अकेला भी नहीं था।
तावड़े- आपको कैसे पता चला वह अकेला नहीं था?

अब आगे,

इं. मिश्रा- क्योंकि गोली तभी चली जब लाइट्स चली गई। कोई आदमी लाइट्स बंद करे और जल्दी से खून करने इस हॉल में नहीं आ सकता। क्योंकि इस रेस्तरां की लाइट्स की वायरिंग बाहर पीछे की ओर है।
तावड़े- मान गए सर जी! पर आपको कैसे पता चला के यहां की वायरिंग पीछे की ओर है?
इं. मिश्रा- बाहर से सब आगे पीछे का एरिया देखता हुआ ही अंदर आया था। पीछे कोई छिपकर बैठा ना हो। पर कोई नही मिला। वैसे यह शख्स की पहचान मिली? कौन है यह?
तावड़े- जी सर! उसके साथ उनकी पत्नी है। उन्होंने बताया कि वह यही विले पार्ले मे ही रहती है। उनके दो बेटे है। उन्हीं के मोबाईल से बेटे के नंबर पर फोन करके उसे यहां बुला लिया है।
इन. मिश्रा- क्या नाम है इनका?
तावड़े- अभी उनकी पत्नी यह सब बताने की हालत में नहीं है। उनके बेटे आए तभी पता चले कुछ।

जब उस अधेड़ आदमी के बेटे आए तो उनकी मां उनसे लिपटकर रोने लगी। बेटो के साथ उनकी बिविया भी आई थी। वह भी रोते हुए अपनी सास को संभालने लगती है।

इन. मिश्रा दोनों लडको का नाम पूछकर उनसे बात करते है। उनमें से बड़े बेटे महेश को पूछते है- आपके पिताजी का नाम क्या है और वे काम क्या करते थे यह बताइए?
महेश- सर! मेरे पापा का नाम सुदेश कुमार है। वह पेशे से एक वकील थे।
इन. मिश्रा- अच्छा! उनकी किसी से दुश्मनी या...?
महेश- नहीं सर, मेरे पापा की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। हां पर कुछ दिनों से परेशान जरूर थे। पूछने पर बताया कि तबीयत नादुरस्त है।
इन. मिश्रा- और कुछ जो किसी को खबर हो? वकील थे तो कोई न कोई रहा ही होगा जो किसी केस के चलते खुन्नस खाए बैठा हो।
महेश- नहीं सर। किसी को कुछ भी नहीं पता। और ऐसा कोई शख्स भी ध्यान में नहीं जो पापा को धमकी दे रहा हो। हम सब का नियम है रात को डिनर साथ करने का। और उसी वक्त अगर कोई बात होती थी तो हम डिस्कस कर लेते थे।
इन. मिश्रा- तो फिर आज कैसे आपके मम्मी पापा अकेले डिनर करने आए? आप लोग साथ क्यों नहीं थे?
महेश- हम चारो आज पिक्चर देखने गए थे। मम्मी पापा नहीं आना चाहते थे। तो हम चारो ही चले गए। वही पर हमे फोन आया और हम भागे भागेे यहां चले आए।
इन. मिश्रा- देखिए हमे अभी बॉडी पोस्टमॉर्टम के लिए भेजनी होगी। आप अपनी माताजी को लेकर घर जाइए। कल अस्पताल से फोन आ जाएगा आपको बॉडी ले जाने के लिए।

****
सब कार्यवाही खत्म कर के मिश्रा और तावड़े घर के लिए निकलने ही वाले थे तभी एयरपोर्ट जाने के रास्ते पर किसी कार का बुरी तरह एक्सिडेंट हो गया था। कार रास्ते के साइड में खाई में गिर गई थी। इं. मिश्रा को खबर मिलती है तो वह तावड़े के साथ एक्सिडेंट वाली जगह पर निकल जाता है। साथ ही साथ पुलिसथाने मे फोन कर के क्रेन का इंतजाम करने के लिए भी बोल देता है।

तावड़े और इं. मिश्रा पुलिस की जीप में ही बैठे थे। इं. मिश्रा तावड़े से कहता है- यार! ये क्या है? आज इतनी वारदाते एक साथ हो रही है! लगता है आज की रात ऐसे ही निकलने वाली है। तेरा खाना तो हो गया तावड़े, पर मुजे बहुत भूख लगी है।
तावड़े तुरंत ही साईड में जीप रोक देता है। इं. मिश्रा ने पूछा- जीप यहां क्यो रोक दी?
तावड़े- सर! हम जहां जा रहे है वहां कुछ खाने को नहीं मिलेगा। यह देखिए, वड़ापाव वाला खड़ा है। कहे तो...
इं. मिश्रा- जा, जल्दी जा। लेकर आ, वरना मै यही बोहोश हो जाऊंगा। सुबह से इतना काम था, खाने का भी टाइम नहीं मिला।
तावड़े- हां, सिर्फ तीन बार चाय और पकोड़े ही खा सके थे।
इं. मिश्रा - हां हां, इतने से कितना पेट भरेगा? जा, अब ले आ जल्दी से।

तावड़े तीन वड़ापाव पैक करवा कर ले आता है।
इं. मिश्रा उसे देखकर कहते है- ओ भाई...! क्या मै तुजे पेटू दिखता हुं जो तीन वड़ापाव ले आया?
तावड़े हंसते हुए कहता है- सर! इसमें से एक मेरा है।
इं. क्यों? तेरा खाना तो हो गया था न?
तावड़े- हां, पर अब फिर से भूख लग गई तो ले आया। वैसे ये भी आप ही के पैसे से लिया है। वो डिनर के बिल से बचे हुए पैसे थे न, उसी से लिया है।
इं. मिश्रा- चल जल्दी चल अब, देर हो रही है। अगर ब्लड प्रेशर कम होने की तकलीफ ना होती तो खाने के लिए भी नहीं रुकता।
तावड़े- ये तकलीफ कब हुई सर?
इं. मिश्रा- अभी पिछले हफ्ते ही डॉक्टर के पास गया था तबीयत नादुरस्त लगी तो। तभी पता चला। डॉक्टर ने भूखे रहने सेेभी मना किया था।

दोनों बातें करते हुऐ वारदात की जगह निकल पड़ते है।
वे घर के लिए अभी आधे रास्ते भी नहीं पहुंचे थे और इं. मिश्रा का फोन आ गया था तो वह सीधे यही आ गए। एम्बुलेंस आ चुकी थी पर इं. मिश्रा वहां नहीं पहुंचे थे। तो उसका इंतज़ार हो रहा था। वैसे डॉक्टर ने नीचे उतरकर देख लिया था। कार के अंदर बैठा आदमी मर चुका था। लाश को कार से निकालकर ऊपर लाया जाता है।

इं. मिश्रा के पहुंचते ही डॉक्टर ने उन्हे बता दिया कि एक्सिडेंट होते ही आदमी ऑन द स्पॉट मर चुका है। इं. मिश्रा कफन उठाकर लाश को एक बार देखते है। तावड़े लाश जी हालत देखकर थोड़ा विचलित हो उठा। उस लाश का सिर आगे से फट गया था। क्रेन के आते ही कार को ऊपर लाने का काम शुरू किया जाता है।
इं. मिश्रा- कार की हालत तो बहुत बुरी हो गई है। तावड़े जरा कार के डेस्क मे कुछ मिलता है तो देखो। आर सी बुक या कुछ और।
तावड़े- सर! लाश के कपड़ों में कुछ होगा ना? वहीं देख लेते है पहले। पहचान मिल जाएगी।
इं. मिश्रा- तावड़े जी...! हमारे आने से पहले वह सब प्रक्रियाएं हो गई है। हमारे कॉन्स्टेबल इतने तो होनहार है ही। जाओ चुपचाप कार में देखो कुछ मिलता है तो।

तावड़े को कार के पेपर्स मिल जाते है। वह पेपर्स इं. मिश्रा को देता है। कार किसी अमन सहगल के नाम पर है। अड्रेस बांद्रा का है।
इं. मिश्रा- जरा छानबीन करो ये अमन सहगल कौन है? इसके घर भेजो किसीको, खबर दे आए। और सीधे सिटी हॉस्पिटल आने को बोल दे। मरा हुआ आदमी अमन ही है या कोई और? शिनाख्त करवानी पड़ेगी। वैसे एक बात समझ में नहीं आई, इसके पास से ना पर्स मिला है, ना ही मोबाईल। पर्स तो समजो भूल गया हो साथ लेना, पर इस जमाने मे मोबाईल के बगैर कोई होता ही नहीं। कपड़ों से तो अच्छे घराने का लगता है। उम्र भी तीस- पैतिस के आसपास लगती है।
तावड़े- तुकाराम को भेज देता हुं इस आदमी के घर। कार के पेपर्स इसिके होंगे तो घरवालों को पता कर देगा। अगर किसी और कि कार होगी तो फिर...।

****
एक घंटे बाद तुकाराम दो तीन लोगो को साथ लिए सिटी हॉस्पिटल आ गया। उसमे से दो लोग अमन सहगल के मां बाप थे, और साथ में अमन की पत्नी थी। अमन की मां और पत्नी का रो रोकर बुरा हाल हो गया था।
इं. मिश्रा और तावड़े भी वही पर थे। वह अमन के पापा से मिलते है। उन्होंने अमन के पापा मि. आलोक सहगल से पूछा- क्या आपके बेटे की किसी से कोई दुश्मनी थी?
मि. सहगल- नहीं सर! मेरा बेटा हमेशा अपने कामों मे उलजा रहता था।
इं. मिश्रा- आपका बेटा क्या काम करता था?
मि. सहगल- वह सिविल इंजिनियर था। हमारा खुद का बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का बिजनेस है सर। हमारी कंपनी का वह एमडी था। अभी कई जगह हमारे प्रोजेक्ट चल रहे है तो वह हमेशा बिज़ी रहता था। पर यह तो एक एक्सिडेंट है ना? तो आप इस तरह का सवाल क्यों कर रहे है?
इं. मिश्रा अमन की मां और पत्नी से पूछते है- क्या आज आप दोनों मे से कोई उसके साथ था?
दोनों ना मे जवाब देती है।
इं. मिश्रा मि. आलोक सहगल से कहते है- हमे आपके बेटे की कार की ड्राइवर के साईड वाली सीट से एक लड़की का बाल मिला है। आज उसके साथ कोई लड़की इस कार के जरूर थी। क्या उसकी ऑफिस की कोई लड़की काम से उसके साथ गई हो...??
अमन की वाइफ उस बात को मानने को तैयार नहीं हुई। वह रोते हुए कहती है- मेरे पति एक शरीफ इंसान थे। उसका किसी लड़की से क्या वास्ता? और उसकी ऑफिस में कोई लड़की भी नहीं है।
इं. मिश्रा- कोई लड़की नहीं है मतलब? स्टाफ में कोई लड़की तो होगी ही?
अमन के पापा कहते है- हम ऑफिस स्टाफ मे लड़कियों को नहीं रखते।
इं. मिश्रा- ऐसा क्यों?
अमन के पापा- वो क्या है कि पहले स्टाफ मे लड़कियां थी ही। पर लड़कियों को हमेशा सामाजिक कार्यों के लिए कहीं न कहीं जाना ही रहता था। हर बार वह छुट्टी मांगती रहती थी। तो फिर बाद में हमने तय किया कि अब स्टाफ मे लेडीज स्टाफ नहीं रखेंगे।
इं. मिश्रा- देखिए ये आपका नजरिया है। अगर मेरे नजरिए से देखे तो औरतों को तो हमे सलामी देनी चाहिए। सुबह घर का काम करना, सबका खाना पकाकर ऑफिस जाना, घर की जिम्मेदारियां पूरी करना। अपने परिवार, बच्चे और ऑफिस का काम भी, सब संभालती है। क्या आप और हम ये कर सकेंगे?
मि. सहगल कोई जवाब नहीं देते।
इं. मिश्रा- हो गई ना बोलती बंद? कभी अपने आपको उनकी जगह रखकर सोचिए। इस वक्त मुजे यह सब कहना ठीक नहीं लगता पर आपने बात ही ऐसी कर दी तो...। बुरा लगा हो तो माफ करना।
मि. सहगल- नहीं सर! आप माफी मत मांगिए।
इतने में डॉक्टर आते है और कहते है- इंस्पेक्टर साहब! बॉडी पर कोई निशान नहीं मिले है या कोई जोर जबरदस्ती भी नहीं हुई है। बाकी की रिपोर्ट कल पीएम के बाद मिलेगी।
और मि. सहगल को कहते है- आपको बॉडी कल ही मिलेगी। तो अभी आप अपने घर के सदस्यों को घर ले जाइए।

अमन की मां और उसकी बीवी रोते हुए घर चली जाती है। मि. सहगल हॉस्पिटल में ही रुकते है। इं. मिश्रा कार को एफएसएल मे भेजने को कहते है और तावड़े के साथ थकेहारे अपने घर को निकलते है।

क्रमशः
कहानी अच्छी लगे तो कमेंट्स जरूर दे। 🙏