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मुझे बचाओ !! - 2

(2)

 
विवाह एक समस्या
कुमार विवाह की बात तक करना पसंद नहीं करता था ।

श्यामा कुमार का विवाह करना चाहती थी I

किन्तु कुमार दुनिया में दूसरे बुद्ध का अवतार था । वह संसार को दुख का समुद्र मानता था ।

उसके अनुसार सारे दुखों की जड़ विवाह ही है ।

वह सोचता था - पहले गा बजाकर शादि करो फिर कोल्हू के बैल के समान बीबी बच्चों को पालने के लिए जिंदगी भर तिल तिल मरते रहो । अंत में बुढ़ापे मे तुम जिंदगी भर जिनके लिऐ पिसते रहो, वे ही बीबी बच्चे तुम्हारा रोज रोज अपमान करें । उधर बुढ़ापे में गंभीर बीमारियां इन्सान का हर पल महात्रासदायक बना देती हैं ।

 

 
विवाह प्रस्ताव
एक दिन एक ग्रामीण बड़ी विचित्र वेशभूषा में कुमार के घर आया । उसने सिर पर पगड़ी थी । उसके हाथ में बड़ी लाठी थी जिसके सिरे पर घुंघरू बंधे हुए थे । वह लंबे कद का दुबला आदमी था I वह धोती पहने था और अपने कंधे पर वह एक लाल दुपट्टा लपेटे था । उसकी वेशभूषा से वह ठेठ देहाती प्रतीत होता था ।

उसने श्यामा से कहा ”में आपकी जाति का हूं । मेरा नाम धन्नालाल है । मै माचल गांव का रहने वाला हूं । मेरी कन्या अत्यंत उच्च शिक्षा पास है I वह मिडिल पास है । मैं उसके लिए उच्च शिक्षित वर की तलाश कर रहा हूं । मैने सुना आपका पुत्र विवाह लायक है । मै उसे देखने यहां आया हूं’ I

कुमार उस समय अपनी किताबों के अध्ययन में लीन था ।

श्यामा धन्ना को देखकर बउ़ी खुश हुई । उसकी जाति का एक व्यक्ति उसके यहां रिश्ता लेकर आया I यह बड़ी खुशी की बात थी । उसने कुमार की ओर इशारा करते हुए कहा,” यह मेरा पुत्र कुमार है । हमें भी उसका विवाह करना है । हम भी उसके लिए योग्य लड़की की तलाश कर रहे हैं “।

 

फिर उसने आश्चर्य से पूछा “ यहां आने से आपको किसी जाति वालेां ने नहीं रोका ?“

धन्नालाल उत्साहित होकर बोला “मुझे जाति वालों ने यहां आने से रोकने के लिए कई प्रयत्न किए । उन्होंने मुझे जाति से निकालने की धौंस तक दी । किन्तु मेरी लड़की उच्च शिक्षित है । मुझे उसके लिए उच्च शिक्षित दूल्हा चाहिए । मै किसी की परवाह नहीं करता । आप मेरे गांव आकर मेरी लड़की देख लें । “

इस पर श्यामा खुशी से झुम उठी । कुमार पास ही में अपनी किताबों में तल्लीन बैठा था ।

उसने उत्साहित होते हुए कहा,” हम जरूर आपकी लड़की देखने आएंगे, क्यों कुमार ?”

इस पर कुमार ने बड़ी बेरूखी से धन्नालाल से कहा, “श्रीमान! यहां कोई विवाह लायक लड़का नहीं है । आप गलत जगह पर आगए हैं । कृपया अपनी लड़की के लिए कहीं और वर तलाश करिये । “

पन्नालाल ने धैर्यपूर्वक कहा, “मुझे अच्छी तरह सोच कर बाद में बता देना । मुझे कोई जल्दी नहीं है । “

कुमार चिढ़ते हुए उसके जाने का इंतजार करने लगा । श्यामा भी उसका क्रोधी स्वभाव जानती थी । अतः वह चुप हो गई । कुछ देर इंतजार करने के बाद धन्ना चला गया ।

 

इसके बाद धन्ना बार बार कुमार के चक्कर लगाने लगा व कुमार से अपनी लड़की को देखने का आग्रह करने लगा । कुमार उसका पहले से भी अधिक अपमान करने लगा । लेकिन धन्ना भी किसी और मिटृी का बना था । उसने बार बार कुमार को राजी करने के प्रयास जारी रखे I

एक दिन कुमार जब घर लौटा तो उसने श्यामा को रोते हुए देखा । उसने अपनी मां को दुलारते हुए पूछा, मेरी प्यारी माँ क्यों रो रही है ?

इस पर मां धाड़े मारकर रोते हुए बोली, “ बेटा ! मैं ऐसी अभागिन स्त्री हूं जो अपने बेटे की बहू व पोते का मुंह देखे बिना मर जाउंगी । “

कुमार अपनी मां को रोते हुए कदापि नहीं देख सकता था । उसने मां का दिल खुश करने के लिऐ कहा, “ मां धन्ना की लड़की देखने कब चलना है ‘

मां ने भरे गले से आंसू टपकाते किन्तु हंसते हुए कहा “कल”

दूसरे दिन मां बेटे देानों गांव में धन्ना कें घर मे पहुंचे ।

वह बहुत छोटा गांव था । उन्हें एक दुबली पतली सुंदर लड़की एक झोपउ़ेनुमा मिटृी के घर में काम करते दिखाई दी । धन्ना ने उनका स्वागत किया व उन्हें एक पुराने पलंग पर बिठाया । वह एक किसान था । घर के पीछे बैल व गायें बंधी थी ।

नाश्ता सर्व करने के बाद धन्ना ने अपनी लड़की को बताते हुए कहा, “यह मेरी लड़की है । इसका नाम मीना है ।“

कुछ देर बाद श्यामा व कुमार ने वहां से विदा ली ।

दो दिन बाद धन्ना कुमार के घर आया व उससे पुछा, “ आपकेा मेरी बेटी पसंद आई,साहब “

इस पर कुमार ने बुरी तरह चिढ़ते हुए कहा, “ मुझे विवाह ही नहीं करना तो पसंद नापसंद का सवाल ही नहीं उठता । मैने तो अपनी मां का दिल रखने के लिए लड़की देखने की बात मान ली थी । आप कृपया अपनी तशरीफ कहीं और ले जाएं ।“

श्यामा व धन्ना उसकी बात सुनकर अवाक् रह गए ।

धन्ना ने अपनी बात फिर दोहराई “ मुझे कोई जल्दी नहीं है । आप सोच कर जबाब देना । “

धन्ना के जाने के बाद दूसरे दिन श्यामा ने फिर से रोना शुरू कर दिया । कुमार दुलारते हुए उसे चुप कराने का प्रयास करता रहा । वह किसी भी हाल में अपनी मां के आंसू नहीं देख सकता था । वह हर बार विवाह करने की बात पर राजी होने की बात कहता व ऐन मौके पर धन्ना का अपमान करके भगा देता किन्तु धन्ना भी उसका पीछा नहीं छोड़ते हुए बार बार अपमानित होने के बावजूद आ धमकता ।

 
जबरन शादि
एक दिन सदैव की तरह धन्ना घर में आया हुआ था, वह भी कुमार के व्यवहार से निराश हो चला था । वह उसका अंतिम प्रयास था ।

कुमार घर मे नहीं था ।

मेाहन ने चुपके से धन्ना को एक गुप्त योजना समझा दी । धन्ना की आंखें चमक उठी ।

कुछ देर बाद कुमार का घर में प्रवेश हुआ । उसने घृणा से धन्ना को देखकर फुसफुसाते हुऐ कहा,” यह व्यक्ति बड़ा बेशरम है । अनेक बार मना करने के बावजूद यहां चला आता है । ”

कुमार जैसे ही कुर्सी पर बैठा उसके छोटे भाई मोहन ने कसकर कुमार के दोनों हाथ पकड़ लिए ।

धन्ना ने शीघ्रता से कुमार को कुंकू का तिलक लगाकर उसे हार पहनाया व उसके हाथ में एक रूपया व नारियल रख दिया ।

कुमार इस अचानक आक्रमण से संभल भी नहीं पाया कि मोहन जोर से चिल्लाया, “ सगाई की रस्म पूरी हुई ।“

कुमार ने कहा,” मोहन यह तूने अच्छा नही किया । “

फिर वह अपना मन मसोस कर बैठ गया कि कहीं उसकी मां रोना न शुरू कर दे । उसने बेमन से सगाई स्वीकार कर ली I इसके अलावा तब कोई और चारा नहीं था ।

 

 


दूल्हा गायब
पंद्रह दिन बाद बारात के इंदौर से सतवास गांव जाने की तैयारी हुई।

एक बस बारातियों को ले जाने के लिए तैयार थीं । सब बाराती सवार होने को बेताब थे किन्तु तभी एक बड़ी समस्या आ खड़ी हुई, दूल्हा नदारद था।

चारों ओर हाहाकार मच गया ।

सभी ओर दूल्हे को खोजा गया किन्तु वह कही नही मिला। इस पर कुछ लोग चारो दिशाओं मे दौड़े । इधर श्यामा फूट फूट कर रोने लगी। वह स्वयं को कोसते हुए कह रही थी- “ मैने कुमार को शादि के लिए क्यो जबरन मजबूर किया । यदि वह नही लौटा तो हमारी और लड़की वालो की बहुत बदनामी होगी। “

किसी ने कहा “ शायद कुमार स्टेशन पर मिल सकता है । इस पर कुमार का मामा अपने पुत्र के साथ स्टेशन की ओर तेजी से गयां । एक घंटे बाद सत्या मामा और भाई गोपाल, कुमार को दोनो ओर से पकड़े हुए लाए।

कुमार ने जब अपनी मां को बुरी तरह रोते हुए देखा तो उसने मां के पैर छूकर माफी मांगी।

उसने कहा- “ मा मै तेरी आंखो मे आंसू नही देख सकता। अब तू मुझे माफ करदे और तू जैसा कहेगी मै वैसा ही करूंगा । “

इस पर मां बोली – “ बेटा सबसे पहले मेरे घर मे मेरी बहू ला । “

कुमार फुर्ती से बस मे चढ़ गया ।

बारातियों से भरी बस,” गणपति महाराज की जै “ के घोष साथ रवाना हुई ।

रास्ते मे बाराती गाने गाते जा रहे थे। कुछ वृद्ध लोग अपने पुराने जमाने के किस्से सुना रहे थे। फिॅर अंताक्षरी का दौर चला। इस प्रकार हंसी मजाक का दैोर चलते सुबह से शाम हो गई।

उन्होने काफी दूरी तय कर ली थी । अब मात्र दो घंटे का सफर शेष था।

तभी आकाश मे घने बादल छा गए । बड़ी तेजी से हवा का अंधड़ चलने लगा । फिर जोरों की बारिश होने लगी। रास्ते मे एक बड़ा वृक्ष टूट कर गिर पड़ा । बस रूक गई। वह चोर डाकुओं का इलाका था।

सब बाराती बुरी तरह से डरे हुए थे।

उस क्षेत्र में बारात लूटने की कई घटनाएं हो चुकी थी।

टूटे पेड़ ने सारा यातायात अवरूद्ध कर दिया था। इतने मे ड्रायवर को एक ग्रामीण दिखाई दिया। उससे मदद मांगने पर वह अपने कुछ साथियों के साथ लौटा I उनके द्वारा काफी देर तक कुल्हाडियों से पेड़ काटने पर बड़ी मुश्किल से बस के आगे निकलने का रास्ता हो पाया। यात्रियों से भरी बस बड़ी कठिनाई से आगे बढी ।

तभी अंधेरे मे आते हुए एक राहगीर ने उन्हे चेताया- “ आगे मत जाओ । एक रपट पर बाढ़ आ गई है। “

किन्तु बारातियो ने कहा, “ पहले ही हमें काफी देर हे गई है । हमारे यहाँ रूकने पर शादि का मुहुर्त निकल जाएगा । अतः वे आगे बढ़ चले। कुछ दूरी पर उन्हें एक छोटा नाला मिला जिसमे बाढ़ आने के कारण वह एक उफनती हुई नदी बन चुका था। उसमे झोपड़े वृक्ष, मृत पशु आदि बह रहे थे। घनी रात हो चली थी I

ड्राईवर बस को नाले से दूर एक जगह पर खड़ा कर दिया । वह स्थान कीचड़ से भरा हुआ था ।

चारों ओर अँधेरा था । बाहर चोर डाकुओ का डर था। बस के आसपास अनेक जंगली कीड़े पतंगे मंडरा रहे थे । बारातियो को पूरी रात उस घने खतरनाक जंगल मे गुजारना पड़ी ।

दूसरे दिन भोर होते ही नाले का उफान शांत हो चुका था।

बस आगे बढी और एक घंटे बाद गांव में हर्षो उल्लास के साथ पहुंच गई।