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अनजान रीश्ता - 48

अविनाश और पारुल दोनो अपने अपने जीवन मे व्यस्त हो जाते है । अविनाश अपने काम में खुद को इतना व्यस्त रखने लगा कि वह खुद ही भूल गया था कि वह इंसान है । वह खुद को इसी उलझन मै व्यस्त रखना चाहता था ताकि पारुल की कमी उससे महसूस ही ना हो । दूसरी ओर पारुल की भी यादाश्त वापस आ रही थी । जो उसके और अविनाश के बीच में अतीत मै हुआ था उसके मॉम डेड की डेथ सारी बाते उससे याद आ गई थी । इन दिनों पारुल के आंखो से आंसू सूखने का नाम ही नहीं ले रहे थे । एक तो उसके परिवार का बिखरना ऊपर से वहीं इंसान जिम्मेदार है जो सबसे ज्यादा उसके दिल के करीब था । पारुल को अविनाश से ज्यादा खुद पर गुस्सा आ रहा था । वह इतनी बड़ी बात भूल कैसे सकती है । इतनी कमजोर वह पहले तो कभी नहीं थी । शायद अविनाश ने उससे कभी कमजोर बनने ही नहीं दिया जब भी कोई मुसीबत आती वहीं संभाल लेता । पारुल को एक कमी सी खल रही थी । वह चाहती तो नहीं थी पर कहीं ना कहीं वह जानती थी वह क्या महसूस कर रही थी । और अविनाश के साथ आखिरी मुलाकात जो सारी बाते उसने अस्पताल मै कही सारी बाते दिमाग में घूम रही थी । वह बस सोच रही थी कि तभी कोई कहता है । " क्या सोच रही हो ।"

पारुल: ( पीछे मुड़ते हुए ) कुछ नहीं बस यही की लोग कितने दगाबाज होते है । जिससे अपना समझो वहीं तुम्हारी बर्बादी की दुआ करते है । ( आसमान की ऑर देखते हुए ) ।
सेम: ( पारुल की बगल मे खड़े होकर ) तुम जानती हो ना मै हमेशा तुम्हारे साथ हूं । नो मेटर वोट !!! तुम जो भी हो जैसी भी हो । जो भी हुआ हो आई ट्रस्ट यूं । और मै तुम्हारा भरोसा नहीं तोड़ूंगा चाहे जो भी हो ।
पारुल: ( मुस्कुराते हुए आसमान कि ऑर देखते हुए ) आई होप इस बार कोई धोखा ना मिले क्योंकि इसबार अगर ऐसा कुछ हुआ तो मुझे नहीं लगता मै कभी किसी पर भरोसा कर पाऊंगी।
सेम: ( आसमान की ऑर देखते ) पारो! मै जानता नहीं क्या हुआ है पर मुझे लगता है अगर उस इंसान के लिए तुम इतनी ही खास थी तो मुझे नहीं लगता वह ऐसा काम करेगा जिससे तुम्हे चोंट पहुंचे । क्या पता कोई ...
पारुल: कोई ग़लती हो गई हो समजने मे हा.... ( दर्द के साथ हंसते हुए ) हाहाहाहाहा..... मैंने खुद अपनी आंखो से देखा है और मुझे नहीं लगता कभी आंखो देखा गलत हो ।
सेम: हां पर कभी कभी कानो से सुना और आंखो से देखा हुआ भी गलत हो सकता है ।
पारुल: ( सेम को रोकते हुए ) सेम बस... मुझे इस बारे में कुछ बहस नहीं करनी । प्लीज़ ..।
सेम: ( पारुल का हाथ पकड़ते हुए ) फाईन आगे से बात नहीं होगी इस बात पर । अब प्लीज़ एक बार तो मुस्कुरा दो। यार छह महीने हो गए है तुम्हारी पहली वाली मुस्कुराहट देखे । या तो तुम झुठमुट की मुस्कुराती हो या तो अपने मॉम डेड की खुशी के लिए । प्लीज़ ... ।
पारुल: ( सेम की ऑर देखते हुए ) ( मुस्कुराते हुए पर मानो जैसे वह जबरदस्ती कर रही हो खुद के साथ ) में भी कोशिश कर रही हूं । पर ..
सेम: जानता हूं आसान नहीं है । पर तुम सारी जिंदगी भी तो ऐसे गम मै नहीं बीता सकती । सारी जिंदगी तुम्हारे सामने पड़ी है । और फिर मै ... मेरा क्या होगा अगर तुम ऐसे ही गुमशुम रही तो । मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता । मुझे मेरे पहले वाली पारो चाहिए जो खिलखिलाती थी । मुझे परेशान करती थी । क्या मै कुछ ज्यादा मांग रहा हूं अपने लिए ( पारुल की ऑर देखते हुए ) ....।
पारुल: ( सिर ना मे हिलाते हुए ) बिल्कुल भी नहीं ... मुझे थोड़ा और वक्त दो .... !।
सेम: ( पारुल की ऑर देखते हुए ) जितना वक्त चाहिए ले लो पर खुद को इतना भी दर्द ना पहुचाओ की भूल ही जाओ की तुम जिंदा हो मरे हुए । और एक दोस्त की हैसियत से कह रहा हूं ना की तुमसे प्यार करता हूं इसलिए। कभी कभी कुछ बाते या चीज़ को जैसा है वैसा भूल जाए तो बेहतर है याद रखोगे तो तुम्हे ही दर्द मिलेगा । जो था वो अतीत था और जो है तुम्हारा आज है । तो अभी के लिए जिओ .... प्लीज़ .।
पारुल: ( गहरी सांस लेते हुए ) फाईन .... आई विल मुव ओन ...!।
सेम: ( मुस्कुराते हुए ) सच मे ..!?
पारुल: ( सिर हां मे हिलाते हुए ) ।
सेम: ( पारुल को उठाते हुए उससे घुमा रहा था ) ( चिल्लाते हुए ) पारो ... पारो.... ओह माय गॉड आखिरकार भगवान ने मेरी सुन ही ली । मुझे मेरी पारो फाईनली ... थैंक्यू थैंक्यू... ।

पारुल: ( सेम के कंधे पर चांटा मारते हुए ) सेम!! नीचे उतारो मुझे ..! ।


सेम: ओह सॉरी सॉरी ... मै कुछ ज्यादा ही खुश हो गया था । पर तुम्हे पता है मै आज बहुत बहुत ही ज्यादा खुश हूं।


पारुल: दिख रहा है मुझे ( मुस्कुराते हुए ) ।


सेम: है ना ... मै कभी अपनी खुशी छिपा ही नहीं सकता मां भी यही कहती है ।


पारुल: तुम्हे आज क्या और कोई काम नहीं है !!?।


सेम: है क्यो !!?।


पारुल: जाओ काम करो फिर या पूरा दिन यही बिगाड़ना है ।


सेम: अच्छा तो तुम मुझे भगा रही हो हां!! ( झुठमुठ का रूठते हुए ) ।


पारुल: सेम मेरा वो मतलब नहीं था ।


सेम: अच्छा तो क्या मतलब था तुम्हारा!? ।


पारुल: सेम..!?


सेम: पारुल!!.?


पारुल: ( सेम की ऑर देखते हुए ) ओह माय गॉड तुम सच मे नाराज़ हो गए हो क्या!? क्योंकि तुमने मुझे पारो के बजाय पारुल कहके बुलाया । .. ।


सेम: हां तो तुम्हे क्या लगा मै मजाक कर रहा था ।


पारुल: अच्छा सॉरी ना .. सच मे मेरा वो मतलब नहीं था । मै तो वो .. ।


सेम: ( हाथ पकड़कर अपने करीब करते हुए ) तुम तो क्या .. !? ( पारुल के बाल कान के पीछे करते हुए )


पारुल: ( गुस्से में सेम को मुक्का मारते हुए ) सेम के बच्चे... मुझे डरा ही दिया था । रुक तू अब ... .। ( टेबल पर से वास उठाते हुए )


सेम: ( सोफे की ऑर भागते हुए ) पारो.. अभी बच्चे तो नहीं है मेरे तो तुमसे शादी होगी उसके बाद देखेगे .. और अगर मै मर गया अभी तो वो भी सपना अधूरा रह जाएगा तुम्हारा ..!।


पारुल: क्या.. क्या बके जा रहे हो ..!?


सेम: अरे !! अभी तो तुमने कहां ना सेम के बच्चे... हां तो बच्चो के लिए मॉम भी तो चाहिए ना .. और तुम्हारे हाथ में वास है देखो अगर वह मेरे सिर पर लग गया तो फिर मै ऊपर तुम विधवा और बच्चे तो फिर पता ही नहीं .. ( पारुल को चिढ़ाते हुए ) ।


पारुल: ( शर्म के मारे लाल टमाटर के जैसे हो गई थी ) ...।


सेम: ( पारुल के हाथ में से वास लेते हुए ) अच्छा अब मै चलता हुए मेरे होने वाले बच्चो की मॉम ... । ( दरवाजे की ऑर भागते हुए) ।


पारुल: ( गुस्से में सेम के पीछे भागते हुए ) सेम ... कुत्ते कमीने.. लोमड़ी के दिमाग वाले इंसान तुम कभी नहीं सुधरोगे..!।


दूसरी ओर सेम के जोर जोर से हंसने की आवाज आ रही थी । इतने महीनों के बाद कुछ हंसी का माहौल देखकर पारुल के मॉम डैड भी खुश थे । जैसे ही सेम अपने घर की ऑर जा रहा था । तभी किरीट सेम को गले लगाते हुए कहता है ।


किरीट: शुक्रिया तुम्हारा एहसान मै कभी नहीं चुका पाऊंगा । भले ही मै पारुल का पिता नहीं हूं । पर मैंने अपने दोस्त को आखिरी वक्त पर वादा किया था कि मै पारुल को हमेशा खुश रखूंगा और अपनी सगी बेटी से भी ज्यादा प्यार करूंगा । शुक्रिया तुमने कितनी बड़ी मदद की है तुम नहीं जानते ।


सेम: अंकल शुक्रिया कहकर आप मुझे पराया कर रहे है । और पारुल को दुखी मै भी नहीं देख सकता । तो ये काम मैंने अपनी खुशी के लिए भी किया है ।


किरीट ( सिर को हिलाते हुए सेम की बात मै हामी भरता है ) सेम बाय कहकर वहा से अपने घर की ऑर निकल पड़ता है । दूर से पारुल इन दोनों की बात सुन रही थी । और सोच रही थी उसने कितना परेशान किया इन लोगो को और वो भी उस इंसान ( अविनाश ) की वजह से जिससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता । पारुल सोचती है वह अब अविनाश के धोखे कि वजह से इन लोगो को दुखी नहीं कर सकती और फालतू मै अपना वक्त क्यो बरबाद करना जब अविनाश को पस्तावा है ही नहीं की उसने क्या किया वह तो अपनी जिंदगी एशो आराम से जी रहा है । वह इंसान के नफरत के काबिल भी नहीं है। आंसू तो दूर की बात है । बस अब उससे ना ही याद करेगी ना ही खुद को दर्द पहुचायेगी । यह सोचते हुए वह खाने के टेबल पर जाके बैठती है और कहती है कि मां नास्ता दो । जिससे उसके मॉम डेड के चहेरे पे मुस्कुराहट आ जाती है ।