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पवित्र रिश्ता... भाग-३

"आखिर ऐसा भी क्या गुस्सा हिमांशु और फिर वो हमारे पापा हैं, कोई गैर तो नहीं हैं मेरे भाई!", गरिमा यानि कि हिमांशु की बड़ी बहन नें हिमांशु से कहा ।

"प्लीज़ दीदी,मैं इस बारे में बात करके आपको और परेशान नहीं करना चाहता ।", हिमांशु नें एक गहरी साँस खींचते हुए जवाब दिया ।

अरे,अगर तुझे अपनी दीदी की परेशानी की इतनी चिंता है तो तू घर वापिस क्यों नहीं चला जाता ? देख मुझे बहुत अच्छे से पता है कि तेरी इस कंपनी की एक ब्रांच वहाँ फरीदाबाद में भी है और फिर तुझे ये जॉब करने की ज़रूरत ही क्या है ? तू बस अपना सीऐ कम्प्लीट कर,दैट्स इट ! इस बार गरिमा का स्वर कुछ ऊँचा हो चुका था । कुछ देर चुप रहने के बाद उसनें फिर से बोलना शुरू किया...देख हिमांशु पापा वहाँ घर में अकेले हैं,अब दिन-प्रतिदिन उनकी उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी सेहत भी गिरती जा रही है और मुझसे उनकी ये हालत,उनका ये अकेलापन अब और नहीं देखा जाता....तू समझ क्यों नहीं रहा है मेरी बात ? ? ? चीख पड़ी गरिमा ।

और माँ का अकेलापन ! क्यों दीदी माँ का अकेलापन, उनकी परेशानी,उनकी बढ़ती उम्र और गिरती सेहत , उसका क्या ? हाँ...बोलो दीदी, क्या वो सब नहीं दिखा आपको कभी ?

देख हिमांशु, ये वक्त अब उन पुरानी बीती हुई बातों को करने का नहीं है ।

अच्छा ! दीदी आपके लिए जो बातें पुरानी और बीती हुई हैं न वो ही बातें मुझे रात-रातभर सोने नहीं देती हैं और दीदी आप तो हॉस्टल में थे और उसके बाद ससुराल में ! मैंने...मैंने अपनी माँ को उस आदमी के साथ तिल-तिलकर मरते देखा है दीदी । मैंने देखे हैं मेरी माँ के वो दर्दभरे आखिरी दिन...कहते-कहते हिमांशु बिखर गया । गरिमा नें उसे चुप कराने का बहुत प्रयास किया लेकिन उसके आँसू थे कि न थमने की जिद्द किए बैठे थे ।

गरिमा कुछ देर बाद अपने घर चली गई लेकिन हिमांशु अभी भी सोच के उसी सागर में डूबा था जिसमें गरिमा उसको अंजाने में डुबोकर चली गई थी ।

आज रात हिमांशु की आँखों से नींद कोसों दूर थी । गरिमा द्वारा कही गई बातों नें आज उसे अपने अतीत में झाँकने पर विवश कर दिया था जिसे वो कभी भूलकर भी याद नहीं करना चाहता था और शायद उसी दर्दभरे अतीत की छाया से बचने के लिए ही आज वो अपने घर से दूर यहाँ नोएडा में रहने लगा था !

हिमांशु की माँ की मौत वैसे तो कैंसर से हुई थी लेकिन उन्हें उस तकलीफ़ तक पहुँचाने वाला जो था, दरअसल वो ही उनके अंत की असली वजह था !

"खाना लगा दूँ ", हिमांशु की माँ नयना जी नें हिमांशु के पापा, प्रदीप जी जो कि अभी कुछ देर पहले ही शराब का भभका मुँह से छोड़ते हुए घर में घुसे थे, से कहा !

क्या बनाया है स्पेशल खाना !

"जी स्पेशल क्या ? दाल, चावल , भिंडी की सब्जी और रोटी !", डरते-डरते नयना जी नें उत्तर दिया ।

साली...जवाब देती है...कहते हुए प्रदीप नें नयना को पीटना शुरू कर दिया जिसपर नयना नें एक बार फिर से सहमते हुए कहा...आपनें ही तो पूछा था !

अच्छा ! अब तू मुझसे जुबान भी लड़ायेगी ! बहस करती है, मुझसे ।

चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनकर पाँच साल का नन्हा हिमांशु अपने कमरे में से दौड़ता हुआ आया और अपनी माँ से लिपटकर सुबकने लगा । हिमांशु के पापा अब अपनी नपुंसकता का नगाड़ा बजाकर वहाँ से जा चुके थे मगर हाँ वो अपने कमरे में जाते-जाते अपने कुकर्मों की निशानी के रूप में वहाँ सोफ़े पर उल्टी करके ज़रूर छोड़ गए थे ।

नयना जी, यानि कि हिमांशु की माँ ने पहले उसे पुचकार कर चुप कराया और इसके बाद उन्होंने नन्हे हिमांशु को जो कि आज शाम से ही अपने पापा के साथ खाना खाने की जिद्द करके अभी तक भूखा था, को अपने हाथों से खाना खिलाकर थपकियाँ देकर सुला दिया । इसके बाद वो फिर से ड्रॉइंग-रूम में आकर सोफे पर पड़ी हुई उल्टी साफ करने लगीं,उनके आँसू अभी भी उनके गालों से ढुलकते हुए उनका आँचल भिगो रहे थे और इधर नन्हा हिमांशु भी अपनी माँ के अपने पास से उठकर चले जाने के बाद सहमकर उठ चुका था और अब वो दरवाज़े के पीछे खड़े होकर अपनी माँ को रोते और सफाई करते हुए बड़े ही ध्यान से देख रहा था । हिमांशु के सुबकने की आवाज़ सुनकर नयना नें पीछे मुड़कर देखा और फिर वो एक बार पुनः हिमांशु को अपनी गोद में लेकर बेडरूम में चली गई !

डोरबेल की आवाज से अपने अतीत के घने अंधेरे में खोया हुआ हिमांशु वापिस वर्तमान में लौट चुका था और जब उसनें दरवाजा खोला तो बाहर उसका दोस्त रोहित एक हाथ में खाना और दूसरे हाथ में शराब की एक बॉटल लिये खड़ा था ।

"मैंने तुझे पहले भी कितनी बार समझाया है कि मैं शराब नहीं पीता और न ही अपने फ्लैट में किसी को शराब पीने देता हूँ !" , हिमांशु की आवाज़ में गुस्सा था जिसे रोहित नें तुरंत ही भाँप लिया ।

"ओके...ओके ! चिल ब्रो ! मैंने तुझे कब कहा कि तू ये शराब पी और रही बात मेरी तो ले मैं भी नहीं पीता मगर तू अपना मूड खराब मत कर यार", रोहित नें बॉटल को एक तरफ़ रखते हुए कहा । ये देख मैं तेरे लिए तेरे फेवरेट सरदार जी के छोले-भटूरे लाया हूँ ,ये तो खायेगा न !

अगले दिन हिमांशु जब सोकर उठा तो उसका सिर मानों दर्द से फटा जा रहा था । उसनें अपने ऑफिस में फोन करके थोड़ी देर से आने के लिए बोल दिया । फ्रेश होकर हिमांशु नें अपने लिए कॉफी बनाई और आज वो एक बार फिर से अपने फ्लैट के ठीक सामने वाले फ्लैट की खुली हुई खिड़की से झाँकते हुए उस हरेभरे पौधे को निहार रहा था । उस हरे रंग को आँखों में भरते-भरते कब उसका सिर दर्द ठीक हुआ इसका एहसास तो स्वयं उसे भी नहीं था और फिर कुछ ही देर में वो ऑफिस जाने के लिए तैयार खड़ा था ।

चूंकि आज उसका दोस्त रोहित पहले ही जा चुका था इसलिए हिमांशु बस अपने फ्लैट से निकलकर लिफ्ट से होता हुआ सीधे अपनी बाइक स्टार्ट करके सोसायटी के मेन गेट की ओर चल दिया । वो मेन गेट से बाहर निकल ही रहा था कि तभी उसकी नज़र साइड में खड़ी एक कार पर पड़ी जिसमें से किसी आदमी के चीखने की आवाज़ और किसी औरत के रोने की आवाज़ आ रही थी और ध्यान से देखने पर हिमांशु को ये एहसास हुआ कि ये तो वो ही सीढ़ियों वाली लड़की थी लेकिन आज उसनें शायद साड़ी न पहनकर कोई वैस्टर्न-ड्रेस पहनी हुई थी ।

हिमांशु इससे ज्यादा कुछ देख,सुन या समझ पाता उससे पहले ही वो गाड़ी तेजी से धूल उड़ाती हुई उसकी आँखों से ओझल हो गई ।

अब ये हिमांशु की दर्दभरी ज़िंदगी में आने वाले किसी नये दर्द की आहट थी या हिमांशु का कोई भ्रम ! ! !

जानने के लिए अपना साथ बनाए रखें... क्रमशः

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐