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स्वतन्त्र सक्सेना की कहानियां - बद्री विशाल - 2

बद्री विशाल सबके हैं 2 कहानी

स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

समीक्षा

स्वतन्त्र सक्सेना एक परिपक्व और विचारशील रचनाकार हैं, वे निबन्ध लेखक और कहानीकार हैं। उनकी कहानी जमीन से जुड़ी रहती हैं जो रोचक और विश्वसनीय भी होती हैं। भाषा पर उनका असाधारण अधिकार है। जनवादी चेतना से लैस उनकी कहानियां पाठक को भीतर से स्पर्श करती हैं।

वेदराम प्रजापति

वे दो दिन –तीन दिन में हरिद्धार पहुंचे वहां सब लोग रूके गंगा स्‍नान किया ,मंदिर घूमे, सबने अपनी- अपनी श्रद्धानुसार आवश्‍यक पूजा पाठ किया। डा.अहमद दम्‍पति वहां अपने एक मित्र डाक्‍टर साहब से मिलने गए साथ में डा.माथुर साहब व श्रीमती डा. माथुर भी गए। वहां जाकर पता लगा उन डा. साहब की पत्‍नी जो स्‍वयं डा. थी श्रीमती डा. माथुर की क्‍लास फेलो निकलीं। बहुत दिन बाद दो सहेलियां मिलीं ।

वे सब गायत्री संस्‍थान भी गए बहुत से लोग सस्‍ंथान के व गुरू जी के अनुयायी थे। वहीं सबने भोजन (लंच) किया कई लोगों के मित्र व परिचित मिले। बहुमूल्‍य सलाह मिली मार्ग दर्शन मिला ।

आगे वे रिषीकेश पहंचे वहां भी सब लोग पुन: रूके। हालांकि गाड़ी चालक ने कहा जल्‍दी कर लें आगे कठिन मार्ग है देर लगेगी। फिर गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ होते वे अंत में बद्रीनाथ धाम पहुंचे तब तक शाम हो गई थी ।वहां पंडा जी से सम्‍पर्क किया वे मिल गए आज पंडा जी के साथ एक नौजवान था जो उनकी तरह ही गोरा- चिट्टा पहाडी चेहरे -मोहरे का था पर उनसे एक बलिश्‍त ऊंचा स्‍मार्ट था

पूंछने पर पंडा जी ने बताया-‘ मेरा बेटा रूडकी से इंजीनियर है, अभी आया है, साथ मदद करता है, एम. बी. ए.कर रहा है, वैसे एम. टेक. कर लिया है,।.एक साल दुबई काम कर आया है ,अब जाने क्‍या सूझी बोला-‘ एम. बी. ए. और करूंगा,।‘ मैने कहा-‘ यह भी कर लेा, जब तक मैं हूं मन की सारी इच्‍छाएं पूरी करलेा, बाद की तुम जानो।‘ सब हंसने लगे ।

उसने सबको नमस्‍ते किया पंडा जी ने कहा-‘ ये सामान्‍य यजमान नहीं हैं ,सब मेरे मित्र हैं ,तेरा टेस्‍ट लेंगे, असली एक्‍जाम।‘

तो सब हंस पड़े वह भी मुस्‍कराया-‘ I am ready जैसा आप चाहें ।‘

उसने फिर से सर झुका कर नमस्‍कार किया-‘ I accept your challenge, I will serve my best(आपकी चुनौती स्‍वीकार है पूरे समर्पण से श्रेष्‍ठ सेवा दूंगा ) ।‘

सब लोगों को पहले चाय दी गई फिर थोड़ी देर में बताया भोजन तैयार है आप लोग फ्रेश हो लें तब तक आरती का समय हो गया था उत्‍साही सदस्‍य मंदिर जाकर आरती में सम्मिलित हो आए भीड़ कम थी सर्दी की आमद -आमद थी ।

सब लोग जिन्‍हें नहाना था या हाथ पैर धोना थे अन्‍य क्रियाओं से निवृत्‍त ,तैयार हो लिए, तब तक खाना आ गया, सब ने भोजन किया । ठहरने को तीन छोटे कमरे थे एक बडा हॉल था। सामान लगाया, बिस्‍तर लगाए, थके थे ,सब आराम करने लगे ।

दूसरे दिन सुबह नइ्रमा जल्‍दी जाग गई, उसने अलार्म लगा रखा था ।वह उठी फ्रेश हुई व नहा ली व तैयार हो गई । फिर डा.अहमद को जगाया-‘ पापा उठो।‘ वे फ्रेश होने चले गए व ब्रश करके उन्हें नहाने भेजा।

कह रही थी-‘ फिर सब लोग जाग जाएंगे।‘ वह किसी को मोबाईल से कॉल कर रही थी विशेष टाईम पूंछ रही थी तब तक पटेल साहब जाग गए व अहमद साहब के बाद वे फ्रेश होने गए व ब्रश कर रहे थे तो नईमा और डाक्‍टर साहब हॉल में एक कोने में फर्श फिर से झाड़कर बिछाने लगे व चादर फटकार कर बिछाई वे दोनो बाहर बरांडे में आए और सूरज के उगने को देखने लगे व पश्चिम का अंदाजा लगाया। पटेल साहब तब तक मुंह धो रहे ,थे उन्‍हें रूकने का हाथ से इशारा किया व बाथ रूम में जाकर वजू(विशेष तरह से नमाज के पूर्व हाथ पैर व मुंह धोना ) बना कर आ गए।

तब तक वे बाप -बेटी दोनें अगल बगल खड़े हो गए थे, अहमद साहब ने सर पर रूमाल बांध लिया व बेटी हिजाब पहने थी ।वे दोनो बाप बेटी समान ऊंचाई के थे दोनो लगभग छ:फीट ऊंचे बेटी दुबली होने से जब वे दूर खडे होते थे तो अहमद साहब से ज्‍यादा लम्‍बी लगती थी जल्‍दी -जल्‍दी तेज कदम से पटेल साहब जाकर उनके बगल में खडे हो गए वे भी समान लम्‍बाई के थे पर दोनो से ज्‍यादा चौडे। मुस्‍करा कर बोले-‘ मैं बशीर खान ।‘ अहमद साहब ने घड़ी देखी नईमा की ओर निगाहें का इशारा किया, वे सब अब सामने देख रहे थे आंखें आधी बंद हो गई, अहमद साहब ने कान तक हाथ उठाऐ और मध्‍यम आवाज में खास सुर में लम्‍बा खींचते आवाज लगाई, अल्‍लाहो –अकबर ....... नमाज प्रारम्‍भ हो चुकी थी बाकी दोनों उनका अनुगमन कर रहे थे ।तब तक डा. माथुर ने हॉल में प्रवेश किया उन्‍होंने बाहर से आवाज लगाई-‘ पटेल साहब।‘ अन्‍दर से श्रीमती पटेल ने माथुर साहब की ओर ओंठों पर उंगली रख कर चुप रहने का ईशारा किया वे अंदर आए और उन तीनों को लाईन में लगे खड़े देख कर समझ गए पर पटेल साहब की ओर अंगूठे से इशारा कर हाथ प्रश्‍न वाचक मुद्रा में हिलाए आंखें भी चौड़ी हो गई बाहर चले गए लगभग बीस पच्‍चीस मिनिट बाद सब लोग घुटनों के बल दो जानु बैठे थे अब वे अपनी गर्दन दांएं बाएं कर रहे थे व हजरत मोहम्‍मद को सलाम कर रहे व आभार व्‍यक्‍त कर रहे थे तत्‍पश्‍चात सब खड़े हो गए अहमद साहब पटेल साहब के गले मिल कहा ईद मुबारक नईमा को भी ईद मुबारक दी पटेल साहब ने भी नईमा को ईद मुबारक दी श्रीमती पटेल आगे बढ़ीं व नईमा के गले मिलीं ईद मुबारक । तब तक श्रीमती डा.माथुर अंदर आईं वे हाथ में एक डिब्‍बा लिए थीं वे डिब्‍बा आगे बढ़ाते बोलीं ईद मुबारक एक एक ले लें अहमद साहब बोले-‘ सब लोग लें ।‘तो मिसेज डा. माथुर ने कहा-‘ अभी नहाया नहीं है, हम सब यहां गर्म पानी के कुंड में नहाने जाएंगे ,फिर मंदिर जाएंगे तभी कुछ खाएंगे जो आप कर रहे वही समस्‍या मेरे साथ है ससुर साहब हैं फिर पिताजी- माता जी हैं, अभी माता जी साक्षात काली माई बन जाएंगी-‘ डाक्‍टर बन गईं तो धरम करम सब भूल गईं ?’,आप लें, व सब बच्‍चे लें ,थोड़ा मुंह जरूर मीठा कर लें सुन्‍नत अदा करें ।‘डा.अहमद संकोच से बोले –‘मैं कोई ज्‍यादा धार्मिक नहीं हूं ,अब वहां कहता ईद है, तो सबका प्रोग्राम बिगड़ जाता ,जैसे तैसे तो बना ,नईमा तो कह रही थी, पर उसे समझा दिया, अब यहां मसजिद न जाने कहां होगी? कितनी दूर होगी ? होगी भी कि नहीं ?अत: यहीं पढ़ ली बच्‍चे इमोशनल होते हैं, अब बेटी है, शादी तो पठानों में ही करना होगी। तो धर्म - रिवाज सिखाना पड़ते हैं वरना ससूराल में व्‍यंग्‍य कसेंगे, परेशानी होगी। सिखाते हैं ,तो वे मन पर असर भी करते हैं ।‘ तब तक पंडा जी का बेटा हॉल में घुसा डा. अहमद की आधी अधूरी बात सुन कर एक दम से बोला –‘ कोई जरूरी नहीं है।‘डा.अहमद व अन्‍य लोग उसकी बात सुन कर मुस्‍कराने लगे ।तो बोला -'It’s modern era (यह आधुनिक युग है) सर जी Now We should leave aside our cast religion superstition and Dogma etc...।‘(अब हमें जाति धर्म समप्रदाय के भेद भाव छोड़ देना चाहिये अंधविश्‍वास व तद्जनित अंहकार को भी) पटेल साहब ने ठहाका लगाया बोले-‘ तो बोलो जेन्टिलमेन ! पंडा जी से बात करें?’तो वह झेंप गया पर दम लगा कर रूक कर बोला –‘पंडा जी! की वे जानें, आपकी सर जी !आप, मैने अपने विचार बताए।‘ सब लोग जोर- जोर से हंसने लगे नईमा भी जो उसकी बातें ध्‍यान से सुन रही थी सहमत सी लग रही थी प्रभावित थी शर्मा कर बाहर चली गई । वह बोला –‘सर जी यह केवल मेरी बात नहीं हैं बहुत सारे लोग scientific attitude, temper ,Rational thinking, and humanitarian aproach (वैज्ञानिक दृष्टिकोण वैज्ञानिक सोच तर्कसंगत विचार मानवीय संवेदना आदि )की बात करते हैं ,आप सब लोग बड़े हैं, मेरे से ज्‍यादा पढ़े लिखे अनुभवी हैं, मैं भावा वेश में शायद ज्‍यादा बोल गया मुझे माफ करें ।‘ वह चाय नाश्‍ते की पूंछने आया था पर डा.माथुर ने कहा हम सब लोग नहीं पियेंगे, हां कुछ वृद्ध व वरिष्‍ठ हैं जिन्‍हें सुबह लगती ही है तो चाय तो मंगवा दें पर नाश्‍ता बाद में ।‘सब ने हां कहा। वह चला गया ।वह थोड़ी देर में चाय लेकर आया । डा.अहमद ने पटेल साहब से अपनी पीड़ा साझा की-‘ अब कैसी भी मॅाडर्न फेमिली हो ,लड़की से तो एक्‍सपेक्‍ट करते हैं, मुसलमान वातावरण बदलने से ज्‍यादा ि‍‍डफेंसिव हो गए हैं, ज्‍यादा ऑर्थोडॉक्‍स हो गए हैं।‘ –‘लम्‍बी लड़़की की अपनी समस्‍या है ,लम्‍बे लड़के तो कम लम्‍बी लड़की से शादी कर लेंगे, पर अपने से ज्‍यादा लम्‍बी लड़की से कम लम्‍बा लड़का तैयार नहीं होता ,अब लड़की पढ़ी लिखी हो तो और अगर लड़के से बेहतर जॅाब में है, तो बिल्‍कुल ही नहीं बहुत सारी बातें देखना पड़ती हैं।,’जाति बिरादरी के घेरे में तो आज कल बहुत मुश्किल हो गया है ।‘ पटेल साहब-‘ मेरी बेटी भी नईमा की हाईट की ही है, एम. टेक है ,बंगलौर में जॅाब में है, लड़का ढूंढने में बड़ी मुश्किल आई लड़का समान लम्‍बाई का मिलता तो पढ़ाई लिखाई की बात उठती कहीं, परिवार से मन नहीं भरता बहुत रूि‍ढ़वादी होते अगर परिवार में सब कुछ ठीक होता तो वे बहुत घमंडी होते उनकी बहुत ज्‍यादा मांग होती नखरे होते हमें कुछ नहीं समझते इसी लिए तो ये (पत्‍नी की ओर इशारा करते हुए्)कहती थीं कि कि इतना मत पढ़ाओ लड़की की जात पर बेटी इंटेलीजेंट थी उसे पढ़ाई से रोकना उस पर अन्‍याय लगता था ।पर जो लड़का मिला बिटिया से दो इंच/ चार अंगुल कम है, वे तैयार हो गए मैने शादी कर दी, जॅाब दोनों का बराबर है संतुष्‍ट हैं । ‘ उनके शब्‍दों से तो लग रहा था कि वे संतुष्‍ट हैं पर चेहरा बता रहा था कि वे कहीं गहरे असंतुष्‍ट हैं रिश्‍ते में कोई कमी कोई कसर लगती थी ।

अब सब लोग स्‍नान के लिए गर्म पानी के कुंड पर पंहुचे डा.अहमद व नईमा ने नानी को पकड़कर कुंड में उतारा डुबकी लगवाई उन दोनो के कपड़े भी गीले हो गए अन्‍य सब लोगों ने भी स्‍नान किया डुबकियां लगाईं कपड़े बदले सब लोग गीले कपड़े लेकर फिर ठहरने के स्‍थान पर पहुंचे कपड़े सूखने डाले कुछ ने फिर से अच्‍छे कपड़े बदले अब सब लोग मंदिर की ओर चले वहां दुकानों से पूजा की थालियां लीं अहमद साहब ने भी दो पूजा की थालियां लीं एक नानी के लिए एक डा. श्रीमती शैलजा अहमद के लिए दोनो थालीं डा.शैलजा को थमा दीं । डा. साहब चुपके से डा.शैलजा अहमद से बोले –‘आप मां को लेकर मंदिर में चली जाना मैं व नईमा सीढि़यों के पास रूक जाएंगे आपका इन्‍तजार करेंगे ।वे जानबूझ कर ग्रुप से पीछे हो गए ,डा.साहिबा आगे चलीं थालियां लेकर सीढि़यां चढ़ रहीं थीं पीछे से नानी चढ़ीं वे बूढ़ी तो थीं ही थोड़ी मोटी भी थीं दो तीन सीढि़यों के बाद लड़खड़ा गईं डा.साहब लपक कर ऊपर चढ़े व अपनी सास के बाजू थाम लिया नईमा ने दौड़ कर दूसरा बाजू थाम लिया अब वे दोनों उन्‍हें पकड़ कर सीढि़यां चढ़ा रहे थे ।मंदिर के सिंह द्धार पर पहुंच कर थोड़ा रूके नानी हांफ गईं थीं तब तक एक अनजान ग्रुप के आठ-दस लोगों का रेला आया डा. साहब रूक न सके वे सास व नईमा के साथ अंदर धकेल दिए गए अब नानी फर्श पर बैठ गई डा. साहब ने इनहेलर बैग से निकाल तैयार किया व उन्‍हें सांस खींचने को कहा दो चार सांस खीचने के बाद वे थोड़ा ठीक थीं।अब नानी फर्श पर बैठ गईं उन्‍हों ने घुटनों के बल बैठ कर दोनों हाथ जोड़कर माथा जमीन से लगा कर भगवान को प्रणाम किया उनकी एक बड़ी इच्‍छा पूर्ण हो गई थी । डा. शैलजा ने एक थाली नईमा को दे दी व दूसरी थाली मां के हाथ से स्‍पर्श करा कर पंडा जी को देने आगे बढ़ी नईमा थाली लिए खड़ी थी तो पंडा जी के बेटे ने नईमा के हाथ से मुसकराते थाली ले ली और भगवान के पास खड़े मुख्‍य पुजारी जी को चढ़ाने को दे दी । अब डा. अहमद साहब को होश आया कि वे बद्री नाथ भगवान के सभा मंडप में खड़े हैं वे चारों तरफ देख रहे थे उनके ग्रुप के लोग रेलिगं के पास दर्शन कर रहे थे कुछ लोग प्रसाद की थाली पंडा जी को देने को व्‍यग्र थे कुछ लोग हाथ जोड़े आंखें बंद किये मन ही मन कोई धीरे -धीरे बोल कर कोई मंत्र या श्‍लोक दुहरा रहे थे बुदबुदा सा रहे थे । कोई अपनी कामना पूर्ति को गिड़गिड़ा रहे थे। कुछ लोग भगवान की मनोहर मूर्ति के अपलक दर्शन कर रहे थे कोई अपनी कामना पुर्ति होने पर धन्‍यवाद ज्ञापित करने आए थे बारबार माथा टेक रहे थे ।भीड़ ज्‍यादा नहीं थी सर्दी का समय था अत:कम लोग थे ।वे तनाव में आ गए । पंडा जी अतिव्‍यस्‍त थे थोड़ा समय मिलते ही डा. साहब के करीब आए धीरे से बोले –‘रिलेक्‍स डोन्‍ट बी टेन्‍स ।‘ वे थोड़ा सहज हुए ।पर संकोच में थे ।तब तक पंडा जी का बेटा उनसे बोला –‘सर डोन्‍ट बॉदर यहां कोई किसी को नहीं देखता सब अपने में डूबे हुए हैं ।आराम से खड़े हों हाथ जोड़ लें भगवान के दर्शन करें ।‘तब तक डा. शैलजा अहमद ने डा. साहब को बुलाया दोनो नानी को दोनों बाजू से पकड़ कर रेलिगं के पास ले गए पंडा जी ने उन्‍हें बुलाया था वे उन्‍हें पकडें खड़े थे । नईमा दूर खड़ी थी तो पंडा जी का बेटा उसके पास आया धीरे से फुसफुसाते बोला-‘ मेरे लिए भी दुआ करें ।नईमा आंख बन्‍द किए ही हाथ जोड़े मन्‍द स्‍वर में बोली आप की दुआ तो पंडा जी कबूल करें गे फिर पंडा जी से यह मदिर ही नहीं हो सकता है बस्‍ती भी छूट जाए ।‘ पंडा जी का बेटा -'I am still ready(मैं तब भी तैयार) ।‘नईमा –‘रिश्‍तेदार शुभाकांक्षी मित्र सब किनाराकशी कर लेंगे सोच लेना पंडा जी से पूंछ लेना इतनी जल्‍दी फैसला नहीं । पंडा जी का बेटा –‘ मैने सोच लिया

तुम बताओ ।‘ नईमा –‘ मैने एम. बी. बी. एस. कर लिया है । प्री. पी. जी. का टेस्‍ट दे दिया है रिजल्‍ट का वेट कर रही हूं किसी न किसी विषय में हो ही ज ाएगा फिर दो ढाई साल का समय लगेगा कोर्स पूरा होने में तब तक यदि जोश बाकी रहे तो I will wait you ,welcome you (मैं आपकी प्रतीक्षा करूंगी स्‍वागत करूंगी) वरना कोई बात नहीं अच्‍छी तरह सोच लें टाईम है मजाक नहीं आप भगवान के मंदिर में खड़े हैं हो सकता है तब तक मन बदल जाए ।‘तब तक पटेल साहब की थाली भगवान को चढ़ा दी गई थी श्रीमती पटेल प्रसाद ले रहीं थीं पटेल साहब ने देखा पंडा जी का बेटा नईमा से बात कर रहा है तो वे उसके निकट जल्‍दी तेज चलते आए बोले –‘क्‍या कह रहा था ?परेशान तो नहीं कर रहा था ? ‘नईमा –‘नहीं अंकल He was quite sober but enthusiastic proposing me again and again।‘( वह विनम्र है पर अतिउत्‍साही है मेरे को बार बार प्रस्‍तावित कर रहा था कुछ सुन ही नहीं रहा)।‘ पटेल साहब –‘लड़कों में कुछ बचपन से ही प्रवृत्ति होती है जो चीज पसंद आ गई उस पर अधिकार होना न मिले तो तोड़ -फोड़ करना तुम उसे पसंद आ गई हो तो वह किसी भी तरह पाना चाहता है ।‘ नईमा –‘नहीं अंकल होती नहीं है अपने लाड़ के लल्‍ले में मां बाप भर देते हें लड़की को दबा कर रखते हैं तुम लड़की हो तुम्‍हें दूसरे घर जाना है उसे बार- बार धमकाया जाता है ।अब अंकल मान लो मैं उससे शादी कर लूं तो पंडा जी का मंदिर छूटा तो उसका कारण मैं, दस लाख का दहेज का नुकसान तो कारण मैं, सामाजिक बदनामी तो कारण मैं, लड़का तो भोला भाला था, लड़की ने फंसा लिया, फिर राजा बेटा आज्ञाकारी श्रवण कुमार बन जाएगा, कहेगा ‘मैं मां बाप को नहीं छोड़ सकता सुननी पड़ेगी ‘ मैं काहे को झेलूं ।‘ पटेल साहब –‘अरे नईमा बेटे तुमने तो बहुत सारी कल्‍पना कर डाली ।‘नईमा –‘ नहीं अंकल यह कल्‍पना नहीं है I under went such humiliation and hatred ( मैं इन उपेक्षा और घृणा से गुजरी हूं) मैंने मां को सुनते झेलते देखा है वह तो डॉक्‍टर होने के कारण व सरकारी नौकरी से अलग रहती हैं सेल्‍फ डिपेन्‍ड है तो कम है और स्‍टाफ की आंटींज को देखा है बार बार कलह होती है ।आखिर सहना दबना झेलना सब औरत को ही पड़ता है । ‘

पटेल साहब –‘–मैने भी ये सब सहा है। मेरी मां को भी पिताजी भगा कर लाए थे(दादी बार बार इसी वाक्‍य का प्रयोग करतीं थीं ) ।वे उनकी पसंद थीं, राम जाने कहां से, पर उन्‍हें पसंद थी। वे घर ले आए, तब उनके पिता जी नहीं थे, उनकी (मेरी दादी )मां ने दोनों का स्‍वागत गालियों से किया। वह(उनकी मां) आशंकित हो उठी थी। पिता जी तो मां(मेरी मां ) को लेकर गायब हो गए ,फिर मोर्चा पिता जी के मामा ने संभाला, दुश्‍मन लड़ने आए ,जान से मारने की धमकियां ,उन्‍हें ढूंढ रहे थे। पंचायतें हुई, वे लोग धमकाए गए, समझौता हुआ ,मामला ठंडा पड़ा, वे दुश्‍मन शान्‍त तो हो गए पर उन्‍होंने हार नहीं मानी। मेरी दादी जैसा आप कह रहीं हैं ,इस सबका देाष मां को ही देतीं थीं ,मां घर का काम करतीं, खेत पर भी पिता जी के साथ जातीं ,गांय भैंस की देख भाल करतीं ,हां जैसा आप कह रहीं हैं मेरे पिता जी आप के अनुसार राजा बेटे नहीं थे, वे अपनी मां से बहस तो करते ही, गांव में भी मुकाबला करते, मां को कभी अकेला नहीं छोड़ा । ‘

जब तक अन्‍य सब लोग मंदिर के दर्शन कर के आ गए तो पटेल साहब चुप हो गए सारा ग्रुप अपने ठहरने के स्‍थान पहुंचा अपना मंदिर से लाया प्रसाद आदि अपने -अपने बैग आदि में रखा और प्रसाद भी माला आदि जो बाहर दूकानों से खरीद लिया था अब सब लोग भेाजन की तैयारी में लग गए पंडा जी का बेटा लंच लेकर आ गया था सबने भोजन किया वह बार बार नईमा को देख रहा था वह मुस्‍करा रही थी पर कोई बात नहीं हुई।सब ने आराम किया शाम को फिर एक बार घूमने निकले अन्‍य देवी देवताओं के दर्शन किए शाम को आरती में शामिल हुए लौट कर पुन: रात्रि भोजन किया अब सब आराम कर रहे थे पर नईमा पटेल साहब के पास पहुंची श्रीमती पटेल मुस्‍करा गईं –‘लली! आगे की सुनने आईं हो, मेरे अनुभव भी इनकी माता जी के साथ सुनना ,वे पटेल साहब की ओर देख कर मुस्‍करा उठीं,वे भी बहुत मधुर हैं । ‘ तब तक और लोग भी उनके पास खिसक आए । पटेल साहब नईमा की ओर उन्‍मुख होकर बोले तो नईम बेटे! आराम से बैठो, थोड़ी लम्‍बी है, बोर तो नहीं होगी ,थकी होगी, जब कहोगी मैं बीच में रोक दूंगा ।‘ नईमा –‘ नहीं अंकल कोई थकान नहीं है आपने जिज्ञासा जगा दी है, पूरा सुन कर जाऊंगी ।‘पटेल साहब –‘ हां तो सुनो ।वैसे तो मैं बता चुका हूं दादी का व्‍यवहार मां से कैसा था पर एक घटना ने सारी बात बदल दी पिता जी को खतरा रहता था इसलिए उन्‍होंने बंदूक का लाईसेस ले लिया था ,एक बंदूक भी खरीद ली थी, वे बहुत सोशल हो गए थे , दूसरों के झगड़े निपटाना, वकीलों के चक्‍कर काटना, जामानत कराना, तहसील थाने जाना, पंचायतें करना अस्‍पताल जाना शादी तय कराना बैंक जाना लोगों को कर्जा दिलाना जो कर्जा लेकर किश्‍त नहीं चुका पाए उनके साथ दौड़ धूप करना सरकारी मदद राहत दिलवाना ,उन्‍हें मजा आने लगा, सारी खेती व गाय- भैंस मां देखती, उन्‍होंने दादी को भी आराम दे दिया उन्‍होंने(मां ने ) एम. बी. ए. तो नहीं किया था पर वे बहुत अच्‍छी मैनेजर थीं मौन काम में लगी रहतीं कम बोलतीं नौकर मजदूर पड़ौसी सब को सम्‍हाल लेतीं कूल रहती मुस्‍करातीं रहतीं ।अब पिताजी का प्रभाव बढ़ा, तो प्रतियोगिता भी बढ़ी, पहले के प्रभाव शील जलने लगे, दोस्‍तों के साथ दुश्‍मनी भी बढ़ी । हां तो एक दिन क्‍या हुआ कि पिताजी कहीं से आ रहे थे अकेले रात देर हो गई थी कि घर के सामने थोड़ी ही दूर उन्‍हें सात- आठ लोगों ने घेर लिया जाने कबसे छिपे थे ,वे उन्‍हें धमका रहे थे ,आशंका थी कि शायद मारपीट करें वे लाठी व कुल्‍हाड़ा लिए थे मां ने सामने आवाज सुनी तो पौर के ऊपर कमरे (अटारी)की खिड़की से झांका पिता जी सहसा घेरे से छूट कर भागे वे दुश्‍मन पीछे- पीछे थे मां ने सहसा बंदूक उठाई और एक हवाई फायर कर दिया और जोर से चिल्‍लाईं-‘ अगली गोली छाती पर लगेगी ,लौट जाओ ।‘उनकी आवाज का बिजली जैसा असर हुआ भीड़ रूक गई व लौट गई मैं तब सात या आठ साल का रहा होऊंगा। मां ने दादी से कहा –‘जल्‍दी सामने के किवाड़ खोलो।‘ मुझे अच्‍छी तरह याद है, दादी के हाथ कांप रहे थे,मैं भी बहुत डरा घबड़ाया था मैने व दादी ने मिल कर सांकल खोंली। सांकल थोड़ी टाईट थी या हमें लगी कह नहीं सकता देर में खुली । पिता जी अंदर आए किवाड़ लगा लिये वे हांफ रहे थे पसीने- पसीने थे उन्‍हें आंगन में खाट पर बिठाया मां फौरन पानी लाई उन्‍हें पिलाया वे लेट गए ।मां तब भी कूल थी मुझसे कह रही थी दादा पर पंखा झलो ।पिता जी से सांन्‍त्‍वना के स्‍वर में बोलीं –‘ शान्‍त हो जाओ, अब कछू न हुए ।‘ फिर तो दादी ने मां को गले से लगा लिया ,वे रो रहीं थीं और कह रहीं थीं-‘ तू तो दूसरी सावित्री है ,साक्षात देवी, कुल तारनी, जानें क्‍या क्‍या।‘ ,पहली बार दादी के मुंह से मां के लिये आर्शीवचन मैने सुने, केवल घर में ही नहीं दो चार दिनों में तो पूरे गांव व क्षेत्र में मां की बहादुरी के चर्चे गूंजने लगे। वर्षों लोग कहते रहे। उनका सम्‍मान बढ़ गया , अब कोई उन्‍हें भगी- भगाई नहीं कहता था । मेरे प्रति भी लोगों की उपेक्षा कम हुई । पिता जी का प्रभाव बढ़ा सम्‍मान बढ़ा सम्‍पर्क बढ़ा तो समृद्धि भी बढ़ी उन्‍होने थोड़ी और ज्‍यादा जमीन खरीद ली उन्‍हें नदी से बजरी के ठेके में शेयर मिला उनकी टीम के लड़के काम करने लगे पत्‍थर निकालने का काम में ठेकेदार उनका ध्‍यान रखते उनकी टीम के सदस्‍य जोड़े जाते उनका ट्रेक्‍टर जब फ्री होता तो ढुलाई करता फिर उनके दो तीन ट्रेक्‍टर हो गए वे पटेल बन गए । मेरे दो बहने थीं उन्‍हें पढ़ने भेजा गया दादी तो विरोध कर रहीं थीं पर वे कॉलेज तक पढ़ीं बड़े किसानों से नहीं मध्‍यम वर्गीय शासकीय सेवकों से ब्‍याही गईं एक बहिन तो स्‍वयं यू. डी .टी. है।