Tujse hai mera vasta - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

तुझसे है मेरा वास्ता - अध्याय - 1

एक हट्टा कट्टा आदमी , किचेन में खाना बना रहा था । डिश थी नॉन वेज में ' चिकन कोरमा ' । उसने पूरा खाना बनाया और कोरमे को हाथ में लेकर टेस्ट किया , उसमें उसे नमक कम लगा , तो उसने नमक की बरनी उठाई और स्वादानुसार नमक मिलाया और फिर चम्मच को कढ़ाई में चलाने लगा । तभी भागते हुए एक वृद्ध आदमी उसके पास आया और फिर घबराते हुए कहा ।

वृद्ध आदमी - छोटे हुकुम ..., बाहर डैनी आया है ।

खाना बना रहे आदमी ( ने एक बार वृद्ध आदमी को घूरा और फिर दोबारा अपना काम करते हुए बोला ) - कितनी बार समझना पड़ेगा तुम्हें...??? छोटे हुकुम नहीं , बल्कि सिर्फ हुकुम कहो । आइंदा से ये गलती दोबारा न होने पाए , वरना अंजाम के लिए तैयार रहना । क्यों आया है वह , उसे तो मैंने काम के सिलसिले में बाहर भेजा था ।

वृद्ध आदमी ( सिर झुका कर ) - जी हुकुम , आगे से ध्यान रखूंगा । हुकुम डैनी का काम अधूरा रह गया है ।

ये सुनते ही उस आदमी की त्यौरियां चढ़ गई । उसने अपने बगल में देखा , किचन की दीवार उसे दिखी । उसने बर्नर के बगल में रखे चिमटे को, बर्नर में रखकर बेतहाशा गर्म किया और उस दीवार पर दे मारा । दीवार से कुछ टकराने की आवाज़ सुनकर वो वृद्ध चौंक गया और उसने उस तरफ देखा , जहां उस आदमी ने गर्म चिमटा मारा था । वहां देखते ही उस वृद्ध की आंखें फटी की फटी रह गई । उस दीवार पर हल्के खून के दाग थे और नीचे फर्श पर उस गर्म चिमटे से चोट खाकर , मर चुकी छिपकली पड़ी थी, जिसे अभी चिमटे के एक सटीक निशाने से उस आदमी ने मारा था । उस आदमी का इतना सटीक निशाना देख ही वृद्ध ने अंदाज़ा लगा लिया , कि उसका मालिक ( वह आदमी ) कितने गुस्से में होगा , जो उसने एक छिपकली को तक नहीं छोड़ा । आदमी किचेन साफ करने का कहकर वहां से चला गया ।





किचेन से बाहर आकर वह आदमी लॉन की तरफ बढ़ गया । जहां उसके आदमी उसका ही इंतजार कर रहे थे । वह लॉन में रखे सोफे पर आकर बैठ गया और उसे देख उसके आदमी थर - थर कांपने लगे । उस आदमी ने एक नज़र सबकी तरफ देखा और फिर अपने से लगभग पांच कदम की दूरी पर सामने खड़े आदमी को देख कहा ।

आदमी - क्यों वापस आ गया तू डैनी...???

डैनी ( अपने चेहरे से पसीना पोंछते हुए घबराकर बोला ) - साहेब ( सोफे पर बैठा आदमी ) ....., हाईवे पर पुलिस की पुरजोर नाकाबंदी है , वहां से ट्रक लेकर जाना संभव नहीं था , क्योंकि उनकी नजरों में आ जाते हम और फिर हमारा माल सरकारी अफसरों के कब्जे में चला जाता ।

इतना कह कर डैनी शांत हो गया । सोफे पर बैठे आदमी ने अपने सोफे के बगल में खड़े आदमी की तरफ देखा , तो वह हड़बड़ा कर डैनी की हां में हां मिलाते हुए बोला ।

मोहन - साहेब ...., डैनी सही कह रहा है । अगर हमारा माल जप्त हो जाता तो... , तो करोड़ों का नुकसान होता हमें और आपके सम्मान में जो आंच आती , वो अलग ।

इतना कहकर मोहन भी शांत हो गया और अपना सिर झुका लिया । सोफे पर बैठे आदमी ने अपने बाकी के आदमियों की तरफ देखा , तो वे सब जमीन को ताकते मिले । तब तक कैलाश ( वृद्ध आदमी ) भी लॉन में पहुँच चुका था । वो सोफे के पीछे जाकर खड़ा हो गया । उस सोफे पर बैठे आदमी ने अपने बगल में खड़े आदमी मोहन से पिस्तौल मंगाई । मोहन ने डरते - डरते अपने कमर में फंसी पिस्तौल निकालकर उस आदमी की तरफ बढ़ा दी । उस आदमी ने अपने हाथ में पिस्तौल थामी और उसे लोड कर डैनी की तरफ चला दिया । एक जोर दार आवाज़ के साथ डैनी की चीख उस पूरे एरिया में गूंज गई । डैनी अपना दाहिना पैर पकड़कर जमीन में गिर पड़ा और जोर - जोर से कराहने लगा । चारों तरफ एक दम से शांति फैल गई । घर के अंदर जो नौकर चाकर और सदस्य थे , वे सभी बंदूक और डैनी की आवाज़ सुनकर सहम गए थे । लॉन में खड़े किसी भी व्यक्ति की हिम्मत नही हो रही , उस आदमी की तरफ देखने की । अब वह आदमी गुस्से से डैनी को घूर रहा था । उसने अपने कदम डैनी की तरफ बढ़ाए और उसके दाहिने पैर , जहां गोली लगी थी , उसे अपने पंजों से दबाते हुए गुस्से से लाल आंखें कर बोला ।

आदमी - मैंने तुम लोगों को इस लिए रखा है , ताकि तुम लोग मेरा नुकसान करा सको ...!!! पुलिस थी उस रास्ते में , तो बाकी रास्ते तो खुले रहे होंगे न । सिर्फ एक ही हाईवे नहीं है इस शहर में , बल्कि हजारों हाइवे हैं और हजारों रास्ते हैं , इस शहर से बाहर जाने के । लेकिन तुम लोगों को आजतक अक्ल न आई । पुलिस के तैनाती की बात कर बहाना बना रहे हो तुम दोनों, अरे उन्हें चकमा देकर कैसे निकलना है , ये कब समझ आएगा तुम सबको । और उन पुलिस वालों को मैं रूपिए क्या घांस चरने के लिए खिलाता हूं , इसी वक्त के लिए तो उनकी जेबें भरता हूं । एक बार मुझसे बात तो कर लेते , मैं सारा इंतजाम करवा देता । लेकिन मेरे यहां , सिर्फ निक्कम्मे भरे पड़े हैं ।

सब चुप ही थे , वहां उस आदमी और डैनी की चीख के अलावा और कोई शोर सुनाई नही दे रहा था । तभी उस आदमी को उत्तर देने के लिए सहमते हुए मोहन ने कहा।

मोहन - लेकिन साहेब...., वहां कड़ी नाकाबंदी चल रही थी , इसी लिए .......।

वह आगे कुछ कहता उसके पहले ही वह आदमी मोहन की तरफ बंदूक की नोक करते हुए तेज़ आवाज़ में बोला ।

आदमी - तुझे भी सज़ा चाहिए क्या..???

मोहन उसकी बात सुनकर चुप लगा गया और दोबारा अपना सिर झुका लिया । तभी कैलाश ने डैनी की चिंता जताते हुए कहा ।

कैलाश - मोहन ....., डैनी को ज्यादा चोट आई है , इसे उठाओ और हॉस्पिटल लेकर चलो , कहीं देर न हो जाए।

आदमी ( बेतरतीब तरह से बोला ) - मर नही जायेगा , जो देर होने की चिंता हो रही है तुम्हें काका ( कैलाश ) ...!!! ( बाकी के आदमियों से ) हॉस्पिटल ले जाओ इसे । एक दो दिन में ठीक हो जायेगा । और तुम मोहन ....., मेरे साथ आओ मेरे स्टडी रूम में ।

इतना कहकर वो आदमी चला गया और बाकी सब बस डरे सहमे हुए से उसे जाते देखते रहे । तो ये था तपस....., तपस सिंह राठौड़ । मिर्जापुर उत्तर प्रदेश शहर के जंगलों में रहने वाला एक खूंखार डॉन । इसका दबदबा इतना ज्यादा था , कि उत्तर प्रदेश के सीएम और कुछ अधिकारियों को छोड़ कर , उत्तर प्रदेश की बाकी पूरी जनता और कर्मचारी इस के आगे पानी भरते थे । अधिकतर आधिकारिक पदों को इसने अपने कब्जे में लिया हुआ था । और ये अपने हिसाब से अपने जिले के आस पास की आधिकारिक पोस्टिंग करवाता था । जो ईमानदार अधिकारी या नेता थे , वो इसके अत्याचार से परेशान हो चुके थे , लेकिन मिर्जा पुर की अधिकतर जनता इसे अपना भगवान मानती थी । यह इलीगल तरीके से हथियारों , नशीले पदार्थ , नशीली दवाइयां , कुछ नॉर्मल उपयोग में आने वाली दवाइयां , सूती कपड़े , सोना , कच्चा लोहा , हीरा , तांबा , हथियारों में उपयोग होने वाली बुलेट आदि सामानों की तस्करी करता था । आज भी इसका हथियारों से बंद दो ट्रक यूपी की बॉर्डर क्रॉस कर जैसलमेर राजस्थान जाने वाले थे , फिर वहां से गुजरात के समुद्र तटीय इलाकों में दो दिन बाद उनकी इलीगल तरह से तस्करी होने वाली थी । लेकिन इसके आदमी डैनी की वजह से ये हो न सका । कैलाश इनके खानदान का पुराना आदमी था । वह इसके पिता के जमाने से उस घर में रह रहा था और इसके पिता का विश्वास पात्र आदमी भी था । लेकिन तपस के पिता के मर्डर के बाद कैलाश इसी के लिए काम करने लगा था । इसके घर में इसके दो बच्चे , एक 10 साल का बेटा और एक 14 साल की बेटी , इसकी पत्नी और घर में काम करने वाले नौकर चाकर रहते थे । इसकी पहुंच हर क्षेत्र में थी । इसे हर बार , हर पार्टी के नेता चुनाव लडने का प्रस्ताव इसके सामने रखते थे , लेकिन ये यह कहकर उनका प्रस्ताव ठुकरा देता था कि " अगर मैं सरकारी पदों में बैठने लगा , तो तुम लोगों को तुम्हारा हिस्सा कौन देगा और मैं एक सरकारी नौकर नही बनना चाहता , बल्कि मेरी आदत राज़ करने की है और मैं वही करूंगा " । उसकी बात सुनकर सब चुप पड़ जाते थे । इसने अपना साम्राज्य शहर से दूर जंगली इलाकों में बसाया हुआ था , जहां इसकी इजाजत के बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता था ।

क्रमशः

यह धारावाहिक पूर्णतः काल्पनिक है । इसका किसी भी व्यक्ति विशेष से कोई ताल्लुक नहीं ।