Vah ab bhi vahi hai - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

वह अब भी वहीं है - 16

भाग -16

दयनीय हालत के चलते किसी भी भाई-बहन की पढ़ाई-लिखाई भी अच्छे से नहीं हो पाई। सरकारी स्कूलों, सरकारी मदद से जितना पढ़ा जा सकता था, सारे बच्चों ने उतनी पढाई पूरी मेहनत, ईमानदारी से की। लेकिन घर की दयनीय स्थिति के चलते, समझदार होते-होते सभी कमाने-धमाने के लिए विवश हो गए। इसलिए सरकारी बैसाखी पर चल रही सबकी पढाई और कमजोर हो गई। बड़ा भाई जब चौदह-पंद्रह का हुआ तो मां को कुछ राहत मिली। वह धीर-गंभीर ही नहीं, मां, हम-सब को प्यार भी बहुत करता था।'

समीना, छब्बी बीते दिनों को इतनी गहराई में उतर कर याद करती थी कि, सुनने वाले को खबर भी नहीं हो पाती थी कि, वह भी कब उसके साथ उसी गहराई में उतर गया है। मैं भी उसी की तरह उसी की यादों में खोया उसे सुन रहा था। बड़े क्षोभ के साथ उसने बताया कि, 'एक दिन उसके सामने बाबू मां को गंदी-गंदी गालियां देते हुए मारने लगे, तो उसने मां को बचाने की कोशिश की। इस पर बाबू उसे भी गंदी-गंदी गालियां देने लगे, मां के चरित्र पर लांक्षन लगाते हुए उन्हें रंडी, छिनार जैसी घिनी-घिनी गालियां देना शुरू कर दिया, तो भाई से बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने पास ही पड़े भगोने से बाबू को कस कर पीट दिया। नशे के कारण वह संभल नहीं पाए और गिर गए। बगल में पड़े तखत के किनारे से टकराने के कारण उनका सिर फट गया। खून से चेहरा रंग गया। इस पर मां ने भाई को पीट डाला कि, उसने बाप पर हाथ क्यों उठाया। फिर उनकी मरहम-पट्टी कराई गई।

लेकिन इसी बीच एक तमाशा और हुआ कि, भाई इन सब से गुस्सा होकर घर से भाग गया। हफ्ते भर बाद घर से करीब पंद्रह किलोमीटर दूर स्थित एक मंदिर के पुजारी उसे लेकर आये । भाई भाग कर उस मंदिर के बरामदे में रुका था। भूख-प्यास थकान से पस्त वह रात भर वहीं लेटा था। सुबह पुजारी जी आये तो देखा कि, लड़का तेज बुखार, भूख-प्यास से इतना पस्त है कि, उसका चलना-फिरना कठिन है।

उस पवित्र आत्मा पुजारी ने न सिर्फ़ भाई की सेवा-सुश्रुषा की, बल्कि हफ्ते भर अपने साथ रख कर खूब समझाया-बुझाया। जो हमेशा के लिए घर से भागा था, उसे वापस घर ले आए। और घर पर बाबू को भी ऐसा समझाया कि उन्होंने पैरों में गिरे बेटे को माफ़ कर गले से लगाया, बाप-बेटे ने खूब आंसू बहाये, आश्चर्य तो यह कि बाबू ने पुजारी जी के सामने ही हाथ जोड़ कर अपनी गलतिओं के लिए मां से क्षमा मांगी।

पुजारी जी को खुद चाय-नाश्ता कराया, और दूर तक उन्हें छोड़ने भी गए। इसके बाद उन्होंने कई महीने तक शराब को हाथ नहीं लगाया। लेकिन उसके बाद कभी-कभार फिर पीने लगे, तो मां ने कहा, ''चलो पहले की तरह रोज पी कर झगड़ा नहीं कर रहे यही बहुत है।'' मगर मां तमाम समस्याओं के कारण टूटती जा रही थीं। हालांकि इस बीच पुजारी जी के सहयोग से भाई ने मंदिर के प्रांगण में ही फूल-प्रसाद आदि की छोटी सी दुकान खोल ली थी। लेकिन मेरी अभागी, दुखियारी मां को एक के बाद एक मेरी तीनों बहनों ने ऐसी चोट पहुंचाई कि, वह देखते-देखते छह-सात साल में चल बसीं।

तीनों बहनें साल भर के अंदर ही कुछ-कुछ महीने के अंतराल पर अपने प्रेमियों के साथ भाग गईं। पुलिस-फाटा सब हुआ। हर बार मां को मुंह की खानी पड़ी। बाबू ठूंठ से सब देखते रहते थे, कुछ भी नहीं करते थे। उनकी हालत देख कर लगता जैसे उन्हें कुछ समझ में ही नहीं आता, कि उन्हें क्या करना है। शराब ने उन्हें किसी लायक नहीं छोड़ा था।

इन बहनों के चक्कर में बार-बार थाने के जो चक्कर लगे, उससे एक समस्या और खड़ी हो गई। पुलिस भाई को भी परेशान करने लगी। आए दिन फंसा देने की धमकी। एनकाउंटर की धमकी। पैसा देने के लिए प्रताड़ित करना। इतना ही नहीं मां को लगा कि, पुलिस की नज़र मुझ पर है, तो किसी तरह उन्होंने उनसे पीछा छुड़ाया। भूल गईं अपनी तीनों लड़कियों को । लड़कियों से उनको इतनी घृणा हो गई थी कि, मुझे बात-बात पर गरियाती ही नहीं थीं, बल्कि पीट भी देती थीं। आनन-फानन में बीस की उमर में ही भाई की शादी कर दी। मां का सौभाग्य रहा कि भाई और भाभी ने मां की उम्मीद से कहीं ज़्यादा घर को संभाला।

मगर मां के मन में लड़कियों के भागने की जो फांस फंसी थी वह नहीं निकली, मुझ पर हर समय उनकी कड़ी नज़र रहती। जल्दी ही जी-तोड़ कोशिश करके उन्होंने मेरी सत्रह की उमर में ही शादी कर दी।

जिससे शादी की, वह उम्र में मुझसे दस साल बड़ा था। इतना ही नहीं उसकी यह दूसरी शादी थी। उसने बताया था कि, उसकी पत्नी का शादी से पहले ही किसी से रिश्ता था, और शादी के बाद वह मौका पाकर प्रेमी संग भाग गई। इन सबके बावजूद मैंने मां के निर्णय का विरोध नहीं किया। अपनी बहनों की तरह मैं उन्हें कोई दुःख नहीं देना चाहती थी। मगर मेरे हर समझौते के बावजूद यह शादी मां, मेरे पूरे परिवार, मेरे लिए एक बड़ी विपदा के रूप में आई।

उस आदमी की पत्नी क्यों भागी थी, इसका सही राज मुझे शादी की पहली रात को ही पता चला। वह एक नपुंसक आदमी था। आखिर एक नपुंसक के साथ वह कैसे रहती? सोने पे सुहागा ये, कि अपनी इस कमी को वह अप्राकृतिक यौन संबंधों के जरिए दूर करने का प्रयास करता था। मेरी पहली रात मुझ पर अंगारे बन कर बरसी। हर तरह से डरी सहमी, मैं उस रात उसके अमानवीय कू-कृत्यों का शिकार हुई। उसने जो-जो कर्म मेरे साथ किया, कराया वह ऐसा भयानक नर्क था, जिसे याद कर मैं आज भी सिहर उठती हूं।'

समीना तब छब्बी ने तमाम ऐसी बातें बताईं, जिसे सुनकर मेरा भी मन घृणा से भर उठा था । उसने बताया कि, 'ससुराल वालों के कड़े पहरे के बीच मैं चार दिन वहां रही, चारों दिन तन-मन से विकृत, बीमार उस आदमी के साथ नरक भोगा। सास बार-बार यही समझाती कि, '' इसी के साथ ज़िंदगी निभाना है, अब कहां जाएगी। मैं दवा करा दूंगी सब ठीक हो जाएगा।'' लेकिन मैं जानती थी, कि यह सब झूठ है, कुछ नहीं होने वाला। मेरी आत्मा तो उस समय और कांप उठी जब उसके छोटे भाई को खुद के पास मंडराते, ऊल-जुलूल हरकतें करते, और सास, नन्द को उसका समर्थन करते देखा। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी, मैंने सोच लिया कि अगर इसने मुझे हाथ लगाया तो आत्महत्या कर इन सबको भी फांसी पर चढ़वा दूंगी, सब लिख कर जाऊँगी।

घर-भर की सह का परिणाम था कि उसने दूसरे दिन शाम को ही मुझे एक कमरे में खींचने की कोशिश की। अंदेशा पहले से था, मैं सतर्क थी, तो उसका हाथ लगते ही न सिर्फ पूरी ताकत से बचाओ-बचाओ चीखने-चिल्लाने लगी, बल्कि उससे पूरी ताकत से भिड़ गई। लेकिन वह ताकतवर था, तो उसने जकड़ लिया मुझे, मगर मेरा चीखना बंद नहीं करा पा रहा था। पूरा घर इकट्ठा हो गया, मेरा मुंह बंद कर-कर के मेरी आवाज़ बंद की गई।

मैं पुलिस में जाने की जिद पर अड़ गई तो उन सब के हाथ-पाँव फूल गए। दो दिन बाद जब भाई विदा कराने पहुंचा तो सब के सब झूठ बोलने लगे कि, हमारे यहाँ साल भर बाद ही विदा करने की परम्परा है। मैं उन सब की साजिश पहले ही जान चुकी थी कि, सालभर में देवर से ही किसी तरह बच्चा पैदा करवा दिया जाएगा तो अपने आप ही बंध जाएगी।

पूरा परिवार भाई पर ऐसा पिल पड़ा कि वह उनकी साजिश को सही समझ कर बिना मुझे लिए ही लौटने को तैयार हो गया। मैंने देखा परिवार के एकदम हावी होने से वह डर भी गया है, इसलिए अपनी बात कह नहीं पा रहा है। यह देख कर मैंने सोचा कि अगर मैं चुप रही तो यहीं नरक में पड़ी रह जाऊँगी। इनका प्लान तो साल भर का है, लेकिन यह नर्क मुझे दो-चार दिन में ही मार देगा। मैंने भाई से साथ ले चलने की जिद पकड़ ली, तो पूरा परिवार मुझे खींच कर भीतर ले जाने लगा। सब दांत पीस-पीस कर मुझे एकदम कुचल ही देने पर आमादा थे, भाई की आँखों में विवशता, आंसू देख कर मैं यह सोच कर खूब जोर-जोर से चीखने चिल्लाने, मोहल्ले वालों को आवाज देने लगी कि, जब सब इकट्ठा हो जाएंगे तभी आज इस नर्क से मुक्ति मिलेगी। मेरी कोशिश रंग लाई, देखते-देखते पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया कि हफ्ता-भर भी नहीं हुआ शादी को और यह चीख-पुकार कैसी? सबके आ जाने से भाई की हिम्मत बढ़ी तो उसने सारी बात कह दी। मोहल्ला लगा थू-थू करने तो मजबूर होकर उन सब ने भाई के साथ जाने दिया। लेकिन मेरा सारा सामान, गहना यहाँ तक कि पायल, बिछिया तक उतरवा ली।

भाई किसी तरह घर ले आया। रास्ते भर अपनी फूटी किस्मत पर मेरी आँखें बरसती रहीं।भाई की भी बार-बार गीली हो रही थीं। वह मुझसे जानना चाहता था कि मैं इतना ज्यादा क्यों झगड़ रही थी। पहले मैं संकोच में टाल रही थी, लेकिन जब ज्यादा पूछा, तो कुछ बातें मैंने बता दीं, सुन कर वह भी हक्का-बक्का हो गया, गुस्से से कांपने लगा कि कमीनों ने इतना बड़ा धोखा दिया।

घर पर मां को देखते ही मैं फूट-फूटकर रो पड़ी। भोगे हुए नर्क के बारे में बता दिया। सुनते ही मां पछाड़ खाकर गिर पड़ीं । फिर दो दिन भर्ती रहीं हॉस्पिटल में। उन्होंने मुझे फिर वहां नहीं भेजा, उन सबकी लाख कोशिशों के बाद भी।

इस पर वह सब अपने पैसे, अपनी दबंगई पर उतर आए। बार-बार घर आकर धमकाने लगे। एक बार बात ज़्यादा बढ़ गई। मुहल्ले वाले भी आ गए। पहले तो मां ने, हमने सच छिपाना चाहा, लेकिन जब मुहल्ले की महिलाओं ने यह कहना शुरू किया कि, ''अरे शादी की है तो भेजती क्यों नहीं? रोज-रोज तमाशा करके मुहल्ले वालों का जीना क्यों मुहाल कर रखा है?'' जब एक तरफ से सब यही चों-चों करने लगीं तो मां ने उन्हें अपने ढंग से समझाने की कोशिश की, लेकिन कोई भी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हुआ। इससे ससुराल वालों का मन बढ़ने लगा। बात बिगड़ते देख भाई से न रहा गया उसने सच भाख दिया। फिर तो मुहल्ले वालों ने उल्टा उन सब को घेर लिया। इस पर वह सब दुम दबाकर भाग लिए।

अगले दिन मुहल्ले के एक पड़ोसी आए। उन्होंने हमारे घर के लिए जो कुछ किया उसे हम-सब कभी नहीं भूल सकते। वो किसी बड़े वकील के यहां मुंशीगिरी या टाइपिस्ट का काम करते थे। पहले उन्होंने हम सबसे एक-एक बात पूछी, हमारे संकोच को देखकर कहा, '' कुछ छिपाना नहीं। मैं तुम लोगों से कोई पैसा नहीं चाहता। मदद करना चाहता हूं। तुम्हें हर्जा-खर्चा दिलवा दूंगा। इसके लिए कोई मुकद्दमा वगैरह भी नहीं करूंगा, बस मैं जो कहूं वह करना।'' इसके बाद उन पड़ोसी ने उन लोगों से बात की। धोखा दे कर शादी करने, अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने, देवर से सम्बन्ध बनाने को विवश करने, दहेज़ के लिए जान से मारने की कोशिश, घर आकर गुंडागर्दी करने, जान से मारने की धमकी देने आदि के आरोप में घर-भर को बंद कराने की धमकी दी। पहले वह सब तन-तनाए, लेकिन भाई, मुहल्ले के कई लोगों के यह कहने पर कि, तुम-सब के खिलाफ अकाट्य प्रमाण हैं, पूरा मुहल्ला गवाही देगा। यह सुनकर उन सब की हालत खराब हो गई, समझौता करने के लिए हाथ-पैर जोड़ने लगे, तब उनसे सारा सामान वापस लिया गया। पूरा दबाव डालकर उन पड़ोसी ने हर्जा-खर्चा सब मिला कर छह लाख कैश भी लिया। साथ ही मां को सलाह भी दी कि, '' यह पूरा पैसा लड़की के नाम एफ.डी. कर दो और ब्याज लेती रहो। इससे कम से कम लड़की के रोटी-दाल में कुछ तो मदद मिलेगी।'' मां ने उन भले पड़ोसी रघुवर जी को कुछ पैसे देने चाहे लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया, '' हमने पड़ोसी धर्म निभाया है बस।'' मगर उन्हीं में एक पड़ोसी ऐसा भी था, जो एकाध-बार साथ देने की कीमत मेरे तन को भोग के वसूलना चाहता था। हर समय मुझ से अकेले मिलने का मौका तलाशता था।