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अनजान रीश्ता - 82

पारुल सामने देखती है तो उसका दिल थम जाता है। मानो जैसे कुछ ही देर में उसके दिल बहार निकल आ जाएगा या फिर हार्ट अटैक आ जाएगा। उसका दिल उतनी तेज धड़क रहा था । ना तो वह कुछ बोल पा रही थी । और ना ही वह इंसान जो की पारुल के करीब था वह । सेम तो पारुल को ही देखे जा रहा था। मानो जैसे उसकी रूह वापस लौट आई हो। यह दो दिन उसके लिए जहर के घूंट के बराबर थे। एक एक पल सेम के लिए साल जैसे थे। इन दोनों में सेम को पता चल गया था की वह पारुल को जितना खास अपनी जिंदगी में समझता है उससे कुछ ज्यादा ही अहमियत है । सांस भी नहीं ले सकता वह पारुल के बैगर। आज जब पारुल सेम के सामने है। तो वह बस अपनी नजरे हटा नहीं पा रहा था ना ही झपका रहा था। मानो जैसे पलके जपकाने से या नजर हटाने से पारुल फिर से चली जाएगी। वह किसी भी कीमत पर यह नहीं चाहता की पारुल फिर से उसे छोड़ के जाए । वह उसे बस ऐसे ही जी भर के देखना चाहता है! यह दो दिनों में पारुल की कमी जो महसूस हुई है वह कितनी बार भी पारुल को निहार ले पूरी नहीं हो सकती । पारुल की नजर तो सेम पर ही जमीं हुई थी। वह तो सेम की हालत देखकर मानो उसकी नजरों ने जैसा धोखा दे दिया हो उसे। आंखे पूरी लाल, आंखो के नीचे काले घेरे! साफ बयां कर रही थी की वह दो दिन से सोया नहीं है। बाल बिल्कुल उलझे हुए!। मानो यह वह सेम है ही नहीं है जिसे पारुल जानती थी । जो हमेशा फैशनेबल रहता था । अगर कोई देखेगा तो मान नहीं सकता वह सेम है जिसकी स्टाईल पर लड़किया मरती थी । पारुल और सेम खुद को देखे जा रहे थे। मानो दोनो में जंग छिड़ रही थी की कौन पहले नजर हटाएगा । या फिर दोनों एक दूसरे को जी भर के देख लेना चाहता थे। शायद दोनों के दिल जानते थे फिर मोका मिले ना मिले। पारुल के दिमाग में शादी वाली रात उसके दिमाग घूम रही थी । जब वह दुल्हन के जोड़े में अविनाश से शादी के पहले सेम से मिलने गई थी । सेम के मन में भी वही बाते घूम रही थी । मानो दोनो उस रात वापस चले गए हो ।

पारुल दुल्हन के जोड़े में सड़क पर इंतजार कर रही थी। वह बिना बताए तैयार होकर पार्लर से भाग गई थी। मानों उसका दिल यह पाप करने की इजाजत नहीं दे रहा था। जो नि:स्वार्थ प्रेम सेम उससे करता है उसके बाद अगर उसे बिना मिले चली गई तो शायद वह कभी भी किसी से प्यार तो दूर भरोसा ही नहीं करेगा। पारुल उसके अस्तित्व के बदलाव की वजह नहीं बनना नहीं चाहती थी। वह उसे वैसा ही खुश रहे वैसा चाहती थी! पर उसके चाहने से क्या होता है! पारुल के आंखो से आंसू गंगा जमुना की तरह बह रहे थे । वह खुद को जितना कोसती उतना ही ज्यादा खुद को मुजरीम माने जा रही थी । यह आपराधिक भाव उसके दिल को झंझोल रहा था । तभी कार के रुकने की आवाज आती है। जिससे पारुल अपने आंसू पोछते हुए कार की ओर देखती है। सेम हड़बड़ी में कार से बाहर आते हुए पारुल पर गुस्सा होने वाला ही होता है की उसकी नजर पारुल के कपड़ो पर जाती है। पारुल दुल्हन के जोड़े में खड़ी थी । जैसा उसने अपने ख्यालों में सोचा था उससे भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। मानो जैसे सेम सारी चिंता,गुस्सा सबकुछ भूल गया था। वह बस पारुल को निहारे जा रहा था । तभी जब पारुल उसे कस के गले लगाती है तो उसे होंश आता है की वह यहां सुनसान रास्ते पर खड़ी है और वो भी दुल्हन के लिबास में अकेले। वह पारुल को डांटने ही वाला होता है की पारुल उसके मुंह हाथ से ढक देती है ।

पारुल: ( भारी आवाज में ) अभी.... बहस में समय मत बिगाड़ना क्योंकि मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है। मैं मुश्किल से समय निकाल के आई हूं! । ठीक है ( सिर को हां में हिलाते हुए सेम से पूछती है। ) ।
सेम: ( पारुल की आंखों में आसूं छलक रहे थे बस वह उसे रोकने की कोशिश कर रही थी । वही देखे जा रहा था। पर फिर भी पारुल की हां में हां मिला देता है। ) ।
पारुल: ( सूखे गले में खखार निगलते हुए ) में शादी करने जा रहीं हूं!।
सेम: ( आश्चर्य में पारुल की ओर ही देखे जा रहा था । उसे लग रहा था की मानो पारुल मजाक कर रही है। पर उसके चेहरे के भाव गंभीर थे सेम को समझ नहीं आ रहा था की पारुल यूं अचानक क्या बात कर रही है । लाखों सवाल सेम के मन में उठ रहे थे। वह उसे पारुल से पूछे उससे पहले ही पारुल कहती है ।) ।
पारुल: जानती हूं अभी कई सवाल उठ रहे है तुम्हारे दिमाग में!? जिसका जवाब तुम्हे में अभी नहीं दे सकती! जब वक्त आएगा तब तुम्हे मिल जाएगा! पर.... ( सेम की आंखों में देखते हुए ) तुम मुझसे नाराज़ हो जाना पर नफरत मत करना! जानती हूं जो भी करने जा रही हूं वह नफरत के काबिल भी नहीं रहूंगी पर! मेरे बस में कुछ भी नहीं है! अगर मेरे अगला जन्म होगा तो मैं भगवान से यहीं प्रार्थना करती हूं की तुम्हे मेरा हमसफ़र बनाए। ( अब पारुल का आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। ) । हो सके तो अपनी पारो! ...... पा... रो... को माफ कर देना! ( पैरो की उंगलियों पे खड़े होते हुए सेम के सिर पर एक किस करती है । ) तुम्हे वह प्यार नहीं लौटा पाई जिसके तुम हकदार हो! शायद इसीलिए भगवान मुझे तुमसे दूर कर रहे है। क्योंकि मैं तुम्हारे लायक हीं नहीं हूं। ( सेम के हाथ में ब्रेसलेट देते हुए... जो उसने पारुल को दिया था । और कभी ना उतारने के लिए कहां था । सेम की मुट्ठी बंद करते हुए ) ( दर्द भरी नजरो से उसकी ओर ही देखे जा रही थी। क्योंकि आज पारुल सेम से किया हुआ वादा तोड़ रही थी । जब पहली बार यह ब्रेसलेट सेम ने पहनाया था तो सेम ने उसे कभी ना उतारने के लिए कहां था। ) ।


यह कहकर पारुल जाने के लिए मुड़ती है लेकिन सेम उसे पीछे से गले लगा लेता है। सेम को समझ नहीं आ रहा था की पारुल क्या कह रही है! क्यों कर रही है!? उसके दिमाग के लिए तो मानो एक झटका सा लग गया था। सारी बाते सेम के दिल ओ दिमाग से परे जा रही थी । वह पारुल को कसकर पकड़ते हुए... उसके कंधे पर सिर रखकर पूछता है।

सेम: ( रोने से रोकते हुए ) म... जा... क.... कर रही..... हो.... तुम... है.... ना.... ।
पारुल: ( वैसे ही सेम के गाल को एक हाथ से छूते हुए ! सिर को ना में हिलाते हुए रोने लगती है। ) ।
सेम: ( पारुल का एक एक आंसू सेम को डरा रहे थे । पर फिर भी उसका मन उसे कह रहा था की पारुल मजाक कर रही है ।) प... लीज.... कह...दो... की.... यह.... मजाक... है। ( एक आंसू सेम की आंख से पारुल के हाथ पर गिरता है। ) ।
पारुल: ( साइड से ही सेम की ओर देखती है । मानो जैसे वह सेम को पूरी तरह तोड़ चुकी थी। जिस बात का डर था ... पारुल को वहीं हो रहा था । ) एक.... वा... दा... करोगे... .. ।
सेम: ( रोते हुए सिर को ना में हिलाता है । ) ।
पारुल: ( रोते हुए उससे आंखों से मनाने की कोशिश करती है। ) प्लीज..... ।
सेम: ( फिर से सिर को ना में हिलाते हुए बस रोए जा रहा था । ) ।
पारुल: जब में यहां से चली जाऊंगी तो.... तुम मेरा पीछा नहीं करोगे.... और अपनी जिंदगी खुशी खुशी जिओगे....।
सेम: ( सटाक से पारुल की ओर देखते हुए ) जब... मेरी जिंदगी.... मुझे छोड़कर जाने की बात कर रही है तो... तुम.... मुझे उसने रंग भरने को कह रही हो!। कह दो झूठ है! कह दो तुम कहीं नहीं जा रही! मैं.... ।
पारुल: मैं.... झूठ नहीं बोल सकती सेम... ।
सेम: तो सच्चाई कहकर मेरा दिल तबाह करने से अच्छा है तुम झूठ ही बोलो! में भ्रम में ही सही! अगर तुम मेरे साथ रहोगी तो में सच्चाई कभी नहीं जानना चाहता!। मैं सिर्फ तीन सवाल पूछूंगा उसके सच - सच बताना! ( गहरी सांस लेते हुए )....
पारुल: ( आंखे बंध करकर रोते हुए सिर को हां में हिलाती है। ) ।
सेम: तुम सबकुछ सच बोल रही हो!? ।
पारुल: ( भारी मन से ) नहीं!।
सेम: यह सबकुछ तुम अपनी मर्जी से कर रही हो!? ।
पारुल: ( सिर को ना में हिलाते हुए ) नहीं... पर फैसला... मैने लिया है। ।
सेम: ( सेम का दिल टूट रहा था । ना चाहते हुए भी पूछता है। ) तू.... म.... उस...से... प्या.... र.... कर.... ती.... हो... क्या.... !? ।
पारुल: ( यह सुनकर मानो जैसे उसका दिल थम सा गया यह वह एक क्षण के लिए बोलना ही भूल गई थी । फिर वह खुद को संभालते हुए ) प.. ता... न... हीं.... ।

सेम एक गहरी सांस लेते हुए... पारुल को छोड़ना नहीं चाहता था लेकिन पारुल कमर पर से सेम के हाथ हटाते हुए... आखिरीबार भी उसकी ओर मुड़कर नहीं देखती... सेम वही सड़क पर गिरते हुए .... सिर को नीचे झुकाकर आंखे बंद करके रो रहा था । पारुल के दूर जाते कदमों की आहट उसकी धड़कन को मानो धड़कने से रोक रही थी। वह उठकर उसे पकड़कर रोकना चाहता था । पर वह पारुल को मजबूर भी नहीं करना चाहता था। आज जिंदगी में पहली बार वह पारुल के मन को समझे बिना खुद के मन की सुनना चाहता था। पारुल को जबरदस्ती यहीं रोके रखना चाहता था। उसे कहीं भी नहीं जाने देना चाहता था। लेकिन वह पारुल के फैसले के खिलाफ नहीं जा पाया। शायद इस वजह से भी क्योंकि उसे समझ हीं नहीं आया क्या हो रहा है!? वह खुद को संभाले उससे पहले पारुल उसे छोड़कर जा चुकी थी । वह आसमान की ओर चिल्लाते हुए कहता है। क्यों!? भ....भगवान क्यों!?। पर उसे सिवाय इस आधी रात के अंधेरे के और सुनसान रास्ते पर चल रही हवाओं के कुछ नहीं मिलता।


पारुल और सेम मानो वहीं रात खो गए थे । जैसे वह दोनो अभी भी वहीं के वही है । तभी आवाज आती है। वाईफी। जिससे वह दोनो इस कड़वी सच्चाई में वापस लौट आते है।