unknown connection - 89 books and stories free download online pdf in Hindi

अनजान रीश्ता - 89

सेम अपने घर में दाखिल ही हुआ था की तभी उसकी मां उसे रोकते हुए कहती है ।

निर्मला: क्या हुआ बेटा कुछ पता चला पारुल के बारे में!? ।
सेम: नहीं मां! मै बाद में बात करेंगे इस बारे में! प्लीज।
निर्मला: समीर! बताओ तो सही! तुम उसके
घर गए थे! क्या हुआ! ।
सेम: ( गुस्से को काबू में कोशिश करते हुए ) मां मैंने कहां ना हम बाद में आपसे बात करेंगे! अभी बिलकुल मुड़ नहीं है बात करने का! तो प्लीज हम पर दबाव ना डाले! ? प्लीज... ।
निर्मला: पर.... ।
सेम: ( हाथ छुड़वाते हुए ) मैं अपने रूम में जा रहा हूं! और मुझे कोई भी डिस्टर्बनस नहीं चाहिए! ।

सेम अपने रूम में चला जाता है । और निर्मला उसे देखती रह जाती है। क्योंकि पहली बार था जब सेम ने इस तरह उससे बात की। वह जानती थी जरूर कोई बड़ी बात है वरना सेम बिना जवाब दिए कभी नहीं जाता । मानो जैसे उसका दिल जानता था की बहुत बुरा हुआ है या होने वाला है। वह आंखे बंद करते हुए यहीं दुआ करती है की सब सलामत हो और कोई भी मुसीबत उसके परिवार पर ना आए। वह अपने कमरे में चली जाती है।

सेम अपने कमरे का दरवाजा बंद करते हुए! अपने पलंग पर लेट जाता है। उसकी आंखों से अब आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। जैसे तैसे करके उसने सबके सामने खुद को संभाला हुआ था। लेकिन अगर वह थोड़ी देर भी अपनी मां के पास रुका होता तो वह जानता था की वह संभाल नहीं पाएगा। इसीलिए... वह जल्दी अपने कमरे में आना चाहता था। वह जानता था कि इस रात पारुल को वह खो चुका था लेकिन फिर भी एक आस थी उसके दिल में की शायद... शायद.... पारो! उसे मिल जाए! । पर कहीं ना कहीं वह भी जानता था कि उस रात उसकी और पारुल की आखिरी मुलाकात थी। लेकिन फिर भी उसे स्वीकार नहीं कर पा रहा था। जैसे जैसे वह सारी बाते सेम को याद आ रही थी । उसकी आंखों में से पानी की तरह आंसू बह रहे थे। इतनी बेबसी आज पहली बार उसने महसूस की है। जब उसने अविनाश के साथ पारुल को देखा तो उसका खून खोल रहा था । वह पारुल का हाथ थामते हुए अपने साथ ले जाना चाहता था। और बस अपने पास अपने साथ रखना चाहता था। लेकिन किस हक से!? कैसे वह अपने भाई की..... सेम ना में सिर हिलाते हुए उस बारे में उस बारे में नहीं सोचना चाहता था। जितना वह सोचेगा उतना ही उसका दिल उसे खाए जा रहा था। क्योंकि ना ही वह अविनाश को कुछ कह पाएगा ना ही पारुल को! । अगर उसके भाई की जगह कोई और होता तो वह अब तक मार चुका होता है। लेकिन फिर उसे ही ख्याल आता है की अगर वह उस इंसान को मार भी देता तो क्या फर्क पड़ता!? । अगर पारुल उससे प्यार करती है तो वह कभी भी उसकी नहीं होगी। तभी सेम का मन हीं जवाब देता है.. नहीं वह मुझसे प्यार करती है! तुम ऐसा मत कहो! तुमने देखा नहीं वह किस तरह से रो रही थी। उसका मन जवाब देते हुए! अच्छा तो फिर छोड़ के क्यों चली गई तुम्हे!? अगर वह तुमसे प्यार करती तो यहां तुम्हारे साथ होती! ना की उसके साथ! । सेम जवाब देता है! उसकी मजबूरी है इसलिए!? । ऐसी कौन सी मजबूरी जो उसे शादी करनी पड़ी!? और वो भी तुम्हारे अपने भाई से! मुझे तो ऐसा नहीं लगता! क्या पता उसने कभी तुमसे प्यार... । तभी सैम बेड पर से उठकर कहता है। नहीं उसने मुझसे प्यार किया था! मैं जानता हूं! पारो! की आंखों में से साफ़ साफ़ जलक रहा था जब भी वह मेरे साथ थी तो वह मेरे दिल से खेल नहीं रही थी। वह ऐसी इंसान नहीं है। अच्छा! तो पूछो अपनी पारो! से की क्यों उसे तुम्हारे भाई से ही शादी करनी पड़ी!? अगर मजबूरी ही थी! तो वह तुमसे भी शादी कर सकती थी। ऐसी कौन सी मजबूरी थी जो वह तुमसे नहीं बता सकती थी... सेम का दिमाग उससे सवाल पूछता है । सेम फिर से बेड पर गिरते हुए... आंखे बंद करकर पड़ा रहता है। तभी उसके मोबाईल में एक मेसेज की आवाज आती है। जब वह मोबाइल उठाते हुए लोक खोलता है तो पारुल का हंसता हुआ चेहरा उसके सामने आता है। पारुल की मुस्कुराहट वाली तस्वीर मानो सेम के टूटे हुए दिल को और भी चूरचूर कर रही थी। जैसे उसके टूटे हुए दिल को पीस कर और भी बारीक टुकड़ों में तब्दील कर रही थी । वह तस्वीर पर अंगूठा फेरते हुए... बस पारुल को ही देखे जा रहा था। मानो जैसे वह कोई तस्वीर नहीं बल्कि खुद पारुल हो । सेम की आंखों से आंसू और भी छलकने लगते है जिस वजह से तस्वीर धुंधली दिखने लगती है। सेम एक हाथ से आंसू पोंछते हुए फिर से पारुल की ओर देखता है। मानो पारुल यहां उसके सामने मुस्कुरा रही थी। वह दर्द के साथ मुस्कुराते हुए उसकी ओर देख रहा था। थोड़ी देर बाद ऐसे ही बिना कुछ बोले देखने के बाद सेम कहता है।

" क्यों!? पारो! क्यों!?। क्यों किया तुमने ऐसा!?। तुम्हे पता है अभी मुझे कैसा महसूस हो रहा है। मानो जैसे किसीने मेरा दिल चीर कर सीने से निकाल लिया हो!? । जब मैं तुम्हे भाई के सामने पारो भी नहीं कह पाया! तब ऐसा लगा जैसे मैंने सबकुछ खो दिया हो। जीने की वजह! खुश होने की वजह! मानो जैसे मेरी जिंदगी मुझे छोड़ कर जा रही हो!? । क्यों!? पारो क्यों!? क्या तुम्हारा मुझसे दूर जाना जरूरी था!? अगर हां तो उससे पहले तुम मेरे सीने में गोली मार के मुझे मार डालती ताकि यह दर्द जो महसूस हो रहा है! वह तो चला जाता । क्या करू में पारो! नहीं जी सकता तुम्हारे बिना! यार! प्लीज लौट आओ!? एक बार लौट आओ!? आई स्वेर! मैं सबसे निपट लूंगा! । अगर मुझे भगवान से भी लड़ना पड़े तो मैं वो भी करूंगा। पर प्लीज तुम लौट आओ प्लीज... मैं नहीं रह सकता यार! । जानती हो ना तुमने उस दिन मुझे पूछा था....


फ्लेशबेक:

पारुल: ( खिलखिलाते हुए सेम से दूर भाग रही थी। ) देख ले सेम के बच्चे! तू कभी भी नहीं पकड़ सकता मुझे!? हाहहहा.... ।
सेम: ( पारुल को पकड़ते हुए ) हाहहहा.... दुनिया में ऐसी कोई ताकत ही नहीं जो तुम्हे मुझसे दूर करे... ।
पारुल: ( सेम के गले में हाथ रखते हुए ) अच्छा! अगर में खुद दूर होना चाहूं तब भी! ।
सेम: तुम खुद दूर होना चाहो तब भी नहीं! ।
पारुल: हाहाहाहाहा... ये बहुत ही चीज़ी डायलॉग है।
सेम: ( मुस्कुराते हुए पारुल के गाल पर किस करते हुए ) इसीलिए तो तुम मुझे पसंद करती हो नहीं!? ( आंख मारते हुए ) ।
पारुल: ( सेम के कंधे पर एक थप्पड़ मारते हुए ) बेशरम इंसान हम पार्क में है कम से कम थोड़ी तो शर्म करो।
सेम: अब अपनी गर्लफ्रेंड को किस करने में कैसी शर्म!।
पारुल: सेम अगर ऐसी ही हरकते करते रहे ना तो! देख लेना एक दिन मैं बहुत दूर चली जाऊंगी.....।
सेम: ( हंसते हुए ) और तुम्हे ऐसा लगता है मैं ऐसा होने दूंगा!? । कभी भी नहीं मैं मर जाऊं तब भी नहीं!।

सेम के मोबाइल में फिर से मेसेज आता है । जिस वजह से ख्यालों में से बाहर आते हुए ... फिर से पारुल की ओर एक बार देखता है। और आंखों से दर्द भरी नजरो से सवाल पूछ रहा था लेकिन उसे जवाब में सिवाय खामोशी के कुछ नहीं मिलता । वह अपना फोन गुस्से में फेकने ही वाला था की फिर उसकी नजर पारुल की तस्वीर पर फिर से पड़ती है। उसका दिल मानो दूर नहीं होना चाहता था भले ही पारुल की तस्वीर ही क्यों ना हो! वह उससे भी दूर नहीं होना चाहता था। वह फोन को बेड पर फेकते हुए... खुद के मुंह को दोनो हाथो में ढक लेता है । और समझ नहीं पाता किसे दोष दे इस परिस्थिति के लिए खुद को!? पारो को!? या भाई को!? ।