Pappa Jaldi Aa Jana - last part books and stories free download online pdf in Hindi

पप्पा जल्दी आ जाना : एक पारलौकिक सत्य कथा - (अंतिम भाग)

थोड़ा ही अंदर आने पर विमलेश के पैरों से कुछ टकराया और बड़े मुश्किल से उसने खुद को और अनोखी को संभाला ।

विमलेश ने महसूस किया किया कि उसका पैर नदी में किसी भारी चीज के नीचे फंसा था । उसे हटाने का उसने बहुत प्रयत्न किया, पर पैर टस-से-मस ना हो पाएँ ।

तब, आवाज़ लगाकर नदी तट पर खड़े लोगों को मदद के लिए बुलाया । उसकी आवाज़ सुन नदी तट पर खड़े लोग भागे-भागे आयें ।

विमलेश का पैर घुटने तक पानी वाले उस नदी में किसी भारी वस्तु से नीचे जा फंसा था । सबके बहुत मशक्कत करने के बाद भी जब वह न निकला तो कीलनुमा लोहे के रड मंगवाकर उस भारी वस्तु को खींचकर बाहर निकाला । तब कहीं जाकर उसका फंसा पैर बाहर आया और उसने राहत की सांस ली । तबतक, आसपास लोगों की भीड़ लग चुकी थी । भीड़ देखकर पास ही ड्यूटी कर रहे दो पुलिसवाले भी वहाँ आ गएँ ।

तभी विमलेश, अनोखी को अपने गोद में लिए विमला और आसपास खड़े लोग चौंक गएँ । जिस वस्तु से विमलेश के पैर फंसे थें , वह एक अधजली लाश थी ।

थोड़ा गौर से देखने पर, अनिला चीखी –“भैया !”

यह रमेश की अधजली लाश थी । विमलेश और अनिला के तो पैरों तले जमीन खिसक गयी । अनोखी बिलकुल शांत यह सब देख रही थी ।

नदी में भीड़ की खबर पाकर प्रशासन के कुछ आला अधिकारी पुलिसबल के साथ पहुँच गएँ । और भीड़ को वहाँ से हटाने का प्रयास करने लगें ।

जब अनिला और विमलेश को हटाने का प्रयास किया तो अनिला चिल्लाकर बोलने लगी कि आप प्रशासन वालों की लपरवाहियों का यह नतीजा है कि मेरे भैया की लाश इस हालत में नदी में अधजली हालत में मिली हैं । जबकि आपलोगों ने इसका दाह संस्कार अपने देख-रेख में कराया था ।

अनिला का गुस्सा और वहाँ लगी भीड़ की उग्र रूप देख अधिकारियों ने अनिला को शांत रहने का निवेदन किया और समझाया कि कोरोना के इस संकटपूर्ण समय में इतना भीड़ जमा करना सभी के लिए खतरनाक है । अतः, कृपया शांति बनाए रखे । इसके लिए जो भी जिम्मेदार है, उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी ।

अनिला और विमलेश ने भीड़ से निवेदन किया कि आपलोग एक जगह जमा न हो । कोरोना के खतरे के कारण आपलोग अपने घर जाएँ । प्रशासन ने उचित कारवाई का भरोसा दिया है । फिर, पुलिसवालों ने पूरे जगह को घेर लिया और भीड़ भी हट गयी वहाँ से ।

“बुआ, पापा अपने दोस्त के साथ यहीं है ।” - अनोखी ने धीरे से अनिला के कानों में कहा ।

अनिला ने वहाँ मौजूद प्रशासनिक अधिकारियों से निवेदन किया कि नदी में जहां रमेश की अधजली लाश मिली है, उसके आसपास के इलाके में अच्छी तरह से छानबीन करायी जाये ।

ज़िला मुख्यालय फोन कर के और पुलिसबल मंगाया गया और आसपास के पूरे इलाके की गहन छानबीन की गयी ।

16 – 17 अधजली लाशें पूरे नदी में हुई मिली, जो धीरे-धीरे सड़ने लगीं थीं । 14-15 दिन हो जाने के कारण नदी में यह धीरे-धीरे नीचे दबने लगीं थीं । और आसपास किसी को कोई बदबू भी महसूस नहीं हुई ।

विमलेश ने फोन कर बड़े भाई सुरेश को भी बुला लिया ।

प्रशासन की इतनी लापरवाही देख अनिला का गुस्सा सातवें आसमान पर था । वह वहाँ खड़े आला अधिकारियों से इस अमानवीय हरकत के लिए जिम्मेदार लोगों को कड़ी से कड़ी सजा की मांग करने लगी ।

अधिकारियों ने अनिला को भरोसा दिलाया कि इस कुकृत्य के लिए जो भी जिम्मेदार होगा, उसे किसी भी कीमत पर माफ नही किया जाएगा । साथ ही, कोरोना संक्रमित मृत शरीर के अंतिम क्रियाक्रम के लिए ज़िले के प्रत्येक शवदाह गृह में चोबीसों घंटे उच्च अधिकारियों को निगरानी पर लगा दिया गया है ।

वहाँ मौजूद, एक आला अधिकारी ने अनिला और विमलेश को धन्यवाद दिया, जो उन्होने इतना ज़िम्मेदारी का काम किया । साथ ही, यह भी जानना चाहा कि उनलोगों को पता कैसे चला कि इतने लाश यहाँ फैले हैं ।

तब, अनिला ने अनोखी की ओर इशारा करके रमेश की मृत्यु के बाद घट रही सारी बतायी ।

अनिला की बातें सुनकर उस अधिकारी ने प्यार से अनोखी के सिर पर हांथ फेरा और कहा कि आज से रमेश की दोनों बेटियों की पढ़ाई-लिखाई का पूरा जिम्मा ज़िला प्रशासन उठाएगा ।

उसी दिन शाम में, ज़िला के आला अधिकारियों की मौजूदगी में पूरे सावधानी के साथ सभी अधजले लाशों का दाह-संस्कार कराया गया ।

वहीं, थोड़ी दूरी पर बने एक शेड के नीचे एक लगे बेंच पर बैठे विमलेश और अनिला के गोद में बैठी अनोखी यह सब देख रही थी ।

तभी, अनोखी तेजी से विमला की गोद से उतरी और आवाज़ लगाती हुई बोली – “पप्पा, पप्पा । बुआ, चाचू – देखो ! पापा अपने दोस्तों के साथ ऊपर आकाश में कहीं जा रहें हैं । मुझे देख कर हांथ हिला रहे हैं । बाय, बाय पप्पा ।”

अनोखी अपनी आँखों में आँसू भरकर थोड़ी देर तक आकाश में हांथें हिलाकर अलविदा करती रही ।
अनोखी को ऐसा करते देख विमलेश और अनिला भी अपनी गीली आँखों से आकाश की ओर हाथें हिलाकर उन अदृश्य ताकतों को अलविदा करते रहें ।

। । समाप्त । ।

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धन्यवाद
श्वेत कुमार सिन्हा