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दो रास्ते - भाग-2


भाग - 2 कहानी - दो रास्ते


नोट - पिछले अंक में आपने पढ़ा कि अमर और रीमा का बेटा गुम हो जाता है . अमर पुलिस में रिपोर्ट लिखवाता है और सीनियर अफसर से अन्य राज्यों में भी बेटे की तलाश की गुहार लगता है , अब आगे …


उधर रीमा का मन पीहर में भी नहीं लग रहा था और वहां भी वह उदास ही रहा करती .कुछ ही दिनों के बाद वह अमर के पास लौट आयी . धीरे धीरे रीमा ने हालात से समझौता कर लिया और अपने दिल का दर्द दिल में ही छुपा कर अपनी गृहस्थी में लग गयी .


अमर और रीमा जितने लोगों से मिलते उतनी अलग अलग बातें सुनने को मिलतीं . कोई कहता बच्चों से भीख मंगवाते हैं तो कोई कहता हाथ या पैर काट कर लूल्हा लंगड़ा बनाते हैं ताकि उन पर तरस खा कर लोग बच्चों को कुछ न कुछ भीख दे दें . कोई कहता आँखें निकलवा कर सूरदास बना देते हैं तो कोई कहता बच्चों को चाइल्ड पोर्न के धंधे में लगा देते हैं . इन सब बातों को सुनते सुनते उनके कान पक जाते और मन भी विचलित हो जाता था . फिर भी उन्हें सिर्फ उम्मीद ही नहीं बल्कि मन में पक्का विश्वास था कि उनका बेटा संजू एक न एक दिन वापस जरूर आएगा .


उधर सुदूर राज्य के एक अपार्टमेंट कंपलेक्स की तीसरी मंजिल पर चोपड़ा परिवार रहता था . चोपड़ा को एक बेटा था विजय . उनके फ्लैट के ठीक सामने एक नया पड़ोसी रहने आया , वह एक सक्सेना परिवार था . सक्सेना को शादी हुए तीन साल हुए थे पर अभी तक उन्हें कोई संतान नहीं थी . दोनों परिवारों में परिचय हुआ . सक्सेना एक इन्वेस्टमेंट कम्पनी में मैनेजर था . उसकी कम्पनी ने लोगों को उनके डिपॉजिट पर तीन साल में दो गुना राशि देने का वादा किया था . पहले तीन साल बाद लोगों को दो गुना रकम लेने का पत्र गया . साथ में कम्पनी ने एक विकल्प ऑफर दिया कि कोई चाहे तो रकम को रीइन्वेस्ट कर तीन वर्षों में दुगनी कर सकता है . कुछ लोगों ने अपने पैसे लिए और बहुत लोगों ने रीइन्वेस्ट भी किया .


चोपड़ा और सक्सेना परिवार में मेल जोल बढ़ा और चोपड़ा परिवार ने भी सक्सेना की कम्पनी में पैसे लगाए . दोनों परिवारों में अच्छी दोस्ती हुई और आना जाना हुआ .


कुछ दिनों बाद चोपड़ा के माता पिता दोनों गाँव में फैले संक्रामक बीमारी के शिकार हुए . चोपड़ा को गाँव जाना पड़ा . पर दुर्भाग्यवश कुछ ही दिनों के अंतराल पर उसके माता पिता दोनों ही चल बसे . मिसेज चोपड़ा को भी अचानक गाँव जाना पड़ा . उनका बेटा विजय करीब पांच साल का था . वह एक महीने की बीमारी के बाद कुछ ही दिन पहले ठीक हुआ था . मिसेज चोपड़ा को सास ससुर की अंतिम क्रिया के लिए उसके पैतृक गाँव जाना था . गाँव में फैली बीमारी के चलते मिसेज चोपड़ा बच्चे को साथ नहीं ले जाना चाहती थीं . उन्होंने सक्सेना परिवार से विजय को कुछ दिनों के लिए साथ रखने के लिए कहा . वे बोले “ आप लोग चार दिनों के लिए मेरे बेटे को अपने साथ रखें तो बड़ी कृपा होगी . . हमलोग उसके तीन चार दिनों का टिफिन आदि बना कर आपके फ्रिज में रख देते हैं , उम्मीद है विजय आपको परेशान नहीं करेगा . “

मिसेज सक्सेना बोलीं “ नहीं , इसमें परेशानी की कोई बात नहीं है . आपको बेटे के खाने पीने की चिंता नहीं करनी है , वह हमलोग मैनेज कर लेंगे . आप इत्मीनान से जाएँ हम उसे किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होने देंगे . आप उसके खाने पीने की पसंद बता दें और उसके पहनने के कुछ ड्रेस दे दें , बाकी सब हम देख लेंगे . आप बेफिक्र हो कर जाएँ और जिस काम के लिए जा रहीं हैं सम्पन्न होने पर ही आएं “


मिसेज चोपड़ा ने उन लोगों को बहुत धन्यवाद दिया और कुछ घंटों के अंदर वह चली गयीं . ठीक पांचवें दिन शाम को चोपड़ा परिवार लौटकर वापस आया . उन्होंने सक्सेना का फ्लैट लॉक देखा . पहले तो उन्होंने सोचा कि वे यहीं कहीं आसपास गए होंगे . वे सक्सेना परिवार और अपने बेटे के लौटने का इंतजार कर रहे थे . देखते देखते कई घंटे बीत गए . तब मिसेज चोपड़ा ने अपने फ्लोर पर अन्य फ्लैटों में रहने वालों से सक्सेना के बारे में पूछा . कुछ ने कहा कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है . कुछ ने सक्सेना को गालियां देते हुए कहा “ सक्सेना एक नंबर का कमीना एवं फ्रॉड निकला , वह बहुत लोगों के पैसे लेकर भाग गया .


ऊपर के फ्लोर पर अपार्टमेंट में सोसाइटी का सेक्रेट्री रहता था . चोपड़ा उसके घर गए . जब सेक्रेट्री ने देर रात उन्हें डिस्टर्ब करने का कारण पूछा तब चोपड़ा ने कहा “ मेरे सामने वाले फ्लैट में सक्सेना परिवार रहता था . उसका फ्लैट लॉक है . आपको उसकी कोई जानकारी है तो कृपा कर बताएं . “


“ आपके जाने के ठीक तीसरे दिन अचानक वह फ्लैट छोड़ कर भाग गया . उसने सिर्फ कुछ बक्सों में अपने कपड़े आदि लिए और वह भाग गया . मुझ से बोल गया कि बाकी के फर्नीचर आदि सब रेंट पर थे और उसे रेंटर आ कर ले जायेगा .काफी लोगों के पैसे लगे थे उसकी कम्पनी में . खैर , अब संतोष कर लें कि जितना भाग्य में लिखा होता है उस से ज्यादा किसी को नहीं मिलता है . “


चोपड़ा ने कहा “ पैसे की कोई बात नहीं है , जो गया सो गया . मैं अपने बेटे विजय को उसके पास छोड़ कर गया था , उसका कुछ पता नहीं लग रहा है . कहाँ से उसे खोजूं . जब आपने फ्लैट किराए पर दिया था तो उसने अपना कोई आई डी तो दिया होगा . “


“ हाँ , उसने अपनी कम्पनी का पता दिया था . मुझे क्या पता था कि रातों रात अचानक पूरे देश में उसकी कम्पनी में ताला लग जायेगा . वैसे यह कोई नयी बात नहीं है , अपने देश में पहले भी कई पॉन्जी कंपनियां लाखों लोगों को चूना लगा चुकीं हैं और यह सिलसिला अभी भी चल रहा है . “


“ मुझे आपसे पूरी हमदर्दी है . मुझसे जितना बनेगा उतना आपके बेटे को खोजने में सहयोग दूंगा . मुझे पता चला कि आपके फ्लोर के बाकी कुछ लोगों को अपनी जान पर खतरा बता कर उन्हें विजय को रखने के लिए कहा था पर किसी को उस पर भरोसा नहीं था इसलिए कोई भी विजय को रखने के लिए तैयार नहीं हुआ . “


मिसेज चोपड़ा का रोते रोते बुरा हाल था उनका इकलौता बेटा जो लापता था . किसी तरह रोते धोते उन्होंने रात काटी . सुबह भी कुछ देर सक्सेना के लौटने का इंतजार किया फिर बिना मुंह हाथ धोये चोपड़ा पुलिस थाने गए . वहां उन्होंने बेटे के गुम होने की रिपोर्ट लिखवाई . बेटे का पूरा हुलिया दिया और साथ में उसके कुछ फोटो भी दिए .


चोपड़ा ने भी अपने राज्य के उच्च पुलिस अधिकारियों से इस मामले में मदद मांगी और देश के अन्य राज्यों में भी अपने बेटे को तलाश करने की गुहार लगायी . एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कह “ वैसे भी अनेक राज्यों की सरकार ऐसे अंतर्राज्यीय गैंग की तलाश में जुटी है . हम पूरी कोशिश करेंगे कि आपका बेटा जल्द से जल्द मिल जाए . “

क्रमशः

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