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सरजमीं - भाग(१)

सरजमीं ,मुल्क,वतन,मातृभूमि,इन सब नामों से स्वदेश को सम्बोधित किया जाता है,कहते हैं जो देश पर फिद़ा होता है उसका नाम हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो जाता है,अपने मुल्क के वास्ते शहीद हो जाना बहुत ही ग़रूर की बात होती है,
सच्चा वतन-परस्त वो होता है जो सबकुछ अपने वतन पर कुर्बान कर दें,जो केवल अपने वतन के लिए जिए और वतन के लिए ही जान दे दे,जिसने ये मान लिया कि उसके जिस्म-ओ-जाँ मुल्क की अमानत है तो उसकी जिन्दगी आबाद़ हो जाती है,
ऐसे ही आज सुबह जीश़ान जब अपनी बहन के घर आया तो उसे अपनी बहन के अलावा उसके शौहर और उसकी बेटी की लाश़ मिली और साथ में खाने की टेबल पर ख़त मिला जोकि जीश़ान की बहन ने अपने भाई और अपने मुल्क के लिए लिखा था,
पुलिस ने सभी लाशों को बरामद कर लिया और उस ख़त को भी,साथ में घर को भी सील करवा दिया.....
तब जीश़ान से पूछा गया कि तुम्हारी बहन ने ऐसा क्यों किया?
तब जीश़ान बोला....
सर! मेरी बहन एक वतनपरस्त इन्सान थी,उसने अपने वतन को बचाने के लिए ये सब किया...
तो आप उनकी पूरी कहानी बताइएं ताकि हमें तहकीकात में कुछ मदद मिल सकें,डी आई जी ने पूछा....
तब जीश़ान बोला....
जी! जुरूर मैं आपको सबकुछ बताऊँगा,ताकि लोगों को ये पता चल सकें कि मेरी बहन ने खुद को और अपने परिवार को देश पर क्यों कुर्बान कर दिया और फिर जीश़ान ने अपनी बहन की कहानी सुनानी शुरू की....

सुबह का वक्त और गुल्फाम अख्तर लोकल अख़बार पढ़ने में मशग़ूल हैं तभी उन्होंने ने एक ख़बर पढ़ी और बोल पड़े....
फ़रज़ाना....फ़रज़ाना......देखिए ना आपके बारहवीं के इम्तिहान के नतीजे आ गए और आप अपने स्कूल में अव्वल आईं हैं,आपकी फोटो आज के लोकल अख़बार में छपी है,गुल्फाम अख़्तर ने अपनी बेटी फ़रज़ाना से कहा....
सच! अब्बू ! हम पास हो गए,फरज़ाना भीतर से भागते हुए आई.....
हाँ! सच! बिल्कुल सच! आपने हमारा नाम रौशन कर दिया,गुल्फाम अख्तर बोले....
हम अभी ये ख़बर अम्मी को भी सुनाकर आते हैं,फ़रज़ाना बोली....
अरे! हमने सब सुन लिया ,हम तो आपके लिए मिठाई लेकर आ रहे हैं,फ़रज़ाना की अम्मी शाहिदा रसोई से हीं बोलीं....
आपने सब सुन लिया तो अभी ये ख़बर हम भाईजान को भी फोन करके बता देते हैं,फ़रज़ाना बोली।।
और फिर फ़रज़ाना ने ये ख़बर अपने भाईजान जीश़ान को भी बता दी,वे भी बहुत खुश हुए....
तो ये था फऱज़ाना का परिवार,वैसे तो फ़रज़ाना के अब्बाहुजूर नवाबों के ख़ानदान से है लेकिन गुल्फाम अख़्तर के और भी भाई थे तो जब जायदाद का बँटवारा हुआ तो गुल्फाम अख्तर साहब के नसीब में केवल ये एक पुराना घर आया।।
भाइयों में सबसे छोटे थे तो जो भी बड़े भाइयों ने अपनी खुशी से दे दिया तो उसे ही अपना नसीब मानकर कूबूल कर लिया,कुछ पैसे थे खुद की कमाई के तो एक दुकान डाल ली कपड़ो फिर शाहिदा से निकाह के बाद अपने बच्चों की परवरिश में लग गए,उसी दुकान से जो भी मुनाफा होता तो उसे से गुजर-बसर करते और बच्चों की पढ़ाई के खर्च का भी यही दुकान ही एक जरिया थी।।
बहुत बुरे दिन देखें थे अख्तर साहब ने पैसों की तंगी ने उनकी हालत खस्ता कर दी थी,कभी कभी तो ईद मनाने के लिए ना तो परिवार के पास नए कपड़े होते और ना खाने का सामान,ज्यादा गरीबी की वज़ह से सारे रिश्तेदारों ने भी उनसे रिश्ता तोड़ दिया था लेकिन फिर भी अख्तर साहब ने बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई भी कोताही नहीं की,कोई भी कस़र ना छोड़ी,भूखे पेट रहें लेकिन बच्चों की पढ़ाई के लिए हमेशा रूपयों का इन्तजाम किया।।
जीश़ान ने बहुत मेहनत की और वो एक इन्सपेक्टर बन गया,तब अख्तर साहब को बहुत आसरा हो गया,जीश़ान भी अपने अब्बाहुजूर की मदद करता है,जब भी उन्हें रूपए की जरूरत पड़ी तो वो कभी भी पीछे नहीं हटा ,अब शाहिदा चाहती है कि जीश़ान का भी निकाह हो जाए और एक चाँद सी बहु की खूबसूरती की रौशनी उसके घर के आँगन मेँ बिखर जाएं।।
लेकिन जीश़ान अभी निकाह के लिए तैयार ही नहीं था,वो कहता था कि पहले फ़रज़ाना पढ़लिख कर कुछ बन जाएं फिर वो निकाह़ करेगा और फ़रजाना एक शिक्षिका बनना चाहती थी,उसने मन में ठान लिया था कि वो शिक्षिका बनकर गरीब बच्चों को मुफ्त में ट्यूशन दिया करेगीं।।
और फिर अल्लाहताला ने फ़रज़ाना की दुआ कूबूल कर ली,कुछ ही सालों में वो सरकारी स्कूल की एक अध्यापिका बन गई,वो वहाँ आठवीं तक के बच्चों को पढ़ाती थी,फ़रज़ाना की नौकरी लगते ही अब सबने जीश़ान पर निकाह़ करने के लिए जोर डाला और फिर जीश़ान को निकाह करना ही पड़ा,
शाहिदा की एक सहेली की बेटी को जीश़ान की दुल्हन के रूप में चुना गया जिसका नाम शमा था,वो बहुत ही खूबसूरत थी और वकालात पढ़ती थी,जीश़ान ने उसे एक ही नज़र में पसंद कर लिया और फिर दोनों का निकाह़ हो गया,शाहिदा और अख्तर साहब अब जीश़ान की तरफ से बेफिक्र हो गए थे,
अब उन्हें फ़रजाना की चिन्ता थी,उन्हें लगता था कि फ़रज़ाना के लिए भी कोई काब़िल लड़का मिल जाएं तो उसके हाथों में भी जल्दी से मेहदी लग जाए लेकिन फ़रजाना अभी निकाह नहीं करना चाहती थी,उसका मन था कि अपनी नौकरी से मिले पैसों को जोड़कर वो एक कोचिंग सेन्टर खोलें जहाँ गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिल सकें,अगर वो निकाह कर लेती है तो क्या पता उसके ससुराल वालें उसके इस काम के लिए रज़ामन्द हो या ना हो और अगर निकाह़ से पहले ही उसने कोचिंग खोल ली तो फिर निकाह करने के बाद कोई भी उसे इस काम के लिए मना नहीं कर सकता।।
जब फ़रज़ाना ने अपनी ख्वाहिश अपने परिवार के सामने जाह़िर की तो उन्हें भी यही सही लगा फिर किसी ने भी फ़रजाना पर निकाह के लिए जोर नहीं डाला और फिर एक साल के भीतर ही फ़रजाना ने अपने इकट्ठे किए हुए पैंसों से कोंचिग सेन्टर खोल लिया ,कुछ पैसों की मदद उसके भाईजान जीश़ान ने भी की,जीश़ान कानपुर में शमा के साथ रहकर अपनी पुलिस की नौकरी सम्भाल रहा था और शम़ा भी अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी करके प्रैक्टिस कर रही थी।।
इधर लखनऊ में फ़रज़ाना दिनभर स्कूल में पढ़ाती और शाम को छः से आठ कोचिंग में रहती,वो अकेले कोचिंग का काम सम्भाल नहीं पा रही थी इसलिए उसने एकाध दो अध्यापकों के लिए अख़बार में इश्तिहार दे दिया,उसका इश्तिहार पढ़कर एकाध दो लोंग आएं भी लेकिन फ़रजाना को उनके पढ़ाने का तरीका पसंद नहीं आया इसलिए वो उन्हें कोचिंग में रखने के लिए रजामंद नहीं हुई।।
फ़रजाना परेशान थी उसे कोई भी अच्छा अध्यापक या अध्यापिका नहीं मिल रही थे अपनी कोचिंग के लिए,जो भी आता उससे या तो फऱज़ाना संतुष्ट ना होती या तो फिर कोचिंग में पढ़ने वाले बच्चे संतुष्ट ना होते इसी तरह एक रोज़ संडे का दिन था फ़रज़ाना के स्कूल की छुट्टी थी इसलिए आज घर का राशन और सब्जी लेने वो अपनी स्कूटी से बाज़ार की तरफ़ निकल पड़ी।।
वो बस बाज़ार पहुँची ही थी कि उसकी स्कूटी के सामने एक बच्चा आ गया,उस बच्चे को बचाने के चक्कर में फ़रजाना ने अपनी स्कूटी दूसरी ओर मोड़ी तो एक शख्स को स्कूटी से टक्कर लग गई,वो शख्स मुँह के बल जमीन पर जा गिरा फिर गुस्से से जमीन से उठा और अपने कपड़े झाड़ते हुए फ़रज़ाना से बोला.....
मोहतरमा! जब स्कूटी चलानी नहीं आती तो क्यों लेकर घूमती हैं,स्कूटी ना चलाने से माबदौलत आपकी शान में कोई कमीं ना जाऐगीं।।
माँफ कर दीजिए,गलती हो गई,फ़रजाना बोली।।
क्या माफ कर दीजिए? क्या गलती हो गई? आपने तो कोई कस़र ना छोड़ी थी हमें जन्नत की सैर करवाने में,वो तो ऊपरवाले की मेहरबानी जो हमारी जान बच गई,आपको क्या है आप तो अपनी ये घोड़ी कहीं भी दौड़ाती घूमतीं हैं,घोड़ी दौड़ाने का इतना ही शौक़ है तो जरा उसकी लगाम भी खींचकर रखा कीजिए,वो शख्स बोला।।
सुनिए जनाब! बहुत हो गया,हम उतनी देर से आपसे तम़ीज़ से पेश आ रहे हैं, आपसे माँफी माँग जा रहें हैं और आप हैं कि हम पर बस चढ़ते ही चले जा रहें हैं,हाँ! हम खूब दौड़ाऐगें अपनी घोड़ी आपसे जो करते बने सो कर लीजिए,फ़रज़ाना बोली।
ये भी खूब रही भाई! चोरी की चोरी ,ऊपर से सीनाजोरी,सच कहते हैं बुजुर्ग को औरतों को जरा सी आज़ादी क्या मिल जातीं है तो वें सिर पर नाचने लगती हैं?हम मरते मरते बचे और ये माँफी माँगने के वजाय हमारी फ़जीहत कर रही हैं,वो शख्स बोला।।
अजी! फ़जीहत करना आपने देखा कहाँ हैं?एक थप्पड़ में आपके तोते उड़ जाएगे,फ़रजाना ने अपने चेहरे पर ढ़का हुआ नकाब हटाते हुए कहा,फ़रज़ाना ने जैसे ही नक़ाब हटाया तो वो शख्स फ़रज़ाना को देखते ही रह गया फिर फरज़ाना ने उससे पूछा....
क्या हुआ जनाब! बोलती क्यों बंद हो गई?
फिर उस शख्स ने कोई जवाब ना दिया,
फिर फ़रज़ाना बोली....
शायद आप डर गए हमसे....
और इतना कहकर फ़रजाना आगें बढ़ गई....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....