Pyar Kiya Nahi Jata - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार किया नही जाता - 1

प्यार किया नहीं जाता

भाग - 1 तन्हा सफ़र


"हे भगवान!इस कोच में और भी कोई यात्री आएगा,या मुंबई से अमृतसर का लंबा सफर मुझे अकेले ही तय करना होगा।"....खुशी मन ही मन बुदबुदा रही थी।

गाड़ी के चलने का समय हो गया था।खुशी की बैचैनी बढ़ती जा रही थी। खुशी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और मुंबई की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है।हालांकि इस ट्रेन से खुशी पहली बार सफर नहीं कर रही थी।वो छुट्टियों में इसी ट्रेन से अपने घर अमृतसर जाती थी।हवाई यात्रा से उसे डर लगता था,इसलिए ट्रेन ही एकमात्र विकल्प बचता था।पर हर बार उसके साथ दिल्ली तक उसकी सहेली रिया साथ जाती थी।पर इस बार लॉक डाउन खुलने के बाद बहुत कम लोग सफर कर रहे थे।उसकी भी मम्मी की तबीयत खराब ना होती तो ,इस माहौल में खुशी भी सफर करने का रिस्क ना लेती।भीड़ भाड़ से बचने के लिए इस बार खुशी ने वातानुकुलित तृतीय श्रेणी के बजाय वातानुकूलित द्वितीय श्रेणी का टिकट कराया।पर ये निर्णय लगता है,उल्टा पड़ गया था।क्योंकि पूरे कोच में खुशी अकेली यात्री थी।36 घंटे का सफर उसे इस कोच में अकेले करना होगा,ये सोचकर उसकी जान निकले जा रही थी।

तभी गाड़ी ने हॉर्न दिया ओर प्लेटफॉर्म पर रेंगने लगी।

तभी खुशी के दिमाग को कुछ सूझा।इतना लंबा सफर अकेले करना खतरे से खाली नहीं है।ट्रेन से उतर जाना ही उचित है।उसने जल्दी से सीट के नीचे से अपनी स्ट्राली खीची,हैंडबैग उठाया और दरवाजे की ओर भागी।गाड़ी अभी प्लेटफार्म पर धीरे धीरे सरक रही थी।
वो दरवाजे पर पहुंची ही थी कि बाहर से किसी ने बड़ी सी अटैची अंदर को फैकी।उसके धक्के से वो पीछे गिरते गिरते बची।वो कुछ समझ पाती,इस से पहले एक और बड़ा सा बैग अटैची पर आकर गिरा और रास्ता पूरी तरह ब्लॉक हो गया।

गाड़ी भी रफ्तार पकड़ने लग गई थी।खुशी ने तेज़ी से बैग को खीचकर, अटैची खिसकाकर रास्ता बनाने की कोशिश की।तभी एक और बैग अंदर आकर गिरा।

खुशी झुंझलाकर चिल्लाई.."स्टॉप इट,मुझे उतरने दो।"

तभी भागता हुआ एक युवक दरवाजे से ट्रेन में सवार हुआ।

"रास्ता दो,मुझे उतरना है",खुशी अपनी स्ट्रोली संभालते हुए जोर से चिल्लाई।

"मैम,....अब अगले स्टेशन पर उतरना,....गाड़ी स्पीड पकड़ चुकी है,और... platform भी ख़त्म हो चुका है।"युवक ने हांफते हुए जवाब दिया। दौड़ कर ट्रेन पकड़ने के कारण उसकी सांस बुरी तरह फूली हुई थी।

खुशी झुंझलाकर रह गई।

अगले कुछ सेकंड्स तक उन दोनों के बीच बिल्कुल खामोशी थी।केवल ट्रेन के चलने की आवाज आ रही थी।

युवक की सांस कुछ व्यवस्थित हुई तो वो बोला
"मैम,आप सीट पर बैठ जाइए।अगला स्टेशन अब 2 घंटे बाद आएगा। मैं,माफी चाहता हूं,मेरी वजह से आप ट्रेन से उतर नहीं पाई।अगले स्टेशन पर मैं उतरने में आपकी मदद कर दूंगा।"

युवक खुशी के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा था।
खुशी कुछ देर तक शांत खड़ी रही। उसने मन मारकर अपनी स्टरोली को अंदर की ओर खीचा और अपनी सीट पर आकर बैठ गई।

कुछ सेकंड्स बाद वो युवक भी अपना बैग लेकर सीट नंबर पर निगाह डालते हुए आया और उसके सामने वाली सीट पर अपना बैग रखकर चला गया।अब खुशी ने पहली बार युवक को ध्यान से देखा।वो 28-29 साल का पतला दुबला युवक था।उसने साधारण सी सफेद टी शर्ट और नीली जींस पहनी थी।चेहरे से शरीफ ही लग रहा था।
"पर इन लड़कों का कोई भरोसा नहीं..ये सब मौके की तलाश में रहते हैं।"खुशी मन ही मन बुदबुदाई।
खुशी की घबराहट और बढ़ गई।उसके मन में बुरे बुरे ख्याल आने लगे।ये जान बूझ कर सामने वाली सीट पर बैठ रहा है।क्या करू...क्या करू???खुशी सोच रही थी।

तभी युवक अपना दूसरा बैग लेकर आया और पहले बैग के साथ रख कर वापिस चला गया।

खुशी निर्णय ले चुकी थी कि उसने क्या करना हैं।उसने अपनी स्त्रोली खींची,हैंडबैग उठाया और कोच में कुछ सीटें आगे जाकर बैठ गई।

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खुशी का ये सफर कैसा रहा?क्या वो सुरक्षित अपनी मंजिल पर पहुंच पाई?
जानने के लिए अगला भाग अवश्य पढ़े।आपको ये कहानी कैसी लग रही है,अवश्य बताएं।

लेखक - मनीष सिडाना
m.sidana39@gmail.com

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