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संयोग-- अनोखी प्रेम कथा - (भाग 2)

संगीता अपने बूढ़े पिता के साथ रहती थी।पिता को शराब पीने की बुरी लत थी।जिसकी वजह से उसे टी बी हो गयी थी।रात रात भर खांसता रहता लेकिन दारू पीना नही छोड़ता था।गांव में इलाज की कोई सुविधा नही थी।इसलिए बीमारी लाइलाज होती गयीं और एक दिन बाप यह दुनिया छोड़कर चला गया।पिता की मौत के बाद संगीता अकेली रह गयी।
मोहन की नज़र संगीता पर थी।बाप था तब तक तो उसकी हिम्मत नही होती थी।लेकिन संगीता के अकेली रह जाने पर वह उसे तंग करने लगा।एक रात वह उसकी झोपड़ी में जा पहुंचा।
"तुम यहाँ क्यो आये हो?"मोहन को अपनी झोपड़ी में देखकर संगीता गुस्से में बोली,"चले जाओ यहां से।"
"जानेमन इस तरह नही जाऊंगा।"मोहन ने झपटकर संगीता को अपनी बाहों में भर लिया।संगीता,मोहन की पकड़ से बचने का प्रयास करती है। उनमें छीना झपटी होने लगती है।मोहन,संगीता की इज़्ज़त लूटने के इरादे से आया था।वह हर हाल में संगीता को अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता था।संगीता किसी भी कीमत पर अपनी आबरू बचाना चाहती थी।दोनो अपने प्रयास में लगे थे।
मोहन नशे में था।अचानक उसकी पकड़ ढीली पड़ी।संगीता ने पूरी ताकत के साथ उसे धक्का मारा।वह चारो खाने चित।जमीन पर जा गिरा।संगीता अपनी झोपड़ी से निकलकर भागी।।मोहन गिरा लेकिन उठ खड़ा हुआ
"संगीता खान तक भागेगी
अंधेरा।गिरती पड़ती वह स्टेशन जा पहुंची।संयोग से स्टेशन पर एक ट्रेन सिग्नल न होंने से खड़ी हो गयी थी जो चल पड़ी थी।संगीता भागकर उस चलती हुई ट्रेन में चढ़ गयीं।मोहन उसके पीछे दौड़ता हुआ आया लेकिन ट्रेन प्लेटफार्म छोड़ चुकी थी।मोहन ट्रेन को जाते हुए देखता रह गया।संयोग से संगीता जिस ट्रेन में चढ़ी वो मुम्बई जा रही थी।
ट्रेन में वह गाना गाकर पिता के साथ भीख मांगती थी।लेकिन ज्यादा दूर तक नही जाते थे।पहली बार वह इतनी दूर जा रही थी।और डरते हुए वह मुम्बई पहुंच गयी।उसके पास टिकट नही था।वह डरते हुए आयी लेकिन उसके पास टिकट नही था।कार्ड जरूर था जो शंकर ने उसे दिया था।
स्टेशन से बाहर आई।
महानगर की विशालता देझकर वह अचंभित रह गई।बड़ी बड़ी गगनचुम्बी इमारते।चौड़ी सड़के और उन पर दौड़ते वाहन।भीड़ भीड़ ही भीड़।और लोगो से शंकर का पता पूछते पूछते उसके बंगले तक जा पहुंचती है।गेट पर गार्ड खड़ा था।उसे देखते ही गार्ड बोलता है,"किस से मिलना है?'
"क्यो?क्या काम है?"गार्ड ने एक साथ कई प्रश्न कर डाले थे।संगीता उसे शंकर का कार्ड देती है।तब गार्ड फोन करता है और शंकर उसे बुला लेता है।
"तुम?कब आयी मुम्बई?"शंकर उसे देखते ही पूछता है।
"आज ही।पूछती हुई यहाँ तक आयी हूँ।"
"और तुम्हारे पिता?"शंकर ने पूछा था।
"वह अब इस दुनिया मे नही रहे।"संगीता ने अपने पिता के बारे में बताया था।
"सॉरी।मुझे तुम्हारे पिता की मौत का अफसोस है"।शंकर ने दुख प्रकट किया था।
"पिता की मौत के बाद गांव में जीना मुश्किल हो गया था।लोग तंग करते थे और मोहन--संगीता मोहन के बारे में बताती है।उस से बचकर कैसे आयी।
"किस से बात कर रहे हो?"आवाज सुनकर सरला कमरे में चली आयी।संगीता को देखकर चोंकते हुए बोली,"यह लड़की कौन है?'
"माँ यह संगीता है।मैंने तुम्हें ट्रेन में गाने वाली लफ़की के बारे में बताया था,""हां।याद आया।"
"संगीता यह मेरी माँ है।"
"माजी नमस्ते"।संगीता ,सरला के पैर छूती है।