Choutha Nakshatra - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

चौथा नक्षत्र - 2

अध्याय 2

एक्सीडेंट


“क्या हुआ सुरभि ”, अनिका उसके पास आ गयी थी ।

अनिका सुरभी की सहकर्मी थी । इस सॉफ्टवेयर फर्म के हजारों कर्मचारियों में से एक । सुरभि के कोमल मन का एक कोना अक्सर उसी के कंधों पर टिका रहता ।भावनाओ की तहें अक्सर अनिका के सामने ही खुलती । इस महानगर में सुरभि का डर , उसकी चिंताएं और उसकी खुशियां सभी कुछ अनिका संभाल लेती । किन्तु क्या सात-आठ महीने पहले ऐसा था ? महानगर में पली अनिका और कानपुर से आई सुरभि में स्वेत श्याम सा अंतर था ।

तब सुरभि को आये दस ही दिन हुए थे । नया शहर ……नयी नौकरी ……..और हर दिन किसी न किसी बात पर आतंकित करती इस सहकर्मी ने डरा दिया था उसे ।लेकिन आज वही उसकी अंतरंग सहेली थी ।

सुरभि .... सुरभि ...आर यु ओके , अनिका सुरभि के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी ।

सुरभि जैसे गहरी नींद से जागी हो । अनिका ने पानी का ग्लास उसकी ओर बढ़ा दिया । सुरभि ने अनिका की ओर देखा । आँखो में उतर आया खौफ़ आँसुओं में बदलने लगा था । अनिका ने ग्लास टेबल पर रख दिया ।

क्या हुआ ?...व्हाई आर यु क्राइंग ?

आई थिंक ही मेट विथ अ एक्सीडेंट ”, रुंधी हुई आवाज सुरभि के गले से निकली ।

“कौन ?...... कमल ?!!”

सुरभि ने हाँ में सर हिलाया । इस बार आवाज उसके गले से न निकली । अब तक नीले और सफेद विनायल क्यूबिकल्स से निकल कर लोग उन दोनों के पास जमा हो गए थे । उसी भीड़ से तनय ने आगे बढ़ते हुए सुरभि की कुर्सी का हैंडल पकड़ लिया । उसे देखते हुए उसने कहा ।

डोंट वरी सुरभि हम..उसे कांटेक्ट करने की कोशिश करेंगे……

सुरभि संज्ञा शून्य हो गयी थी । उसके आस पास क्या हो रहा है , उसकी समझ से परे होता जा रहा था । तनय की आवाज वह सुन सकती थी किन्तु वह क्या कह रहा है ,उसका मस्तिष्क नही समझ पा रहा था ।

अचानक फ़ोन की रिंग बजी । कॉल कमल के फ़ोन से था । फ़ोन तनय ने उठाया ।

हैलो ….हैलो …. इस आदमी का एक्सीडेंट हुयेला है ….लास्ट कॉल आपका था इसलिए काल किया ..आप कोंन है इसका

तनय की उंगलियों में थरथराहट हुई । चेहरे के भाव बदल गए थे ।

मेरी कलीग का हस्बैंड है ”, आवाज को सयंत रखते हुए उसने कहा ।

हम बॉम्बे हॉस्पिटल जा रहे है ……आप पहुंचो ….”

सूचना देने वाले ने बस इतना कहा और फोन काट दिया ।

सभी प्रश्नवाचक निगाहों से तनय को देख रहे थे । उसने सुरभि की ओर देखा । सुरभि की आंखों में भी वही प्रश्न था किन्तु उत्तर वह जानना नही चाहती थी । आंखो में बढ़ते जा रहे आंसुओ को अब वह रोक नही पाई ।

हमे बॉम्बे हॉस्पिटल जाना पड़ेगा ….वह इंजर्ड हो गया है ।

कार मुम्बई की सड़कों पर तेजी से दौड़ती जा रही थी । स्टीयरिंग व्हील तनय के हाथ में था । कार में बैठी सुरभि बेचैन हो गयी थी । कार सिग्नलो पर रुकती और थोड़ी देर बाद फिर सरपट दौड़ने लगती । सिग्नल पर रुकने का समय उसे जैसे अंतहीन लगने लगता । वह और ज्यादा बैचैन हो उठती । क्या वह समय से तेज दौड़ना चाहती थी या फिर समय की गति शिथिल हो चली थी ? उसका मन कसमसाने लगा । कार में आती धूप उसके माथे को गरम कर रही थी । माथे पर पसीना आ गया था ।

पसीना पोंछ ले यार …” कोई आवाज दूर अतीत से निकल कर आ रही थी । वह खुद को देख रही थी । पुराने पन्ने फड़फड़ाकर खुल गए थे ।

चित्रा परेशान न कर

अरे तुझे ही एकटक देख रहा है ”

हुंह …..तो मैं क्या करूँ….कॉलेज का पहला दिन..और ये मजनू……इसका तो मैं…… ”, हाँथ की उंगलियां मुट्ठी में बदल गयी ।

अरे ऐसे मत बोल यार….. तुझे घूरने के चक्कर में ही गिर भी गया है बेचारा …. देख न चोट भी खा गया ….

फिर भी होश ठिकाने आये क्या ….देख न ..कैसे देख रहा है …”

चित्रा और मुग्धा की सम्मलित हँसी उसके कानों तक आ रही थी । वह देख रही थी । कुमुद ताल के पास खड़ा कमल मुस्कुरा रहा था । नए अडमिसन की औपचारिकताओं में फंसे छात्र आर-पास से गुजर रहे थे । उसका दिल तेजी से धड़क रहा था ।वह कमल की ओर देख रही थी । कमल और अधिक मुस्कुरा रहा था । क्षण खिंचते जा रहे थे । समय की गति शिथिल होती जा रही थी । पीछे की ओर पैर बढाता कमल लड़खड़ाकर ताल में गिर गया था । वह मुस्कुरा रही थी ।

झटके से कार ‘इमरजेंसी’ के सामने रुकी । सुरभि की विचार श्रृंखला टूट गयी । कार का दरवाजा खुला और वह लड़खड़ाती हुई बाहर आयी । अनिका ने सुरभि की बाँह पकड़ ली ।सुरभि को लगभग खींचती हुई वह डॉक्टर-काउंटर तक पहुंच गई थी । इससे पहले कि वह कुछ पूँछ पाती , बाहर से आते स्ट्रेचर की ओर डॉक्टरों और नसों की भाग दौड़ शुरू हो गयी थी । स्ट्रेचर ‘इमरजेंसी’ में तेजी से लाया जा रहा था । नर्सो ने स्ट्रेचर के साथ साथ भागते हुए ही उपकरण लगाने शुरू कर दिए थे ।

कॉल द ओटी प्लीज ….क्विक ….”

व्हाट इस द केस ….”

रोड एक्सीडेंट….”

ई सी जी….फ़ास्ट …”

सुरभि ने स्ट्रेचर की ओर देखा , खून से रंगी पीली टी शर्ट में कसा हुआ बदन निढाल था । खून के छींटे चेहरे से होते हुए काले घुंघराले बालो तक आ गए थे । उन घुंघराले बालो को वह पहचानती थी । तेजी से उसकी रुलाई फूट गयी । उसने अनिका के कंधे में अपना मुँह छुपा लिया । बदन थरथराने लगा था । हिचकियो से थरथराते बदन को अनिका ने कस कर संभाल लिया ।

कार पार्क कर के तनय ‘इमरजेंसी’ में आ गया था । उसने अनिका की ओर देखा । अनिका तेजी से अंदर की ओर जाते हुए स्ट्रेचर को देख रही थी । वह भी स्ट्रेचर की ओर बढ़ गया ।



------क्रमशः



---- कंदर्प



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