Choutha Nakshatra - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

चौथा नक्षत्र - 5

अध्याय 5

माँ

लिफ्ट का दरवाजा ग्राउंड फ्लोर पर खुला । ऊपर के फ्लोर तक आने जाने के लिए कई लिफ्ट थीं । ओ.पी.डी. खुलने का वक्त हो चला था इसलिए लिफ्ट के सामने कतारे लंबी होने लगी थीं । लिफ्ट से बाहर निकल कर सुरभि अस्पताल के कैफेटेरिया की ओर बढ़ गयी । अस्पताल के चमकते साफ सुथरे गलियारों में चहल पहल बढ़ने लगी थी । गलियारों से होते हुए वह विशाल गोलाकार एंट्रेस हाल में आ गयी । हाल में बीच मे वेटिंग एरिया था और किनारे गोलाकार तरीके से काउंटर लगे थे । सभी काउंटर मरीजों और परिजनों से घिरे थे । हाल के एक कोने में कैफेटेरिया का गुलाबी नियांन साइनबोर्ड जल रहा था जल्दी चलते हुए सुरभि कैफेटेरिया तक पहुंच गई किन्तु वहाँ पहुंच कर जैसे उसके पाँव जम गए ।

कैफेटेरिया की दरवाजे वाली सीट पर माँ बैठी थी । माँ के शांत और सौम्य मुख पर हमेशा की तरह विचार शून्य भाव थे । उजले चौड़े माथे पर बड़ी कुमकुम की बिंदी और गहरे काले बालो में हल्की सफेदी की मिलावट एक वर्ष पहले जैसी थी अब भी वैसी ही थी । माँ बिल्कुल वैसी ही दिख रही थी जैसा वह उन्हें एक वर्ष पहले कानपुर के विशाल दोमंजिला मकान के किलेनुमा गेट पर छोड़कर आयी थी । लेकिन क्या माँ बिल्कुल नही बदली थी ? बाहर के बदलाव देखे जा सकते हैं किंतु अंदर के .....? अंदर के बदलावों को महसूस करना पड़ता है ।

मृदुला भाभी माँ के पास बैठी उनका सॉल ठीक कर रही थी । सौरभ भइया काउंटर पर कुछ ख़रीद रहे थे । अचानक मृदुला भाभी की नजर सुरभि पर पड़ी । भाभी ने माँ के कान में कुछ कहा और माँ ने सुरभि की ओर देखा । माँ का शाँत चेहरा वैसा ही विचारशून्य रहा किन्तु भावनाओं का ज्वार आँखो में उतरने लगा । माँ की छलछलाई आँखे बह निकली । सुरभि के ओंठ थरथराने लगे । उसे लगा यह ज्वार माँ की आँखों से होता हुआ उसकी आँखों में उतरने लगे था । वह तेज आवाज में रो लेना चाहती थी लेकिन रुलाई उसके गले में फँस गयी थी । थरथराते ओंठो को उसने भींच लिया था । उसने पनियाई आँखो से देखा । माँ ने अपना चेहरा मृदुला भाभी के कंधे में छुपा लिया था । कैफेटेरिया की सीट,माँ, मृदुला भाभी .........सभी कुछ पानी पर बने चित्र सा हिलने लगा था ।

इस एक पल में एक वर्ष की अवधि के दोनों छोर मिल गए थे । भावनाओ का यही ज्वार उसने एक वर्ष पहले भी अनुभव किया था । उस समय भी इसी तरह किलेनुमा गेट के पास खड़ी माँ ने डबडबाती आँखो को मृदला भाभी के कंधों में छुपा लिया था । उस समय भी उसकी रुलाई गले तक आ कर रुक गयी थी और उसके थरथराते ओंठ उस समय भी भिच गए थे

“अरे ........ सुरु ”

सौरभ भइया ने काउंटर से पलटते हुए सुरभि की ओर देखा | आपने हाँथ में पकड़ी हुई चाय उन्होंने टेबल पर रख दी थी |आगे बढ़ कर उन्होंने सुरभि का चेहरा अपने हाथों में ले लिया था ।सुरभि नें अपना चेहरा भइया के सीने में छुपा लिया था |धीरे धीरे सुरभि की हिचकियों की आवाज कैफेटेरिया में आने लगी थी|

” चुप ...चुप हो जाओ पहले .....बैठो ”

सौरभ भइया ने उसे माँ के सामने वाली सीट पर बैठा दिया | माँ अब तक संयत हो चुकी थी | हल्के से सुरभि की दोनों कलाइयाँ पकड़ ली |

...जी ...दी को पानी दीजिये ..”

मृदुला भाभी ने सौरभ भइया को हमेशा की तरह आदेश दिया |

दी ....शांत हो जाइए ..अरे काहे डर रहीं हैं ... हम सब तो आ ही गए हैं ... बाबा विश्वनाथ सब सही करेंगे .....|

मृदुला भाभी का टेप चालू हो गया था |

माँ सुरभि को निहार रही थी |कैफेटेरिया का वेटर दो और चाय टेबल पर रख गया था |कैफेटेरिया में बैठे लोगों का ध्यान इसी टेबल पर हो गया था । धीरे धीरे सुरभि की हिचकियाँ शांत हो गयी थीं |

चाय पी लो सुरु

धीमी घंटियों सी माँ की आवाज आयी |एक कप मृदुला भाभी ने सुरभि के आगे रख दिया था |

अचानक सुरभि को कुछ याद आया |

पिताजी नही आ..... ?

कहते कहते वह चुप हो गयी | उत्तर उसे पता था |पिताजी के लिए तो वह बहोत पहले ही मर गयी थी ......... कोर्टरूम के कटघरे में खड़े होते ही .......।


---------क्रमशः

---- कंदर्प

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