Motorni ka Buddhu - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-14)

मॉटरनी का बुद्धु--(भाग-14)

कार में दोनो चुपचाप बैठे थे। जब हम बहुत खुश होते हैं या दुखी दोनो हालातों में समझ ही नहीं पाते कैसे रिएक्ट किया जाए। संभव को भी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे!! भूपेंद्र जी ने उसे हलवाई की दुकान पर रूक कर जलेबी रबड़ी लाने को कहा, वो चुपचाप बिना सवाल किए लेने चला गया।
भूपेंद्र जी को जलेबी रबड़ी जितनी नापसंद थी ,संध्या को उतनी ही ज्यादा पसंद, वो आज संध्या की मनपसंद चीज ले कर घर जाना चाहते थे। शाम का वक्त था और हलवाई जलेबी बना रहा था तो संभव को 10 मिनट इंतजार करना पड़ा।
भूपेंद्र जी कार में बैठे थे और वो याद कर रहे थे कि कैसे जब पहली बार वो संध्या को लेकर बरेली आए तो वो जलेबी बनती देख टस से मस नहीं हुई थी, वो वहीं पर खड़े हो कर खाना चाहती थी और भूपेंद्र समझा रहे थे कि," बाहर का मत खाया करो संधु तुम बनाना सीख लो और खुद बना कर खाया करो"! "मॉटर जी आज खाने दो अगली बार सीख कर बना लूँगी, पर उन्होंने उसे वहाँ खड़े हो कर खाने नहीं दी और पैक करवा ली। ऐसे ही एक चौराहै पर खड़ी हो कर बोली,"मॉटर जी ये साधना का झुमका किस गाँव में गिरा था"? भूपेंद्र समझ नहीं पाए और बोले,"मुझे का पता कहाँ गिरा था उसको ही पूछ लो"! "है भगवान कैसा बुद्धु पति दिया है मुझे, मैं बात कर रही हूँ उस गाने की जिसमें वो गा रही थी झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में", उसकी बात सुनकर भूपेंद्र जी ने हँसते हँसते अपना पेट पकड़ लिया।
कहाँ सोचा था उन्होंने कि इतनी बातूनी बीवी की कभी आवाज सुनने को उनके कान तरस जाँएगे? पर अब वो उदास नहीं होना चाहते थे, उन्होंने संभव को आवाज लगाई तब तक वो जलेबी पैक करा कर ला ही रहा था।घर पर सभ्यता इंतजार कर रही थी। भाई और पापा को देख कर उसको राहत मिली। वो दोनो के लिए पानी लेने चली गयी और काकी को चाय बनाने को भी कह दिया। "बेटा ये जलेबी और रबड़ी लाया हूँ, प्लेट में ले आओ और काकी के लिए अलग कर देन पहले से ही"। पापा को मूड़ अच्छा देख कर सभ्यता ने संभव को इशारे से पूछा तो वो बोला," छोटी, डॉ. कह रहे हैं कि मॉम के ठीक होने के चांसेस बढ़ गए हैं क्योंकि उनकी बॉडी अच्छा रिस्पांड कर रही है और उनकी रिकवरी में भी काफी सुधार आया है"! पापा, ये तो बहुत अच्छी खबर है, तीनो एक दूसरे के गले लग गए। तीनों खुशी के आँसू बहा रहे थे। बच्चों डॉ. ने बस कहा है कि,"उम्मीद बढ़ तो गयी है पर कितना वक्त लग जाए पता नहीं, इसलिए अब हम लोगो को पहले से ज्यादा ध्यान देना होगा मॉटरनी पर..... देखो कब भगवान हमारी कब सुनते हैं", भूपेंद्र जी खुश भी थे और चिंता में भी। "पापा आप देखना हम मॉम का और अच्छे से ध्यान रखेंगे जिससे वो जल्दी से ठीक हो जाँएगीं",बेटी की बात सुन कर वो मुस्करा दिए। "पापा मैं रूक जाता हूँ, छोटी के भी पेपर हैं, आप अकेले कैसे मैनेज करेंगे, जॉब दूसरी ले लूँगा संभव ने कहा तो भूपेंद्र जी बोले, " नहीं बेटा जो काम करना है वो करना है, पहली जॉब को न नहीं कहते, तुम बेफिक्र हो कर दिल्ली जाओ, यहाँ सब आसपास हैं कोई दिक्कत या परेशानी नहीं होगी"! "ठीक है पापा, आप जैसा कहोगे वही होगा, पर मन नहीं कर रहा ऐसे जाने का", संभव कुछ अनमना सा हो गया तो सभ्यता बोली," भाई टेंशन मत लो, मॉम ठीक हो जाएँगी तो कितना खुश होंगी सुन कर कि आप की जॉब लग गयी है, यहाँ सब संभल जाएगा", संभव ने भी ठीक है में सर हिला दिया।
भूपेंद्र जी चाय पी कर कमरे में चले गए। कपड़े बदल कर वो संध्या के पास रखी कुर्सी पर बैठ गए और हमेशा की तरह माथा सहलाते हुए बोले,"मॉटरनी अब तू जल्दी ठीक हो जा, आज तो डॉ. ने भी कह दिया है कि अब तू जल्दी ही ठीक हो कर बैठ जाएगी और सुनो कल से मेरे साथ वॉक पर चल रही हो तुम, खुद कहती थी न कि तुम्हारे साथ वॉक पर जाया करूँगी, पता नहीं तुम पतियों का...न जाने कहाँ कहाँ तुम लोगों कि आँखे लगी रहती हैं....अब तैयार हो जा कल से मेरी निगरानी करने के लिए"! भूपेंद्र जी की आवाज में खुशी थी और उनका मन कर रहा था कि वे पूरे शहर को बता दें कि उनकी बीवी जल्दी ही ठीक हो जाएगी पर दिल ही दिल में सोच कर अपने दिमाग में आ रही बातों पर मुस्कुरा भी दिए। कल भूपेंद्र जी के दोनो भाई अपने परिवारों के साथ आ रहे हैं तो लीला से कल पूरा दिन रहने को कहना है याद आते ही उन्होंने सभ्यता को आवाज लगायी जो साथ वाले कमरे में पढ़ रही थी, पापा की आवाज सुन कर वो गयी तो उन्होंने काकी को पूरा दिन रूकने के लिए और खाने में कुछस्पेशल बनवा लेना भी कह दिया। लीला काकी जो रात की तैयारी कर रही थी उसे सब बता सभ्यता पापा के पास आ गयी," पापा कल मीठे मे आइसक्रीम मँगवा लेगे और खाना तो काकी बना लेगी पर बच्चों के लिए पिज्जा और पास्ता हम घर बना लेंगे, उन्हें वो सब अच्छा लगेगा, ठीक है न पापा"!"बेटा जैसी तुम्हारी मर्जी, सामान बता दो जो लाना हो वो सुबह वॉक पर जाँऊगा तो ले आऊँगा"!
सभ्यता--- "ठीक है पापा, मैं आपको वॉटसप्प कर देती हूँ सब चेक करके, आप फोन ले जाना न भूलना"।
पापा--- "फोन ले जाऊँगा तुम आराम से देख कर बता देना"।
सभ्यता डिनर करने से पहले एक घंटा पढ लेना चाहती थी क्योंकि डिनर के बाद एकदम पढने का मन नहीं करता था तो वो अपने कमरे में चली गयी। संभव अपने कमरे में बैठा अपनी एल्बम ले कर बैठा था, यूँ तो वो कई बार देख चुका था पर उसका मन नहीं भरता था, इसमें वो मॉम के साथ कई फोटो में था , किसी में उनकी गोद में था तो किसी में वो उसे प्यार कर रही थी, कपड़े पहना रही थी। माँ की याद आने पर वो तस्वीरों को देख कर माँ की छुअन को महसूस कर लिया करता है।
भूपेंद्र जी के मन में यादों का तूफान हर वक्त उमड़ता रहता है, कभी कुछ याद आ जाता है तो कभी कुछ। कभी याद करके रो लेते हैं तो कभी हँस लेते हैं। संध्या के माथे को सहलाते सहलाते उनका मन फिर भाग गया यादो के पीछे, जहाँ संध्या को कार चलाते हुए वो उसे टोक रहे थे साथ वाली सीट पर बैठ कर और वो उन्हें गुस्से से घूर रही थी," मॉटर जी आप चलाते हो तो मैं नहीं टोकती न तो अब मों चला रही हूँ तो चुप रहो और नहीं चुप बैठ सकते तो संभव को आगे भेज दो और खुद अपनी लाड़ली के साथ बैठो"! "अरी भागवान ये दिल्ली की सड़के नहीं हैं ये बरेली है इसलिए टोक रहा हूँ, पर तुझे तकलीफ होती है तो ले मैं चुप बैठा हूँ चला ले", पापा की बात सुन कर संभव बोला," पापा कार मॉम चला रही है चलाने दो, कहीं गुस्सा आ गया तो कहीं गुस्से में टक्कर न मार दें", ये तब की बात थी जब संभव 5 वीं में पढता था! "पापा के बच्चे तुम दोनो यहीं उतर जाओ मैं और छोटी तुम्हें सीधा घर पर मिलेंगे", माँ की बात सुनते ही संभव सीरियसली बोला, "पापा उतर जाते हैं"......और संध्या ने भी कार रोक दी और संभव अपनी तरफ का दरवाजा खोलने लगा तो छोटी बोली,"भाई मुझे भी आना है मम्मा के साथ मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ, मुझे मरना नही है", दूसरी क्लॉस में पढती सभ्यता जोर से चिल्ला दी और बच्चों की बातें सुन कर भूपेंद्र भी पहले तो जोर से हँस दिए, पर उन्हें अहसास हुआ कि संध्या को बुरा लग गया तो वो बच्चों को गुस्सा करने लगे और बोले, "चुपचाप बैठो, तुम्हारी माँ को ड्राइविंग आती है", पर कहते हैं न कि कई बार एक छोटा सी बात जो हम मजाक में कह जाते हैं किसी को भी, वो दिल दुखा जाती है बस वही हुआ। संध्या ने उस बात को कुछ इस तरह लिया कि उसने समझ लिया कि बच्चों को माँ से ज्यादा अपने पापा पर विश्वास है, इसलिए वो उनके साथ सुरक्षित महसूस करते हैं और वो नीचे उतर गयी और भूपेंद्र को बोला,"तुम चलाओ कार", वो भी चुपचाप ड्राइविंग सीट पर आ कर बैठ गए क्योंकि एक बार गुस्सा आने के बाद वो जल्दी से किसी की बात नहीं सुनती और बीच रास्ते में कुछ कहना ठीक नहीं था, पर बच्चे अपने पापा को कार चलाते देख खुशी से तालियाँ बजाने लग गए। घर आ कर सब कुछ नार्मल ही दिख रहा था, पर नार्मल नहीं था। उसके बाद संध्या ने कभी भी भूपेंद्र और बच्चों के साथ कार नहीं चलायी। कई बार भूपेंद्र ने कहीं जाना होता तो कहा, " मॉटरनी तुम और बच्चे कार ले कर चले जाओ"! संध्या ने मना कर दिया तब वो अकेली ही कार ले कर काम कर आती। इस टॉपिक पर कई बार भूपेंद्र ने बात करने की कोशिश की पर संध्या ने बात ही नहीं की। बाकी सब वो पहले की तरह सब काम करती रही, बच्चों को पढाती, उनके हर काम पर उसकी नजर रहती थी।
क्रमश: