Antim Safar - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

अंतिम सफर - 6

भाग -6

मुझे समझ नहीं आ रहा था यह मेरे साथ क्या हो रहा है, नाश्ता भी मैंने जैसे-तैसे किया ,इच्छा ही नहीं हो रही थी, और फिर वापस अपने कमरे में आकर मैं कुर्सी पर बैठ गया था।

खिड़की से बाहर दूर उस पहाड़ी को देखने लगा था ,और जाने मेरे मन में कैसे-कैसे ख्याल आने लगे थे,,,"" तो क्या रात को जब मेरी नींद खुली उसके बाद से ही मुझे हैरान करने वाले दृश्य नजर आने लगे थे, बाहर तो धूप खिली हुई हैं, बारिश का कोई नामोनिशान नहीं, तो फिर मैं कौन सी दुनिया में खड़ा था ,जहां बारिश हो रही थी ,,,""

""था तो वह मेरा ही यही घर, मैंने वास्तविक बारिश को देखा है मैंने इस टॉर्च की लाइट में बारिश को देखा ,मैंने सुबह अपनी आंखों से बारिश को देखा, तो फिर अब कहां है वह बारिश, जिसने मेरे होठों पर गिरकर मेरी प्यास बुझाने का प्रयास किया था ,यह सब वास्तविक था,,""

सामने टेबल पर रखी कलाई घड़ी को उठाकर मैंने बांध लिया था ,"क्यों ना मैं एक बार फिर पहाड़ी पर जाकर अपने अंदर के डर को भगा कराऊ ,क्योंकि कल से ही मेरे अंदर यह वहम बैठा हुआ है और यह तब तक नहीं जाएगा जब तक मैं दोबारा उसी पहाड़ी पर सफर नहीं कर लेता,""

""पर क्या मुझे वहां जाना चाहिए मेरे साथ दोबारा से कुछ घटना घटी तो मैं अपने आप को कैसे संभालूंगा, कल तो किसी तरह में वापस आ गया,"

मेरे समझ में नहीं आ रहा था दिल और मन तो कर रहा था कि मैं एक बार फिर उस पहाड़ पर चढ़ जाऊं ,जो मेरी आंखो के सामने खड़ा मुझे चिढ़ा रहा था ,दूसरी तरफ शरीर कुर्सी से उठकर चलने की यह हिम्मत कर ही नहीं रहा था।

और फिर मैंने धीरे से अपनी आंखें बंद कर ली थी ,और इसी के साथ मुझे अजीब से दृश्य नजर आने लगे थे ,मैं पहाड़ पर चढ़ा रहा था ऊपर की तरफ हवा की रफ्तार से भाग रहा था ,एक काली धुंध मेरे पीछे पड़ी हुई थी मैं पूरी तरह से बदहवास था।

बंद आंखों से यह दृश्य देखकर मैं अब अपनी आंखें खोलना चाहता था ,पर अब मैं अपनी आंखें भी नहीं खोल पा रहा था मेरे दोनों हाथ कुर्सी के हैंडल पर कस गए थे, मैं जबरदस्त तरीके से खुद को बंधा हुआ महसूस करने लगा था ,,मैं कुर्सी से उठ जाना चाहता था आंखें खोल लेना चाहता था, पर मैं दोनों में से कोई काम नहीं कर पा रहा था।

और बंद आंखों के कारण मुझे जो दृश्य दिखाई दे रहे थे, मुझे वह देखने पड़ रहे थे, मैं कसमसा रहा था मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था ,अपने पीछे पड़ी धुंध से बचने के लिए मैं भागते भागते फूलों की घाटी में आ पहुंचा था, चारों तरफ से फूलों ने मुझे घेर लिया था,

मैंने मुड़कर पीछे देखा था ,दूर हवा में लहरा रही काली धुंध जैसे मुझ पर हंस रही हो और फिर वह हवा में एकदम से गायब हो गई थी,

यह देखकर मेरे मन को थोड़ी तसल्ली मिली और दिमाग से थोड़ा डर भी हटा ,पर अब मैं कुर्सी पर थोड़ा शांत ही बैठा रहा और धीरे से आंखें खोलने की कोशिश करने लगा ताकत लगाने लगा खड़े होने की ,पर अभी भी सब कुछ मेरे बस में नहीं था,,

मैं फूलों के बीच में खड़ा था ,फूलों की सुगंध और उनके रंग मुझे अच्छे लगने लगे थे ,और मैंने धीरे से उन फूलों के ऊपर अपने हाथ को घुमाया था,,

"" पर यह क्या मेरा हाथ लगते ही वे फूल सूखी लकड़ी में परिवर्तित होते चले गए थे और फिर जहां तक मेरी नजरों जा रही थी वहां सब सूखी लकड़ियां नजर आने लगी थी मेरे पैरों के नीचे की जमीन चटकने लगी थी जैसे बंजर सुखी जमीन पर मैं खड़ा हूं,,,

मैं तेजी से वहां से निकलने लगा था ,पर अब वह सूखी लकड़ियां बिल्कुल किसी तेज धार तलवार की तरह मेरे बदन पर घाव डालने लगी थी ,ऐसा लग रहा था जैसे अब वह भी लहरा रही हो मेरी तरफ़,,

जो फूल के पौधे अभी तक मुझे बेहद अच्छे लगे थे, वे इतने खतरनाक रूप धारण कर लेंगे, मैंने तो यह सोचा भी नहीं था ,मैं वापस तेजी से भाग पड़ा था , मेरे पैरों पर कई घाव बन चुके थे ,उन से खून बहने लगा था,

,,पर मैं रुका नहीं था ,भागते भागते मैं फिर से उस क्षेत्र से बाहर निकल कर पहाड़ी की ऊंचाई की तरफ बढ़ गया था, और अब एक पत्थर पर बैठकर अपने पैरों को देखने लगा था, जो जांघों तक खून से भर चुके थे ,,अपने इस बहते खून को देखकर मुझे डर लगने लगा था ,मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं कैसे अपने पैरों को ठीक करूं,,,

मेरी नजर दूर दूर तक गई थी, और मुझे एक पेड़ के पास से पानी रिश्ता नजर आ गया था,, मैं तेजी से उठकर उसके पास पहुंचा था ,वहां एक छोटे से कुंड में पानी जमा था जिसे देख कर मुझे खुशी हुई थी, मैंने अपने पैरों के खून को साफ करना शुरू किया था,,,

पानी मैं पड़ रही अपनी परछाई को देखकर मैंने पहली बार उस जगह अपने चेहरे को देखा था, हिलते पानी की वजह से मुझे मेरा चेहरा साफ नजर नहीं आ रहा था ,इसलिए मैंने पानी में हाथ मारना बंद कर दिया था ,और पानी को शांत करने की कोशिश करने लगा था ,धीरे-धीरे मेरा चेहरा पानी में अब साफ नजर आने लगा था ,मुझे काफी खुशी हो रही थी ,कभी कभार ही ऐसा मौका मिलता है ,जल में अपनी तस्वीर देखने का,,,,

पेड़ की छाया भी कुंड में दिखाई दे रही थी, और तभी मेरा ध्यान पेड़ के ऊपर डाली पर लिपटी धुंध पर पड़ गया था मैं एकदम से पलटा था ,और पेड़ के ऊपर देखने लगा था,,,,,

जहां वाकई में फिर वही काली धुंध तैर रही थी, मैं अपनी ही जगह पर एक पल तो जड़ हो गया था, मेरे अंदर हिलने की भी ताकत नहीं थी, मैं चिल्ला कर मदद के लिए पुकारना चाहता था, पर जैसे मेरा मुंह बंद हो चुका था,,

मेरे दोनों हाथ जमीन पर लगे हुए थे,, और मैं उठना चाहता था ,पर तभी आसपास बिखरे सूखे पत्ते अजीब सी हरकत करते हुए, मेरे हाथ पर चढ़ने लगे थे ,मैं अपना हाथ भी नहीं उठा पा रहा था ,और वे लगातार मेरे जिस्म पर लिपटे चले जा रहे थे ,सूखे पत्तों की आवाज मुझे और भी चिढ़ा रही थी,, मेरा शरीर बेजान सा होता जा रहा था,,,

क्रमशः