Vo Pehli Baarish - 33 books and stories free download online pdf in Hindi

वो पहली बारिश - भाग 33


निया और ध्रुव ने उसके बाद कुछ दिन ऐसे ही डेटा को देखने में निकाल दिए।

“ये देखो.. इसे ध्यान से देखो.. जिस जिस का भी ब्रेकअप हुआ है, वो सब बाहर ही कहीं मिले थे।", निया ने साथ बैठे ध्रुव से बोला।

“हाँ.. क्योंकि किसी को भी अपने घर बुला के ब्रेकअप करना अजीब लगता होगा ना। कुछ और ढंग का ढूंढ के लाओ।", ध्रुव निया को समझाते हुए बोला।

“ठीक है.. अभी तो मैं चलती हूँ, कुछ मिलता है तो बताती हूँ। वैसे तुम्हें याद है ना, कल से ऑफिस में हमे बैठ कर एक दूसरे की गलतियाँ निकालनी है, तो अभी कुछ दिन उसी पे फोकस करते है, चलेगा?"

“हाँ.. सही कह रही हो, उसी पे ध्यान देते है, कुछ दिन। ”

“ऑल दी बेस्ट..”

“तुम्हें भी ऑल दी बेस्ट.. उम्मीद है की सब अच्छा ही होगा।"

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मीटिंग रूम में बैठी चंचल और सुनील की टीम नीतू का इंतज़ार कर ही रही होती है, की इतने में चंचल की टीम से कोई बोला।

“मे'म क्या लगता है, फाइनली ये प्रोजेक्ट किसे मिलेगा?”


“मे दी बेस्ट टीम विन.. शुरू करे?”, नीतू ने अंदर आते ही चंचल और सुनील के लटके हुए चेहरों को देख कर जवाब दिया।

चंचल और सुनील दोनों ने अपनी टीम के करे हुए काम के बारे में समझाया और फिर एक दूसरे से टेस्टिंग की डिटेल्स शेयर करी।

वो लोग मीटिंग खत्म करके बाहर जा ही रहे होते है, की इतने में नीतू बोली।

“ध्रुव और निया.. तुम दोनों यही रुको, मुझे आप लोगों से कुछ डिस्कस करना है।"

“ओके", दोनों ने एक सुर में जवाब दिया।

“क्या लगता है तुम्हें, उन्हें इनका भी पता चल गया क्या?”, चंचल धीरे से सुनील से बोली।

“पता नहीं.. आते है तो बात करते है इनसे..”, सुनील ने जवाब दिया।

अंदर मीटिंग रूम में नीतू, निया और ध्रुव से बोली।
“मुझे पता है, की मेरी फ्रेंड आप लोगों से अभी भी बात कर रही है। तो एक तो आप उससे बात करना बंद कीजिए, और दूसरा मुझे नहीं पता की आप दोनों की बीच क्या चल रहा है, या वो पहली बारिश का क्या चक्कर है, पर अगर उसका कुछ भी असर काम पे पड़ता है, तो अच्छा नहीं होगा। मुझे काम में ना तो मेरी निजी ज़िंदगी चाहिए.. ना ही आपकी, और अगर किसी की भी आई तो यकीन मानिए वो अच्छा नहीं होगा, दो लोग पहले ही उसकी वजह से भुक्त रहे है, मुझे यकीन है, आप दोनों उनमें शामिल नहीं होना चाहोगे।"

“जी..”, वो दोनों ये बोल कर बाहर आ गए। वो आकर अपनी सीट पे बैठे ही थे, की चंचल निया को और सुनील ध्रुव को बुला कर ले गया।

“बताओ क्या बोला नीतू ने, उन्हें तुम्हारे बारे में भी सब पता लग गया है क्या?" अलग अलग मीटिंग रूम में गए चंचल और सुनिल उन दोनों से पूछते है।

“नहीं.. बस ये कहा की काम अच्छे से होना चाहिए.. कोई चीटिंग नहीं होनी चाहिए।", उन दोनों ही कुछ ऐसा सा जवाब दिया।

“ठीक है।", ये बोल कर बाहर आए चंचल और सुनील एक दूसरे को आँखों से इशारा करते हुए बताते है की सब ठीक है।

“निया.. तुम वहाँ नहीं यहाँ बैठोगी..”, चंचल ने अपने साथ वाली सुनील की सीट पे इशारा करते हुए निया को बोला।

“पर मे'म सुनील सर..”

“मैं तुम्हारी सीट पे बैठूँगा..”, सुनील ने फट से जवाब दिया।

“ठीक है.. ",अपने ऑफिस का लैपटॉप उठाते हुए निया ने सीट बदल ली।

“ये बंद करो..”, निया के सिस्टम में देखते हुए चंचल बोली।

“पर ये बंद कर दूँगी तो मैं काम कैसे करूंगी।"

“ये चैटिंग बंद करोगी, तभी तो काम होगा ना।", चंचल ने आगे से बोला।

“पर मे'म.. मुझे किसी से काम हुआ तो, चैट तो करनी ही पड़ेगी ना।"

“पीछे मुड़ कर देखो.. सब यही बैठे है, जिससे काम हो सीधे बोल दो या उनकी सीट पे अपनी कुर्सी खिसका के ले जाओ।"

“येस मे'म..”, निया अपनी चैटिंग वाली एप कलोस करते हुए बोली।
निया के वो क्लोज़ करते ही, चंचल ने अपने पास पड़े छोटे से नोटपैड में जाकर कुछ कट
कर दिया।

“ध्रुव.. अच्छा होगा अगर आप भी इस एप को बंद कर देंगे तो।", सुनील ने भी ध्रुव से उस एप को बंद करने को कहा। और ध्रुव ने भी बिना ज्यादा बेहस करे हुए वो एप बंद करदी।

थोड़ी थोड़ी देर में बार बार निया के लैपटॉप की तरफ़ देखती चंचल से जब निया परेशान हो गई, तो कॉफी पीने के बहाने सीट से उठ गई।

वहाँ पहुँच कर अपनी टीममेट को कॉल करके उसने बुलाया, तो देखा की चंचल भी साथ साथ में आ गई थी।

“ये क्या हुआ है इन्हें?”, इशारों इशारों में निया ने अपनी टीममेट से पूछा।

“पता नहीं", उसने चेहरा लटकाते हुए इशारा किया।

कॉफी लेकर खड़ी हुई निया के साइड में जब चंचल आकर खड़ी हुई, तो उसकी नजरें निया के दूसरे हाथ में पकड़े हुए फोन पे थी।

“चंचल.. आज आप यहाँ की कॉफी, कैसे?”, निया ने चंचल से पूछा।

“हहम्म..”, अपना ध्यान उनकी बातों पे लाती हुई चंचल बोली। "सुनो.. तुम अपना फोन.. मुझे जमा करा दो।", चंचल ने आगे से जवाब दिया।

“हा??”, निया ने हैरानी से बोला। "आप क्या कह रहे हो चंचल.. फोन जमा.. कोई अर्जन्सी हो गई तो, और किसी ने फ़ोन करना हो तो।"

“हाँ.. वो तो फिर नहीं हो सकता। पर कम से कम तुम फोन डेस्क पे तो रख सकती हो ना।कोई फोन आए तो फट से उठा लेना।", चंचल ने कुछ सोचते हुए बोला।

“पर चंचल?”

“मैं चलती हूँ.. काम खत्म करना है”, निया की टीममेट चंचल से भागते हुए बोली।

“चलो.. अब हम भी चले।", चंचल निया को देखते हुए बोली।

“हाँ..”, दबी सी आवाज़ में वापस सीट की तरफ जाते हुए निया बोली।

“निया.. फोन", सीट पे पहुँची निया को चंचल सामने डेस्क की तरफ इशारा करते हुए बोली।

निया ने भी चुपचाप बस ये सोच कर फोन रख दिया, की बस दो घंटे की बात और है, फिर तो वो लोग आराम से घर निकल जाएंगे।

शाम के लगभग 6:30 बज रहे होंगे, अधिकतर लोग ऑफिस से निकल चुके थे। निया और ध्रुव के आस पास भी उन दोनों के अलावा बस चंचल और सुनील बचे थे।

“निया.. आज से तुम मेरे साथ मेरे यहाँ रहोगी", चंचल ने बोला।

“हह??”, निया ने जवाब दिया।

“ध्रुव.. मैं कुछ दिनों के लिए तुम्हारे यहाँ रुकूँगा।", दूसरी ओर सुनील ध्रुव को बोलता है।

“क्या.. क्यों??”, ध्रुव ने भी आश्चर्य से सुनील को देखते हए बोला।