Vo Pehli Baarish - 44 books and stories free download online pdf in Hindi

वो पहली बारिश - भाग 44

उठ कर अंदर डॉक्टर के कमरे में गई, निया उनसे कुछ बात कर थी थी, जब डॉक्टर ने चंचल को कुछ इशारा किया।

चंचल देख पा रही थी, की निया डॉक्टर से कुछ बात कर रही थी, और तभी डॉक्टर के कहने पे वो अंदर आई।

"भाभी, आपको पता है, क्या कह रही थी ये मुझे।"

"नहीं.. क्या कहा निया ने?", चंचल ने डॉक्टर से जैसे ही पूछा, निया हैरानी से पीछे मुड़ी, एक शायद इसलिए क्योंकि चंचल उसके पीछे आ गई थी, और दूसरा इसलिए क्योंकि उस महिला डॉक्टर ने चंचल को भाभी कह के बुलाया था।

"ये मुझे कह रही थी की इसकी तबियत..", वो डॉक्टर बोल ही रही होती है, की इतने में निया चिल्लाने लगती है, "आ.. आ.."।

"निया.. क्या हुआ?", साथ बैठी निया से चंचल ने फिक्रमंद होकर पूछा।

"कुछ नहीं हुआ है, इसे.. नाटक कर रही है।", डॉक्टर ने चंचल को बोला।

"मतलब?"

"मुझे आ कर कह रही थी, की आपको कहुं की इसकी तबियत खराब है, और इसे थोड़ी देर यही बैठा के रखूं।"

"निया?", गुस्से में निया को देखते हुए चंचल ने बोला।

"भाभी कहां से उठा कर ले आए हो इस स्कूल की बच्ची को?", डॉक्टर ने हंसते हुए बोला, और निया वहीं टेबल पे अपना सर नीचे करके बैठी हुई थी।

"स्कूल की बच्ची.. चले?", निया को बुलाते हुए चंचल वहां से निकली।

नीचे देखते हुई निया उठी और डॉक्टर की तरफ़ मुड़ी और उसे थोड़े गुस्से में देखते हुए वो बाहर चली गई।

"कहां कहां से पकड़ के लाते है, ये लोगों को।", महिला डॉक्टर गुस्से से देखते हुई निया को जाते देख बोली और अपने काम में लग गई।

"जल्दी आओ, और बैठ जाओ", चंचल ने निया को बोला।

निया के बैठते ही, चंचल ने गाड़ी अपने घर से दूसरी तरफ़ घुमा ली।

"चंचल.. आपका घर तो उस साइड है ना, फिर हम यहां कहां जा रहे है?"

"तुम्हारा मुंह खुलवाने", चंचल ने जवाब दिया और वापस अपनी ड्राइविंग पे ध्यान देने में लग गई।

कुछ दूर जा कर, एक छोटे से कैफे के बाहर साइड में करते हुए, चंचल ने गाड़ी खड़ी कर दी, और बोली।

"चलो उतरो.. हमारी मंजिल आ गई है।"

"पर चंचल..", गेट को पकड़ कर बैठी निया बोली।

"क्या?"

"मेंने कोई इतना बुरा काम तो नहीं किया, की आप मुझे यहां ले आए।"

"क्या?"

अपने सामने दिख रहे, एक आईपीएस ऑफिसर के घर की तरफ़ इशारा करते हुए निया ने कहा।

जिसे देख कर चंचल जोरों से हंसी। "निया.. गलती की सज़ा के लिए मैं तुम्हें पुलिस स्टेशन ले जाती, आईपीएस ऑफिसर के घर नहीं।"

"पर वो डॉक्टर की तरह, आपकी जान पहचान यहां भी हुई तो।"

"नहीं.. अभी इतनी पहुंची चीज़ नहीं हुई मैं, और वैसे भी वो सिर्फ एक बोर्ड है, मुझे नहीं लगता वो यहां खुद रहते होंगे। चलो उतरो अब।"

धीरे से गाड़ी का दरवाज़ा खोलते हुए निया उतरी तो, चंचल उसे साथ ही उस छोटे से कैफे में ले गई।
कैफे की दीवारें बाहर से तो सफेद थी, पर अंदर थोड़े वॉलपेपर लगा कर उसे सजाने की कोशिश की गई थी। गिनती की ५ टेबल वाली उस कैफे में घुसते ही सामने काउंटर पे खड़ी महिला मुस्करा दी।
"टी टाइम", अंदर जाते हुए निया ने कैफे का नाम लिया।
कोई और साथ होता तो शायद अब तक वो इस नाम का मज़ाक बना चुकी होती, की ऐसे तो कॉफी बुरा मान जाएगी, पर चंचल के साथ तो वो भी नहीं कर पाई, उल्टा बस एक पेज के उनके मेनू को हाथ में लेकर बस घुरी जा रही थी।

"क्या लोगी?" अपने लिए चाय मंगाते हुए, चंचल ने थोड़ी तेज़ आवाज़ में निया से पूछा।
"कॉफी मिलेगी क्या?", निया ने धीरे से जवाब दिया।

"येस मै’म.. इनमें से कौन सी चाहिए?", उस एक पेज के मेनू में नीचे की तरफ़ एक छोटे से हिस्से को दिखाते हुए काउंटर पे खड़ी लड़की ने पूछा।

"ये वाली दे दो।", निया ने ऐसी ही बीच से कोई कॉफी उठा कर देने को कह दिया।

"वैसे बचपन में तुमने अपने अपनी मम्मी को परेशान बहुत किया होगा।", अपने चाय का कप उठाते हुए चंचल बोली।

"हह?"

"और क्या, जिस हिसाब से तुमने १० मिनट में मुझे और सुनील को इतनी टेंशन दे दी, मम्मी को तो पता नहीं कितना परेशान करती होगी बचपन में।"

"नहीं, मैंने उन्हें बिल्कुल भी परेशान नहीं किया था।" निया ने धीरे से आंखें नीचे अपने रखे कॉफी के उस पेपर के मग को देखते हुए कहा। "सच कहूं तो कभी टाइम ही नहीं मिला।"

"क्यों?", चंचल ने थोड़ी सी गंभीरता से सवाल किया।

"पापा की ट्रांसफर वाली जॉब की वजह से, मुझे मम्मी ने बचपन में ही, बुआ के घर रहने भेज दिया था। और मेरी बुआ नहीं चाहती थी की किसी को भी लगे की मैं उनकी अपनी बच्ची नहीं हूं तो मुझे बिगड़ने दिया। तो हर पेट दर्द, हर बुखार में सबसे पहले यही पक्का किया जाता था, की मैं सचमुच बीमार हूं या कोई नाटक कर रही हूं।", निया ने मुस्कराते हुए बोला।

"तभी तुम एक्टिंग में इतनी अच्छी हो गई हो।", चंचल इस बात पे हंस दी।

और निया को, इतने दिनों में पहली बार अपने घर वालों के बारे में बात करके उसे अलग सी खुशी हो रही थी।

"अब मुझे ये बताओ की वो सब क्या था?", चंचल निया से सवाल करती है।

अपना मुंह नीचे करके निया धीरे से बोली, "एक कोशिश।"

"कैसी कोशिश?"

"आपके और सुनील के रिश्ते को पहली बारिश से बचाने की कोशिश।"

"और तुमसे किसने कहा है ऐसी कोई भी कोशिश करने के लिए।"

"वो अगर उस दिन आपको मेरी वजह से इसका पता नहीं चलता, तो आप कभी भी ब्रेकअप करने का नहीं सोचते, तो एक तरह से मैं ही इसकी ज़िम्मेदार हुई ना फिर।"

"किसकी ज़िम्मेदार हो तुम? इस बात की हम दिन में कम से कम भी तो १० बार लड़ते है, या इस बात की बात चाहे उसकी मम्मी की हो या मेरी मम्मी की, वो कभी मेरी साइड नहीं होता, या फिर इस बात की ज़िम्मेदार हो, की घर वालों की बात मान कर शादी करने वाले हम दोनों, असल में बिल्कुल अलग अलग दुनिया से है।"

"नहीं.. वो बस..."

"जो रिश्ता पहले ही टूटा हुआ है, उसे तुम टूटने से कैसे बचाओगी?"

*************************
निया और चंचल ने अपनी अपनी चाय और कॉफी खत्म की और वापस चंचल के घर चल दिए।

"वैसे वो जो डॉक्टर थी, वो सुनील की कसन थी।"

"ओह."

"पर तुम फिक्र मत करो वो सुनील को कुछ नहीं कहेगी।"

"ठीक है।", धीरे से बोलते हुए निया बाहर की तरफ़ देखने लगती है। "मैंने सोचा इस बारे में, की आखिर क्यों मैं ये ऐसे बीच में पड़ रही थी, शायद इसलिए की टूटा हुआ रिश्ता बहुत दर्द देता है।"

"हो सकता है.. पर धीरे धीरे करके टूटते रिश्ते को, अगर एक बार में तोड़ दूं तो शायद मैं एक दूसरे के लिए हमारी इज्ज़त हो बचा सकूं।"

"और उससे जुड़ा खालीपन?"

"वो तो रहेगा, पर अगर धीरे धीरे टूटने दिया, तो एक दूसरे के लिए मन में खीस उससे ज्यादा हो जाएगी।"

"पर इसका टूटना ज़रूरी है क्या?"

इसका कोई भी जवाब दिए बिना चंचल ने बस गाड़ी चलाने पे ध्यान दे रही थी।

कुछ देर में चंचल का घर आ गया, तो निया और चंचल दोनो अंदर जाते है।

"अब कैसी तबियत है?", अंदर आती हुई निया से टीवी देख रहे सुनील ने पूछा।

"अ.अ. अब ठीक है।", निया ने धीरे से बोला और कमरे में अपना समान लेने बढ़ी।

"वो.. वो रिया का फोन आया था, मैं वापस अपने फ्लैट जा रही हूं। हमारी बीच की सारी गलतफहमी दूर हो गई है।", अपना समान बाहर लेकर आई निया ने बोला।

"पक्का? तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है, तो कुछ दिन और यहीं रुक जाओ।"

"नहीं.. सुनील अब ठीक हूं मैं।", ये बोलते हुए निया बाहर निकलती है।

"तुमने इसे फिर से डांटा तो नहीं?", सुनील ने चंचल से पूछा।

"नहीं.. वो वहीं ठीक रहेगी।", चंचल ने धीरे से जवाब दिया।

निया अपने फ्लैट के लिए निकाली थी, पर कुछ ना समझ आने के कारण वही कोने में एक पत्थर के बने बेंच पर जा कर बैठ गई। उसे बैठे अभी दो मिनट ही हुए होंगे, की धीरे धीरे बारिश की बौछार शुरू हो गई।

"देख अब कुछ नहीं हो सकता.. अब सब खत्म सोच।"

"आज सबको बस सब खत्म ही करना है, क्या?", पास के बस स्टैंड पे भागती हुई निया के आगे से जाते एक अजनबी को बात करते सुन, उसने थोड़ी ज़ोर से बोला।
"लगता है, की ये पहली बारिश सच ही है।", अपने आप से धीरे से बोलते हुए वो आगे बड़ गई।

"एक्सक्यूज मी?", वो इंसान निया की तरफ़ पीछे मुड़ता हुआ हैरानी से पूछता है।

"नथिंग..", निया ने उसे बोला और अपने फोन में लग गई।

दूसरी तरफ़ बारिश की आवाज़ सुन चंचल ने अपनी खिड़की के बाहर देखा, और सुनील के पास गई।

"मस्त बारिश आ रही है ना?", सुनील ने खुश हो कर चंचल से पूछा।

"हां", चेहरे पे बिना किसी हाव भाव के चंचल ने बोला। चंचल ने आंख बंद करते हुए एक एक बड़ी सी सांस ली और सुनील से बोली।

"चलो अलग होते है।"

"हह?", सुनील ने हैरानी भरा चेहरा बनाते हुए कहा।

"इतना हैरान होने वाली तो कोई बात है ही नहीं। हमारी इस रोज़ को लड़ाई को शांति देते है।"

"तुम किसी बात पे गुस्सा हो? अगर अभी तुम्हारा दिमाग किसी बात को लेकर गर्म है, तो थोड़ा ठंडा हो जाए, तब बात करेंगे", सुनील ने एक दम शांति से चंचल से पूछा।

"नहीं.. कोई गुस्सा नहीं है मुझे।", चंचल ने एकदम शांति से जवाब देते हुए कहा।

"अच्छा.. तुम एकदम ठीक हो?", सुनील ने फिर से पूछा।

"हां", चंचल ने फिर से एकदम शांति से जवाब देते हुए बोला।

"तू क्यों तोड़ना है, तुम्हें ये रिश्ता?"

"क्योंकि आज पहली बारिश है.."

"हहम?"

"मैं थक गई हूं, हमारी इस रोज़ रोज़ की लड़ाई से।"

"अच्छा.. और क्योंकि तुम्हें चाहिए, इसलिए हम ये रिश्ता तोड़ दे?"

"हां।"

"क्या तुम इस रिश्ते में अकेली भागीदार हो?"

"नहीं.."

"तो फिर क्यों.. क्यों तुम मुझे हर बार सिर्फ अपने फैसले सुनाती हो। कभी उन फैसलों तक पूछने वाली तुम्हारी सोच का भी हिस्सा बनाया करो मुझे।", सुनील ने चिड़ते हुए थोड़ा तेज़ बोला।

चंचल ने कुछ भी जवाब नहीं दिया, और बस अपनी गर्दन नीचे कर दी।

"माना की अगर तुम्हारी तुलना में देखूं तो बहुत कमियां है मुझमें। पर तुम कभी ये क्यों नहीं सोचती की मेरी तुलना में तुममें भी कई कमियां मिलेंगी। कोई भी परफेक्ट कभी नहीं होता।", सुनील ने आगे बोला, और बाहर जाने लगा।

"कहां जा रहे हो?", चंचल ने पूछा।

"पता नहीं, पर तुम्हें अलग होना है ना, तो मैं बस वही हो रहा हूं। तुम्हें मुबारक हो ये घर..", गाड़ी की चाबियां उठा कर बाहर जाता हुआ सुनील बोला।

सुनील को यूं जाता देख, चंचल को बुरा तो लग रहा है, उसकी बातें सुन कर चंचल की आँखें की भी भर आई थी, पर बस खुद को ये दिलासा देते हुए, की इससे उन दोनों की जिंदगी सुधेरगी, वो पास की सोफे पे चुप चाप आँख बंद करके बैठ गई।

***********************

दीवेश नीतू से अभी तक डिपार्टमेंट ट्रांसफर वाली बात पे नाराज़ था, पर फिर भी बस स्टैंड पे खुद को बारिश से बचाती क्रीम से कलर के टॉप और ब्लैक लेगिंग पहनी नीतू को देख, वो खुद को उसकी तरफ जाने से नहीं रोक पाया।

"चलो, अगर सोसायटी तक ही जा रही हो, तो मैं तुम्हें छोड़ देता हूं।", लाल रंग का छाता लिए, काली टी–शर्ट और नीली जींस पहने दीवेश ने उसकी तरफ़ जाते हुए कहा।
"बस गला बदल गया है, पहले बंद गले वाली होती थी, अब गोल गले वाली।"

"क्या?"

"तुम्हारी टी–शर्ट जींस, बिल्कुल ऐसा ही थे, जब हम आखिरी बार उस बड़ी दुकान में मिले थे।"

"हह?"

"तुम चले जाओ, मैं ठीक हूं, चली जाऊंगी घर।", ये कहते हुए नीतू पीछे होकर बस स्टैंड पे बैठ गई।

"वैसे हम कुछ बात कर सकते है?", धीरे से उसकी तरफ दीवेश ने पूछा।

"हहमम..", दीवेश की चेहरे की गंभीरता को देखते हुए नीतू ने आराम में जवाब दिया, और उसकी ओर बढ़ी।
नीतू के आगे आते ही दीवेश ने छाता हल्का सा उसकी और बढ़ाया और वो दोनो चलने लगे।

"कहां जा रहे है, हम लोग?", नीतू ने साथ बढ़ते हुए पूछा।

"बस यही पास ही..", पास की एक छोटी सी जगह पे इशारा करते हुए बोला।

**************************************

"बस यही पास में", ये बोलते हुए दीवेश, नीतू को पास के ही एक कैफे में ले गया।

खिड़की के पास की एक सीट लेते हुए नीतू वहां बैठी और बारिश को निहारने लग गई।

"ये लो, तुम्हारी हमेशा वाली कॉफी..", हाथ में दो कॉफी के मग लिए दीवेश ने उनमें से एक नीतू के सामने रखा।

"बारिश अच्छी लग रही है, नहीं?", नीतू ने धीरे से पूछा।

"हहमम..", दीवेश ने उधर देखते हुए जवाब दिया और फिर फट से अपना ध्यान वापस नीतू की तरफ़ देखते हुए बोला। "मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी।"

"हां।", कॉफी पी कर अजीब सा मुंह बनाते हुए नीतू बोली।

"आखिर क्यों?"

"क्या?"

"आखिर क्यों तुम मुझे कुछ नहीं बताती?"

"क्या नहीं बताया मैंने?"

"कुछ भी नहीं.. तुमने तो कभी ये बताना भी ज़रूरी नहीं समझा की ये कॉफी तुम्हें पसंद नहीं है।"

"हहम.. अब क्या ही फर्क पड़ता है।"

"पड़ता है, मुझे मेरे सवालों के जवाब से फर्क पड़ता है।"

"कौन से सवाल?"

"३ साल पहले हमारा जो ब्रेकअप हुआ था, वो क्यों हुआ था?"

"वो.. हम क्यों आज भी उन पुरानी बातों को लेकर बैठे है।"

"क्योंकि जरूरी है वो।"

"ज़रूरी थी. वो.. वक्त के साथ साथ कुछ चीजों ज़रूरत भी कम होती रहती है, और मुझे लगता है, की उसकी अब कुछ ज़रूरत नहीं बची है।"

"अच्छा.. उनकी ज़रूरत है या नहीं, ये फैसला करने का हक मेरा भी होना चाहिए, वो रिश्ता हम दोनों की भागीदारी से था।"

"हां.. पर था वो.."

"ठीक है.. शायद मैं ही पागल था, की बात ना करने की बात करके भी यहां दोबारा आ गया, सिर्फ इस बात से खुश हो गया, की तुम यहां वापस आ गई। तुम्हें पता भी है, की उस दिन से पता नहीं रोज़ कितने बहाने ढूंढता था मैं यहां वापस आने के, कितनी कोशिशों के बाद मैं यहां तक पहुंच पाया। और फिर भी, तुम मुझसे भागी ही जा रही हो।"

नीतू बिना कुछ बोले गर्दन नीचे करके सब सुन रही थी।

"ठीक है.. अगर तुम कुछ नहीं बोलना चाहती.. तो उस दिन एक ब्रेकअप तुमने किया था, आज एक ब्रेकअप मैं करता हूं। एक बार ये गलती कर चुका हूं, दोबारा नहीं करूंगा, अब मैं दोबारा तुमसे कोई वास्ता नहीं रखूंगा।"

नीतू को चुप चाप बैठे सब सुनते देख, दीवेश को और गुस्सा आ गया, और उसने वहां से उठ कर जाना ही सही समझा।

***********************

बस की खिड़की पे बैठी निया, अंदर गिर रही उन छोटी छोटी बूंदों से, कुछ कुछ बना कर अपना टाइम पास कर रही थी, की इतने में उसका फोन बजता है।

वो फोन उठती है, तो देखती है, की ध्रुव का मैसेज आया होता है।

"प्लान सफल रहा.. तुम भी अपना बताना..", मुस्कराने वाले चिह्न के साथ ध्रुव का ये मैसेज पढ़ कर, निया को ध्रुव का कल आया कॉल याद आता है।

"हाय.. क्या कर रही हो?"

"कुछ नहीं बस बैठी हूं..", ध्रुव के सवाल का जवाब देते हुए निया ने कहा।

"मुझे कुछ मिला था, तो मैंने सोचा.. क्यों ना मैं सबसे पहले तुम्हें ही बताऊं।"

"क्या?"

"ये सुनो..", ध्रुव ने बोला, और कुछ पढ़ना शुरू किया।

"उस दिन मैं बहुत परेशान था, पर फिर भी मैं अपने मन में सिर्फ यही दोहारा था, की कुछ भी हो जाए, मुझे उससे ब्रेकअप नहीं करना है। मेरे सामने खड़ी ये लड़की ही तो मेरी सारी खुशियों का कारण है, पर पता नहीं कैसे, उस दिन जैसी ही वो बारिश शुरू हुई, उसकी उस आवाज़ ने मेरे अंदर कोई तूफ़ान सा उठा दिया और मेरे सामने बैठी वो, जैसे ही बोली, कितनी अच्छी लग रही है ना ये बारिश, बिना कुछ सोचे, मैंने भी बस ये कह दिया, की मुझे ब्रेकअप करना है।"

"हह.. ऐसे कैसे?", वो सुन कर निया हैरानी से बोली।

"अभी और सुनो..", निया को आगे सुनाता हुआ ध्रुव बोला।

"वो बहुत ही अच्छा था, पता है, वो मुझे अक्सर कहता था, की बारिश हम सब की मदद करती है, हमारी इस भागती हुई जिंदगी को बारिश ही इकलौती है, जो कुछ पलो के लिए थाम सकती है। वो कोई अगस्त की बारिश थी, जब वो मुझसे मिलने आया था, मैंने इससे पहले कभी ब्रेकअप का नहीं सोचा था, पर उस दिन मेरे मन में अलग ही हलचल हो रही थी, और अंदर की उस हलचल के साथ जब बाहर भी बारिश की हलचल शुरू हुई तो मेरा मन विचलित हो उठा। हम बाहर रोड पे खड़े होकर आइस क्रीम का मज़ा ले रहे थे, और तभी बारिश की पहली बूंद मेरी आँखों पे आ गिरी। हम दोनों भाग कर एक पेड़ के नीचे आए तो बारिश की तेज़ आवाज़ आई, जो सुनते ही वो मुस्करा रहा था, और तभी मैंने एकदम से बोला, चलो ब्रेकअप करते है। शायद बस इसलिए की मुझे पता था कि मेरे सारे आंसू बारिश में धुल जाएंगे।"

"क्या बकवास है?", निया ने ध्रुव की ये दोनो कहानियां सुनते ही कहा।

"ये लोगों की पहली बारिश की सच्ची कहानी है, क्या तुम्हें कुछ समझ आया?"

"क्या समझ आना था?"

"देखो.. इसे और कई और कहानियों को देखू, तो मुझे कई बातें मिली है, एक तो ब्रेकअप करने वाला इंसान अंदर से किसी बात से तो परेशान होता है। दूसरा, ये जो बारिश है ना, इसमें भीगो नहीं भी, और बस इसकी आवाज़ भी सुन लो, तो ये मुश्किल ला सकती है। मुझे मिला तो नहीं कुछ, पर शायद कोई सामने ना होकर सिर्फ फोन पे भी हो, तो भी ब्रेकअप हो सकता है। ये भी हो सकता है, की इन बारिश की ध्वनि तरंगों में ही कुछ होता हो, की इससे इंसान विचलित हो जाता है।"

"हो सकता है.. और नहीं भी। जो भी तुम्हारे पास है, उससे ऐसा कुछ कहना बिल्कुल सही नहीं है।"

"हां.. पर फिर भी.. इसे ध्यान रख कर अपनी कल वाली कोशिश कर सकते है।"

"ठीक है।"

"ठीक.. तो कल के लिए, फिर मैं कुनाल और शिपी को ऐसी जगह भेजूंगा, जहां बारिश की आवाज़ उन्हें बहुत अच्छे से आए। और तुम चंचल और सुनील को इतना दूर रखना, की बारिश के वक्त, वो एक दूसरे के साथ ना हो, या हो तो भी उनमें से कोई बारिश सुने नहीं।"

"हहम.. मैं कोशिश करूंगी..", ये बोल कर निया ने फोन काट दिया।

"मैं ये नहीं कर पाई", अपनी नाकामयाबी को याद करती निया, बस की खिड़की पे अपना सर हल्का सा मारते हुए खुद से बोली।