Sologamy - Part 4 (Live in relationship) books and stories free download online pdf in Hindi

आत्म विवाह - 4 - (लिव-इन रिलेशनशिप)

आत्म विवाह भाग- 4(लिव-इन रिलेशनशिप)

आर ० के ० लाल


चित्रा ने आगे बताया कि एक दिन मेरी रूममेट रेखा जिसे मैंने भगा दिया था अचानक घर पर आ गई, उसके हाथ में एक सूटकेस था। आते ही वह रोने लगी और बोली, "मेरा सारा सामान चोरी हो गया। किराया देने को भी पैसे नहीं बचे इसलिए मकान मालिक ने मुझे धक्के देकर निकाल दिया है । ऐसे में मैं कहां जाऊं मेरी समझ में नहीं आ रहा है। मैं दूर एक गांव की रहने वाली हूं वहां से भी कोई मदद नहीं मिलने वाली । तुम से अनुरोध है कि कम से कम एक महीने अपने साथ मुझे रहने दो। वेतन मिलते ही मैं अपने घर चली जाऊंगी"। मैं नहीं चाहती थी कि एक लेस्बियन को अपने साथ फिर से रखूं इसलिए मैं मौन रही। वह काफी देर तक मेरे उत्तर की प्रतीक्षा करती रही और फिर वही जमीन पर ही बैठ गई । मैं क्या करती, मुझे हां कहना पड़ा। हां,! ऑफिस जाने से पहले वह मेरा सारा काम कर देती थी, मेरे लिए नाश्ता भी बना देती थी।

उसके व्यवहार को देखकर मुझे उस पर तरस आने लगा। मैंने सोचा कि वह लैसबियन है तो क्या हुआ अगर कोशिश करूं तो मैं अन्य लड़कियों की तरह उसे नॉर्मल बना सकती हूं। मेरे भीतर कुछ कर दिखाने की ललक जाग उठी। मुझे कुछ ऐसा करना था जिससे वह विपरीत सेक्स की तरफ आकर्षित होने लगे। रात को खाने के बाद समय मिलता तो मैं उसे मॉडर्न लड़को लड़कियों के मोहब्बत की कहानियां सुनाने लगी। पर उसने तो इसका उल्टा ही मतलब निकल लिया था। दिन में वह ठीक होती पर रात होते ही पता नहीं उसे क्या हो जाता। उस शाम कैंटीन से खाना खाकर लौटी तो कमरे में पहुंचते ही उसने धड़ाम से दरवाजा बंद कर लिया और मुझे अपने आगोश में ले लिया। वह तो मुझे चूम ही लेती यदि मैने उसे दूर न धकेल दिया होता। मैं रुआंसी हो गई, समझ नहीं पा रही थी कैसे लड़की को लड़कियां ही अच्छी लग सकती है। मैंने उसे अच्छी डॉट लगाई ,वह बिलख कर रोने लगी। वह मुझे एक बेचारी लगने लगी अतः उससे रूखा बर्ताव करने के पश्चाताप की सोच ने शायद मेरे भीतर हिचकोले पैदा कर दिया था। अब जब वह मेरे बेड पर ही सोती। वैसे तो मुझसे डरती रहती मगर बीच बीच में उसका बदन छू जाता तो मैं हिल सी जाती। एक दिन मेरे जन्मदिन की पार्टी में वह आयी और गाल पर चुम्बन करते हुए उसके होठों ने मेरे होठों को गलती से छू लिया। अजीब बात ये थी कि मुझे अटपटा लगने कि बजाये अच्छा लगा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यूँ हो रहा है।

मुझे लड़कों के सपने आने लगे, ख्वाहिश बनी रहती कि कोई लड़का मेरे नजदीक आए और मेरे से बात करे। मैं उसका हाथ पकड़ कर जंगलों अथवा पहाड़ों पर गीत गाते हुए उड़ान भरूं। फिर सोचती रहती कि यह सब क्यों? मैंने तो अकेले जीवन जीने का सपना संजोया है, अपने से सोलोगैमी किया है। लोग क्या कहेंगे? मैं अपनी आत्मा को क्या जवाब दूंगी। नहीं, मुझ जैसी एक सोलोगैमी शादीशुदा गृहणी को इस तरह के विचार से दूर ही रहना चाहिए। लेकिन मन पर किसका वश चलता है? मेरा मन भी डोलने लगता था, बारिश के दिनों में खासतौर से। आस पास रोमांटिक फिल्मी गाने सुनकर मन में कुछ न कुछ होने लगता था। मेरा मन अब कुछ अलग ही चाहता था। कभी-कभी लगता मन की छटपटाहट और व्याकुलता के कारण अब मैं अकेले जिंदा नहीं रह पाऊंगी।

एक दिन न्यूज पेपर पढ़ते-पढ़ते मेरा ध्यान एक विज्ञापन पर गया जिसमें एक शादीशुदा महिला को जीवनसाथी की तलाश थी जो लिव इन रिलेशन की तरह बिना शादी किए साथ रहे। मुझे इसके बारे में बहुत पता नही था, केवल अपनी सहेलियों से सुना भर ही था कि जो आज अकेले रहते रहते से ऊब गए हैं और असुरक्षित और अकेला महसूस कर रहे हैं अथवा जिन कपल में नहीं पट रही है वे इस तरह कोई अन्य जीवनसाथी तलाश करके पति पत्नी की तरह जब तक चाहें रह सकते हैं। कानून ने भी इसकी मान्यता दे दी है। पुरुष-स्त्री बिना विवाह के ही केवल एक-दूसरे की रूचि के अनुसार साथ रह सकते हैं।

कई दिनों की उपापोह के पश्चात मैंने निर्णय कर लिया कि मैं भी इसी तरह का जीवन निर्वाह करूंगी। मुझे बताया गया था कि लिव इन रिलेशनशिप के लिए सही जीवन साथी मिलना बहुत ही मुश्किल होता है जिसके कई सारे कारण हो सकते हैं। इस तरह के रिलेशनशिप में रहना गलत नहीं है परंतु निर्णय बहुत सोच समझ कर लेना चाहिए । एक साथ रहकर किसी से प्यार करने और उस से शारीरिक संबंध बनाने फिर उसको छोड़ने वाले लड़के लड़कियां को धोखा मिलने के चर्चे अक्सर सुनाई पड़ते हैं।

धर्म में मेरा अटूट विश्वास है। इसका मतलब समझने और आदमी बनने का प्रयास मैं बचपन से ही कर रही हूं। भले ही सफलता न मिली हो पर नियमित मंदिर जाती हूं, ताकि मेरा ईष्ट देव प्रसन्न हो जाएं और जो मैं चाहती हूं वह मुझे प्रदान करें। मेरी प्रार्थना रंग लाई और एक विज्ञापन से पता चला कि सुधांशु नामक एक व्यक्ति को लिव इन के लिए साथी चाहिए। मैंने अप्लाई कर दिया। सुधांशु ने शर्त रखी कि पहले हम डेट पर जाएंगे और एक दूसरे को जांचे परखेगे ताकि आगे चल कर कोई दिक्कत न हो। यह तो अकलमंदी की बात थी इसलिए हमने भी हामी भर दी।

सुधांशु की पर्सनैलिटी मोहक थी, वह पढ़ा लिखा और अच्छी नौकरी वाला था। उसका तलाक हो चुका था। कोई औलाद नहीं थी। सुधांशु मेरी जाति का था इसलिए बात पक्की होने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मेरे कहने पर वह मेरे मकान में शिफ्ट हो गया था। सुधांशु काफी कड़क मिजाज का था उसमें अहम ज्यादा था जिसका पता बाद में लगा।

एक ही महीने में सुधांशु के व्यवहार से मुझको कई बार धक्के लगे। एक शनिवार को मैंने सोचा कि संडे को सुधांशु के साथ पूरा दिन बिताएंगे, मूवी देखेंगे, लंच और डिनर साथ करेंगे, थोड़ी बहुत शॉपिंग भी करेंगे । अभी मेरी हसरतें किसी नई नवेली दुल्हन जैसी ही थी। अगले दिन सुबह उठते ही सुधांशु से कहा, "यार चलो आज घूमने चलते हैं"। सुधांशु ने साफ मना करते हुए कहा, " नहीं आज मैं दिन भर सोऊंगा, बहुत थकान हो गई है। यह सुनकर मेरे उल्लास पर मानो किसी ने पानी फेर दिया हो।

कुछ ही दिनों बाद सुधांशु ने मुझसे पूछा कि तुम्हें कितनी तनख्वाह मिलती है और उसे तुम किस तरह खर्च करती हो? मेरे को समझ नहीं आ रहा था कि सुधांशु यह क्यों पूछ रहा है ? फिर भी मैंने कहा कि मुझे अच्छी सैलरी मिलती है। इस पर सुधांशु ने कहा हर महीने तुम मुझे बीस हजार रुपए दिया करना। मुझे आजकल पैसों की बहुत जरूरत है, मेरे ऊपर काफी कर्ज चढ़ गया है उसे चुकाना है। साहूकार की रोज-रोज की किच-किच मुझे अच्छी नहीं लगती।

मुझे अपने ऊपर सुधांशु का इस तरह अधिकार जमाना और अपनी मेहनत की कमाई मांगनाअच्छा नहीं लग रहा था । मैं बहुत आहत हो गई थी लेकिन यह बात किस से कहती । मुझे लगने लगा कि सुखद लिविंग के चक्कर में मैं और भी संकटग्रस्त हो गई हूं । लिव इन रिलेशन को लेकर मैंने बड़े सपने सजाए थे किंतु सारे अरमानों पर पानी फिर गया लगता था। मेरा मन कांपने लगा,और मैं प्रायः रुंआसी रहती। रेखा ने मुझे ढांढस दिया, "कुछ नहीं होगा, तू मना कर देना। तुम्हारे सम्मान को चोट न पहुंचे इसलिए तुम्हें भावनात्मक रूप से काफी मजबूत रहने की जरूरत है और समझदारी दिखाने की जरूरत है"।

जब से मैंने डेटिंग, प्यार और रिलेशनशिप का मतलब समझा है, तब से मैं सुधांशु से काफी प्यार करने लगी थी। मैं अपना प्यार, सपोर्ट, केयर अटेंशन सब देती रही और बदले में सुधांशु मुझ पर ही हावी होने की कोशिश करते रहे। मैं हर बार किसी तरह मामले को रफा दफा करती रही। सुधांशु कहता कि अपनी मजबूरी के कारण मैंने यह रिश्ता अपनाया है।

एक दिन जब सुधांशु घर पर नहीं था मैंने उसे एक पत्र लिख कर संबंध विच्छेद कर लिया और अपना सामान निकाल कर घर की चाभी मकान मालिक को सौप दिया। मैं तब से यहां रहती हूं। चित्रा ने अपनी सहेली को यह सब बताते हुए कहा कि सोलोगैमी का निर्णय मुझे बहुत महंगा पड़ा।

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