Tom Kaka Ki Kutia - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

टॉम काका की कुटिया - 3

3 - बिदाई की व्यथा

दोपहर को शेल्वी साहब की मेम के बाहर चले जाने पर इलाइजा घर में अकेली बैठी हुई चिंता कर रही थी। इतने में किसी ने पीछे से आकर उसके कंधे पर हाथ रखा। वह चौंक उठी। पीछे घूमकर देखा तो उसका स्वामी था। जार्ज को देखते ही इलाइजा आनंदित होकर बोली - "जार्ज, तुम बड़े वक्त से आए हो? माँ घूमने गई हैं।"

 पर जार्ज के मुख पर हँसी नहीं थी। उसका दिल बहुत ही दुःखी था। वह इलाइजा से जन्म भर के लिए बिदा माँगने आया था। आज वह और दिनों की भाँति इलाइजा से हँस-हँसकर बातें नहीं कर सकता था। इलाइजा की गोद के बालक ने जार्ज का हाथ पकड़ लिया, पर आज जार्ज ने उसे प्यार नहीं किया और न आज उसने उसका कोमल मुख ही चूमा। जार्ज की यह दशा देखकर इलाइजा ने बहुत डरते-डरते पूछा - "तुम्हें क्या हो गया है? तुम इतने उदास क्यों हो? लो, हेरी को पकड़ो। हेरी तुम्हारी गोद में आना चाहता है।"

 जार्ज ने उत्तर दिया - "बड़ा अच्छा होता अगर हेरी का जन्म ही न होता। भगवान का मुझे इनसान पैदा करना व्यर्थ ही रहा।"

 इलाइजा बहुत डरी और जार्ज के कंधे पर हाथ रखकर रोने लगी। जार्ज ने फिर कहा - "इलाइजा, हम लोगों का मिलन न होना ही अच्छा था।"

 इलाइजा ने गहरा दुःख प्रकट करके कहा - "जार्ज, यह तुम क्या कह रहे हो? मैं तुम्हारे मुख की ओर देखकर अपना सारा दुःख, सारा क्लेश भूल जाती हूँ। आज तुम्हें क्या हो गया है?"

 जार्ज ने कहा - "इस संसार में न सुख है, न शांति। यह जीवन एक प्रकार की विडंबना है। इससे तो ईश्वर मौत दे दे तो भला..."

 "जार्ज, तुम ऐसा क्यों कह रहे हो? ईश्वर जिस तरह रखे, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। मैं जानती हूँ, विलसन के कारखाने से छुड़ा दिए जाने के कारण ही तुम कितने दुःखी हो। धीरज रखो! देखो, ईश्वर क्या करते हैं!"

 "मैंने बहुत सहा और बहुत धीरज रखकर भी देखा, पर अब नहीं सहा जाता इलाइजा, और धीरज रखने की सामर्थ्य नहीं है। सहने और धीरज रखने की भी हद है। हाड़-मांस के शरीर से जितना सहा जा सकता है, उससे सौगुना अधिक सह चुका। आदमी की प्रकृति जहाँ तक धीरज रखने में समर्थ है, उससे अधिक धीरज रख चुका। पर मैं अब और नहीं सह सकता। मैंने विलसन के कारखाने में जो कुछ कमाया, उसमें से कभी एक पैसा नहीं खाया। सब-कुछ उस दुरात्मा मालिक के हवाले कर दिया। इनाम में भी कभी कुछ पाया तो उसी को सौंप दिया। पर उस नीच की करतूत देखो, कारखाने के सब लोगों की मुझपर प्रेम और श्रद्धा थी, मेरे साथ सबका अच्छा बरताव था, यह उस दुरात्मा मालिक से नहीं देखा गया और इसी से कुढ़कर उसने मुझे वहाँ से हटा लिया। इस पर भी मैं कुछ न बोला। अपनी दुर्दशा की बात सोचकर चुपचाप उसका दुर्व्यवहार सह लिया। फिर भी वह मुझपर अत्याचार करने से बाज न आया।"

 इलाइजा ने कहा - "नहीं कैसे सहोगे, सहना ही पड़ेगा। वह मालिक और तुम नौकर... वह जो चाहे कर सकता है।"

 "जो चाहे सो कर सकता है! मुझपर किसने उसे यह अधिकार दिया है? कहाँ से उसे यह क्षमता मिली है? मुझमें क्या मनुष्य की आत्मा नहीं है? मैं भी क्या उसी की तरह मनुष्य नहीं हूँ? मैं खूब जानता हूँ कि मैं उससे सौगुना सच बोलनेवाला हूँ। मैं जानता हूँ कि मुझे उससे अच्छा लिखना-पढ़ना आता है। मैं उससे लोगों की सौगुनी श्रद्धा का पात्र हो सकता हूँ। फिर कौन-सा कारण है कि वह जब चाहे, बिना कसूर के मुझे मारे? मुझे इस तरह पीटने का अधिकार उसे किसने दिया? मैंने उसके डर से छिपे-छिपे पढ़ना-लिखना सीखा, उसने मेरे पढ़ने-लिखने में क्या-क्या अड़चनें नहीं डालीं। पर अब किस अपराध के कारण वह मुझपर ऐसा घोर अत्याचार कर रहा है? वह मुझे पशुओं के काम में लगाना चाहता है। पाप के दलदल में फँसाना चाहता है। मुझे एकदम नीचे गिराने का उसने संकल्प कर लिया है। बुरी नीयत से मुझे मिट्टी काटने के काम में लगाया है। तुम्हीं कहो, मैं अब कितना सह सकता हूँ?"

 "जार्ज, मुझे बड़ा डर लग रहा है। तुम्हारे चेहरे के रंग-ढंग से जान पड़ता है कि तुम कहीं आत्महत्या या और कोई पाप-कर्म न कर डालो। मैं तुम्हारे दिल का दुःख समझती हूँ, पर सावधान रहो और कम-से-कम मेरे और हेरी के भले की खातिर धीरज रखो।"

 जार्ज ने कहा - "अब मुझमें धीरज रखने की ताकत नहीं है। तकलीफें दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं। आखिर हाड़-मांस का यह शरीर कहाँ तक सहेगा? यह नीच, तरह-तरह की हिकमत करके मुझे सताता है, तरह-तरह से मेरा अपमान करता है। जरा-सा बहाना मिला कि पीट डालता है। मेरी ओर लोगों की थोड़ी-सी श्रद्धा देखी कि जलकर कहता है, तेरे ऊँचे सिर को पैरों के नीचे रौंद डालूँगा। कल की बात है, उसका छोटा लड़का एक घोड़े को दनादन चाबुक मार रहा था। मैंने उसे मना किया। इस पर वह दुष्ट बालक मेरे ही ऊपर चाबुक बरसाने लगा। तब मैंने उसका चाबुक पकड़ लिया। इस पर वह मुझे लात मारकर अपने पिता से जाकर बोला, "जार्ज ने मेरी बड़ी बेइज्जती की है।" इतना सुनना था कि उसके पिता ने मुझे पास के एक पेड़ से बाँध दिया और अपने लड़के से बोला, "अपने कोड़े से इसे जहाँ तक बने पीटो।" वह मेरी पीठ पर चाबुक मारने लगा। यह देखो, उस मार से मेरी सारी पीठ छिल पड़ी है। इलाइजा को अपनी पीठ दिखाकर जार्ज फिर कहने लगा, "किसने इस नीच को मुझपर ऐसा प्रभुत्व जमाने का अधिकार दिया है? इलाइजा, तुम्हारे मालिक ने तुम्हें लाड़-प्यार से पाला है। इससे तुम्हारी उनपर बड़ी भक्ति है। पर मैं ऐसे नर-पिशाच की भक्ति कैसे करूँ? तुम्हारे मालिक ने तुम्हारे लिए बहुत धन खर्च किया, पर मुझे जिस मूल्य में उस नीच ने मोल लिया था, उससे सौगुना मैं उसे कमाकर दे चुका। मैं अब हर्गिज ऐसा वहशियाना व्यवहार नहीं सहूँगा - कभी नहीं, कभी नहीं!"

 ये सब बातें सुनकर इलाइजा सन्न हो गई। उसके मुँह से कोई बात न निकली। कुछ देर बाद बोली - "तो अब क्या करना चाहते हो? क्या तुम नहीं जानते कि दुःख-सुख दोनों में उसी परमपिता का भरोसा है?"

 "इलाइजा, तुम्हारे दिल में धर्म-भाव है, इसी से तुम ऐसा कहती हो, पर मेरा दिल बदले की हिंसा से भरा हुआ है। भगवान है, इस पर मुझे विश्वास नहीं है। ईश्वर होता तो मेरी यह दुर्दशा क्यों होती?"

 "जार्ज, यह न कहो। चाहे जैसी दुर्दशा क्यों न हो, भगवान पर विश्वास करना ही चाहिए। मैं बचपन में माँ से सुना करती थी कि हर हालत में मनुष्य को ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए।"

 जार्ज ने तीखे स्वर में कहा - "तुम्हारी माँ ऐसा कह सकती हैं। जो सब तरह से सुखी हैं, आनंद भोगते हैं, जिनके घर-द्वार हैं, धन-दौलत है और जिनको मनचाहा काम करने की आजादी है, वे सहज में ऐसा उपदेश दे सकते हैं। पर अगर वे कभी मेरी-जैसी हालत में पड़कर भी परमेश्वर पर वैसा ही विश्वास रख सकें, तो मैं जानूँ। तब मैं उनकी बात पर भरोसा कर सकता हूँ। मैं अगर सुखी होता, मुझे अगर मनुष्यों के अधिकार मिले होते तो मैं भी ऐसा ही करता। तुमने अभी तक मेरी दुर्दशा की सारी बातें नहीं सुनीं। लो, सुनो। मेरे मालिक ने कहा है कि वह अब मुझे तुम्हारे पास नहीं आने देगा। तुम्हारे मालिक के दास-दासियों के साथ अच्छा व्यवहार करने के कारण वह उनसे बहुत चिढ़ा हुआ है। कहता है, दास-दासियों के साथ अच्छा व्यवहार करने पर वे खराब हो जाते हैं। वे आजाद होने की कोशिश करने लगते हैं, विशेषकर उसका विश्वास है कि तुम्हें ब्याहकर तुम्हारे भड़काने से मैं कुछ आजाद-सा हो गया हूँ। इसी से वह तुम्हारे पास अब हर्गिज नहीं आने देगा। अपने घर की मीना नाम की दासी से वह मुझसे ब्याह करने को कहता है। इसमें कोई शक नहीं कि उससे ब्याह न करने पर वह मुझे दक्षिण देश में बेच डालेगा।"

 इलाइजा ने गहरी साँस लेकर कहा - "मीना से तुम्हारा ब्याह कैसे करेगा? ईसाई धर्म के अनुसार पादरियों के सामने हम लोगों का ब्याह हुआ है।"

 जार्ज बोला - "तुम्हें मालूम नहीं कि इस देश के कानून में गुलामों को ब्याह करने का अधिकार नहीं है। तुम्हारे और मेरे मालिक जब तक चाहें, तुम्हारे पास मुझे आने देंगे और तभी तक तुम मेरी बीवी हो और मैं तुम्हारा खाविंद हूँ। तुम्हारे मालिक चाहें तो अभी तुम्हें दूसरे आदमी के हाथ सौंप सकते हैं। मेरे मालिक चाहें तो मुझे दूसरी औरत से नाता जोड़ने को मजबूर कर सकते हैं। हम-सरीखे दुखियारे गुलामों का न औरत पर कोई हक है, न औलाद पर। घर के पशु-पक्षियों की जो हालत है, वह हमारी भी है। तुम्हारे बेटे को तुमसे छीनकर बेच सकते हैं। इसी से मैंने पहले ही कहा कि तुम्हारे साथ मेरा मिलना-जुलना न होना ही अच्छा था। मुझे अगर आदमी का तन न मिलता, हम लोगों की अगर औलाद न होती तो ठीक था। हम लोगों का यह तन धारण करना ही विडंबना-मात्र है। हम लोगों का विवाह ही सारे दुःखों का एकमात्र कारण है। हमारी औलाद हमारे दिल की आग बनकर हमारा कलेजा जलाएगी। इसमें कोई शक नहीं कि तुम्हारी यह संतान ही किसी समय तुम्हारे दिल में दुःख की आग जलाने का कारण बनेगी।"

 "मेरे मालिक तो बड़े दयालु हैं।" इलाइजा ने संतोष के साथ कहा।

 "दयालु होने से क्या हुआ? आज अगर वह मर जाएँ तो तुम्हें अपने लड़के के साथ उनके कर्ज के लिए नीलाम होना पड़ेगा। इस संतान को जितना प्यार करोगी, इसके अफसोस में तुम्हें उतना ही ज्यादा जलना पड़ेगा - इसका न जन्मना ही अच्छा था।"

 जार्ज की बात सुनकर इलाइजा को इसके पहले की वे बातें याद आ गईं, जो शेल्वी साहब और गुलामों के व्यापारी हेली के दरम्यान हुई थीं। इससे वह अधीर हो गई। पर वह थी बड़ी बुद्धिमती। जार्ज के सामने उसने अपने मन की बात प्रकट नहीं होने दी। जार्ज अपने ही दुःख से पागल हो रहा है, उसका होश ठिकाने नहीं है। ऐसे समय में यदि उससे यह बात कह दी जाएगी तो वह निस्संदेह शोक से बिल्कुल विह्वल हो जाएगा, यह सोचकर इलाइजा ने जार्ज के सामने हेरी के बिकने की आशंका के विषय में कोई बात नहीं उठाई।

 फिर कुछ देर बाद जार्ज ने इलाइजा का हाथ पकड़कर कहा - "इलाइजा, मैं जाता हूँ। यह उम्मीद नहीं कि अब फिर इस जन्म में कभी भेंट होगी। लगता है, यही हम लोगों की आखिरी मुलाकात है।"

 "जाते हो? कहाँ जाओगे?" व्याकुल होकर इलाइजा बोली।

 "मैं किसी तरह कनाडा उपनिवेश में पहुँचने का यत्न करूँगा। वहाँ गुलामी की चाल नहीं है। वहाँ पहुँच सका तो स्वाधीन हो जाऊँगा। फिर मैं तुम्हें तुम्हारे मालिक से खरीद ले जाऊँगा। अगर बीच ही में भागते हुए पकड़ा गया तो फिर जान देनी होगी। इस कठोर यातना को सहने के लिए फिर इस शरीर का मोह नहीं करूँगा।"

 "पर तुम मेरी एक बात मानो", इलाइजा ने डबडबाई आँखों से कहा - "पकड़े जाने पर भी आत्महत्या मत करना।"

 "मुझे आत्महत्या नहीं करनी पड़ेगी। पकड़ लेने पर वे ही लोग मेरी हत्या कर डालेंगे।"

 "तुम भागना चाहते हो तो भाग जाओ; पर इस अभागिन और इस संतान के कल्याण के लिए आत्महत्या या नरहत्या इत्यादि किसी पाप से अपने हाथों को कलंकित मत करना। मैं फिर कहती हूँ, परम पिता की प्रार्थना करो, और उसी की करुणा का भरोसा रखो।"

 जार्ज बोला - "इलाइजा, मैंने मन में जो निश्चय किया है, वह तुम्हें सुनाता हूँ। अभी तक मेरे मालिक के मन में मेरे भागने के विचार पर कोई संदेह नहीं है। मैं आज ही रात को भागने की सारी तैयारी करूँगा। और भी कई गुलाम इस तैयारी में मेरी सहायता करेंगे। सब ठीक-ठाक हो जाने पर इसी सप्ताह में मुझे भागने का अच्छा मौका मिलेगा। तुम मेरे लिए ईश्वर से प्रार्थना करो। तुम्हारे हृदय में भक्ति, विश्वास और श्रद्धा है। ईश्वर तुम्हारी प्रार्थना सुनेंगे। मेरा हृदय तो शुष्क हो गया है। अत्याचार से सताया हुआ हृदय सदा द्वेष और हिंसा से ही भरा रहता है। ऐसे हृदय में ईश्वर का स्थान नहीं। ऐसा हृदय ईश्वर के नाम पर नहीं पसीजता, न ऐसे हृदय में धर्म-विश्वास को ही स्थान मिल सकता है। यही कारण है कि जगत में किसी न्याय-परायण मंगलमय ईश्वर का राज्य है, इस पर मैं कभी विश्वास नहीं कर सकता।"

 "जार्ज, जार्ज, मैं बार-बार कहती हूँ कि ऐसी बात तुम जबान पर मत लाओ। चाहे जैसी दुर्दशा क्यों न हो, धीरज रखकर सदा एकाग्रचित्त से मंगलमय परमात्मा के चरणों में आत्म-समर्पण करो। हम जैसे अभागे, निराश्रित, निर्बल और अनाथ गुलामों का एक ईश्वर के सिवा संसार में दूसरा कौन सहायक है? वह दयामय ईश्वर ही हम अशरणों का शरण, निरूपायों का उपाय, अनाथों का नाथ और बेसहारों का सहारा है। हृदय में उस ईश्वर का ध्यान करो, तुम्हें पाप और कलंक कभी छू नहीं सकेंगे।"

 इलाइजा की बातें समाप्त होते ही जार्ज ने कहा - "अब विदा होता हूँ।"

 वह बारंबार सतृष्ण नयनों से इलाइजा के मुँह की ओर निहारने लगा। अब इलाइजा अपने आँसू न रोक सकी। रो पड़ी। उसके रोने से जार्ज का दिल भी पिघल गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। फिर वह आँखें पोंछते हुए हेरी का मुँह चूमकर चल पड़ा। इलाइजा हेरी को गोद में लिए जार्ज के मार्ग की ओर एकटक देखती रही। कुछ देर बाद, जार्ज के आँखों से ओझल हो जाने पर उसे चारों ओर अंधकार-ही-अंधकार दिखाई देने लगा। आज सूर्यास्त के साथ-साथ इलाइजा का सुख-सूर्य भी अस्त हो गया। पर उसके दुःख की घोर अँधियारी आने में अभी कुछ देर थी।