Tere Ishq me Pagal - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

तेरे इश्क़ में पागल - 2

जैसे ही अहमद की नज़र ज़ैन के कपड़ो पर पड़ी वोह हैरान हो कर बोला, "यह कैसे हुआ?"

इससे पहले की ज़ैन कुछ जवाब देता, ज़ैनब बीच मे बोल पड़ी, "यह मुझ से गलती से होगया, आयी एम सॉरी।"

"इट्स ओके।" ज़ैन ने मुस्कुराते हुए कहा।

अहमद समझ रहा था अब तो इस लड़की की खैर नही, अब इसे ज़ैन के गुस्से से कैसे बचाये, लेकिन ज़ैन के मुंह से "इट्स ओके" सुनकर वोह हैरान हो गया।

ज़ैनब उसे थैंक्स बोल कर वहां से चली गयी, ज़ैन उसे तब तक देखता रहा जब तक वोह उसकी नज़रों से ओझल न हो गयी। उसके बाद उसने अहमद की तरफ देखा जो हैरानी से उसे घूर रहा था।

"क्या हुआ?" उसे हैरान देख कर ज़ैन ने पूछा।

"यार ज़ैनु यह तू ही है ना, तू कब से किसी को माफ करने लगा और इट्स ओके वर्ड तेरी डिक्शनरी में मेरे इलावा किसी को के लिए नही था। फिर यह क्या था मुझे लगा तू अब उस लड़की को छोड़ेगा नही।" अहमद नॉनस्टॉप बोले ही जा रहा था।

"शट उप अहमद अब मैं इतना भी ज़ालिम नही हु। बेचारी मासूम लड़की से गलती हो गयी थी।" ज़ैन ने झुंझला कर कहा।
"जहाँ तक मुझे पता है कोई कितना ही मासूम क्यों ना हो ज़ैन शाह उसे कभी नही बख्शता।" अहमद ने उसे जांचती नज़रों से देखते हुए कहा।

"अच्छा मेरे बाप फिलहाल तू मुझे बख्श दे और चल यहां से।" ज़ैन उसे खींचता हुआ वहां से ले गया और अहमद अभी भी ज़ैन के इस रवैये से हैरान था।

........

"यार जैनी मेरी अप्पी की शादी है और तुझे ज़रूर आना है, अगर तुम नही आई ना तो मैं तुमको छोडूंगी नही।" सानिया ने कहा।

ठीक है आ जाउंगी सानी लेकिन पहले भाई मुझे परमिशन देंगे तब।" ज़ैनब ने कहा।

वो दोनों इस वक़्त बस स्टॉप पर खड़ी बस का इंतज़ार कर रही थी।

"अच्छा मैं जा रही हु मेरी बस आ गयी है और हाँ अपने भाई से बात कर लेना।" बस में चढ़ते हुए सानिया ने कहा।

"ठीक है।" ज़ैनब ने जवाब दिया।

कुछ देर बाद ज़ैनब की भी बस आ गयी और वोह भी अपने घर चली गयी।

ज़ैनब घर पहोंची तो फुरकान उसका भाई सामने ही बैठा था। वोह डरते हुये अपने भाई के पास जा कर बोली:"भाई मुझे आपसे कुछ बात करनी है?"

"बोलो।" फुरकान ने गुस्से से कहा।

"भाई सानिया की बहन की शादी है क्या मैं जा सकती हूं?" ज़ैनब ने डरते हुए कहा।

"ठीक है चली जाना।" फुरकान ने बिना उसकी तरफ देखे अपने रूखे अंदाज़ में कहा।

फुरकान के इतनी आसानी से मान जाने पर ज़ैनब को अपने कानों पर यकीन नही हो रहा था, वोह उसे थैंक्स बोल कर अपने कमरे में चली गयी।

उसके जाने के बाद उसकी भाभी बोली:"आप ने उसे इजाज़त क्यों दी।"

इसीलिए दी कि ताकि इस बला से कुछ दिन जान छूट जाए। फुरकान ने चिढ़ कर कहा।

ज़ैनब ने इजाज़त मिलने की खुशखबरी सानिया को सुना दी और कपड़े ले कर वाशरूम में चली गयी।

................

ज़ैन अपने कमरे में बैठा ज़ैनब के बारे में सोच रहा था, की तभी कुलसुल ने उसके दरवाज़े पर नोक किया और बोली: ज़ैन भाई क्या मैं अंदर आ जाऊं।

आ जाओ गुड़िया। ज़ैन ने मुस्कुराते हुए कहा।

कुलसुम: ज़ैन भाईनीचे अली भी और उनकी फैमिली आयी है।

तुम चलो मैं आता हूं। ज़ैन ने कहा।

ज़ैन ड्राइंग रूम में गया तो अली और उसकी फैमिली बैठी हुई थी, ज़ैन सबसे मिल कर अली के पास जाकर बैठ गया।

ज़ैन यह कार्ड है मेरी भें की शादी है और तुम्हे ज़रूर आना है। अली ने उसे कार्ड देते हुए कहा।

मैं देखूंगा। ज़ैन ने कहा।

देखूंगा नही तुम्हे आना है। नही तो में तुम्हे उठाकर ले जाऊंगा। अली ने हस्ते हुए कहा।

ठीक है मैं आ जाऊंगा। ज़ैन भी हल्का सा मुस्कुरा दिया।

इतने में अहमद आया उसने सबको सलाम किया और अली के पास आ कर बैठ गया।

अच्छा हुआ अहमद तू भी यही मिल गया, मेरी भें की शादी और तुझे आना है। अली ने उसे भी कार्ड देते हुए कहा।

अहमद ज़ैन की तरफ देख कर बोला, तू जा रहा है?

ज़ैन ने हाँ ने सिर हिलाया।

ठीक है फिर तो मैं ज़रूर आऊंगा। अहमद ने अली से कहा।

ठीक है अब हम लोग चलते है, हमे और भी जगह कार्ड देना है। अली ने कहा और उन दोनों से हाथ मिला कर वहां से चला गया।

उनके जाने के बाद शाज़िया भी डिनर की तैयारी करने के लिए उठ गई।

अब ड्राइंग रूम में अहमद और ज़ैन ही रह गए थे। ज़ैन सोफे पर सिर टिकाये आंख बंद किये हुए कुछ सोच रहा था। आखिरकार अहमद से रहा नही गया और वोह
बोला: ओह बेगैरत इंसान किसकी यादों में हम है मैं तुझे दिखाई नही दे रहा हु।

ज़ैन ने उसकी तरफ देखा लेकिन कुछ नही कहा।

ज़ैनु तू ठीक तो है। अहमद ने पूछा।

हाँ, ठीक हु यार। ज़ैन ने कहा।

अच्छा एक बात बता। अहमद ने सीरियस हो कर कहा।

हाँ बोल। ज़ैन ने भी सीरियस हो कर उसकी तरफ धयान दिया।

तुम लोगों का डिनर कब होता है? अहमद ने पूछा।

कुछ देर बाद। ज़ैन ने झुंझला का कहा।

यार बहोत भूख लगी है आज डिनर यही कर लेता हूं। और मेहमान खाना खाये बिना चला जाये यह भी अच्छा नही होता है। वैसे भी डिनर तो होने ही वाला है ना तेरे घर। अहमद ने यह सब इतनी मासूमियत से कहा कि ज़ैन झुंझला कर बोला: ओह कमीने इंसान और तुझे क्यों लगता है कि में तुझे यहां डिनर करने दूंगा। और रही मेहमान की बात तो तू कहा कि मेहमान है। ज़ैन ने उसे घूर कर कहा और सोचा यह कभी सीरियस नही हो सकता है।

"हये दोस्त दोस्त ना रहा।" अहमद दुहाइयाँ देने लगा की तभी ज़ैन ने मुस्कुराते हुए कहा: "बकवास बंद कर अपनी।"

"चाची,,,चाची जान!!!" अहमद ज़ोर ज़ोर से शाज़िया को आवाज़ देने लगा।

"बोलो बेटा!" शाज़िया ने कहा।

चाची जान क्या मैं यहां डिनर कर सकता हु? अहमद ने यह सब बहोत मासूमियत के साथ कहा।

उसकी मासूमियत देख कर एक पल के लिए ज़ैन भी हैरान हो गया। "कमीने इंसान" वो मुंह ही मुंह मे बड़बड़ाया।

"क्यों नही बेटा, मैं तो पहले ही तुम्हे कहा था डिनर हमारे साथ ही करना। तुम दोनों हाथ धूल कर आ जाओ मैं डिनर लगाती।" शाज़िया ने कहा और डिनर लगाने के लिए चली गयी।

अहमद ने ज़ैन की तरफ देख के अपना कॉलर सीधा किया और ज़ैन उस पर लानत भेजता हुआ वह से उठ गया।

.....

खाने के बाद ज़ैन अहमद से बोला:"चल यार अहमद हम क्लब चलते है।"

"नही यार ज़ैनु मेरा दिल नही है।" अहमद ने उसे मना कर दिया।

"हाँ खाना ठूस लिया न अब तेरा दिल कहा होगा।" ज़ैन ने नाराज़ होते हुए कहा।

उसकी बात सुनकर अहमद ने बस उसे घूर कर देखा लेकिन कुछ कहा नही।

"तू चलता है या मैं तुझे एक लगाऊं।" ज़ैन ने गुस्से से कहा।

अहमद किसी लड़की की तरह ज़ैन के कंधे पे सिर रख कर बोला,"डार्लिंग अब तुम मुझे एक लगाओगे।"

अहमद ने इतने ड्रामे के अंदाज़ में कहा कि ज़ैन का ठहाका पूरे घर मे गूंज गया। वोह पहेली बकर इतना खुल कर मुस्कुराया था।

अहमद और शाज़िया ने उसकी खुशी की दुआएं दी।

उसके बाद ज़ैन उसे खींच कर गाड़ी की तरफ ले गया एयर दोनो क्लब की तरफ चल पड़े।

......…...........

"रूप के जलवों की हाये क्या बात है......
एक गुनाह करदो दो गुनाह की रात है।"

वोह दोनो क्लब में बैठे थे और ज़ैन ने बहोत शराब पी ली थी।

अहमद उसे और शराब पीने से मना कर रहा था, लेकिन ज़ैन बार बार यही कह रहा था अहमद इसे पीने से मुझे सुकून मिलता है। तू भी पी ना यार और अहमद उसे मना कर देता।

अहमद को शराब पीना बिल्कुल भी पसंद नही था। वोह क्लब आता तो था लेकिन शराब नही पीता था। जब अहमद साथ होता था तब ज़ैन कुछ ज़्यादा ही शराब पी लेता था। क्योंकि उसे पता होता था कि अहमद उसे संभाल लेगा।

यार......अह.....मद नैना कहा है, देख तुझे नज़र आ रही है!! उसने मुश्किल से कहा। शराब पीने की वजह से उसकी आंखें लाल हो गयी थी।

मुझे नही पता वोह कहा है। याद जानता था वोह इस वक़्त नैना को क्यों ढूंढ रहा है। क्यों कि उसे अब लड़की की ज़रूरत थी।

वोह लडकिया नाचते नाचते ज़ैन के पास आ गयी, वोह कभी ज़ैन की शर्ट खींचती तो कभी उसके गालों पर किस करती और ज़ैन को इन सबसे बहोत मज़ा आ रहा था।

अहमद को बहोत गुस्सा आ रहा था जब यह सब उससे बर्दाश्त नही हुआ तो उसने उन लड़कियों को धक्का दिया और ज़ैन को खींचते हुए बोला: "चल अब हम यहां से चलते है।"

"अरे बड्डी अभी तो मज़ा आना शुरू हुआ है और तू जाने को कह रहा है।" ज़ैन लड़खड़ाते हुए बोला।

"मैं कह रहा हु ना चल वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा।" अहमद ने गुस्से से कहा।

"मैं नही जाऊंगा।" ज़ैन ने ज़िद्द करते हुए कहा।

"मैं भी देखता हूं तू कैसे नही जाएगा, तेरे अच्छे भी जाएंगे।" अहमद ने कहा।

तो ठीक है मेरे अच्छे को ले जा मैं तो नही जाने वाला। ज़ैन बेसुध हो कर सोफे पर बैठते हुए कहा।

अहमद ने गहरी सांस ली और इसे अपने कंधे पर उठा कर गाड़ी में ला कर पटक दिया।

ज़ैन फिर से उठने लगा कि तभी अहमद ने उसे दोबारा सीट पर बिठा दिया और गुस्से से बोला अगर तू यहां से हिला न तो एक लगा कर दूंगा।

उसकी बात सुनकर ज़ैन मुस्कुराते हुए बोला: ओके बड्डी नही जाता,और किसी छोटे बच्चे की तरह मुंह पर उंगली रख कर सीट पर सीधा हो कर बैठ गया।


कहानी जारी है.........
©"साबरीन"