Vo Pehli Baarish - 49 books and stories free download online pdf in Hindi

वो पहली बारिश - भाग 49


नीतू और दीवेश गाड़ी में बैठ कर घर जा रहे थे, पर नीतू के दिमाग में अभी भी दीवेश की बातें गूंज रही थी।
दीवेश के गले लगने वाली बात पे, नीतू का दिल भी बहुत ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था, उसकी ही तरह नीतू का भी मन था, की वो आगे बढ़ कर दीवेश को गले लगा ले, पर इससे पहले की वो कुछ करती, दीवेश उसे सॉरी बोल कर गाड़ी में बैठ गया था।


"सॉरी.. मैं पता नहीं क्या ही बोल पड़ा। चलो चले.. तुम्हें लेट हो जाएगा वरना।"


"मुझे यहीं छोड़ दो.. मुझे कुछ समान लेना है।", नीतू के घर के पास आई एक बड़ी दुकान को देखते हुए वो बोली।


"हां.. वैसे अगर तुम बुरा नहीं मानो तो मैं भी चलूं? मुझे भी याद आया, की मुझे कुछ समान लेना है।", दीवेश ने बिना किसी भाव के पूछा।


"मुझे क्यों बुरा लगेगा, चलो।"


गाड़ी वहीं साइड में खड़ी करके, वो दोनो अंदर जाते है।


"वाह.. ये अभी भी यही है? पता है तुम्हें मैंने अब तक ये नहीं खा कर नहीं देखे, क्या कहती हो, आज ले जाऊ?" एक खाने के पैकेट की ओर इशारा करते हुए दीवेश ने पूछा।


दीवेश की बातों को ना सुनती हुई नीतू कहीं अपने विचारों में खोई हुई थी, की तभी उस का फोन बजा।


"वापस आ गई?”, सामने से सवाल आया।

“नहीं, अभी रास्ते में हूँ, कुछ समान लेना था, तो वहाँ रुक गई थी..”, नीतू ने जवाब दिया।

“अच्छा.. सुन, आज वो आए थे, माफ़ी मांग रहे थे अपने किए की।"

“माफ़ी?”

"हां।"

"आज कैसे उनका मन कर गया, हमे ढूंढ कर माफी मांगने का।"

“पता नहीं, अब क्या ही चल रहा है दिमाग में, पर तू एक बात का ध्यान रखियो, वो शायद मिलने आए तुझसे वहाँ तेरे घर, तो देख लियो।"

“ठीक है..”, धीरे से बोलते हुए नीतू ने फोन काट दिया और दीवेश से दूर आ कर खड़ी हुई नीतू, वापस उसके पास जाती है।

“क्या हुआ?”, नीतू का छोटा हुआ चेहरा देख कर दीवेश ने पूछा।

“कुछ नहीं.. बस सही नहीं लग रहा। थोड़ी तबियत खराब है शायद।", वहाँ रखे कुछ समान को अपने कार्ट में डालते हुए नीतू बोली।

“दवाई लाऊ?”

“नहीं.. ठीक हो जाएगा।"

“तुम चाहो तो दोबारा ब्रेकअप भी कर सकती हो।", बिल्कुल उसी तरह अपने सामने खड़ी नीतू की आँखों में देखते हुए दीवेश ने बोला।

“चले..”, एक दो पैकेट और कार्ट में फेकते हुए नीतू ने अधीरता से बोला।

वो दोनों वहाँ से निकल कर गाड़ी में बैठे ही थे, की नीतू का फोन फिर से बजना शुरू हो गया, स्क्रीन पे बिना नाम के बस एक नंबर फ्लैश हो रहा था, जिससे देखते ही नीतू ने झटपटाते हुए उसने फोन लॉक कर दिया।
पर उसके बाद भी कई बार उसका फोन बजा, और नीतू हर बार स्क्रीन पे आते हुए नंबर देख कर, उसे तुरंत से लॉक कर देती। साथ वाली सीट पे बैठे दीवेश ने जब ये देखा, तो एक हाथ को स्टिरिंग पे रख कर गाड़ी को कोने में ले जाते हुए, दूसरे हाथ से नीतू का फोन उठा लिया। उसने गाड़ी को ब्रेक लगाई और नीतू के फोन को उठाने के लिए बटन दबाया ही था, की एकदम से नीतू फोन वापस खीच कर फोन काटते हुए बोली।

“क्या कर रहे हो?”

“तुम्हें कोई परेशान कर रहा है ना, तो ऐसे में उसे जवाब देना तो जरूरी है ना।"

“परेशान.. नहीं मुझे कोई परेशान नहीं कर रहा।", हड़बड़ाते हुए अपना फोन लेकर स्विच ऑफ करती नीतू बोली।

कुछ देर बाद वो दोनों जब नीतू के घर के पास वाली पार्किंग में रुके, तो आगे जाती हुई नीतू को रोकते हुए दीवेश ने कहा।

“तुम्हें पता है ना, अगर कुछ बात करनी हो तो मैं हमेशा यही हूँ।"

अभी दीवेश बोल ही रहा होता है, की सामने किसी को देख कर, नीतू फट से दीवेश के पास गई, और बोली।

“क्या हम तुम्हारे घर पे बात कर सकते है?”

नीतू की इस बात को हैरानी से सुनता हुआ, दीवेश पहले तो कुछ बोल ही नहीं पाया, पर फिर नीतू की आँखों में उदासी देख कर तुरंत से बोला।

“हाँ।"

वो दोनों वो बड़ी दुकान का समान लेकर वहाँ पार्किंग से पैदल ही दीवेश की सोसाइटी में लेकर चल दिए।
“तुम्हें पक्का ये समान घर नहीं रखना पहले?”, समान के लिफ़ाफ़े को एक हाथ से दूसरे हाथ में पकड़ती हुई नीतू को देख कर दीवेश ने पूछा।

“नहीं, मैं ठीक हूँ।"

“फिर मैं उठा लूँ।"

“नहीं, मैं ठीक हूँ, इतना भी भारी नहीं है ये।"

“अच्छा..”, दीवेश हल्का सा मुस्कराया और उसने आगे बढ़ कर लिफ्ट का बटन दबाया।

लिफ्ट से उतर कर नीतू को रास्ता दिखाते हुए, दीवेश नीतू को सामने घर में ले जाता है।

घर का दरवाज़ा उसके बड़े से हॉल में खुलता है, जहां साइड में नीतू अपनी चप्पल उतार कर समान टेबल पे रख, वहाँ पड़े सोफ़े पे बैठ जाती, और दीवेश भागा भागा रसोई से पानी का ग्लास लेने जाता है।
पानी का ग्लास हाथ में लिए नीतू से दीवेश पूछता है।

“तो बताओ क्या बात करनी है तुम्हें?”

“कुछ नहीं.. या कुछ भी..”

“हह?

“मेरे दिमाग में कुछ नहीं था, मैंने तो बस ऐसे ही बोल दिया।"

“ओह..”

“हाँ.. तो ऐसा कुछ जो तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो या बताना चाहते हो।", दीवेश को हल्की मुस्कराहट के साथ देखते हुए नीतू ने पूछा।

“ऐसा कुछ? हाँ.. है... मुझे पता है, की तुम इस काबिल हो, की भारी भारी बोझ भी उठा लोगी, पर तुम्हें शायद ये नहीं पता की अपना भार दूसरों से बाँटने से हम कमजोर नहीं बन जाते।"

“हहम्म.. तुम्हारे पास समान था, बस इसलिए मैं तुम्हें और समान नहीं देना चाहती थी।"
“मैं समान की बात नहीं कर रहा।"

“फिर?”

“तुम्हें क्या लगता है, मुझे समझ नहीं आता, एक फोन के बाद तुम्हारी तबियत खराब होना , यूं फोन काटना, और फिर मेरे साथ मेरे घर पे आना।", दीवेश ने बड़ी बड़ी गंभीर आँखों से बोलते हुए कहा।

“तो क्या समझ आया तुम्हें?"

“तुम्हारी सोच से ज़्यादा।"

“हह?”

“दी का फोन आया था, उन्होंने मुझे तुम्हारे पापा के बारे में बताया। सब कुछ तो नहीं, पर इतना की मैं तुमसे पूछे बिना रह सकता।"

“क्या बताया तुम्हारी दी ने?”

“यही की आज तुम्हारा तुम्हारे पापा की वजह से चल रहे झगड़े की वजह से आज शायद तुम्हारा थोड़ा मन खराब हो।"
“हहम्म.. सही बताया। ये हमारा पारिवारिक मामला है, इसलिए मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहती।"

“तब भी नहीं, जब ये कुछ समय कुछ पहले हुए हमारे ब्रेकअप की वजह है?”


*****************************


नीतू और दीवेश गाड़ी में बैठ कर घर जा रहे थे, पर नीतू के दिमाग में अभी भी दीवेश की बातें गूंज रही थी।
दीवेश के गले लगने वाली बात पे, नीतू का दिल भी बहुत ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था, उसकी ही तरह नीतू का भी मन था, की वो आगे बढ़ कर दीवेश को गले लगा ले, पर इससे पहले की वो कुछ करती, दीवेश उसे सॉरी बोल कर गाड़ी में बैठ गया था।


"सॉरी.. मैं पता नहीं क्या ही बोल पड़ा। चलो चले.. तुम्हें लेट हो जाएगा वरना।"


"मुझे यहीं छोड़ दो.. मुझे कुछ समान लेना है।", नीतू के घर के पास आई एक बड़ी दुकान को देखते हुए वो बोली।


"हां.. वैसे अगर तुम बुरा नहीं मानो तो मैं भी चलूं? मुझे भी याद आया, की मुझे कुछ समान लेना है।", दीवेश ने बिना किसी भाव के पूछा।


"मुझे क्यों बुरा लगेगा, चलो।"


गाड़ी वहीं साइड में खड़ी करके, वो दोनो अंदर जाते है।


"वाह.. ये अभी भी यही है? पता है तुम्हें मैंने अब तक ये नहीं खा कर नहीं देखे, क्या कहती हो, आज ले जाऊ?" एक खाने के पैकेट की ओर इशारा करते हुए दीवेश ने पूछा।


दीवेश की बातों को ना सुनती हुई नीतू कहीं अपने विचारों में खोई हुई थी, की तभी उस का फोन बजा।


"वापस आ गई?”, सामने से सवाल आया।

“नहीं, अभी रास्ते में हूँ, कुछ समान लेना था, तो वहाँ रुक गई थी..”, नीतू ने जवाब दिया।

“अच्छा.. सुन, आज वो आए थे, माफ़ी मांग रहे थे अपने किए की।"

“माफ़ी?”

"हां।"

"आज कैसे उनका मन कर गया, हमे ढूंढ कर माफी मांगने का।"

“पता नहीं, अब क्या ही चल रहा है दिमाग में, पर तू एक बात का ध्यान रखियो, वो शायद मिलने आए तुझसे वहाँ तेरे घर, तो देख लियो।"

“ठीक है..”, धीरे से बोलते हुए नीतू ने फोन काट दिया और दीवेश से दूर आ कर खड़ी हुई नीतू, वापस उसके पास जाती है।

“क्या हुआ?”, नीतू का छोटा हुआ चेहरा देख कर दीवेश ने पूछा।

“कुछ नहीं.. बस सही नहीं लग रहा। थोड़ी तबियत खराब है शायद।", वहाँ रखे कुछ समान को अपने कार्ट में डालते हुए नीतू बोली।

“दवाई लाऊ?”

“नहीं.. ठीक हो जाएगा।"

“तुम चाहो तो दोबारा ब्रेकअप भी कर सकती हो।", बिल्कुल उसी तरह अपने सामने खड़ी नीतू की आँखों में देखते हुए दीवेश ने बोला।

“चले..”, एक दो पैकेट और कार्ट में फेकते हुए नीतू ने अधीरता से बोला।

वो दोनों वहाँ से निकल कर गाड़ी में बैठे ही थे, की नीतू का फोन फिर से बजना शुरू हो गया, स्क्रीन पे बिना नाम के बस एक नंबर फ्लैश हो रहा था, जिससे देखते ही नीतू ने झटपटाते हुए उसने फोन लॉक कर दिया।
पर उसके बाद भी कई बार उसका फोन बजा, और नीतू हर बार स्क्रीन पे आते हुए नंबर देख कर, उसे तुरंत से लॉक कर देती। साथ वाली सीट पे बैठे दीवेश ने जब ये देखा, तो एक हाथ को स्टिरिंग पे रख कर गाड़ी को कोने में ले जाते हुए, दूसरे हाथ से नीतू का फोन उठा लिया। उसने गाड़ी को ब्रेक लगाई और नीतू के फोन को उठाने के लिए बटन दबाया ही था, की एकदम से नीतू फोन वापस खीच कर फोन काटते हुए बोली।

“क्या कर रहे हो?”

“तुम्हें कोई परेशान कर रहा है ना, तो ऐसे में उसे जवाब देना तो जरूरी है ना।"

“परेशान.. नहीं मुझे कोई परेशान नहीं कर रहा।", हड़बड़ाते हुए अपना फोन लेकर स्विच ऑफ करती नीतू बोली।

कुछ देर बाद वो दोनों जब नीतू के घर के पास वाली पार्किंग में रुके, तो आगे जाती हुई नीतू को रोकते हुए दीवेश ने कहा।

“तुम्हें पता है ना, अगर कुछ बात करनी हो तो मैं हमेशा यही हूँ।"

अभी दीवेश बोल ही रहा होता है, की सामने किसी को देख कर, नीतू फट से दीवेश के पास गई, और बोली।

“क्या हम तुम्हारे घर पे बात कर सकते है?”

नीतू की इस बात को हैरानी से सुनता हुआ, दीवेश पहले तो कुछ बोल ही नहीं पाया, पर फिर नीतू की आँखों में उदासी देख कर तुरंत से बोला।

“हाँ।"

वो दोनों वो बड़ी दुकान का समान लेकर वहाँ पार्किंग से पैदल ही दीवेश की सोसाइटी में लेकर चल दिए।
“तुम्हें पक्का ये समान घर नहीं रखना पहले?”, समान के लिफ़ाफ़े को एक हाथ से दूसरे हाथ में पकड़ती हुई नीतू को देख कर दीवेश ने पूछा।

“नहीं, मैं ठीक हूँ।"

“फिर मैं उठा लूँ।"

“नहीं, मैं ठीक हूँ, इतना भी भारी नहीं है ये।"

“अच्छा..”, दीवेश हल्का सा मुस्कराया और उसने आगे बढ़ कर लिफ्ट का बटन दबाया।

लिफ्ट से उतर कर नीतू को रास्ता दिखाते हुए, दीवेश नीतू को सामने घर में ले जाता है।

घर का दरवाज़ा उसके बड़े से हॉल में खुलता है, जहां साइड में नीतू अपनी चप्पल उतार कर समान टेबल पे रख, वहाँ पड़े सोफ़े पे बैठ जाती, और दीवेश भागा भागा रसोई से पानी का ग्लास लेने जाता है।
पानी का ग्लास हाथ में लिए नीतू से दीवेश पूछता है।

“तो बताओ क्या बात करनी है तुम्हें?”

“कुछ नहीं.. या कुछ भी..”

“हह?

“मेरे दिमाग में कुछ नहीं था, मैंने तो बस ऐसे ही बोल दिया।"

“ओह..”

“हाँ.. तो ऐसा कुछ जो तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो या बताना चाहते हो।", दीवेश को हल्की मुस्कराहट के साथ देखते हुए नीतू ने पूछा।

“ऐसा कुछ? हाँ.. है... मुझे पता है, की तुम इस काबिल हो, की भारी भारी बोझ भी उठा लोगी, पर तुम्हें शायद ये नहीं पता की अपना भार दूसरों से बाँटने से हम कमजोर नहीं बन जाते।"

“हहम्म.. तुम्हारे पास समान था, बस इसलिए मैं तुम्हें और समान नहीं देना चाहती थी।"
“मैं समान की बात नहीं कर रहा।"

“फिर?”

“तुम्हें क्या लगता है, मुझे समझ नहीं आता, एक फोन के बाद तुम्हारी तबियत खराब होना , यूं फोन काटना, और फिर मेरे साथ मेरे घर पे आना।", दीवेश ने बड़ी बड़ी गंभीर आँखों से बोलते हुए कहा।

“तो क्या समझ आया तुम्हें?"

“तुम्हारी सोच से ज़्यादा।"

“हह?”

“दी का फोन आया था, उन्होंने मुझे तुम्हारे पापा के बारे में बताया। सब कुछ तो नहीं, पर इतना की मैं तुमसे पूछे बिना रह सकता।"

“क्या बताया तुम्हारी दी ने?”

“यही की आज तुम्हारा तुम्हारे पापा की वजह से चल रहे झगड़े की वजह से आज शायद तुम्हारा थोड़ा मन खराब हो।"
“हहम्म.. सही बताया। ये हमारा पारिवारिक मामला है, इसलिए मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहती।"

“तब भी नहीं, जब ये कुछ समय कुछ पहले हुए हमारे ब्रेकअप की वजह है?”



**************************


“ब्रेकअप की वजह? आपको क्यों लगता है की ये हमारे ब्रेकअप की वजह है?”

“क्योंकि मुझे दीदी ने ये भी बताया, की ये सब कब शुरू हुआ था।"

“पर तुम तो कह रहे थे आप ज्यादा कुछ नहीं बताया है दी ने।"

“हाँ, नहीं बताया है, पर अभी जैसे तुमने इसके लिए ना नहीं बोला, वैसे तो कुछ पता लग ही गया मुझे।", बड़ी सी मुस्कराहट के साथ जवाब देते हुए दीवेश नीतू से बोला।

बड़ी बड़ी आँखों से देखती नीतू कुछ नहीं बोली, तो दीवेश उसके पास आया, और बोला।

“आइ एम सॉरी.. शायद मुझे बीच में नहीं बोलना चाहिए, पर क्या करूँ, जब तुम परेशान होती हो तो मैं खुद को रोक नहीं पाता।"

नीतू सिसकते हुए से सांस लेकर, अपने आप को ठीक करते हुए बोली।

“हाँ.. तुम सही समझ रहे हो.. वो थे कहीं ना कहीं हमारे ब्रेकअप की वजह। हमारे ब्रेकअप से कुछ दिनों पहले की बात थी, जब पापा का कहीं छोटा सा एक्सीडेंट हो गया, पर क्योंकि दोनों पक्ष में से कोई भी गलती नहीं मानना चाहता था, उनकी लड़ाई बहुत बढ़ गई, और फिर उन्हें पुलिस ले गई थी, कुछ पैसे देने के बाद वो बाहर तो आ गए, पर बदले की भावना दोनों के मन से नहीं जा रही थी, तो उन्होंने एक दूसरे पे आरोप लगाने शुरू कर दिए। हमने उन्हें समझाना भी चाहा की किसी को तो ये सब छोड़ना पड़ेगा, पर वो नहीं माने। फिर कुछ दिन बाद पास ही कहीं चोरी हुई, और जब उसका इल्जाम उनपे लगा तो, वो वहाँ से भाग गए, पर पुलिस हम से हर कुछ दिन में आकर पुछ ताछ करती थी.. उन्होंने मेरा यहाँ का पता भी लिया था... पता नहीं क्यों, पर हमे भी सब लोग चोर की तरह ही देखते थे, और मैं बस ये नहीं चाहती थी, की आप भी मुझे ऐसे देखो.. या आप मेरी वजह से किसी भी तरह की परेशानी में पड़ो तो मैंने ये सब खत्म करना ही सही समझा।"

“सही किया.. जो सब खत्म कर दिया..”, दीवेश बड़ी बड़ी आँखों से देखते हुए नीतू से बोला। "पर पता है, इसलिए नहीं क्योंकि मैं इन सब झमेलों में नहीं पड़ना चाहता था, बल्कि इसलिए की तुम्हें मुझ पे ज़रा भी भरोसा नहीं था।"

“पर भरोसे की बात यहाँ कैसे?”

“कैसे नहीं.. भरोसा होता तो समझती, की तुम्हें कैसे भी देख कर, तुम्हें बुरा नहीं समझूँगा मैं। तुम्हारी परेशानियों को जान कर मैं पूरी मदद करूंगा या हो सकता है, की मैं कोई मदद नहीं कर पाऊँगा, पर अगर मुझे पता है की तुम परेशान हो तो कम से कम ये तो पुछ सकता था ना की तुम समय से खाना खा रही हो या नहीं, समय से सो रही हो या नहीं।"

दीवेश की इन बातों का कोई जवाब ना होने पे नीतू गर्दन झुका कर बैठी रही।
“तो अभी तुम्हारे पापा??”

“वो अब बाहर आ गए है। पर उनके मन का बैर अभी शांत नहीं हुआ है, इसलिए वो मेरे पैसों की मदद से उस इंसान की ज़िंदगी में परेशानी लाना चाहते है शायद।"

“उन्होंने तुम्हें कहा?”

“हाँ.. आखिरी बार जब मैं उनसे मिली थी तो उन्होंने कहा था।"

“और वो आखिरी बार कब था?”

“साल से ऊपर हो गया होगा शायद उस बात को।"

“तो साल पुरानी बात सोच के, तुम आज उनसे नहीं मिलना चाहती?”

“हाँ।"

“पर तुम्हें नहीं लगता की किसी के भी भूत से ज्यादा उसका वर्तमान जरूरी होता है।"

“हाँ, पर कोई अपने भूत में ही जी रहा हो तो क्या हो सकता है?”

“बिना उनसे बात किए, तुम कैसे कह सकती हो, की कल कल ही है, या आज में भी वो कल है।"

“क्योंकि मैं उन्हें जानती हूँ।"

“पर फिर भी, मेरा यकीन मानो, आज अगर तुम उन्हें एक मौका देकर नहीं देखोगी तो हमेशा पछताओगी।"

दीवेश को गंभीरता से देखते हुए नीतू बोली, “ठीक है। अगर आपको इतना लगता है तो।"

वो धीरे से उठ खड़ी होकर दरवाजे की तरफ जाती है, और दरवाज़ा खोलते ही बोली, “कुछ देर में मिलती हूँ, मेरा यही इंतज़ार करना।"

“ठीक है।"

वहाँ से बाहर निकल कर अपनी सोसाइटी की तरफ जाती नीतू को उसके पापा रास्ते में ही मिल जाते है, और उन्हें देखते ही वो आवाज लगाती है।

“पापा"
“प्लीज दीवेश की बात ही सच हो, मैं जो सब सोच रही हूँ, वो सब गलत निकले..”, नीतू खुद से बोली।
वहाँ खड़े थोड़े वृद्ध व्यक्ति नीतू की तरफ बढ़ते है, और उसके पास आकर कहते है।

“बेटे.. तू ठीक है ना.. मेरे बच्चे?”

“हाँ।", नीतू के इतना जवाब देते ही वो उनके गले जाते है, और आगे बोलते है।

“मुझे तो लगा था, की मैं तुझसे मिले बगैर ही चल जाऊंगा, पर शुक्र है, तू मुझे मिली तो?”

“चला जाऊंगा? कहाँ?”

“चार धाम यात्रा.. शायद जो सुख मैंने अपने जीवन में खो दिया है, वो दोबारा प्राप्त कर सकूँ।”

नीतू और उसके पिताजी वहीं कुछ देर अपनी अपनी आखों में खुश भरी नमी लिए, बात करते रहे।

उन्हें बस के लिए विदा करके, नीतू ने टाइम देखा तो काफी लेट हो चुका था।

“अब सुबह ही बात करती हूँ..”, खुद से ये बोल कर नीतू आगे बढ़ी, तो उसके सामने, किसी ने एक रुमाल कर दिया।

“तुम अभी भी रोते हुए लाल टमाटर सी लगती हो।",वहाँ खड़े दीवेश ने नीतू को चिड़ाते हुए कहा। "वैसे तुमने कहा था, की तुम मुझसे बात करोगी, और तुम फिर भाग रही थी?”, दीवेश आगे बोला।

“भाग कहाँ रही थी.. यही तो हूँ, हम तो ऑफिस भी एक जाते है, तो कहाँ ही भाग सकती हो मैं आपसे।"

“हहम्म.. वैसे ऑफिस की बात करूँ तो एक बात है, मैं ये तो जरूर जानना चाहता हूँ, की इतना बुरा बॉस हूँ मैं, की तुमने अपना बॉस ही बदल दिया?”

“अ. अ. वो मुझे लगा था, की आपने शादी कर ली है, और मैं शायद..”, आँखें चुराते हुए नीतू दीवेश से बोली।

“और शायद..”, दीवेश नीतू के थोड़े पास आते हुए पूछता है।

“और शायद, टाइम बहुत हो गया है अभी, तो कल मिलते है।", उसने दीवेश की आँखों में देखते हुए बात पलटने की कोशिश करी और मुड़ कर जाने लगी, की तभी दीवेश ने उसका हाथ पकड़ लिया, और धीरे से वापस उसे अपने पास खींच लिया, और उसकी कमर पे हल्के से हाथ रखते हुए, वो उसके गले लग गया।

“बहुत टाइम हो गया.. अब ये भागम भाग बंद करे?”, वो वापस से नीतू के चेहरे की तरफ देखते हुए बोला।

“हहम्म..”, बिना और कुछ ज्यादा बोले नीतू ने भी गर्दन हाँ में हिला दी, और दीवेश ने धीरे से अपना माथा उसके माथे से टकराया और दोनों ही एक दूसरे को देख कर मुस्कराने लगे ।