Apne sath mera safar - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

अपने साथ मेरा सफ़र - 1

मुझे अपने आरंभिक दिनों से ही ऐसा लगता था कि समाज के कुछ लोग मेरे मन पर बहुत असर डालते हैं। मैं ये कभी समझ नहीं पाता था कि किसी - किसी व्यक्ति से मैं इतना क्यों प्रभावित हो रहा हूं? मुझे उसने ऐसा क्या दे दिया है कि मैं मन ही मन उसके प्रति सम्मान से नतमस्तक हूं। क्या वह बहुत अमीर है? क्या वह बहुत बड़ा ओहदेदार है? क्या वह बहुत शक्तिशाली है? क्या वह बहुत खूबसूरत है? क्या वह बहुत बुजुर्ग या उम्रदराज़ है?
आख़िर क्या वजह है कि उसने मुझ पर अपने व्यक्तित्व की छाप अनजाने ही छोड़ दी है।
अपनी टीनएज में आते- आते अपनी नव विकसित बुद्धि के चलते धीरे - धीरे मुझे ये समझ में आने लगा कि मैं जिन लोगों से प्रभावित हो रहा हूं वो वस्तुतः "लेखक" हैं। उन्हें समाज में प्रतिष्ठित साहित्यकारों के रूप में पहचाना जाता है। वो चाहे किसी भी देश के हों, किसी भी जाति- समाज के हों, किसी भी धर्म के हों, किसी भी हैसियत के हों मेरे आकर्षण का केंद्र होते हैं।
मुझे आहिस्ता आहिस्ता ये भी समझ में आने लगा कि ऐसा क्यों होता है!
दरअसल मैं अपने परिवार के साथ बचपन से ही एक प्रतिष्ठित विश्व विद्यालय के परिसर में रहता था। मेरी परवरिश एक ऐसे परिवार में हो रही थी जहां माता पिता भाई बहन सब शिक्षित हैं। घर की महिलाएं तक या तो सर्विस कर रही हैं या फिर पढ़ रही हैं।
घर में ही पुस्तकालय से ढेरों किताबों और पत्रिकाओं का नियमित आना जाना था। हम भाई बहनों के लिए तब के लोकप्रिय हिंद पॉकेट बुक्स की घरेलू लाइब्रेरी योजना, रीडर्स डाइजेस्ट आदि ढेरों पत्रिकाएं हमेशा उपलब्ध रहती थीं। ऐसे में मैं पढ़ता भी बहुत था और ऐसी बातों से अचंभित भी हो जाता था जो नई या विलक्षण होती थीं। और तब मेरे मानस में ये खलबली शुरू हो जाती थी कि इसे भी किसी व्यक्ति ने ही लिखा है!
ओह! कैसा अद्भुत व्यक्ति है? क्या देखा है उसने, क्या सहा है कि अब अपने सुख दुःख अनुभव विचार अनुभूति और असर में दूसरों को भी शामिल कर लिया। वाह, कैसा सधा हुआ जादुई उपयोग कर रहा है वो अपनी जिंदगी का। छपे शब्दों के तीर चलाता है और दूरदराज के लोगों में जिज्ञासा बो देता है। लोग पढ़ते हैं कि उन्हें सवाल मिलते हैं, जवाब मिलते हैं। समय के बेहतरीन इस्तेमाल के सबब मिलते हैं।
ढेर सारे लोग थे। मुझे तो अब उनके नाम भी याद नहीं। तुलसी, कबीर, मीरा, रसखान, रहीम...प्रेमचंद, शरत चंद्र, बंकिम चंद्र, रवींद्र नाथ टैगोर, निराला, प्रसाद, महादेवी, पंत और भी न जाने कितने! कौन - कौन।
पड़ौस में कोई नई कार ख़रीद लाया है, सामने किसी के रिश्तेदार ने बहुत शानदार कोठी बनाली है, किसी परिजन ने बेशकीमती जवाहरात मंगवाए हैं, किसी मित्र के परिवार में कोई शानदार नौकरी पाकर विदेश चला गया... इन बातों ने कभी मुझ पर इतना असर नहीं डाला जितना इन सफ़ेद पन्नों पर लिखी काली इबारतों ने। देखो, क्या लिख दिया? ओह, क्या कह दिया? इसे तो लोग सदियों बाद भी नहीं भूलेंगे! पढ़ते रहेंगे ये बातें। अरे, ये कैसा इंसान है, क्या है इसके मानस में, जो दूसरे के चित्त में छिपी बातों पर भी ऐसी नुक्ता चीनी कर दी जैसे सब कुछ इसके सामने ही घटा हो।
और बस, वो शख़्स मेरे लिए देवता जैसा हो जाता। इंसान से चार अंगुल ऊंचा। समय से फर्लांग भर आगे। ज़िंदगी का तिलिस्मी उपयोगकर्ता जादूगर! लेखक!! साहित्यकार!!!