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करियर (किसका?)

"हेलो माँ ! कैसी हो, आपकी तबीयत कैसी है?"
"सब ठीक है बेटा! तुम कैसे हो ?"
"मैं भी ठीक हूं माँ! एक खुशखबरी बतानी थी आपको "
"क्या ? जल्दी बताओ "
"आपको पोता हुआ है, रितु माँ बन गई"
"बहुत-बहुत बधाई हो बेटा! ईश्वर तुम दोनों को हमेशा खुश रखे" कहते हुए नीलू की आंखों में आंसू आ गए। "कब वापस आ रहे हो बेटा! मुझे भी अपने पोते का चेहरा देखना है"
"माँ !असली खुशी की बात तो सुनो, यहां के देश का यह नियम है, यहां पैदा होने वाला बच्चा खुद ब खुद ही इस देश का नागरिक बन जाता है। अब हमें कोई डर नहीं, हम अब यही सेटल हो सकते हैं "
"वही सेटल ! मतलब तुम वापस नहीं आओगे ?"
"वापस आकर क्या करूंगा माँ ! यहां मेरा फ्यूचर है, मेरे बेटे का फ्यूचर है। वहां क्या रखा है ? यहां मेरा कैरियर बन जाएगा"
"मगर बेटा ! कैरियर बनाने के लिए क्या तुम हमें दर-दर की ठोकरें खाने दोगे ?"
"कैसी बातें करती हो माँ! ठोकरें क्यों खाओगे ? मैं यहां से पैसा भेजता रहूंगा, जिससे आपका खर्चा आराम से चलता रहेगा"
"मगर हमारी देखभाल कौन करेगा ? इस बुढ़ापे में मुझसे तो घर के काम नहीं होते"
"डोंट बी चाइल्डिश एंड आउटडेटेड माँ ! तुम्हारे घर के काम के लिए क्या मैं अपने कैरियर को दांव पर लगा दूं ? पैसे तो भेज ही रहा हूं ना, देखभाल करने के लिए कोई नौकरानी या आया रख लेना। बाकी बीच-बीच में मैं मिलने आता रहूंगा"
"पर बेटा! जितना बेटा और बहू ध्यान रख पाएंगे क्या नौकरानी रख पाएगी ? और नौकरियां तो यहां भी बहुत हैं। कल पड़ोसन भी पूछ रही थी, तुम्हारा बेटा कब आएगा "
"क्यों मां! जब मेरा बचपन से ध्यान आया रख सकती है, हॉस्टल वाले रख सकते हैं तो तुम्हारा ध्यान नौकरानी क्यों नहीं रखेगी ! और पड़ोसियों का क्या है, वह तो है ही आउटडेटेड"
पंकज के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर नीलू चुप हो गई
"अच्छा मैं फोन रखता हूं, कोई काम हो तो फोन कर लेना" कहकर पंकज ने फोन रख दिया। और अपना सर ऑफिस की कुर्सी से टिका शून्य में निहारने लगा। मां की कही हुई देखभाल की बात सुनकर उसकी आंखों के आगे अपना बचपन घूमने लगा।
पंकज स्कूल से वापस आया तो देखा मां हॉल में बैठी एक औरत से बातें कर रही है। पंकज को स्कूल ले जाने वाला ऑटो उसे वापसी में दरवाजे तक छोड़कर जाता। नीलू ने उसे खास हिदायत दी हुई थी दरवाजे पर उतारने की। जिससे अगर घर में किसी समय वो ना हो तो किसी और को लेने ना आना पड़े। पंकज ने उस औरत की तरफ ध्यान से देखा
"लग तो यह आया रही है, शायद मम्मी को दूसरी आया मिल गई।" पंकज ने मन ही मन सोचा
"आ गए पंकज! यहां आओ इनसे मिलो, यह है तुम्हारी नई आया, नमस्ते करो"
पंकज ने उसकी तरफ देखा पर नमस्ते नहीं किया
"अरे वाह ! पंकज तो स्मार्ट बॉय है" कह कर आया ने पंकज का हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचना चाहा मगर पंकज ने उससे हाथ छुड़ा लिया
"स्मार्ट बॉय! हुंह.. मस्का लगाने की कोशिश कर रही है, पर इसको पता नहीं है, मैं इस घर में किसी भी आया को टिकने नहीं देता। दो-तीन दिन में यह भी यहाँ से भाग जाएगी" मन ही मन में सोचकर पंकज हंसने लगा
"पंकज! यह तुम्हारी आया है, अब यही तुम्हें संभालेगी, इसलिए इनके साथ आज से ही दोस्ती कर लो"
पर पंकज ने न बात की और ना ही कोई जवाब दिया बस अपना बैग लेकर सीधा अपने कमरे में चला गया।
"कोई बात नहीं, अभी पहला दिन है ना, जल्द ही घुलमिल जाएगा। आप चिंता मत करिए" आया ने कहा
"मगर ध्यान रखना, पंकज बहुत शरारती है"
"कोई बात नहीं बच्चे शरारत नहीं करेंगे तो कौन करेगा " कह आया मुस्कुराई
पंकज रूम से ही दोनों की बातें सुन रहा था। वह कुछ सोच कर हंसने लगा। कहीं मां उसकी हंसी सुन न ले इसलिए उसने दोनों हाथ अपने होठों पर रख लिए
नीलू पंकज के कमरे में आई और उसके कपड़े बदलवाने लगी
"पंकज! मुझे कल चार दिनों की ट्रेनिंग पर जाना है, इसके लिए ज्यादा पैसे देकर आया मंगवाई है। प्लीज, इस बार कोई भी शरारत नहीं चाहिए । अगर यह आया भी भाग गई, तो फिर मै तुझे हॉस्टल भेज दूंगी , याद रखना !"
हॉस्टल की बात पर पंकज ने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि नीलू हर बार उसे ऐसे ही कहती पर भेजती नहीं।
"लेकिन मां! मैं चार दिन अकेले कैसे रहूंगा ?" पंकज रोने जैसा हो गया
"आया है ना, फिर अकेले कैसे! वह सुबह जल्दी आ जाएगी"
"मगर रात को तो वह नहीं रहेगी ना !"
"रात को पापा है ना, उनके साथ कमरे में सो जाना"
"पापा के साथ !!" मुंह बनाते हुए पंकज ने कहा "पापा तो रात को ज़ोर- ज़ोर से खर्राटे लेते हैं ख़ुररर खूं.. खुरररर खूं "
पंकज ने पिता की नकल उतारी तो नीलू को भी हंसी आ गई
"बेटा ! चार दिन एडजस्ट कर लो। मेरे कैरियर का सवाल है। और मैं ट्रेनिंग के पैसे भर चुकी हूं"
पंकज का चेहरा उतर गया मगर वह कह कुछ नहीं पाया।
" मम्मी पहले कितनी अच्छी होती थी। रोज़ नई-नई डिशेस बनाकर खिलाना, सारा दिन घर में रहना, पापा और मेरी हर बात का ध्यान रखना। पर जब से मम्मी ने पार्लर का काम शुरू किया है तब से ना डिशेस बनाती है, ना ही घर में रहती है। और तो और पापा से भी तो हर दूसरे दिन झगड़ा चलता रहता है। पापा भी कुछ कहे तो "कैरियर की बात है" कहती है। पर अब एक बात अच्छी है मम्मी की, अब वो पहले से ज्यादा बन संवर कर बैठती हैं। और अब मम्मी के पास जाओ तो इतनी खुशबू आती है कि मन खुश हो जाता है। और यह आया! इस आया से तो पसीने की बदबू आती है" सोचते हुए ही पंकज ने अपनी नाक बंद की। "फिर कैसे मैं आया को टिकने दूंगा ? आया नहीं होती तो कम से कम मम्मी मुझे देखने के बहाने घर तो आती है । और मैं उनकी गोद में बैठ कर मम्मी की जी भर के सुगंध ले लेता हूं। पर मम्मी खुशबू की बोतलों को ड्रेसिंग टेबल में सबसे ऊपर वाली दराज में रखती हैं। जहां मेरा हाथ ही न जाए" मुंह टेढ़ा करते हुए पंकज सोचने लगा "कहती हैं, बच्चे खुशबू नहीं लगाते। पर मम्मी को क्या पता कि जब मम्मी नहीं रहती तब मैं वह खुशबू लगाता हूं" सोचकर वह हंसने लगा
दूसरे दिन मम्मी चली गई और आया ने उसके कहे अनुसार सुबह मुझे कॉर्नफ्लेक्स दिए और टिफिन भी बना कर दिया। पर मैंने ना कॉर्नफ्लेक्स खाए और ना ही टिफिन खा कर आया। शाम को जैसे ही पापा आए तो रोने जैसा मुंह करके कहा "मुझे भूख लगी है , सुबह से आया ने कुछ खाने के लिए नहीं दिया" सोनू ने बताया था कि झूठ बोलते समय दो उंगलियों को क्रॉस कर लेने से पाप नहीं लगता। ये बात पापा को भी पता है लेकिन पापा को यह बात तो पता नहीं थी न , कि विकी ने बताया है उंगलियां हाथ की ही नहीं बल्कि पैरों की भी चलती हैं। इसलिए मैंने पैरों की उंगलियां क्रॉस कर ली "
"बेटा! तुम जानते हो ना, झूठ बोलने से पाप लगता है ! और झूठे आदमी के भगवान पकोड़े बनाकर गरम तेल में तलता है !"
"मुझे मन ही मन में पापा की इस बात पर हंसी आई। भगवान मेरे पकोड़े कैसे बनाएगा ! मैंने तो पैरों की उंगलियां क्रॉस कर ली है। फिर भगवान को कैसे पता चलेगा ! पर पापा के सामने हंस नहीं पाया और कहा "हां पापा! पता है "
"ठीक है ! मैं कल आया से बात करता हूं " कहकर पापा रसोई घर से खाना ले आये।
दूसरे दिन पापा ने आया को डांटा आया ने कितनी बार कहा कि पंकज झूठ बोल रहा है, पर पापा ने उसकी एक न सुनी। आया भी होशियार थी उसने पापा के टिफिन के साथ ही मेरा टिफिन भी बनाकर पापा के सामने रख दिया। जब पापा ऑफिस चले गए तो आया मुझे घूर कर देखने लगी। मैं उसकी तरफ ना देखते हुए स्कूल के लिए निकल गया। रात को पापा आए तो मैंने कहा
" पापा ! आया अच्छा खाना नहीं बना रही। मुझे इसके हाथ का खाना नहीं खाना"
" बेटा ! दो दिनों में मम्मी आ जाएगी, फिर बताना तुम्हें क्या खाना है क्या नही। तब तक खा लो"
मगर जब मम्मी आई तो मुझे कुछ कहने की जरूरत ही ना पड़ी। आया खुद ही काम छोड़ कर चली गई । लेकिन हां, उस दिन मम्मी के गुस्से को सहन करना पड़ा
" पंकज! तुम ऐसे ही आया को भगाते रहोगे तो मजबूरी में मुझे तुम्हें हॉस्टल छोड़ कर आना पड़ेगा"
" पर मम्मी! मैंने कुछ नहीं किया"
" कुछ नहीं किया, तो फिर आया क्यों भाग गई ?"
" मम्मी ! उसने मुझे उस दिन खाने के लिए कुछ नहीं दिया था, तब पापा ने उसे डांट दिया" कहते हुए मैंने झट से दोनों पैरों की उंगलियों को क्रॉस कर लिया
"सच कह रहे हो ? दोनों हाथ आगे करो"
मैंने दोनों हाथ आगे कर दिए
" हां मम्मी! सच कह रहा हूं" कहकर मैं मन ही मन अपनी समझदारी पर हंसने लगा। इतने में पीछे से आवाज आई
"क्या हाल है नीलू!"
" अच्छी हूं पूजा दीदी! आप कैसे हो ?"
दीदी कहते हुए पंकज ने आकर पूजा को गले लगा लिया।
"कैसे हो पंकज!"
" ठीक हूं दीदी! राजू कहां है ?"
"वह बाहर ही दोस्तों के साथ खेल रहा है"
" मैं भी जाता हूं" कहते हुए पंकज ने बाहर भागने की कोशिश की तो पूजा ने पंकज का हाथ पकड़ लिया
"रुको एक मिनट! कुछ खाया है, भूखे पेट तो नहीं हो ?"
"हां खाया है, मम्मी ने अभी-अभी नाश्ता खिलाया"
" फिर ठीक है, अब जा सकते हो"
पूजा नीलू की तरफ मुड़ी "मेरा पंकज से ऐसे पूछने पर बुरा ना मानना नीलू ! उस दिन पंकज घर आया था, लड़के की शक्ल ही उतरी हुई थी। पूछने पर बताया कि भूख लगी है, मेरा तो दिल ही जल गया यह सुनकर कि मेरा इतना छोटा भतीजा बेचारा भूखा है"
यह बात सुन पंकज के पैर वहीं रुक गए। नीलू ने पंकज की तरफ घूरते हुए देखा
"इसे क्यों घूर रही हो नीलू! वह तो बच्चा है भूख में अपनों से नहीं मांगेगा तो क्या पड़ोसियों से मांगेगा! तुम उस दिन शायद यहां नहीं थी। जाओ बेटा! तुम बाहर जाकर खेलो " कहकर पूजा ने पंकज को बाहर भेजा। पंकज भी मां के गुस्से से बचने के लिए बाहर की तरफ दौड़ा
"बुरा ना मानना नीलू! तुम्हारे दो पैसे कमाने की वजह से बच्चा भूखे पेट घूमे, यह अच्छा तो नहीं"
"दीदी! मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं। तो इसमें क्या बुरा कर रही हूं ?"
"पर घर और बच्चे का क्या ?"
"आप उसकी चिंता मत करो, मैंने उसका भी रास्ता सोच लिया है"
पूजा के जाने के बाद पंकज डरते डरते घर आया।
नीलू ने पंकज की दोनों बाहें पकड़ते हुए पूछा "क्या तुमने पूजा के घर खाना खाया था ?"
"घर में खाना नहीं बना था मम्मी ! आप बाहर गए हुए थे, आया ने खाना नहीं बनाया था" पंकज डर के मारे उंगलियां क्रॉस करना भूल गया।
"अगर खाना नहीं बना था तो बाहर से कुछ खा लेना चाहिए था। पूजा के घर क्यों गया खाने ?" नीलू के चिल्लाने पर पंकज डर गया
"सॉरी मम्मी! सॉरी मम्मी! आगे से ऐसा कभी नहीं करूंगा" कहकर वह रोने लगा।
रात को मम्मी पापा के कमरे से झगड़े की आवाजें आने लगी
"लगता है पूजा दीदी वाली बात पर झगड़ा कर रहे हैं।" पंकज को याद आ गया कि उंगलियां क्रॉस करना तो भूल ही गया था। पंकज को डर लगने लगा। फिर इतने में उसे राजू की कही हुई बात याद आ गई "इतने लोग झूठ बोलते हैं, भगवान कितने लोगों के पकौड़े बनाएगा ! और इतने पकौड़े खाएगा कौन ? इसलिए अब भगवान पकोड़े नहीं बनाता" सही ही तो कह रहा है राजू । इतने पकोड़े भगवान खाएगा कैसे! पेट खराब ना हो जाएगा ? छोटा झूठ बोलने से भगवान कुछ नहीं करेगा।" सोचकर पंकज ने खुद को ही ढांढस बंधाया। पर मम्मी पापा के कमरे से अभी भी झगड़े की आवाजें आ रही थी।
" ऐसे तो मुझे मम्मी पापा का झगड़ना पसंद नहीं आता। पर एक बात अच्छी होती है । मम्मी पापा से झगड़ा करके मेरे कमरे में आकर मेरे साथ सोती है ।"
अभी पंकज सोच ही रहा था इतने में नीलू अपना तकिया लेकर पंकज के रूम में आई। पंकज समझ गया और चुपचाप एक तरफ हो गया।
पंकज ने मां को गले लगाते हुए कहा "मम्मी! आप गुस्सा ना करो, मैं आगे से कभी पूजा दीदी के घर खाना नहीं खाऊंगा"
नीलू ने सिर्फ" ह्म्म्म"कहा
"मम्मी! एक बात पूछूं ?" मां को चुप देखकर पंकज ने कहा
"हां, कहो "
"मम्मी! उस दिन दीदी कह रही थी, पापा इतना अच्छा कमाते हैं, फिर भी तुम्हारी मां को कैसा शौक लगा है पैसे कमाने का "
नीलू उठ कर बैठ गई और पंकज की तरफ देखने लगी "और क्या कह रही थी ?"
"कह रही थी, यह छोटे लोगों का काम है, पर तुम्हारी मां को कौन समझाए। पागल हो गई है "
नीलू ने उठते हुए कहा
"पंकज! तुम इन सब को क्या करोगे बेटा ! यह बहुत ही आउटडेटेड लोग हैं। पर तुम समझदार हो जाओ, अब यह सब तुम्हें हथियार बनाकर मुझे काम करने से रोकना चाह रहे हैं । पर आज मैंने इसका भी रास्ता निकाल लिया है"
"क्या रास्ता मम्मी ! ?"
"मैं तुझे हॉस्टल भेज दूंगी, फिर देखती हूं यह कैसे मुझे रोकते हैं ?"
" नहीं मम्मी! मैं हॉस्टल नहीं जाऊंगा" पंकज डर गया "मैं आगे से किसी के भी घर खाना नहीं खाऊंगा, आया को भी नहीं भगाऊंगा । पर मैं हॉस्टल नहीं जाऊंगा " कहकर वह रोने लगा
"डोंट बी चाइल्डिश एंड आउटडेटेड पंकज ! तुम्हें अपना फ्यूचर कैरियर बनाना है या ऐसे लोगों की संगत में रहना है ? अगर तुम्हें जिंदगी में कुछ करना है, कुछ बनना है तो इन सबसे दूर हॉस्टल में मैं ही रहना पड़ेगा"
" क्या कैरियर बनाना इतना जरूरी होता है मम्मी!?"
" हां बेटा! कैरियर बनाना बहुत जरूरी है , उसके लिए अगर घर छोड़कर बाहर भी रहना पड़े तो रहना चाहिए। तब ही जिंदगी में कुछ बना जा सकता है"
पंकज का बालमन यह समझ न पाया मम्मी किसका कैरियर बनाना चाहती है पंकज का या अपना।