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Secret of universe - 3 - क्या ईश्वर ने बनाया है इस ब्रह्मांड को?

त्रिगुणी प्रकृति
परम तत्व से प्रकृति में तीन गुणों की उत्पत्ति हुई सत्व, रज और तम। ये गुण सूक्ष्म तथा अतिंद्रिय हैं, इसलिए इनका प्रत्यक्ष नहीं होता। इन तीन गुणों के भी गुण हैं- प्रकाशत्व, चलत्व, लघुत्व, गुरुत्व आदि इन गुणों के भी गुण हैं, अत: स्पष्ट है कि यह गुण द्रव्यरूप हैं। द्रव्य अर्थात पदार्थ। पदार्थ अर्थात जो दिखाई दे रहा है और जिसे किसी भी प्रकार के सूक्ष्म यंत्र से देखा जा सकता है, महसूस किया जा सकता है या अनुभूत किया जा सकता है। ये ब्रहांड या प्रकृति के निर्माणक तत्व हैं।
प्रकृति से ही महत् उत्पन्न हुआ जिसमें उक्त गुणों की साम्यता और प्रधानता थी। सत्व शांत और स्थिर है। रज क्रियाशील है और तम विस्फोटक है। उस एक परमतत्व के प्रकृति तत्व में ही उक्त तीनों के टकराव से सृष्टि होती गई।
सर्वप्रथम महत् उत्पन्न हुआ, जिसे बुद्धि कहते हैं। बुद्धि प्रकृति का अचेतन या सूक्ष्म तत्व है। महत् या बुद्ध‍ि से अहंकार। अहंकार के भी कई उप भाग है। यह व्यक्ति का तत्व है। व्यक्ति अर्थात जो व्यक्त हो रहा है सत्व, रज और तम में। सत्व से मनस, पाँच इंद्रियाँ, पाँच कार्मेंद्रियाँ जन्मीं। तम से पंचतन्मात्रा, पंचमहाभूत (आकाश, अग्न‍ि, वायु, जल और ग्रह-नक्षत्र) जन्मे।
°°°°°°°क्या ईश्वर ने बनाया है इस ब्रह्मांड को ??
१.आखिर किसने रचा ब्रह्मांड? यह सवाल आज भी उतना ही ताजा है जितना की प्राचीन काल में हुआ करता था। ईश्वर के होने या नहीं होने की बहस भी प्राचीन काल से चली आ रही है। अनिश्वरवादी मानते आए हैं कि यह ब्रह्मांड स्वत:स्फूर्त है, लेकिन ईश्‍वरवादी तो इसे ईश्वर की रचना मानते हैं। अधिकतर लोग धर्मग्रंथों में जो लिखा है उसे बगैर विचारे पत्थर की लकीर की तरह मानते हैं और कट्टरता की हद तक मानते हैं।
वेद, पुराण, ज़न्द अवेस्ता, तनख (ओल्ड टेस्टामेंट), बाइबल, कुरान और गुरुग्रंथ आदि सभी धर्मग्रंथ ब्रह्मांड को ईश्वरकृत मानते हैं। लेकिन दर्शन और विज्ञान अभी भी इसके बारे में बहस और शोध करते रहते हैं। पहले कि अपेक्षा विज्ञान ने ब्रह्मांड के बहुत सारे रहस्यों से पर्दा उठा दिया है...देखना है कि आगे क्या होता है?
२. स्टीफन हॉकिंग :
कुछ दिनों पूर्व विश्व के अग्रणी भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने निष्कर्ष निकाला था कि ईश्वर ने यह ब्रह्मांड नहीं रचा है, बल्कि वास्तव में यह भौतिक विज्ञान के अपरिहार्य नियमों का नतीजा है।
हॉकिंग ने अपनी नवीनतम किताब ‘द ग्रैंड डिजाइन’ में कहा कि चूंकि गुरुत्वाकषर्ण जैसे कानून हैं, ब्रह्मांड कुछ नहीं से खुद को सृजित कर सकता है और करेगा। स्वत:स्फूर्त सृजन के चलते ही कुछ नहीं के बजाय कुछ है, ब्रह्मांड का वजूद है, हमारा वजूद है।
'ए हिस्ट्री ऑफ टाइम' से दुनिया को चौंकाने वाले भौतिक विज्ञानी ने अपनी इस नई किताब में सर आइजक न्यूटन की इस अवधारणा को खारिज कर दिया कि ब्रह्मांड स्वत:स्फूर्त ढंग से बनना शुरू नहीं कर सकता, बल्कि ईश्वर ने उसे गति दी है।
डेली टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार हॉकिंग ने कहा कि ब्ल्यू टचपेपर को रोशन करने और ब्रह्मांड के आगाज के लिए ईश्वर का आह्वान करना जरूरी नहीं है। उल्लेखनीय है कि 1968 की अपनी किताब 'ए हिस्ट्री ऑफ टाइम' में हॉकिंग ने ब्रह्मांड के सृजन में ईश्वर की भूमिका खारिज नहीं की थी।

३. ब्रह्मांड की उम्र : 2002 में हुए एक शोध अनुसार हबल अंतरिक्ष दूरबीन ने हमारी आकाशगंगा के प्राचीनतम तारों का पता लगाया है जिसके आधार पर ब्रह्मांड की उम्र 13 से 14 अरब वर्ष के बीच आंकी गई है।
वैज्ञानिकों ने आकाशगंगा के अत्यंत छोटे और बुझते तारों को 7000 प्रकाश वर्ष दूर क्षय होते तारों के एक झुंड में खोजा। इन बुझते तारों के मौजूदा तापमान के आधार पर वैज्ञानिकों ने हिसाब लगाया कि अधिकतम 13 अरब वर्ष पहले इनका जन्म हुआ होगा। पहले ब्रह्मांड की उम्र 15 अरब वर्ष मानी जा रही थी।
इस तरह पहली ब्रह्मांड की उम्र का आधार तारों के ठंडे होने की रफ्तार को बनाया गया है। इससे पहले ब्रह्मांड के फैलने की दर को इसकी उम्र मापने का आधार बनाया गया था जिसके आधार पर 15 अरब वर्ष माना जाता रहा।
इस ताजा खोज के महत्व को स्पष्ट करते हुए स्पेस टेलीस्कोप साइंस इंस्टीट्यूट के ब्रुस मैरगों ने कहा कि ये बिल्कुल वैसा ही है कि आपको अपनी उम्र मालूम है, लेकिन इस बारे में आपके पास कोई सबूत नहीं है।
४. कैसे हुई ब्रह्मांड की उत्पत्ति : धर्म तो सीधे सीधे ईश्वर को रचयीता मानकर छुटकारा पा लेता है, जैसे कि तनख, बाइबल और ‍कुरान के अनुसार इसे 6 दिन में ईश्वर ने रचा और सातवें दिन उसने आराम किया। बस। लेकिन इस संबंध में वेद और विज्ञान की धारणाएं भिन्न है।
लगभग 14 अरब साल पहले ब्रह्मांड नहीं था, सिर्फ अंधकार था। अचानक एक बिंदु की उत्पत्ति हुई। फिर वह बिंदु मचलने लगा। फिर उसके अंदर भयानक परिवर्तन आने लगे। इस बिंदु के अंदर ही होने लगे विस्फोट।
तब अंदर मौजूद प्रोटोन्स की आपसी टक्कर से अपार ऊर्जा पैदा हुई। विस्फोट बदला महाविस्फोट में। इन महाविस्फोटों से ब्रह्मांड का निर्माण होता रहा। आज भी ब्रह्मांड में महाविस्फोट होते रहते हैं। इस तरह ब्रह्मांड लगातार फैल रहा है। बस यही बिग बैंग थ्योरी है, जो कुछ हद तक सही भी हो सकती है।

५. इसे इस तरह समझें : उस एक परम तत्व से सत्व, रज और तम की उत्पत्ति हुई। यही इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन्स का आधार हैं। इन्हीं से प्रकृति का जन्म हुआ। प्रकृति से महत्, महत् से अहंकार, अहंकार से मन और इंद्रियां तथा पांच तन्मात्रा और पंच महाभूतों का जन्म हुआ।
पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह प्रकृति के आठ तत्व हैं। जब हम पृत्वी कहते हैं तो सिर्फ हमारी पृथ्वी नहीं। प्रकृति के इन्हीं रूपों में सत्व, रज और तम गुणों की साम्यता रहती है। प्रकृति के प्रत्येक कण में उक्त तीनों गुण होते हैं। यह साम्यवस्था भंग होती है तो महत् बनता है।
प्रकृति वह अणु है जिसे तोड़ा नहीं जा सकता, किंतु महत् जब टूटता है तो अहंकार का रूप धरता है। अहंकारों से ज्ञानेंद्रियां, कामेद्रियां और मन बनता है। अहंकारों से ही तन्मात्रा भी बनती है और उनसे ही पंचमहाभूत का निर्माण होता है। बस इतना समझ लीजिए क‍ि महत् ही बुद्धि है। महत् में सत्व, रज और तम के संतुलन टूटने पर बुद्धि निर्मित होती है। महत् का एक अंश प्रत्येक पदार्थ या प्राणी में ‍बुद्धि का कार्य करता है।‍

६. बुद्धि से अहंकार के तीन रूप पैदा होते हैं- पहला सात्विक अहंकार जिसे वैकारी भी कहते हैं विज्ञान की भाषा में इसे न्यूट्रॉन कहा जा सकता है। यही पंच महाभूतों के जन्म का आधार माना जाता है। दूसरा तेजस अहंकार इससे तेज की उत्पत्ति हुई, जिसे वर्तमान भाषा में इलेक्ट्रॉन कह सकते हैं। तीसरा अहंकार भूतादि है। यह पंच महाभूतों (आकाश, आयु, अग्नि, जल और पृथ्वी) का पदार्थ रूप प्रस्तुत करता है। वर्तमान विज्ञान के अनुसार इसे प्रोटोन्स कह सकते हैं। इससे रासायनिक तत्वों के अणुओं का भार न्यूनाधिक होता है। अत: पंचमहाभूतों में पदार्थ तत्व इनके कारण ही माना जाता है।
सात्विक अहंकार और तेजस अहंकार के संयोग से मन और पांच इंद्रियां बनती हैं। तेजस और भूतादि अहंकार के संयोग से तन्मात्रा एवं पंच महाभूत बनते हैं। पूर्ण जड़ जगत प्रकृति के इन आठ रूपों में ही बनता है, किंतु आत्म-तत्व इससे पृथक है। इस आत्म तत्व की उपस्थिति मात्र से ही यह सारा प्रपंच होता है।

७. प्रलय की धारणा : पुराणों में प्रलय के चार प्रकार बताए गए हैं- नित्य, नैमित्तिक, द्विपार्थ और प्राकृत। प्राकृत ही महाप्रलय है। 'जब ब्रह्मा का दिन उदय होता है, तब सब कुछ अव्यक्त से व्यक्त हो जाता है और जैसे ही रात होने लगती है, सब कुछ वापस आकर अव्यक्त में लीन हो जाता है।' -भगवद्गीता-8.18
सात लोक हैं : भूमि, आकाश और स्वर्ग, इन्हें मृत्युलोक कहा गया है, जहां उत्पत्ति, पालन और प्रलय चलता रहता है। उक्त तीनों लोकों के ऊपर महर्लोक है जो उक्त तीनों लोकों की स्थिति से प्रभावित होता है, किंतु वहां उत्पत्ति, पालन और प्रलय जैसा कुछ नहीं, क्योंकि वहां ग्रह या नक्षत्र जैसा कुछ भी नहीं है।
उसके भी ऊपर जन, तप और सत्य लोक तीनों अकृतक लोक कहलाते हैं। अर्थात जिनका उत्पत्ति, पालन और प्रलय से कोई संबंध नहीं, न ही वो अंधकार और प्रकाश से बद्ध है, वरन वह अनंत असीमित और अपरिमेय आनंदपूर्ण है