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अपाहिज़

सबको सब कुछ वो खुदा नहीं देता है,हर इंसान को कुछ ना कुछ कमी देता है।इंसान ने दुनिया में काफी तरक्की कर ली, धरती से आसमान का सफ़र कर लिया,चांद पर पहुंच गया,मगर इंसान की मानसिकता नहीं बदली, तरक्की और पैसों के पीछे भागते भागते वो इंसानियत को ही भूल गया।
इंसान की जुबान चाहें तो कइयों को जोड़ दे,और ये जुबान कई बार रिश्तों में भी जहर घोल देती है।आज की कहानी एक ऐसे ही शख़्स आदित्य की है जिसे सोसाइटी के कुछ लोग गिरी हुई नज़र से देखते हैं वो भी सिर्फ़ इसलिए कि वो एक पैर से थोड़ा सा कमज़ोर है....ये कहानी सिर्फ़ काल्पनिक है,जिसका उद्देश्य किसी भी प्रकार से किसी की भी भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है, कहानी का उद्देश्य समाज में हो रहे भेदभाव को समाप्त करना है।.....


बरौली के एक छोटे से मोहल्ले में रहने वाला आदित्य बहुत ही खूबसूरत लड़का था,आंखों पे चश्मा होंठों पे बहुत प्यारी मुस्कान लिए अपने आप में ही खुश रहने बाला इंसान था,
कुदरत ने उसको सब कुछ बेहतर दिया था।मगर जब भी वो अपने पैर की तरफ़ देखता तो उदास हो जाता था। कॉलेज लाइफ में आदित्य का कोई मित्र नहीं था सिवाय रानी के,रानी आदित्य को कभी भी अलग महसूस नहीं होने देती थी। आदित्य और रानी दोनों ही B.SC के स्टूडेंट्स थे। कोई भी प्रॉब्लम्स होती थी एक दूसरे से शेयर करते थे।कई बार क्लासमेट आदित्य को लंगडा लंगडा बोल कर चिढ़ाते थे। आदित्य का चेहरा उतर जाता और रूआंसा होकर कॉलेज के बाहर बने गार्डन में जाके बैठ जाता और रोने लगता।रानी आदित्य को दिलासा देते हुए कहती....देखो आदित्य सबकी बातों पे गौर मत करो । ये सब चिढ़ते हैं तेरी कामयाबी को देखते हुए,तुम टॉपर हो ना इसलिए,क्योंकि इन्हें पता है की ये तुम्हारे जैसे कभी नहीं बन सकते। इसलिए चिढ़ते हैं साले तुझसे।लेकिन मैंने किसी का क्या ले लिया जो सब ऐसे बोलते हैं,मुझे अच्छा नहीं लगता यार आदित्य ने रानी से कहा,
बिगाड़ा तुमने उनका कुछ नहीं है इनकी मानसिकता अपाहिज़ बाली है और लाइफ में याद रखना पैरों से कमजोर इंसान तो फिर भी उठ सकता है लेकिन मानसिकता से अपाहिज़ व्यक्ति कभी नहीं।फाइनल ईयर है अच्छे से तैयारी करो तुम,रानी ने आदित्य से कहा।
यार कितने अच्छे हो तुम,मुस्कुराते हुए आदित्य ने रानी की तरफ़ देखते हुए कहा।
हां अच्छी तो मैं हूं,लेकिन रहूंगी बस फ्रेंड ही, ओके रानी ने आदित्य से हंसते हुए कहा।
हां हां ठीक है।चलो अब चलते हैं क्लास में सभी आ गए होंगे।दोनो बोलते हुए क्लास की तरफ चले गए।
अपने पिता को बचपन में ही खो देने वाले आदित्य का इकलौता सहारा उसकी बूढ़ी मां थीं।कॉलेज से बचे हुए टाइम में आदित्य घर घर जाकर बच्चों को ट्यूशन देता,उससे जो पैसे आते थे उससे उनके घर का खर्चा चलत था। सोसाइटी के लोग भी उसे बहुत गिरी हुई मानसिकता से देखते थे। कुछ कहते एक तो अपाहिज़ ऊपर से पैदा होते ही अपने बाप को खा गया।कितना अभागा इंसान है ये।
आदित्य कुछ नहीं बोलता बस चुपचाप सिर को नीचे झुकाते हुए घर के अंदर चला जाता था। B.sc का फाइनल रिजल्ट आया तो कॉलेज में टॉप लिस्ट में पहले नंबर पर आदित्य शुक्ला का नाम था।रोहित, राजू और अन्य सभी दोस्त देखते हैं अरे ये अपाहिज़ कैसे टॉप कर गया। वहां खड़ी हुई रानी ने जवाब देते हुए कहा इंसान की आकृति नहीं उसके गुणों पर जाना चाहिए।और वो अपाहिज़ नहीं है अपाहिज़ तो तुम लोगों की सोच है। काश उसके जैसे तुम सब भी बन पाते,तुमने तो दो पैर होते हुए भी कौनसे झंडे गाड़ दिए।सबके सिर शर्म से झुके हुए थे।रानी ने आदित्य को फोन लगाया। ओय हीरो तूने टॉप कर दिया.....
हम्म्म बस सब सही ही है यार,क्या हुआ तू खुश नहीं है...रानी ने कहा।
नहीं खुश तो हूं यार,बस अब तैयारी करना चाहता हूं।यूपीएससी की लेकिन थोड़ी फाइनेंशियल प्रोब्लम है।
तू टेंशन ना ले... मैं हूं ना ....
रानी ने कहा........





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