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हर्जाना - भाग 2

गीता मैडम के उठने के तुरंत बाद ही उनकी दो सह कर्मी महिमा और माया भी मौसम की भीषण गर्जना के कारण उठ गई थीं। उन्होंने गीता मैडम की गोद में रोते हुए बच्चे को देखते ही तैयारी शुरू कर दी।

गीता मैडम ने कहा, “महिमा जल्दी गर्म पानी लेकर आओ और माया तुम दूध की बोतल तैयार करो।”

बच्चे की टूटती साँसों को देखकर माया ने कहा, “मैडम इसकी हालत तो काफ़ी खराब लग रही है। मुझे नहीं लगता कि यह बच्चा टूटती साँसों के बिखराव को समेट पाएगा।”

“ऐसा मत कहो माया, जितना कह रही हूँ उतना करो। हमें कोशिश करनी चाहिए, किसी ने हमारे भरोसे उसे छोड़ा है, हमें अपना कर्तव्य निभाना है।”

जल्दी ही माया और महिमा ने अपना काम कर लिया। बच्चे को नहलाने से पहले ही गीता ने उसे बोतल से दूध पिलाना शुरू कर दिया। अपनी उखड़ती हुई साँसों के साथ बच्चे के दोनों होंठों के बीच बोतल के निप्पल का स्पर्श हुआ और दूध उसकी जीभ से होते हुए पेट तक पहुँचने लगा। गीता मैडम की गोदी में सुकून का एहसास होते ही वह बच्चा अपनी साँसों को जोड़ने की कोशिश करने लगा और सिसकियों के बीच दूध पीता रहा।

तभी गीता मैडम ने कहा, “इसका नाम मैं आयुष्मान रखती हूँ। यह ज़िंदा रहेगा और देखना एक ना एक दिन हमारे अनाथाश्रम का नाम भी रौशन करेगा।” 

इस तरह उस बच्चे का नाम आयुष्मान रख दिया गया। कुछ ही समय में उसे नहला धुला कर साफ़ कर दिया गया। नहा धोकर वह बच्चा बहुत ही प्यारा लग रहा था। इस तरह से अपनी माँ के साथ नौ माह तक उसकी कोख में रहने वाला आयुष्मान, धीरे-धीरे अपनी माँ की धड़कनों के एहसास को भूलने लगा। ज़्यादा समय नहीं लगा उसे वह भूलने में और इसका कारण थीं गीता मैडम, जिन्होंने उसकी टूटती साँसों को जोड़कर उसे अपने सीने से लगाया। उसे एक नई ज़िन्दगी दे दी।

माया और महिमा आपस में बात कर रहे थे। 

महिमा ने कहा, “कैसी होगी वह माँ जिसने नौ माह तक अपनी कोख में रखकर बाहर निकलते ही कचरे की तरह बच्चे को फेंक दिया।”

माया ने कहा, “हाँ आश्चर्य होता है एक बार भी बच्चे को अपनी छाती से नहीं लगाया। यदि मैडम नहीं देख लेतीं, तब तो वह तड़प-तड़प कर मर ही जाता।”

“हाँ माया तुम ठीक कह रही हो। जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोय। लगता है इसे बचाने के लिए भगवान ने हमारी गीता मैडम को चुना है। यह बारिश का मौसम तो नहीं था फिर भी मौसम कैसा भयानक हो रहा था, बादल गरज रहे थे और बिजली चमक रही थी। शायद भगवान का यह एक अलग ही अंदाज़ था गीता मैडम को उस बच्चे तक पहुँचाने का, उन्हें बाहर बुलाने का।”

गीता मैडम ने उनकी बात सुनकर कहा, “बच्चों को इस तरह से छोड़ देना, यह तो सदियों से होता आ रहा है लेकिन ऐसा यदा-कदा ही होता था किंतु अब तो मानो रोज़ की ही बात हो। अब तो आए दिन ऐसी घटनाएँ होती ही रहती हैं। ज़माना बदल रहा है, नई पीढ़ी बदल रही है। लिव इन रिलेशनशिप की बढ़ती घटनाओं के कारण इसकी दर बढ़ती ही जा रही है। मैं तो कहती हूँ यदि लिव इन रिलेशनशिप को सही मानते हो तो फिर बच्चे को जन्म देकर समाज के सामने लाने की हिम्मत भी रखनी चाहिए। बिन ब्याहे यदि साथ में रह सकते हो तो बिन ब्याहे बच्चा पैदा करने को ग़लत क्यों समझते हो?”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः