Wo Nigahen - 22 in Hindi Fiction Stories by Madhu books and stories PDF | वो निगाहे.....!! - 22

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वो निगाहे.....!! - 22


अरे छोड़ो तुम दोनों उनको जब इनकी आंखों में धूल झोक कर कुछ कर जाएंगे तब समझ आयेगा l तब मुहँ फ़िराते फ़िरेगे.....!जो बड़े अकड़ में रहते है l कहकर वो तीसरी औरत बेशर्मी से हंस पड़ी साथ में वो दोनों औरते भी l

उन औरतो कि बाते सुनकर धानी के फ़ादर साहब कि आंखें गुस्से से एक दम लाल पड़ जाती l माथे कि नसे तन सी जाती है l खुद के गुस्से को जब्त कर साँस छोडकर..... सीधा उन औरते के पास आकर सहज भाव से क्यों बहन जी... क्या बात कर रही है आप लोग आप तो हमारे बच्चों को हम लोगों से भी बेहतर जानती है l यदि आप लोग अपना भारी भरकम बात ना कहती तो हमारी आंख हि नहीं खुलती है धन्य हो बहनो आप लोगों कि वजह से हमारी आंखें खुल गई l
धानी के फ़ादर साहब को देख वो औरते हडबडा सी गई फिर तुरंत सम्भल भी गई l
क्यों भाई साहब हम लोग क्या गलत है कह रहे है जो आप ताने दे रहे हो? मुहँ सिकोडते हुये उनमे से एक औरत बोलीl

नहीं नहीं... हम कहाँ आप लोगों को ताने दे रहे हैं हम तो आप लोगों कि तारीफ़ हि कर रहे है कि आप लोगों कि वजह से हमारी आंखें खुल गई l
वैसे एक बात कहे आप को पता है इस वक़्त आपकी बेटी कहाँ गई मिसेज बंसल ?
हा क्यों मुझे मालूम है वो इस वक़्त कहाँ है? मिसेज बंसल मुहँ बनाते हुये बोली l
अच्छा रुकिये मैं आपको दिखाता हूँ! इतना कहकर धानी के फ़ादर साहब ने किसी को वीडियो काल कर बात कि सामने मिसेज बंसल को दिखाते हुए देखिये जरा इसे मिसेज बंसल ने जैसे देखा उनकी आंखॆ फ़टी कि फ़टी रह गई l इस वक़्त उनकी बेटी किसी के साथ बिल्कुल अस्त व्यस्त थी शर्म से उनकी आंखॆ झुक गई l
और मिसेज मेहरा हमे ये बताने कि जरुरत नहीं है कि आप अपने बेटे को बखूबी जानती हि होगी कि हर कही मुंह मारता फ़िरता है l और आप मिसेज मेहता क्या हि कहुँ आप तो खुद हि मुझसे बेहतर जानती हि है l धानी के फ़ादर अमर जी गुस्से से कहते हैं इतना सुनते हि वो दोनों औरते सकपका जाती है और अपने चेहरे हाथों से छिपा लेती है l
हम आप लोगों को शर्मिन्दा नहीं करना चाहते थे वो है ना कि कभी कभी सच्चाई से भी अवगत कराना जरुरी हो जाता है अगली बार से किसी के भी बच्चों पर फ़ब्तिया कसने से पहले अपने बच्चों को एक नजर देख लेना l जब खुद के घर कांच के हो तो दूसरे घरो पर पत्थर नहीं फ़ेका करते हैं ये कहावत तो सुनी हि होगी l आयन्दा से ध्यान रखियेगा नहीं तो हमसे बुरा कोई ना होगा! गुस्से से उन तीनो को देखते हुये अमर जी बोले l उन्हें गहरी नजर
डालते हुये अपने घर कि ओर चल दिये l वो औरते अपना सा मुहँ लेकर रह गई l

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किस बात पर इतना मुस्कुराया जा रहा है साले साहब और साली साहिबा" हमे भी बताय हम भी मुस्कुरा ले क्यों श्री क्या कहती हो!
हाँ बिल्कुल तेज जी l श्री भी तेज की बात पर हाँ में हाँ मिला गई l
कुछ नहीं जीजा जी हम तो बस आपकी शादी कि प्लानिग कर हँस रहे थे कि जूता चुराई पर कितने पैसे ऐठने है कहकर धानी खिलखिला पड़ी l
हा भई !!!बिल्कुल वो तो आपका हक बनता है ! क्यों साले साहब यही बात थी ना कुछ और तो नहीं! गहरी नजरों से मायूर को देख तेज बोला l
तेज की बात सुनकर मायूर हडबडा गया ह... हाँ जीजे यही बात है l
"वैसे तुम्हारी आंखॆ तो कुछ और हि बया कर रही है !"
"नहीं नहीं सच्ची जीजे यही बात है जो धानी बोली "!
पता नहीं दी और जीजे क्या हो गया है इतना अजीब क्यों बर्ताव कर रहे हैं l धीरे से बुदबुदाया l
"जीजे आप सब लोग बात करो मैं अभी आता हूँ "कहकर मायूर झट से एक नजर धानी पर डाल चला गया l
उसको ऐसे हडबडाहट से जाते देख तीनो हि खुलकर मुस्कुरा पड़े l

श्री सुन ना तुम बात क्यों नहीं कर रही हो? जब से आई हो देख रहे हैं इग्नोर कर रही हो मुझे!! ऐसे बर्ताव कर जैसे कि मैं यहाँ हूँ हि नहीं! मुहँ बनाते हुये बोली!

श्री!! अब धानी को आकर घूरने लगी !!
श्री के ऐसे घूरने से धानी सकपका गई! क्या हुआ !ऐसे क्यों घूर रही हो?

हम्म!! क्यों तुम्हें नहीं पता वैसे हि घूरते हुयी बोली! मन हि मन श्री धानी के मजे ले रही थी!

श्री !आप दोनों बात करो मैं अभी आता हूँ!! धानी को ओर देखते हुए मुस्कुरा चला गया उसकी मुस्कुराहट देख...धानी बहुत कुछ समझ गई!!

अभी भी श्री !धानी को हि घूर हि रही थी....!

धानी ~श्री वो... मैं वो मैं!





क्रमशः!!