BALLU THE GANGSTER - 11 in Hindi Thriller by ANKIT YADAV books and stories PDF | BALLU THE GANGSTER - 11

Featured Books
Categories
Share

BALLU THE GANGSTER - 11

[ नेहरू विहार मॉल, नई दिल्ली ]

[ बल्लू - सुनिल, आज कई दिनों बाद घूमने आए ना, मस्त मजे करेंगे आज ]
[ सुनील - हां बल्लू, कई दिन हो गए कहीं बाहर आए। पर पता नहीं क्यों बड़ा अजीब सा लग रहा है। मुझे लग रहा है कि आज हम पकड़े जाएंगे। ]
[ बल्लू - अरे कुछ नहीं होगा। मैं हूं ना। कुछ हुआ तो मैं कह दूंगी कि तुम मेरे साथ मेरे ट्यूशन गए थे क्योंकि मेरी टीचर ने बुलाया था। ]
[ सुनील - पर तुम तो ट्यूशन जाती ही नहीं ? ]
[ बल्लू - तो अब। ]
[ सुनील - बल्लू थोड़ा जल्दी चलेंगे । लेट होगे तो शक ज्यादा होगा। ]
[ कुछ युवक - ओ ओ हो दिलरूबा कहा चल्दी सज धजके । हमारा हाथ भी पकड़ लिया करो। इसके साथ क्या धुम रही, ये क्या तुम्हारी रक्षा करेगा जो खुद की रक्षा भी नहीं कर सकता , चलो ना । ]
[ बल्लू - जरूरी है लड़का ही लड़की की रक्षा करे । एक लड़की भी तो लड़के कि रक्षा कर सकती है । पर तुम जैसे लोगों को कहा व्यायशास्त्र समझ आएगा। तुम जैसे बैलों को लाठी की जरूरत ही पड़ती है। सही कहा ना। ]
[ और इतना कहने कि देर थी कि बल्लू ने अपने जेब से बंदुक निकाल उन युवकों पर तान दी। सुनिल ने बल्लू को रोकने की कोशिश की पर बल्लू के सामने उसकी एक ना चली । युवक जब भी नही माने तो, बल्लू ने फायर किया। हवाई फायरिग से तुरंत चिल्लाहर मच गई। ]
[ सुनिल - ये क्या किया तुमने बल्लू ? तुम्हारे पास बंदुक कैसे आई ? और ऐसे बंदुक क्यों चलाई तुमने ? अगर किसी को लग जाता तो । ]
[ बल्लू - लग जाती तो लग जाती। फूफा बदमाश है मेरा और मेरे फैन बहुत है । देख लेते जो होता ।और रही बात बंदूक की तो ये बंदूक मेरे पापा की है। मुझे ऐसे ही बचपन से बंदूक चलाने का शौक है तो मैं ये जेब में ही रखती हूं। तुम क्यों डर गए इतना। ]
[ सुनील - तुम्हारा फूफा है जो बदमाशी भी करेगा वो। बता ना अब। ]
[ बल्लू - अरे ये कहने की बात थी वो तो, तू क्यों इतना डरता है। जब तक मैं तेरे साथ हूं ना तब तक तुझे किसी से डरने की जरूरत नहीं। ]
[ सुनील - तू होती है तभी मुझे डर लगता रहता है। मुझे मतलब बहुत डर लगता है यार इन सब बंदूक बगैरा चीजों से।]
[ बल्लू - अच्छा अगर मेरे साथ इतना ही डर लगता है तो मेरे साथ आते ही क्यों हो ? मैं तुम्हें अब जबरदस्ती तो बुला कर लाती नहीं । ]
[ सुनील - अरे नहीं यार ऐसी बात नहीं। मुझे भी तुम्हारे साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है। तुम मेरे पास होती हो, वो मेरे सबसे अच्छे कुछ पल होते हैं पर तुम ये सब बंदूक बगैरा छोड़ दो ना। ]
[ बल्लू - जैसे सरकारी नौकर के लिए सरकारी नौकरी छोड़ना जितना मुश्किल है ना उतना ही मेरे लिए ये बंदूक छोड़ना मुश्किल है। आदत सी हो गई है यार। पर तेरे लिए मैं इसे छोड़ने की जरूर कोशिश करूंगी। चला ज्ञान पेलना बंद कर और घर चल। ]
[ सुनील - तुम आगे वाली गली से जाना और मैं पीछे वाली गली से और बंदूक वाली बात किसी को मत बताना। कल मिलते हैं फिर ।]