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साथिया - 9













कुछ दिन निकल गए थे।

सांझ और शालू की दोस्ती गहरी हो गई थी। अक्षत के के अगले महीने फाइनल एगजाम थे तो वो उसमे डुबा हुआ था।


ईशान और मनु अभी कॉलेज में रुकने वाले थे। अक्षत के साथ ही नील भी एग्जाम की तैयारियों में लगा हुआ था।

नील अक्षत का खास दोस्त था और दोनों साथ साथ लॉ कर रहे थी।

नील की बहिन निशि का होम्योपैथिक मे सिलेक्सन हो चुका था और वो अपनी स्टडी मेडिकल कॉलेज से कर रही थी।




*उधर गाँव में*

गजेंद्र सिंह की बेटी नियति ने बारहवी में बहुत अच्छे नम्बर लाये थे और उसी के साथ उसने शहर से ग्रेजुएशन करने का मन बना लिया।


"देख नियति तेरी जिद की खातिर मैं तुझे शहर के कॉलेज से पढ़ने की परमिसन दे रहा हूँ, पर याद रहे हमारे लिए हमारे खानदान की इज्जत से बड़कर कुछ ना है तु भी नही।"
ठाकुर गजेंद्र सिंह ने रौबदार आवाज में बोला।


" पापा पढ़ने दीजिये ना नियति को। स्कूल के मास्टरजी कह रहे थे, कि बड़ी ही होनहार है हमारी नियति।" नियति के बड़े भाइ निशांत ने उसका पक्ष लेते हुए कहा ।



"ठीक है...! पर कोई ऊंच नीच हो गई तो तुम जिम्मेदार होंगे।" गजेंद्र बोले।


" जी पापा। " निशांत बोला

"मेरी इज्जत पर वार मैं हरगिज ना सहूंगा, तुम सब का भाग्यविधाता मैं हूँ, तुम सब के जीवन का हर फैसला सिर्फ मैं करूँगा और अपने खानदान की इज्जत से समझौता हरगिज ना होने दूंगा। " ठाकुर अपनी रोबदार आवाज में बोले और चले गए।


"नियति क्यों जिद करें है आगे पढ़ने की? तु जानती है न तेरे पापा कितने शख्त है । मुझे तेरी बहुत ही चिंता हो रही है। मैं तुमको खोना नही चाहती।" नियति की माँ ने आँखों में आँसू भरकर कहा।


"माँ चिंता ना करो, मैं ध्यान रखूंगी ऐसा कुछ ना होगा । मैं खुल के जीना चाहूँ माँ, अपने सपने पूरे करना चाहती हूँ।" नियति ने माँ को समझाना चाहा।


"तुम्हारे सपनो में मुझे मेरी बिटिया कहीं खोती दिख रही है!" माँ ने ने मन ही मन सोचा और अपने डर को अपने अन्दर छिपा लिया।


"नियति मैने बहुत भरोसा क़र के तेरे लिए बाबूजी से बात की है पर ध्यान रहे अगर कुछ भी ऐसा वैसा हुआ तो बाबूजी तेरे साथ मुझे भी ना छोडेंगे।" निशांत बोला।

" कुछ न होगा । थैंक यू भाई।" नियति बोली और खुश हो कर चली गई।

उसका बड़ा भाई निशांत दो साल पहले घिसट घिसट के बारहवी पास करके अब पढाई छोड़ चुका था और अपने पिता गजेंद्र ठाकुर के साथ जमीदारी और खेती बाड़ी देख रहा था।


गजेंद्र के भाई सुरेंद्र का बेटा सौरभ दिल्ली निकल गया मास कंयुनिकेशन की पढाई करने। उसका सपना पत्रकार बनना था तो वही सौरभ की बहिन आव्या अभी स्कूल में थी।


दूसरी तरफ गाँव में ही अवतार सिंह की बेटी नेहा भी एक साल पहले मेडिकल मे सेलेक्ट हुई और अवतार ने उसे एमबीबीएस करने मुंबई भेज दिया।

हर इंसान अपने भविष्य के सुंदर सपने संजोये अपने अरमानो को उडान देता हुआ आगे बढ़ रहा था पर कोई नही जानता था कि भविष्य ने उनके लिए क्या लिख रखा है।


*दिल्ली*

सांझ के साथ शालू उसके हॉस्टल में आई और उसके बेड पर पसर गई।

" वाओ कितना मजा आता है ना यहाँ ऐसे अकेले अकेले रहने में? " शालू बोली तो साँझ मुस्कुरा उठी।


" वैसे तुम्हारे घर में कौन-कौन है? " शालू ने पूछा।

"चाचा चाची है उनकी एक बेटी है और मैं हूं।" साँझ बोली


"चाची की बेटी तुमसे बड़ी है या छोटी? " शालू बोली।


"मुझसे बड़ी दीदी है! " साँझ ने कहा ।


"और तुम्हारे घर में कौन-कौन है? " साँझ ने पूछा।


"मेरे घर में मम्मी पापा और मैं हूँ ।" शालू बोली।


"मम्मी और पापा और कोई नहीं है तुम्हारे भाई या एक बहन?" साँझ बोली


" एक बहिन है मेरी मुझसे दो साल छोटी। माही नाम है उसका पर वह हमारे साथ नहीं रहती है। बचपन में ही बुआ जी उसे अपने साथ लेकर चली गई थी तो वह उन्हीं के परिवार का हिस्सा है। बस नाम के लिए वह हमारे परिवार का सदस्य, मेरी बहन और मम्मी पापा की बेटी है बाकी उसका रहना पढ़ाई लिखाई सब कुछ बुआ जी के घर पर ही हो रही है।" शालू बोली।



"तुम्हारा कभी मन नहीं करता कि वह आकर तुम्हारे साथ रहे मतलब तुम अकेली हो तो दिल करता होगा ना?" साँझ बोली।


" हां मन करता है और सबसे ज्यादा तो पापा उसके लिए परेशान रहते है। बहुत प्यार करते है उसको। पर कोई बात नही जब उसकी मर्जी होगी तब आ जाएगी। अब बचपन से वहां रही है इसलिए उसे वहीं पर रहना अच्छा लगता है। बुआ के कोई बच्चे नहीं थे इस कारण पापा और मम्मी ने माही को उन्हें दे दिया ताकि उन्हें खाली नहीं लगे।" शालू बोली और फिर दोनों बैठ कर घर परिवार और कॉलेज के न जाने कहां कहां की बात करती रही ।


कॉलेज में आने के कुछ ही दिनों में साँझ के जीवन में दो महत्वपूर्ण लोगों की एंट्री हुई थी। एक था अक्षत जिसने पहली नजर में ही साँझ के दिल में अपनी एक खास जगह बना ली थी और दूसरी थी शालू जो पहले दिन से ही साँझ की सबसे खास दोस्त बन गई थी। इतनी खान कि दोनों अपने जिंदगी के हर पहलू को एक दूसरे के साथ शेयर कर रहे थे और एक दूसरे को जानने और समझने की कोशिश भी।



"अब जाती हूँ साँझ शाम हो गई है मम्मी पापा वेट कर रहे होंगे।" शालू बोली


"ठीक है ध्यान से जाना ।" साँझ बोली।


" ओके बाबा ध्यान रखूंगी।" शालू बोली और वहां से निकल गई।


उसके निकलते ही साँझ बिस्तर पर जा गिरी और आंखों के आगे अक्षत का मनमोहक चेहरा आ गया।

"कितना अच्छे हैं अक्षत चतुर्वेदी ...! जितना प्यारा और आकर्षक उनका चेहरा है उतना ही अच्छा उनका मन भी है। उस दिन उन्होंने मेरी कितनी हेल्प की और उसके बाद आज तक कभी बात करने की कोशिश नहीं की। यही तो क्वालिटी होती है अच्छे लड़कों की वरना और कोई लड़का होता तो अब तक उसके बदले में बात करने का कोई ना कोई बहाना ढूंढ लेता। कभी उनके सामने भी पड़ जाती हूं तो नजरें फेर कर निकल जाते हैं।" सांझ खुद से बोली।



" उनकी एक नजर के लिए मेरी आंखें तरसती रहती है दिल करता है कि कभी तो वह नजर उठाकर मेरी तरफ देखें" सांझ बोली।

"मैं भी कितनी पागल हूं ना ...! मेरी तरफ क्यों देखने लगे वो भला। कॉलेज के सबसे स्मार्ट और हैंडसम लड़के हैं और शालू बता रही थी उनके पापा भी बहुत बड़े बिजनेसमैन है। अच्छे खासे पैसे वाली फैमिली है। उनके लिए क्या पूरे कॉलेज में सिर्फ सांझ ही बची है जो सांझ ।को देखेंगे और मैं तो इतनी खास भी नहीं हूं। नॉर्मल दिखती हूं। रंग भी उतना नहीं है। उनके साथ खड़ी हो जाऊंगी तो एकदम ऐसा लगेगा जैसे किसी ने मैदे के भटूरे के पास बाजरे की रोटी रख दी हो।" सांझ खुद से ही बोली।


" जानती हूं उनके आगे मेरी ना कोई हैसियत है और ना ही कोई वैल्यू। उनके आगे कहीं नहीं दिखती है पर इस दिल का क्या करूं जिसमें पहली नजर में ही वह समा गए हैं। अब तो किसी और की तरफ देखने का मन ही नहीं करता।यूनिवर्सिटी जाती है आंखें उनको ढूंढने लगती हैं पर वह तो अभी अगले महीने से आना बंद कर देंगे।उनके तो आखिरी एग्जाम होने वाले हैं उसके बाद वह कॉलेज क्यों आएंगे?" सांझ के चेहरे पर उदासी आ गई।


"काश कि उनका कोर्स अभी पूरा नहीं हुआ होता और वह कॉलेज आते रहते । भले वह मुझे ना चाहे भले वह मेरी तरफ ना देखे पर मैं तो उनकी तरफ देख सकती हूं और उन्हें देख कर दिल को जो सुकून मिलता है उसे महसूस कर सकती हूं। किसी को कह नहीं सकती अपने दिल की बात लोग हंसेंगे मुझ पर कि सांझ भी कैसे सपने देख रही है। आखिर धरती पर पड़े पत्थर को आसमान में चमकते चांद के सपने देखने का कोई अधिकार नहीं, पर दिल पर तो किसी का जोर नहीं। दिल तो आजकल काबू में ही नहीं रहता इन कुछ दिनों में ही अक्षत चतुर्वेदी मानो दिल की हर धड़कन में बस गए हैं पर मैं चाह कर भी यह बात ना ही उनसे कह सकती ना ही किसी और से।" सांझ सोचते जा रही थीं।


"हमारा कहीं से कोई मेल नहीं है ना ही शक्ल सूरत में और ना ही हैसियत में इसलिए अपने दिल की बात को दिल में ही दबा कर रखना होगा। पहले सोचा था कि कभी किसी से दिल नहीं लगाऊंगी कभी किसी को प्यार नहीं करूंगी पर पर दिल लगाया भी तो किससे? ऐसे इंसान से जिससे कभी अपने दिल की बात भी नहीं कर पाऊंगी!" सांझ बोली और आंखें बंद कर ली। आंखों के आगे फिर से अक्षत का मुस्कुराता चेहरा आ गया और उसका बिना छुए गले लगाना भी जब उसने उसको सीनियर से बचाया था।
सांझ की आंखों में नमी उतर आई और उसके लब मुस्कुरा उठे।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव


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