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शायरी - 14

मन मैला तन मैला और काया कोढ़ी होय
जिह्वा है एक डाकिनी तो भजन कहा से होय

चलते चलते दिन मरा, जगते जगते रात
आशा तृष्णा सब मरी, खाक हुआ विश्वास
धरनी मरी कलेश से, पाप से मरा आकाश
तूने प्रभू माया गढ़ी, या गढ़ दिया विनाश

तूने मुझे छोड़ा तो इसमें तेरी क्या खता है
तुझे राह में सिर्फ पत्थर मिले मेरी बद्दुआ है

गलती तेरी है नहीं मेरी है भरपूर
तू तो अपने राह चल मैं चलता हूं दूर

फिर वही नीद वही सपने वही रातें वही दिन
तुम नही होते हो तो जन्नत भी सपना लगता है

हम जमीन पर रहकर भी आसमानों पर नजर रखते हैं
आप मानो या ना मानो हम तो दुश्मनों की भी खबर रखते हैं

कागज़ की नाव कश्ती का सहारा
दरिया का भंवर और पार भी उतारा
झूंठ की नीव सच का सहारा
नश्वर संसार और भव सागर उतारा
पाप की गठरी पुण्य का किनारा
भंवर में फंसी नाव और उसका सहारा

हमने आशिकी बेंच दी गालिब तेरे मकान में
वो जो एक सेर था तेरे तकिए के नीचे उसे

जिंदगी उधार है मौत की दी हुई
ले गई तो कर्ज वसूल दे गई तो दर्द वसूल

आप का हुनर है तो आप आजमाइए
दिल, दिल को पत्थर और पत्थर को तोड़ कर फूल खिलाइए

मन मट मैला ज्यों रहत वर्षा ऋतु का नीर
तन धोवत हम सब फिरत गंगा सरयू क्षीर

रक्षा दीन दयाल करहीं हांथ लिए धनु बान
सो ऐसे दिन दयालु पर सखी न्योछावर यह प्रान

दर्द लिखना है तो जिंदगी लिखो
मौत जैसी सुकून पर इतनी बहस अच्छी नहीं

हांथ पैर मुंह नाक से ले कर दादा दादी चाचा चाची बहन भाई रोना हंसना तक सिखाती है।
वो एक मां हीं है जो अपने बच्चे को एक गुरु के लायक बनाती है।।

तुम इस छोटी सी जिंदगी की बड़ा सा हिस्सा हो
तुम गए तो कहानी खत्म जिंदगी अब बस एक किस्सा हो

मन की गति का क्या कहें मन है घोर भुजंग।
बाहर सबसे प्रेम अति घर में सबसे जंग।।

मन मतवाला स्वान है फीरत सदा चहुं ओर।
आशा तो इस छोर है तृष्णा ले गई ओंह ओर।।

मंदिर मंदिर में जा कर ढूंढा, ढूंढा हर आसमान।
हर कण कण में प्रभु छुपकर बैठा,नादा हर इंसान।।

आप तो आसानी से हवाओं को भी पर लगा देते हैं।
हम तो अपनी जी, जान, और सर लगा देते हैं।।

हमसे एक बार भी मिलना तो आते जाते रहना।
हम खुद को आईने में देख कर हैरान हो गए हैं।।

ये उसके आंख का आंसू है मुझे डुबोए गा।
एक कतरा भी समंदर से कम नहीं होता।।

आज सज संवर कर जंग का एलान कर दिया आपने।
दिल तो हार चुके हैं लो जान भी आप के नाम कर दिया हमने।।

वो मुस्कुराते गए हम लूटते गए
मानो जिंदगी मेरी खैरात थी कोई

अब भरोसे के लायक तो आईना भी नहीं रहा।
मतलबी इंसान ने इसे अपने जैसा बना लिया।।

प्रेम की सीमा पर खड़े होकर आवाज दे रहे हो
अगर मुड़ के देखा तो गिर जाओगे

अरे सुनती हो क्या, मुझे सुनाई नहीं देता।
बस इतने ही प्रेम की उम्मीद है तुमसे।।

आप बड़े खामोश रहते हो।
कभी इश्क कर लिया था क्या।।

यह तुम्हारी खुमारी भी किसी मोड़ पर ले आई
तुम्हारे बच्चे तीन हुए और मैं हुआ हवाई