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सेंट्रल पपार्क न्यूयार्क

अवध में बगावत की चिंगारियां फूट रही थी।।

मंगल पांडे बैरकपुर छावनी में अपने साथियों के साथ धर्म बचाने की कोशिश में लगे थे। लार्ड कैनिंग ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल बनकर भारत आ चुके थे। उन्हें आने वाले तूफान का कोई अंदाजा नही था।

इस वक्त न्यूयार्क में सेंट्रल पार्क की सीमायें बांधी जा रही थी।
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मैनहटन एक दलदली आइलैंड पर बसा है। चारो तरफ मनुष्य की बढ़ती आबादी के बीच, जंगल कटते जा रहे थे, न्यूयॉर्क सिटी काउंसिल ने 1857 में एक पार्क बनाना तय किया।

पार्क क्या कहें जंगल कह लें।

कोई 800 एकड़ का रकबा, जिसमे झीलें भी है। ढाई, तीन सौ साल पुराने पेड़ हैं। अगर आप नए है, तो इस जंगलनुमा पार्क में रास्ता भूल सकते है।

तो जब बगावत के झँझवात से निकलकर, हिंदुस्तान में ब्रिटिश ने अपनी डोलती सत्ता को दोबारा स्थिर किया। कम्पनी को हटाकर क्राउन ने सत्ता अपने हाथ मे ली, उस वर्ष, याने1858 में न्यूयार्क सेंट्रल पार्क, आम जनता के लिए खोल दिया गया।
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ये पार्क आयत के आकार का है। एक पार से दूसरे पार जाना हो, तो पार्क से होकर पैदल जाइये। या फिर आयत की बाहरी सड़कों से पूरा गोल घूमकर जाइये। कोई फ्लाईओवर नही है।

भीतर कोई चर्च भी नही है। कन्वेंशन सेंटर है, सामुदायिक भवन कह लें, जिसमे कुछ आयोजन समय समय पर किये जाते हैं।

और ये बहुत विशाल पार्क नही है। न्यूयार्क में साइज के लिहाज से पांचवें नम्बर का पार्क है। याने चार पार्क इससे बड़े हैं, छोटो की गिनती कठिन है।
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आपके आसपास कौन सा पार्क है, सोचिये। किस आकार का है। सबसे पुराना पेड़ कितना पुराना है। जब बना था, तब से आज तक कितनी जमीन घटी है। कब्जेदार कौन लोग है??

पुराने बाग, अमूमन कम्पनी गार्डन कहलाते हैं।

अब उनके नाम महात्मा गांधी, कमला नेहरू या दीनदयाल पार्क हो गए होंगे। नए कितने बने?? पुराने कितने नष्ट हुए?? जरा सोचें।

दरअसल अर्बन प्लानिंग के नाम पर, हमने पिछले 200 साल कुछ किया नही है। सौ साल पुराने पेड़ काटकर सेंट्रल विस्टा बनाने वाली कौम जब अपनी राजधानी को नहीं छोड़ती, छोटे शहरों की कौन कहे।
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सांस रोकते फ्लाइओवरों तले, रेंगते हुए हमारे अर्बन क्लास को, फिलहाल 2000 किलोमीटर दूर बने किसी मन्दिर और सैंकड़ों करोड़ के धार्मिक कॉरिडोर का नशा है।

पर उसके घर के बच्चे एक अदद पार्क और थोड़ी हरियाली के बीच बेसाख्ता दौड़ने के लिए, छुट्टियों में किसी टूरिस्ट प्लेस पर जाने की बाट जोहते है।

फिर जवान होने पर वीजा की लाइन लगाते हैं। ताकि उनके बच्चे..

किसी सेंट्रल पार्क में टहल सकें।
आज तक सेंट्रल पार्क में घूमने का मौक़ा तो नहीं मिला लेकिन सोचता हूँ की ज़मीन न्यूयार्क जैसे शहर के बीच में होगी उसकी क़ीमत अरबों रुपये में होगी लेकिन बिल्डिंगों में रहने वालों ने कभी यह नहीं सोचा की आओ इसे उजाड़ कर कोई सेंट्रल विस्टा जैसी योजना बना देते हैं हमारे देश में तो नेता मंत्री नगरपालिका अब तक हथिया चुके होते और होने वाला धनोपार्जन आपस में बाँट कर विकास करने का ढिंढोरा पीट रहे होते