भगवन्नाम महिमाहरिनामपरा ये च घोरे कलियुगे नराः ।
त एव कृतकृत्याप्चश्न कलिर्बाधिते हि तान् ॥ “घोर कलियुग में जो मनुष्य हरिनाम परायण हैं वे ही कृतकृत्य हैं। कलियुग उन्हें बाधा नहीं पहुँचा सकता।”
अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक परात्पर परब्रह्म परमात्मा के अनन्त अवतार भक्तों के कारणार्थ हुआ करते हैं। उन्हीं अनन्त अवतारों में हरि नाम भी प्रभु का पतित पावन अवतार है। भगवान् और भगवान् का नाम अभिन्न है। नाम नामी का अभिन्न स्वरूप है। जिनके जीवन में हरि नाम आ गया, समझो हरि आ गए। नाम आश्रय ही भगवान् का आश्रय है। गोस्वामी तुलसीदास जी तो यहाँ तक कहते हैं–
कहाँ कहौं लगि नाम बड़ाई। राम न सकहिं नाम गुण गाई। “नाम की महिमा मैं कहाँ तक कहूँ, भगवान् राम भी नाम की महिमा नहीं कह सकते।”
अपने इष्ट राम जी जो सर्वसमर्थ हैं, असमर्थ बता देना क्या तिरस्कार नहीं है? नहीं, यह तो आदर है। कैसे? क्योंकि राम असीम हैं। असीम की सीमा बाँधना या मानना असीम का निरादर है। असीम प्रभु का नाम भी असीम है। अपार का पार नहीं होता। इसलिए भगवान् भी नाम की पूरी महिमा नहीं गा सकते। भगवन्नाम की महिमा भगवान् की ही महिमा है। चैतन्य महाप्रभु जी कहते हैं– भगवान् ने अपने नाम में अपनी पूरी शक्ति रख दी है और इसमें एक विशेषता यह भी है कि नाम जप करने में समय का कोई नियम नहीं है। किसी भी समय प्रातः, दोपहर, शाम, रात्रि को नाम जप सकते हैं।–
नाम्नामकारि बहुधा निजसर्व शक्ति
स्तत्रार्पितानियमितः स्मरणे न कालः। भगवान् श्रीकृष्ण अपने सखा अर्जुन को आदिपुराण में कहते हैं–
नामयुक्तान्जनान्दृष्टवा स्निग्धो भवति यो नरः ।
याति परमं स्थानं विष्णुना सह मोदतेः ।।
तस्मान्नामानि कौन्तेय भजस्व दृढ़ मानसः ।
नामयुक्तः प्रियोऽस्माकं नाम युक्तो भवार्जुन ॥“नाम युक्त पुरुषों को देखकर जो मनुष्य प्रसन्न होता है, वह परम धाम को प्राप्त होकर मुझ विष्णु के साथ आनन्द करता है। अतएव हे कौन्तेय! दृढ़ चित्त से नाम जप करो। नाम युक्त व्यक्ति मुझे बड़ा प्रिय है। हे अर्जुन! तुम नामयुक्त हो।”
नाम के प्रताप से प्रह्लाद ने जड़ खम्बे से चेतन रूप होकर भगवान् को अवतार लेने के लिए बाध्य कर दिया। नाम के ही प्रताप से मीरा जहर पी गई। नाम के ही प्रताप से नारद, व्यास, शुकदेव आदि जगत् पूज्य हुए। नाम के ही प्रताप से ब्रह्मा सृष्टि रचने में समर्थ हुए। नाम के ही प्रताप से पानी पर पत्थर तैर गए। नाम के ही प्रताप से हनुमान जी समुद्र लांघ गए। नाम के प्रताप से ही श्रीनिम्बार्काचार्य जी, श्रीशंकराचार्य जी, श्रीरामानुजाचार्य जी, श्रीवल्लभाचार्य जी, श्रीमाधवाचार्य जी व श्रीचैतन्य महाप्रभु आदि महापुरुषों ने भगवद्भाव को प्राप्त किया। नाम की महिमा कहाँ तक की जाए, शेष जी हजार मुख से भी वर्णन नहीं कर सकते। वाणी की अधिष्ठात्री देवी भगवती सरस्वती जी व बुद्धि के देवता गणेश जी भी नाम की पूर्ण महिमा नहीं कह सकते। कोई भी शुभ -से- शुभ, सदृश महान से महान, पवित्र से पवित्र कर्म भी हरिनाम जप के सदृशं नहीं हो सकता।
न नाम सदृशं ज्ञानं, न नाम सदृशं व्रतं ।
न नाम सदृशं ध्यानं, न नाम सदृशं फलं ।।
“नाम के समान न ज्ञान है, न व्रत है, न ध्यान है, न फल है न दान है, न शम है, न पुण्य है और न कोई आश्रय है। नाम ही परम मुक्ति है, नाम ही परम गति है।”