Pahli Aaski - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

पहली आस्की - भाग 1

मुझे वह तारीख अच्छी तरह याद है : 4 मार्च, 2006। मैं कोलकाता में था और हैप्पी के घर पहुँचने
ही वाला था। सुबह से ही बड़ी कुलबुलाहट हो रही थी क्योंकि मैं अपने उन दोस्तों से तीन साल बाद
मिलने जा रहा था जिनको एक ज़माने से 'गैंग ऑफ फ़ोर' कहा जाता था। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के
बाद मनप्रीत, अमरदीप, हैप्पी और मैं पहली बार मिलने वाले थे।
होस्टल में पहले साल हैप्पी और मैं ए ब्लॉक भवन के चौथे माले पर अलग-अलग कमरों में रहते थे
। एक ही माले पर रहने के कारण हम एक दूसरे को पहचानते तो थे लेकिन कभी एक-दूसरे से किसी
तरह की बातचीत नहीं करना चाहते थे। मैं उसे 'अच्छा लड़का' नहीं समझता था क्योंकि उसे लड़ाई
मोल लेने और अपनी मार्कशीट पर लाल रंग जुड़वाते जाने का शौक था। लेकिन दुर्भाग्य से, सेकेंड
ईयर की शुरुआत में मैं होस्टल देर से लौटा और तब तक सभी कमरे दुसरे छात्रों को दिए जा च्के थे।
मेरे पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं बचा कि मैं हैप्पी का रूममेट बन जाऊँ। और चॅकि
जिंदगी अजीब होती है, चीज़ें नाटकीय ढंग से बदलीं और हम सबसे अच्छे दोस्त बन गए। जिस दिन
हमारा पुनर्मेलन तय हुआ उस वक्त वह दो सालों से टीसीएस कंपनी में काम कर रहा था और कंपनी
के लंदन प्रोजेक्ट पर काम करते हुए मज़े उठा रहा था। हैप्पी को 6.1 फुट की लंबाई, भरा-पूरा शरीर
और बला की सुंदरता मिली थी। और हैप्पी हमेशा खुश रहता था
मनप्रीत, जिसे हम एमपी बुलाते, गोल-मटोल, गोरा-चिट्टा और स्वस्थ था। 'स्वस्थ' शब्द
इस्तेमाल करने का कारण यह है कि अगर मैं उसके लिए सही शब्द 'मोटा' इस्तेमाल करू तो वह मुझे
मार डालेगा, वह हम लोगों में पहला व्यक्ति था जो होस्टल में कंप्यूटर लेकर आया और उसकी उस
मशीन में न जाने कितने कंप्यूटर गेम थे। असल में, यही कारण था कि हैप्पी और मैं उससे दोस्ती
करना चाहते थे। एमपी काफी पढ़ाकू था। उसने स्कृूल के दिनों में गणित ओलंपियाड जीता था और
वह हमेशा उसके बारे में डींगें हाँका करता था। वह मोदीनगर का रहने वाला था, लेकिन जिस समय
हम फिर से मिल रहे थे वे वह बंगल्रु में ओक्केन के साथ काम कर रहा था।
अमनदीप का नामकरण एमपी ने रामजी' किया था। मुझे पता नहीं किे उसका यह अजीब नाम
कब और क्यों पड़ा। हो सकता है शायद इसलिए क्योंकि वह स्वभाव का सीधा-सादा था। होस्टल में
हम लोगों के विषरीत वह बिलक्ल निशाचर नहीं था और उसके कमरे की बत्तियाँ ठीक 11 बजे बुझ
जाती थीं। कभी-कभार एमपी, हैप्पी और मैं उसके कमरे के सामने 1। बजे से कुछ सेकेंड पहले खड़े हो
जाते और गिनती शुरू कर देते, 10, 9, ৪, 7, 6, 5, 4, 3, 2, 1..और रामजी सो जाता। अमरदीप के
बारे में बस एक ही रहस्यमयी बात थी कि वह साइकिल पर बैठकर कहीं जाता था, हर इतवार ।
उसने हमें कभी नहीं बताया कि वह कहाँ जाता था। जब भी हमने उसका पीछा करने की कोशिश की,
उसे न जाने कैसे पता चल जाता और वह आपना रास्ता बदलकर हमें छका देता। आज भी हममें से
कोई उस बारे में नहीं जानता। उस आदमी के बारे में सबसे अच्छी बात उसकी साद्गी थी। और,
सबसे बड़ी बात यह कि हमारे इंजीनियरिंग बैच के आखिरी सेमेस्टर का टॉपर था। वह हमारे ग्रूप की
शान था। वह बरेली का रहने वाला था और तब वह एवाल्युसर्व में काम कर रहा था जब वह एमपी
के साथ पुनर्मिलन के लिए हवाई जहाज से कोलकाता आया।
कॉलेज के बाद हम सब जीवन के ढरे में काफी बँध गए थे। एक दिन, हमें पता चला कि हैप्पी लंदन
से दो हफ़्तों के लिए आ रहा था। सब फिर से मिलने के लिए उत्साहित थे। कोलकाता में हैप्पी के
घर पर 4 मार्च, 2006' हमने फैसला किया।

To be continued.. in next part 2