Sathiya - 54 books and stories free download online pdf in Hindi

साथिया - 54

"मुझे बहुत बड़ी बुरा लग रहा है नेहा दीदी आपके लिए मुझे खुद में विश्वास नहीं हो रहा कि ऐसा हो सकता है। पर आप भगवान पर विश्वास रखिये। सब सही हो जाएगा। हो सकता है शादी के बाद निशु सुधर जाए और फिर आप पढ़ी-लिखी हो समझदार हो आपकी संगत में रहकर उसका व्यवहार बदल जाएगा। " सांझ ने नेहा को समझाना चाहा

"कोशिश कर रही हूं सांझ नॉर्मल होने की पर इतना आसान नहीं है मेरे लिए। तू समझ सकती है। सालों से मुंबई में रही हूं। निशांत से शादी करने का मतलब है जिंदगी भर इसी गांव में रहना और फिर वह तो शादी करने के लायक भी नही है।

कैसे उस जानवर के साथ अपनी जिंदगी बिताऊंगी मैं। तुम उसे नहीं जानती सांझ पर मैं जानती हूं। वह बहुत ही ज्यादा हिंसक है एकदम जानवर है। उसके अंदर ना इंसानियत है और ना ही भावनाएं। दुनिया में सिर्फ एक ही एक इंसान के लिए उसके मन में सॉफ्ट कॉर्नर था और वह थी उसकी बहन नियति। इसके अलावा उसे ना ही किसी से प्यार है ना ही किसी की परवाह है।
वह क्या मुझे और मेरी भावनाओं को समझेगा।" नेहा ने कहा।

"पर दीदी इसके अलावा कोई और उपाय भी तो नहीं है..!! आप जानती हो ना फिर परिणाम क्या होगा? और मैं नहीं चाहती की जो नियति दीदी के साथ हुआ वह...!!" कहते-कहते सांझ रुक गई।

"ऐसा कुछ भी नहीं होगा। तु मेरी परवाह मत कर बस अपना सोच और अपना आगे का फ्यूचर डिसाइड कर इस गांव में कोई फ्यूचर नहीं है। कोई जिंदगी नहीं है और फिर तुझ पर तो इन लोगों की जोर जबरदस्ती भी नहीं चलेगी। तु ना इस गांव में पैदा हुई है और ना ही इनकी बेटी है। तेरे तो मम्मी पापा भी नहीं है तो तू विद्रोह कर सकती है। अगर बाद में भी कोई बोले तुझे इसलिए कह रही हूं दो टूटना मत। मना कर देना कि अब कभी वापस गांव नहीं आएगी और इन लोगों से रिश्ता खत्म कर लेना। यह किसी रिश्ते के लायक नहीं है।"नेहा ने सांझ को समझाया पर नेहा क्या करने वाली है यह सांझ अब तक नहीं समझ पाई थी और उसके मन में डर था।

डर उसे दोनों तरफ से था।

अगर नेहा की शादी हुई तो भी बहुत गलत होगा क्योंकि नेहा बर्दाश्त नहीं करेगी और कहीं कुछ उल्टा सीधा ना कर ले, और अगर नेहा ने शादी से इनकार किया या कुछ भी गलत किया तो उसका नतीजा क्या होगा यह सोचकर भी सांझ का दिल कांप रहा था। पर उसके हाथ में कुछ भी नहीं था इसलिए जो हो रहा था उसे देखने के अलावा वह कुछ भी नही कर सकती थी।




उधर अबीर मालिनी और शालू अबीर के में दोस्त के यहां पहुंच गए थे। उनके बेटे की शादी का प्रोग्राम था। वह उन लोगों ने इंजॉय करने का सोचा और उसके बाद एक-दो दिन वहीं पर रुकने का उनका प्रोग्राम था। लखनऊ और आसपास की जगह घूमने का अबीर ने प्लान बनाया था।

कभी-कभार तो उन लोगों का घर के बाहर इस तरीके से निकलना होता था इस वजह से अबीर ने भी अपनी फैमिली के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करने के लिए एक ट्रिप बना लिया।


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अगले दिन अवतार के घर में पूरी तैयारी हो चुकी थी। शामियाने लग चुके थे। हलवाई पकवान बनाने में लगे हुए थे। दहेज का समान आ चुका था।

गुजिया लड्डू और माठे बनकर डलियाँ भरी जा रही थी नेहा के ससुराल भेजने को।

गहने कपड़े और सब तैयारियां हो रही थी तो वही एक तरफ ढोल नगाड़े बज रहे थे।

सांझ भावना के साथ दौड़-दौड़ कर काम संभाल रही थी तो वही नेहा अपने कमरे में तैयार हो रही थी क्योंकि कुछ ही देर में बारात आने वाली थी।

नेहा के हाथ में ही सांझ का फोन था और उसकी नजर फोन की स्क्रीन पर थी कि तभी फोन बज उठा।

"हेलो आनंद..!" नेहा ने कहा।

"नेहा में आ चुका हूं बस अड्डे के पास जो पीछे की सुनसान जगह है वहां पर इंतजार कर रहा हूं..!! मेरे पास मेरी खुद की गाड़ी है तुम पहुँचो। हम यहां से दिल्ली निकल जाएंगे और दिल्ली से हमारी फ्लाइट है।" आनंद बोला।

"ठीक है आनंद तुम इंतजार करो मैं अभी आती हूं।" शालू बोली


"और हां यह फोन साथ में लेकर मत आना वरना इस फोन के जरिए वह लोग हम तक पहुंच जाएंगे..!" आनंद ने कहा।

"ठीक है...!" नेहा बोली और कॉल कर दिया।


तभी सांझ कमरे में आई।

"अरे दीदी आप तो तैयार हो गई और चाची मुझ पर गुस्सा कर रही थी कि मैं तैयार नहीं हुई। पर मेरे पहनने का लहंगा भी तो आपके कमरे में रखा हुआ है। बस मैं आधे घंटे में तैयार होकर आती हूं।" सांझ बोली और नेहा के कमरे से शादी में पहनने वाला अपना लहंगा लेकर अपने कमरे में चली गई।

उसके बाहर निकलते ही नेहा ने सांझ का वहाँ रखा सलवार सूट उठाया और पहन लिया और तुरंत दरवाजा खोलकर सर पर दुपट्टा डालकर बाहर निकलने लगी।


इस समय अंधेरा हो गया था तो जहां-जहां पर लाइट लगी हुई थी फिर वहीं पर रोशनी थी बाकी जगह पर नहीं।

नेहा ने सांझ का सलवार सूट पहना हुआ था इसीलिए अंधेरे में किसी को समझ भी नहीं आया की नेहा बाहर जा रही है या सांझ जा रही है।


नेहा आंगन में आई और फिर आंगन से पीछे गली में खुलने वाले दरवाजे को खोलकर वहां से पीछे निकल गई और किसी को पता ही नहीं चला कि वह घर से जा चुकी है।

बस स्टैंड के पीछे चुपके चुपके पहुंची तो वहां आनंद अपनी गाड़ी के साथ उसका इंतजार करते मिला।

नेहा जाकर उसके सीने से लग गई।

"थैंक गॉड की तुम आ गए आनंद। तुम नहीं आते तो मैं आज फांसी लगाकर खुद को खत्म कर देती। " नेहा भावुक होकर बोली

" आता क्यो नही.. तुम्हे यूँ ही तो नही छोड़ सकता न।" आनंद ने कहा और दोनों गाड़ी में बैठ तुरंत निकल गए अपने सुनहरे सपने सजाने और प्यार की दुनियां बसाने और पीछे छोड़ गए एक आग का दरिया जो अब किस किस को जलायेगा और किस किस को निगलेगा कोई नही जानता था।


उधर इस बात से अंजान कि नेहा घर तो क्या गाँव भी छोड़ चुकी है निशांत और उसका परिवार बारात लेकर निकल दिया तो वही सांझ अवतार और भावना बारात के स्वागत और विवाह की तैयारियों मे लगे हुए थे।


थोड़ी देर में बारात गाजे बाजे के साथ अवतार सिंह के घर के बाहर आ पहुंची थी।

भावना और अवतार ने बारात का स्वागत किया तो वही सांझ भी भावना के पीछे आरती का थाल लिए छड़ी हुई थी।

निशांत की नजर सांझ पर गई तो उसका मुंह बन गया

" सिर्फ नेहा को देखने का दिल था मेरा। यह काली बिल्ली रास्ता काटने कहां से आ गई? " निशांत ने खुद से ही कहा।

"ना जाने इन लोगों को भी क्या है जो हर समय इसे आगे किए रहते हैं...! अब जबकि यह बात सब जानते हैं कि यह तो इनका खून भी नहीं है, इनके भाई की औलाद भी नहीं है फिर भी न जाना क्यों इसी को आगे आगे लिए खड़े रहते हैं?" निशांत सांझ को देख सोच रहा था।


"पर जो भी हो..!! मुझे क्या फर्क पड़ता है। वैसे कोई दूर से ही देखकर कह सकता है कि यह न ही नेहा की बहिन है और न ही इस घर की लड़की। कहां मेरी नेहा गोरी खूबसूरत हो और कहां यह काली और बदसूरत लड़की। मुझे इसकी सूरत से भी नफरत है।" निशांत ने मन ही मन सोचा और फिर सांझ से ध्यान हटा लिया,

"मुझे क्या करना मेरी शादी तो नेहा से हो रही है और बस जिंदगी में कोई कमी नहीं रहेगी...!
सालों से इन आंखों ने सिर्फ और सिर्फ नेहा के ख्वाब देखे है तो बस अब वो सब ख्वाब पूरे होने वाले हैं।" निशांत ने खुद से हि कहा।


अवतार और भावना ने निशांत का स्वागत किया और जो भी रश्मे होती हैं वह सभी रश्मे करके उसे अंदर लेकर आए, जहां पर की वरमाला प्रोग्राम होना था और मंडप लगा हुआ था।


बारातियों का चाय नाश्ता शुरू हो गया।


"अवतार जी नेहा को बुला लीजिये। ताकि वरमाला का प्रोग्राम हो सके और उसके बाद शुभ मुहूर्त में शादी हो सके पता है ना आपको विवाह का मुहूर्त रात 12:00 से 4:00 के बीच का है। इसी बीच में विवाह होना है तो फिर देर किस बात की? " गजेंद्र सिंह ने कहा तो अवतार और भावना नेहा को लेने अंदर चल दिये।

सांझ भी उनके साथ चल पड़ी।

वैसे भी पूरा घर मेहमानों से भरा हुआ था सब जगह चहल पहल थी और सबकी नजरें दुल्हन के कमरे पर थी।।

वह लोग नेहा के कमरे में पहुंचे तो देखा नेहा कमरे में नहीं है।

चारों तरफ नजर दौड़ाई तो ड्रेसिंग टेबल के ऊपर सांझ के फोन के नीचे दबा एक कागज फड़फड़ा रहा था।

अवतार और भावना का दिल बैठ गया तो वही सांझ की धड़कनें भी किसी अनहोनी की आशंका से तेज हो गई।




क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव