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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१०)

दिव्यजीत और देविका अपने बिस्तर में पहुँचे तो अब देविका बनी सतरुपा की डर के मारे हालत खराब होने लगी,लेकिन फिर भी वो बेड के दूसरी ओर किनारे पर जाकर लेट गई और सोने का नाटक करने लगी,वो जैसे तैसे सिंघानिया से अपना पीछा छुड़ाना चाहती थी और तभी उसे सिंघानिया ने टोकते हुए कहा....
"देवू! तुमने बताया नहीं कि तुम्हें फोन कैंसा लगा"?
"जी! अच्छा है",देविका बोली...
"तुम पहले की तरह खुश नहीं हुई गिफ्ट पाकर",सिंघानिया बोला...
"जी! मैं खुश हूँ",देविका बोली...
"अच्छा! मेरे पास आओ,चलो बातें करते हैं",दिव्यजीत देविका से बोला...
"जी! मुझे बहुत नींद आ रही है,आज पूरा दिन मेडिकल चेकअप में लग गया,इसलिए थक गई हूँ",देविका बहाना बनाते हुए बोली...
"ठीक है !अगर तुम थक गई हो तो सो जाओ,मैं तब तक लैपटॉप पर अपने कुछ काम निपटा लेता हूँ ",
और ऐसा कहकर दिव्यजीत अपना लैपटॉप खोलकर बैठ गया...
दूसरे दिन दिव्यजीत के घर से जाते ही इन्सपेक्टर धरमवीर फिर से सिंघानिया के घर पहुँच गए और शैलजा से बोले...
"मिसेज सिंघानिया का कुछ स्टेटमेंट लेना है,अगर आपकी इजाजत है तो क्या मैं उन्हें अपने संग पुलिस स्टेशन ले जा सकता हूँ",
"जी! ले जाइए,हम सब भी चाहते हैं कि वो जल्द से जल्द पकड़ा जाएंँ जिसने देविका को अगवा किया था",शैलजा बोली...
और इन्सपेक्टर धरमवीर देविका को लेकर पुलिसस्टेशन पहुँचे,फिर देविका का फोन पुलिस स्टेशन पर रखवाकर तब उसे वो अपने घर ले गए,ताकि उसकी लोकेशन पता ना चल सकें,इसके बाद वे पुलिस स्टेशन वापस आ गए और तब तक छुट्टन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ चुकी थी,जिसमें लिखा था कि छुट्टन को किसी ने उसकी शराब में जहर मिलाकर मारा था,काफी जाँच पड़ताल के बाद पता चला कि छुट्टन का पूरा परिवार गाँव में रहता है,जिसमें उसकी पत्नी और बच्चे भी शामिल हैं और तब पुलिस ने छुट्टन के गाँव जाने का फैसला किया,उन्होंने रघुवीर से पूछताछ इसलिए नहीं की कि जिससे रघुवीर सावधान ना हो जाएंँ,अगर वो सावधान हो गया तो बात बिगड़ जाऐगी,पुलिस इस मामले की तह तक पहुँचना चाहती थी,इसलिए इन्सपेक्टर धरमवीर दो तीन हवलदारों के साथ छुट्टन के गाँव पहुँच गए और वे हवलदार बंसी यादव से कहकर आए थे कि शाम तक देविका को मेरे घर से लाकर मिस्टर सिंघानिया के घर छोड़ आए..
और जब छुट्टन के घरवालों को पता चला कि छुट्टन अब इस दुनिया में नहीं रहा तो फूट फूटकर रोने लगे और तब इन्सपेक्टर धरमवीर ने गाँववालों से रघुवीर के बारें में पूछा तो लोग उसकी बात करने से डर रहे थे,ये सब इन्सपेक्टर धरमवीर को समझ नहीं आ रहा था कि गाँववाले उससे इतना क्यों डर रहे हैं,तब एक बुजुर्ग इन्सपेक्टर धरमवीर के पास आकर बोले....
"साहब! आप मेरे साथ मेरे घर चलिए,मैं आपको रघुवीर के बारें में सब बताता हूँ",
उन बुजुर्ग के कहने पर इन्सपेक्टर धरमवीर उसके घर गए तब वे बुजुर्ग बोले...
"साहब! रघुवीर अनाथ था,उसके पिता गाँव में लोहार थे",
" और उसकी माँ कहाँ हैं,कोई भाई बहन हैं उसके या नहीं",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"जी! सब बताता हूँ उसके बारें में"
और ऐसा कहकर उन बुजुर्ग ने रघुवीर की कहानी सुनानी शुरू की....
बहुत समय पहले की बात है रघुवीर की माँ बहुत ही अच्छे घराने की लड़की थी,वो पढ़ी लिखी और सुन्दर थी और अपने परिवार के साथ शहर में रहा करती थी,उसका नाम ममता था,रघुवीर का पिता उसी शहर में किसी की दुकान पर काम किया करता था,उसका नाम श्याम था,रघुवीर का बाप देखने में सुन्दर था और गुणी था,वो पढ़ा लिखा जरूर नहीं था ,लेकिन सबके साथ उसका व्यवहार अच्छा था,वो काफी हँसमुँख भी था,उसके व्यवहार को देखकर लोग उसे अनदेखा नहीं कर पाते थे,
इसी तरह एक बार रघुवीर अपने मालिक के साथ ममता के घर गया,ममता के पिता ने ही उन लोगों को घर बुलवाया था,मकान में कुछ लोहे का काम करवाना था,दोनों वहाँ पहुँचे तो जब श्याम ने ममता को देखा तो वो उसके रुप और गुण पर फिदा हो गया,धीरे धीरे उसने अपने से कम उम्र ममता से अपनी नजदीकियांँ बढ़ा लीं,अब ममता भी श्याम को चाहने लगी थी और जब इस बात की भनक ममता के पिता को लगी तो उसने ममता को घर में बंद कर दिया और कुछ ही दिनों में उसकी शादी करने का फैसला ले डाला....
इधर शादी के दिन नजदीक आते जा रहे थे और उधर ममता के दिन और रात बिलख बिलख कर बीत रहे थे, फिर शादी के एक दिन पहले ही श्याम ममता को भगाकर इस गाँव में ले आया और यहाँ उसने फिर से लोहारी का काम शुरु कर दिया,शुरु में तो दोनों बहुत खुशी खुशी रहे लेकिन फिर रुपयों की तंगी के कारण दोनों के बीच झगड़े होने लगे,इसी दौरान रघुवीर भी पैदा हो चुका था,लेकिन श्याम की आर्थिक दशा ठीक ना हो सकी,पढ़ी लिखी और सुन्दर ममता दिनबदिन भीतर ही भीतर घुटने लगी,अब उसे श्याम का प्यार जी का जंजाल लगने लगा था,ना पेट भर खाना और ना ही तन पर पसंद के कपड़े,वो अपने माँ बाप के यहाँ बिताएँ दिनों को याद करती तो रो पड़ती,अब लौटकर भी नहीं जा सकती थी,क्योंकि ये रास्ता तो उसने खुद चुना था....
उसके घर से भागने के बाद उसके पिता ने आत्महत्या भी कर ली थी,जिससे उसके लिए उस घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके थे,उस दलदल में रहने के सिवाय उसके पास और कोई चारा ना था, लेकिन कहते हैं ना कि पेट की आग और दौलत का लालच इन्सान से क्या नहीं करवा सकता वही ममता के साथ भी हुआ,गाँव के सेठ का जवान बेटा ममता के रुप पर रींझ गया,ममता भी रुपयों के लालच में आकर अपना ईमान धरम सब भूल गई,ये भी भूल गई कि उसका एक बेटा भी है और आए दिन वो सेठ का बेटा श्याम की गैरहाजिरी में घर आता और ममता को कुछ रुपऐ देकर उसका फायदा उठाता,ममता भी दौलत के लालच में अन्धी हो चुकी थी,जब श्याम ने घर में भरपूर राशन और ममता के तन पर अच्छे कपड़े देखे तो उसने इसका कारण पूछा,तब ममता टाल गई....
अब गाँव भर में ममता और सेठ के लड़के को लेकर बातें होने लगी थी,ये बात जब श्याम को पता चली तो उसने ममता से इस बात की सच्चाई जाननी चाही तो ममता उससे बोली...
"हाँ! ये सच है",
"तुम रुपयों के लालच में अपनी इज्जत का सौदा कर बैठी"श्याम ने कहा..
"तो क्या करती,जिन्दगी भर तुझ जैसे भिखारी के सहारे बैठी रहती, जो मुझे पेट भर ना तो खाना दे सकता है और ना ही तन पर पहनने के लिए कपड़े",ममता बोली...
"मुझसे बढ़कर तेरे लिए वो सब हो गया",श्याम ने पूछा...
"हाँ! यही जिन्दगी की असली जरूरतें हैं प्यार नहीं,वो मेरी भूल थी जो बिना सोचे समझे तेरे साथ चली आई" ममता बोली...
"तुमने बच्चे के बारें में भी नहीं सोचा",श्याम ने कहा...
"वो बच्चा नहीं पाप है",
और ममता के ऐसा कहने पर श्याम ने उस दिन उसे बहुत पीटा और घर से बाहर निकल गया...

क्रमशः...
सरोज वर्मा...