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पिकनिक - 1



आज सुबह से दिल में उत्साह था । पता नहीं क्यों पिकनिक के नाम से दिल बच्चा बन जाता है । आज मै अपने परिवार के साथ पिकनिक जाने वाली हूं । मेरे सास , ससुर, ननद, नंदोई उनके दो बच्चे , मै , मेरे पति और मेरे दो बच्चे इतना सा है मेरा परिवार ।
असल में तो मैं दो बच्चो की मां हूं । लेकिन आज मुझे मेरे बच्चों को उत्साहित देख कर मेरे बचपन की याद आ गई ।

बात पुरानी है पर जैसे स्मृतियों में कल ही की बात हो । मै १४ वर्ष की थी । और स्कूल से पिकनिक के लिए शहर से बाहर लेकर जाने वाले थे । मेरे पिताजी बहुत पुराने खयालात के थे । उनके हिसाब से लड़कियों का इस तरह बाहर जाना देश के साथ गद्दारी करने जैसा या कानून तोड़ने जैसा अपराध था । अगर इसके लिए कोई कानूनी सजा होती तो वो स्कूल वालों को सबसे पहले जेल मै डाल देते । वैसे भी हमारे देश में जितनी स्वतंत्रता बेटों को दी जाती है बेटियों को नहीं ।

"मां स्कूल से पिकनिक लेकर जा रहे है ,, प्लीज़ एक बार तो पिताजी को मनाइए ना मेरी सभी सहेलियां जा रही है प्लीज मां"
"तू जानती है ना मन्नू तेरे पिताजी हरगिज नहीं मानेंगे फिर ये फालतू जिद करने का क्या मतलब?" मां ने झिड़कते हुए मुझे कहा ।
मेरा दिल उदास हो गया छोटा सा मुंह बनाकर में अपने कमरे में जाकर रोने लगी । स्कूल से हर साल पिकनिक पर लेकर जाते थे पर मै आज तक कभी पिकनिक नहीं गई । अपने दोस्तों और सहेलियों से जब कभी वहां से आने के बाद सुनती उन्होंने कितना एन्जॉय किया तो सुनकर मन ईर्ष्या से भर जाता कि कैसे इन लोगो को कहीं भी आने जाने दिया जाता है । क्यों इनके पिताजी कहीं जाने से मना नहीं करते ?क्यों मैने ऐसे घर में जन्म ले लिया । क्यों मेरे पिताजी यही है कोई और नहीं जो मुझे समझ पाते । पर हर साल कुछ दिन ऐसा महसूस करने के बाद कुछ ही समय में मै सामान्य हो जाती थी । इस बार बात अलग थी । इस बार मुझे पिकनिक इसलिए भी जाना था क्योंकि वो आने वाला था ।

हां वो , मतलब अंकित वो मेरी ही कक्षा में है इसी साल ट्रांसफर होकर आया है । उमर के इस पड़ाव पर लड़को के प्रति आकर्षण होता है लेकिन मैने जो उसे देखने के बाद महसूस किया ऐसा पहले कभी किसी को देख कर महसूस नहीं किया था । जब वो पहली बार कक्षा मै आया था तब जैसे मेरे चारों ओर संगीत बजने लगा था सबकुछ रुक सा गया था बस वो चलता दिखाई दे रहा था । पूरी कक्षा मै हवा में कागज उड़ते दिखाई दे रहे थे उसके बाल हवा में उड़ते दिख रहे थे वह थोड़ा सहमा हुआ था शायद नया स्कूल था तो उसे असहज लग रहा होगा । उसकी भुरी आंखे और हल्के गुलाबी होठ थे । था तो दुबला पतला ही लेकिन अच्छा लंबा था । मै बस उसे देखती ही रह गई ना जाने कब वो मेरे ही करीब आकर बैठ गया मै तो अब भी उसी जगह देख रही थी जहां से वो इंटर हुआ था मेरे लिए तो अब भी वो वहीं खड़ा था पता नहीं ये कैसा जादू था । मुझे वो अब भी वही कैसे दिख रहा था जबकि वो तो मेरे पास बैठ चुका था ।
"मानसी,,,मानसी ध्यान कहां है तुम्हारा?"टीचर जी की आवाज़ से मेरी तंद्रा टूटी । सभी मुझ पर हंसने लगे । मैंने अंकित की तरफ देखा वह भी मुझपर हंस तो रहा था लेकिन पूरी तरह खुल कर नहीं ।
"मै यहां पढ़ा रही हूं और तुम बाहर आसमान को देख रही हो क्या मैंने जो लिखा है वो तुम्हे आसमान में दिख रहा है?" टीचर जी ने ताना मारते हुए कहा । मुझे खुद पर गुस्सा आने लगा और उस पर भी । मैंने उसे गुस्से से देखा तो उसकी हसीं गायब हो गई । आखिर वहीं तो वजह था मुझे इस तरह डांट पड़ी उसकी इसलिए मेरा गुस्सा भी जायज था ।

मै बहुत शर्मिंदा हो गई । उस दिन पूरा समय में चुपचाप बैठी रही मूड बहुत खराब था । उसके आने का सारा उत्साह ख़तम हो गया था । उसका नियम बन गया था रोज कक्षा में आकर मेरे पास बैठ जाता । लेकिन बात करने की हिम्मत नहीं कर पाता था ।
एक दिन उसने मेरी एक कॉपी पर हिम्मत करके कुछ लिखकर मेरी और पास कर दिया । मैं उसे देखने लगी फिर कॉपी खोलकर देखा तो उसमें लिखा था । क्या तुम हमेशा से ऐसी ही हो? कभी मुस्कुराती नहीं? मुझे कक्षा मै आए १५ दिन हो चुके है मुझसे दोस्ती करोगी?
मैं अब तक उस दिन के लिए नाराज़ थी इसलिए मैने अब भी उसे गुस्से से देखा । वह सहम कर बैठ गया । लेकिन दिल में कहीं ना कहीं मै उसे बहुत पसंद करती थी । बस उससे एक सॉरी सुनना चाहती थी ।

इसी तरह दिन गुजरते गए अब तक मेरी उससे दोस्ती नहीं हुई थी । कक्षा में उसके कुछ दोस्त बने थे मेरी कुछ सहेलियां भी उससे बात करती थी । पर मैं नहीं और शायद मेरे गुस्से के डर से वो भी अब कोशिश नहीं करता था ।

एक दिन कक्षा मै टीचर जी ने घोषणा की कि सभी को पिकनिक लेकर जा रहे है । सभी बच्चो ने अपने नाम लिखवा दिए थे । मेरी सहेली अंजलि ने मुझे बताया "अंकित भी आ रहा है और तेरे बारे में पूछ भी रहा था ।"
"उसे मुझसे क्या काम ,, उसी की वजह से मुझे डांट पड़ी थी और अब तक उसने सॉरी भी नही कहा ।"
लेकिन अंजलि की बात सुनकर अब मेरा दिल किया कि मै भी जाऊ स्कूल में बस कुछ ही घंटे में उसका दीदार कर पाती हूं । कम से कम मै उसे ज्यादा समय देख पाऊंगी ।
मैंने घर पर जिद शुरू कर दी ।
पिताजी कहां मानने वाले थे । लेकिन मैं भी आखिर उन्हीं की बेटी हूं । मैने भूख हड़ताल शुरू कर दी अनशन पर बैठ गई । पिताजी से मां ने कहा, "मान जाइए ना ये उमर बच्चो के लिए बहुत नाजुक होती है इस समय उन्हें किसी बात के लिए ना कहना उन्हें अपने खिलाफ करना होता है । देखिए उसने दो दिन से खाया नहीं है ।"
"जब बहुत भूख लगेगी खा लेगी आप चिंता ना करे ये सब नाटक बहुत किए है हमने भी और देखे भी है"पिताजी ने मां को समझाया ।
पर मेरी जिद तो आप जानते है अंकित को पसंद करते हुए भी जब एक सॉरी के लिए मैंने उससे ३ महीने तक बात नहीं की तो फिर मेरे लिए क्या ही मुश्किल है ।

५ दिन तक मैने खाना नहीं खाया ,, वैसे सच कहूं तो स्कूल आकर मै बाज़ार से कुछ ना कुछ लेकर या सहेलियों से थोड़ा ज्यादा खाना मंगवा कर अपना पेट भर लेती थी । आखिर मुझे पिकनिक पर जाना था बीमार हो जाती तो पिताजी को बहाना मिल जाता ना भेजने का । तो इस तरह मैंने आखिर अपनी बात मनवा ली । ५ वें दिन मैंने पिताजी के सामने चक्कर खाकर गिरने का नाटक किया ।
पिताजी थोड़ा परेशान हुए मां अब उन पर बरस पड़ी , "आप भी बच्चों कि ही तरह जिद कर रहे है । जाने दीजिए इतने सारे बच्चे जा ही रहे है ना क्या उनके मां बाप को उनकी चिंता नहीं होगी । और अब जमाना बदल गया है । जमाने के साथ चलना सीखिए आपके बच्चे ही आपके खिलाफ खड़े हो जाएंगे एक दिन देखना आप ।"
पिताजी की समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मां उन्हें किस बात के लिए इतना सुना रही है । और हारकर उन्होंने मुझे पिकनिक जाने की इजाजत और पिकनिक की फीस से दी ।
मै खुशी खुशी उस दिन स्कूल गई । वो दिन शायद मेरे लिए बहुत अच्छा था । अंकित अभी भी मेरे ही पास बैठता था । उसे ना जाने क्या सूझा उसने फिर मेरी कॉपी ली और बड़े बड़े अक्षरों में सॉरी लिखा ।
मै आश्चर्य से उसकी और देखकर मुस्कुरा दी । उसके चेहरे पर संतोष के भाव आए जैसे वो बस यही मुस्कुराहट देखना चाहता हो ।
मैंने मेरी कॉपी पर , "कोई बात नहीं" लिख दिया
"मुझसे दोस्ती करोगि?"उसने फिर लिखकर कॉपी मेरी तरफ बड़ा दी ।
"हां लेकिन एक बात बताओगे तो ही,,"मैंने लिखकर कॉपी उसकी और बढ़ाई
"क्या" उसने लिख के दिया ।
"इतने समय बाद सॉरी? तुम्हे कैसे पता मुझे तुमसे सॉरी सुनना है"
"मैंने तुम्हे अंजलि से कहते सुना था जब उसने तुमसे पूछा कि बात क्यों नहीं करती अंकित से तब तुमने कहा कि उसकी वजह से उस दिन मुझे डांट पड़ी उसने अब तक सॉरी नही कहा तो मैंने आज कह दिया ।"
जब वह लिख रहा था उसे इतना सारा लिखता देख मेरे मन में उत्सुकता बड़ गई आखिर वह उतना सारा क्या लिख रहा है उसने अपनी बात लिखकर कॉपी मेरी तरफ बड़ा दी ।
उधर कक्षा में टीचर जी क्या पढ़ा रही थी इस पर ना मेरा ध्यान था ना अंकित का लग रहा था जैसे आज फिर उसकी वजह से डांट पड़ेगी मुझे । मैंने कॉपी लेकर जब पढ़ा तो उसे घूरकर देखा और लिखा, "तुम बाते सून रहे थे छुप कर हमारी"
"नहीं नहीं मैं वहीं बैठा था तुम लोगो ने देखा नहीं अब कान बन्द तो कर नहीं सकता था खासकर जब मेरी बात हो रही हो" उसने कॉपी मुझे पास की ।
मैंने लिखा "ठीक है माफ़ किया अब से हम दोस्त है"
वह पढ़कर मुस्कुराया और कुछ लिखने लगा कॉपी मेरे पास आई तो मैने पड़ा, "लेकिन उस दिन आखिर मैने किया क्या था मेरी वजह से तुम्हे डांट कैसे पड़ी भला?" उसने सीधा ये सवाल कर डाला इसका मै क्या जवाब देती? उसे कैसे बताती की उसे देखकर मै खो सी गई थी । मुझे तो अब कुछ समझ नहीं आया । मैंने कुछ जवाब नहीं दिया । उसने कॉपी खींच कर फिर लिखा "बताओ ना"
"कुछ नहीं अभी कक्षा मै ध्यान दो वरना आज फिर मुझे तुम्हारी वजह से डांट पड़ेगी और अब मैं कभी बात नहीं करूंगी उसके बाद" मैंने लिखकर उसे दिया ।
वो शायद अब बात बन्द करने कि रिस्क नहीं लेना चाहता था इसलिए चुपचाप पढ़ने लगा । लेकिन उसके मन में ये सवाल तो आया होगा कि कबसे बात कर रही थी अचानक उसे कक्षा कि चिंता क्यों होने लगी ।

इस तरह मेरी और अंकित की पहली बार बात हुई थी । अब तक मैने अंकित की आवाज़ नहीं सुनी थी । हां ये सच था अंकित से मैंने बात नहीं की थी कभी और वह बहुत धीरे बोलता था ।उसके पास बैठे व्यक्ति को उसकी आवाज़ ना सुनाई दे इतना धीरे बात करता था । इसलिए मैने उसकी आवाज़ नहीं सुनी थी ।
क्या होगा अब आगे जानेंगे अगले भाग में ।