Bazaar - 4 in Hindi Anything by Neeraj Sharma books and stories PDF | बाजार - 4

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बाजार - 4

  (बाजार -4)

सुभाष से मिलने के बाद माया ने कहा था " उसको रोल दो, बस, कही भी फिट करो उसे। "

"इतनी उतावली पहले नहीं देखा, माया --- कया खलनायक का रोल इतना कॉस्टली दू उसे।" सुभाष ने थोड़ा न नुकर सी की।

" तुम्हारे लिए मैंने कया कया नहीं किया... कि आज सब बताने के बाद ऐसा करोगे। " माया के माथे पर त्यूड़ी थी।

सुभाष हसता हुआ बोला --- " ब्यगोट गुस्से मे जचती हो..

कया लगता हैं, उसे ऐसे ही रोल दें दू। दिखा आओगी नहीं दिल्ली के बादशाह सलामत को। "  सुभाष हसते हसते बोला... " हाँ, कल उसे 4 pm को भेज देना, स्क्रीन टेस्ट के लिए। "

"चलो ठीक हैं। " माया सीधी पहले बाजार से शॉप से खरीद कर समान ले कर थ्री वीलर से आपने क्वाटर चले गयी।

                        वहा जाकर देखा तो एक झूला बना डाला था, और लिली की हसी खूब दूर तक कहक्शा लगा कर हस रही थी। माया को देख कर देव थोड़ा थम सा गया था। पता नहीं कयो, वो चुप सा लिली को उतारने लगा था... तभी लिली ने कहा... " माय स्वीटी मोम, थोड़ा सा और झूट ले... " माया ने हाथ से यस कहा। और एक छोटा सा झुटा देव ने लिली को दिया। लिली हसती हुई हवा से जैसे बात कर रही थी। कितना अपनापन देखा था माया ने... अंदर किचन मे समान रखती आखें भर आयी थी उसकी। देव ने कहा --" हाँ कुमुदनी मै थक सा गया हूँ, चलो उतरे अब। " उसने उसे गोद मे उठा लिया था... कुमुदनी ने पता नहीं शरारत से उसे चुम लिया था। -----"कुमुदनी तुम बहुत शरारती हो..." देव ने एक गरिमा भरा चूबन ठोड़ी पर लिया था। देव ने लिली को बेड पर लिटा कर किचन मे माया के पास चले गया था। किचन मे डिबो मे राशन डाल रही, माया ने देखा, " आज थोड़े उखड़े से लगे तुम मुझे। " सुन कर देव ने कहा.... " हाँ.. ज़ब तक आदमी घर पर हो, कुछ करके लाता नहीं मेहनत की रोटी, वो बोझल ही रहेगा... माया जी  "

माया मुस्करा पड़ी... " हाँ सच कल तुम्हारा स्क्रीन शार्ट, 4 pm को, सुभाष के स्टूडियो मे। " सुन कर खुश हो गया.. देव। माया जी देखना कुछ न कुछ जरूर ठोक कर करुँगा... सच मे, बलूदी एक दफा मिलती हैं... पर स्त्री इसके पीछे होती हैं ----- " माया और देव कुछ देर चुप थे।

आज सेट पर जाओ, फिर देखो देव, आपने बलबूते पे लिली का हाथ मांगोगे... " उसने बात काट कर कहा, " माया जी कया यकीन नहीं रहा मुझ पे। " माया सुन कर थोड़ी दो - शब्दों मे उलझ सी गयी। " नहीं यकीन नहीं की कोई बात नहीं, देव। " माया ने निस्कोच कहा-- " तुम खुद कहो, बस यही चाहती हूँ। " मै  सुख से मर सकू, ये कलक ना लगे, कि मैंने कोई सौदा किया हैं, मुझे ऐसा न लगे। " माया ने साफ सत्य ही कहा था। देव ने दुःख भरी गहरी सास लीं ---" आप को कभी भी ऐसा कयो लगता हैं, आप निसंकोच रहे, आप ऐसा कयो  सोचती हैं... "

देव ने कुछ समान पकड़ा कर।