तूम थे पर मेरे ना थे - 1 in Hindi Love Stories by shikha books and stories PDF | तूम थे पर मेरे ना थे - 1

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तूम थे पर मेरे ना थे - 1

विवान सिंह राठौड़, एक ऐसा नाम जिससे दुनिया कांपती थी, आज अपने दादाजी के सामने खड़ा था। हमेशा शांत और मजबूत दिखने वाला वो शख्स आज थोड़ा बेचैन था।
दादाजी ने गहरी आवाज़ में कहा —
"विवान, अब तुझे शादी करनी ही होगी। अगर तूने शादी नहीं की तो मैं तुझे अपनी सारी प्रॉपर्टी से बेदखल कर दूंगा। और वो सब कुछ संजय के बेटे सुमित के नाम कर दूंगा। सोच ले क्या करना है... तेरे पास सिर्फ़ एक हफ्ते का वक्त है।"

विवान बिना कुछ कहे, बस उन्हें देखता रहा। फिर वह धीमे कदमों से वहां से निकल गया — जैसे किसी तूफान से पहले की खामोशी।

दफ्तर पहुँचते ही उसने अपने सबसे भरोसेमंद इंसान, रामेश्वर अंकल को बुलवाया — जो बचपन से उसका साया रहे थे।

"दादाजी ने एक हफ्ते का वक्त दिया है," विवान ने शांत आवाज़ में कहा।

रामेश्वर अंकल ने चिंता जताते हुए कहा —
"एक हफ्ते में शादी करना कोई मज़ाक नहीं है बेटा। तू एक काम कर — शिवानी से शादी कर ले। वो तुझे आज भी पसंद करती है और तूने भी कभी उसे पसंद किया था। घर की लड़की है, दादाजी को भी ऐतराज़ नहीं होगा।"

विवान एक पल को शांत रहा, फिर गहरी निगाहों से रामेश्वर अंकल की तरफ देखा। उसकी आवाज़ में अब सख्ती थी —
"Uncle, मैं ऐसे किसी भी लड़की से शादी नहीं कर सकता जो मुझे कंट्रोल करना चाहती हो, मेरे पैसों पर ऐश करना चाहती हो। और शिवानी भी उन्हीं में से एक है। वो मुझसे प्यार नहीं करती, उसे मेरे नाम और दौलत से लगाव है।"

अंकल कुछ बोलने ही वाले थे कि विवान ने बात पूरी की —
"रिश्ता बनाने और निभाने में फर्क होता है अंकल। किसी के साथ संबंध बना लेना आसान है... लेकिन शादी  नही अगर मैं किसी को अपनी ज़िंदगी में लाऊँगा, तो अपनी शर्तों पर। और शिवानी वैसी लड़की नहीं है जो उस जगह की हकदार हो।"

रामेश्वर अंकल ने गंभीरता से पूछा, "तो फिर क्या करने का सोचा है ?"

विवान ने हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया —
"जो मैं हमेशा करता हूँ — अपने तरीके से खेलता हूँ… और जीतता भी हूँ। अभी मैं कुछ नहीं कहूंगा अंकल, लेकिन जो भी होगा... मेरे ही हिसाब से होगा। दादाजी को शादी चाहिए, और मैं उन्हें शादी दूंगा। लेकिन दुल्हन कौन होगी, ये मैं तय करूंगा — अपने तरीके से।"

रामेश्वर अंकल ने विवान को गौर से देखा, पर उसके चेहरे की गंभीरता और आंखों में छुपी चाल को पढ़ नहीं पाए।

विवान उठ कर अपने ऑफिस की बड़ी खिड़की के पास जा खड़ा हुआ। बाहर मुंबई की चकाचौंध रातें थीं, पर उसके मन में जो चल रहा था वो किसी सुनामी से कम नहीं था।

उसके पास ज्यादा समय नहीं था इसलिए वो इस समय काफी परेशान हो रहा है.

उसके लिए जितना जरूरी दादा जी की प्रोपरटी थी उससे भी कई ज्यादा जरुरी दादा जी की सेहत थी..
वो वीना कुछ बोले दादा जी को आ तो गया था..
लेकीन विवान जानता था की दादा जी भी परेशान है..

अव आगे क्या होगा विवान किससे करेगा शादी या फिर चली जाऐगी उसके हाथ से प्रोपरटी...
जानने के लिए जूडे रहिऐ इस काहानी के साथ