Tees - I saw her for the first time - 1 in Hindi Classic Stories by Shayar KK Shrivastava books and stories PDF | टीस - पहली बार देखा था उसे - 1

Featured Books
  • Shadows Of Love - 18

    टूटते मंदिर के धुएँ और राख से घिरी घाटी में जब करन और अनाया...

  • तेरे मेरे दरमियान - 42

    दुसरा बदमास कहता है --->" अरे मेरी जान , इतनी खुबसूरती का क्...

  • और एक बार की सनक

       अपनी असफलता के लिए सिर्फ भाग्य को कोसते-कोसते, वह अपने आप...

  • BTS Femily Forever - 11

    Next Ep,,,  Jimin घबरा कर हड़बड़ाते हुए "ह,न,,नहीं नहीं मै त...

  • सुख की कामना

    सुख की कामना लेखक: विजय शर्मा एरी(लगभग १५०० शब्दों की कहानी)...

Categories
Share

टीस - पहली बार देखा था उसे - 1

📝 एपिसोड 1

शीर्षक: पहली बार देखा था उसे...

"कभी-कभी कुछ लोग ज़िंदगी में यूँ दाख़िल होते हैं जैसे हवा— वे नज़र तो नहीं आते, मगर महसूस होते हैं।"

कॉलेज का पहला दिन था। नई जगह, नए चेहरे, और पुराने ख़्याल जो मन में उथल-पुथल मचाए बैठे थे। भीड़ के बीच मैं खड़ी थी — अपनी ही उलझनों में लिपटी, जब मेरी नज़र उससे टकराई।

वो लड़का, जो क्लास की सबसे पिछली बेंच पर बैठा था, किताबें उसके सामने पड़ी थीं मगर उसकी निगाहें दूर खिड़की से बाहर देख रही थीं । उसकी खामोश निगाहें किसी की जिज्ञासा बढ़ा रही थीं जैसे कुछ कह रही हों । उसका चेहरा उस स्याह की तरह था जिसके अंदर कोई कहानी सांस ले रही हो जिसका शीर्षक समझना कठिन लग रहा था।
पहली बार मुझे किसी की ख़ामोशी में इतनी आवाज़ सुनाई दी थी। इतनी... कि उसकी तस्वीर किसी विषय की तरह आज मेरे मन में बैठ गई।
कॉलेज से घर जाते वक़्त दुकानें, सड़कें, गलियां ट्रैफिक कुछ नज़र नहीं आ रहा था..आज कब घर आ गई पता ही नहीं चला। ऑटो के ब्रेक लगते ही जैसे मैं नींद से जाग गई। कमरे की सीढ़ियां चढ़कर मैंने बैग टेबल पर रखा और चेहरे पर पानी मारने के बाद ख़ुद को आईने में देखा। मैंने एक गहरी सांस भरकर ख़ुद को आईने में देखा और ख़ुद से ही सवाल किया - हर रोज़ अपनी किताब पढ़नेवाली आज ये क्या पढ़ने की कोशिश करने लगी... मैंने एक और बार पानी अपने चेहरे पर मारा। 


जेठ के बादलों की तरह वक्त भी गुज़रता गया।  कुछ दिनों बाद हम एक साहित्यिक कार्यक्रम में मिले।

वो शायरी पढ़ रहा था:

"निगाहें ख़ामोश और मन परेशान रहता है...
तेरे आने की हसरत है तेरा इंतेज़ार रहता है..."

हर शब्द सीधे दिल में उतर रहा था।
मुझे नहीं पता क्यों, पर उस दिन से मैं उसकी शायरी की मुरीद बन गई।

हमारी बातें शुरू हुईं — किताबों से, काव्य से, मौसम से, मिज़ाज से… और कुछ अधूरे ख्वाब से।

हर बार जब मैं उसके करीब जाने की कोशिश करती, वो एक क़दम और दूर हो जाता।
जैसे कोई राज़ था, जो वो छुपा रहा था... या शायद बचा रहा था।


वो बहुत कम बोलता था। पर जब भी कुछ कहता, उसकी आंखें पहले बोल पड़ती थीं।
एक दिन मैंने उससे पूछ ही लिया,

> "तुम इतने चुप क्यों रहते हो?"

उसने सिर्फ मुस्कुराकर कहा:
" बात कह देने से एहसास लफ़्ज़ के मोहताज़ रह जाते हैं। कुछ बातें बोलने से लय ख़राब हो जाती हैं अदिति। बोलो नहीं बस महसूस करो..."


उस शाम के बाद हम अक्सर साथ बैठते, बातें कम होतीं, ख़ामोशियां ज़्यादा। उसके साथ की ख़ामोशी हर ख़ामोशी से अलग हुआ करती थी।
उन ख़ामोशियों में जो जुड़ाव था, उसे मैं कभी नहीं भुला सकती। 

एक लड़की सिर्फ़ देखकर महसूस करना जानती है, मगर उसके आशिक़ का यूं बे-लफ़्ज़ रहना उसे ज़्यादा देर तक गवारा नहीं होता।

वो लड़का धीरे-धीरे मेरे दिल के उस कोने में बसता गया जहाँ सिर्फ सुकून रहता है… मगर साथ ही एक टीस भी।

"तेरी ख़ामोशी ही सबसे बड़ा इज़हार थी,
हम समझ बैठे इश्क़ की पुकार थी।
तू बोलता नहीं था मगर हर बात कह जाता था,
तेरी हर नज़र में बस मेरी ही दरकार थी..."