Nehru Files - 79 in Hindi Anything by Rachel Abraham books and stories PDF | नेहरू फाइल्स - भूल-79

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नेहरू फाइल्स - भूल-79

[ 8. शैक्षिक और सांस्कृतिक कुप्रबंधन ]

भूल-79 
शिक्षा की अनदेखी, विशेषकर सार्वभौमिक शिक्षा 

नेहरूवादी युग के दौरान शिक्षा, विशेषकर प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा, की उपेक्षा ने एक समृद्ध, उभरते हुए देश और एक प्रबुद्ध, वास्तविक लोकतंत्र के रूप में भारत के भविष्य का गला घोंट दिया। जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देशों ने समृद्ध होने के लिए सबसे पहले जो काम किए, उनमें से एक था—शिक्षा (जन शिक्षा एवं उच्‍च शिक्षा दोनों) पर ध्यान केंद्रित करना। नेहरू विकास के लिए सिर्फ एक ही सूत्र जानते थे—समाजवाद और सार्वजनिक क्षेत्र, जो भारत को बरबादी की राह पर ले गया।

इस बात पर ध्यान दीजिए कि नेहरू और गांधियों के निर्वाचन क्षेत्र कितने पिछड़े हुए हैं; जबकि वे दशकों से उन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। सार्वभौमिक साक्षरता और जागरूक जनता दो ऐसे कारक थे, जिनके चलते नेहरू राजवंश आगे नहीं बढ़ सकता था। इसलिए, ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने अशिक्षा और अपर्याप्त शैक्षिक बुनियादी ढाँचे को देश भर में फैल जाने दिया। 

नेहरू के राज में शिक्षा एक विशिष्ट वर्ग के लिए सीमित हो गई। एच.एम.टी. (हिंदी माध्यम वाले) और ई.एम.टी. (अंग्रेजी माध्यम वाले) के बीच एक बेहद अफसोसजनक वर्गीकरण था, जिसमें ई.एम.टी. में अधिक सुविधाएँ और अवसर मौजूद थे। शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने की दिशा में बहुत कम प्रयास किए गए। नीतिगत प्रतिबंधों और नेहरूवादियों द्वारा फैलाए गए नौकरशाही के चक्रव्यूह ने शिक्षा में निजी क्षेत्र के लिए अतिरिक्त भूमिका सुनिश्चित की और इसके परिणामस्वरूप पहले से सीमित शैक्षिक क्षेत्र को और अधिक सीमित कर दिया। 

एम.डी. नालापत कहते हैं, “नेहरूवादी शिक्षा की प्रणाली ने गरीबों को अंग्रेजी पढ़ाने के सरकारी वित्त-पोषित अवसर को छीन लिया, जिसके चलते इस भाषा में धाराप्रवाहिता और वैश्विक लाभ अपेक्षाकृत संपन्न लोगों की बपौती बनकर रह गए।” (यू.आर.एल.106) 

अतानु डे ने लिखा—“संपत्ति और साक्षरता के बीच का सकारात्मक सह-संबंध करणीय संबंध सुझाता है। उस समय की सरकार की तमाम बेवकूफियों के चलते (नेहरू और उनके निकम्मे चापलूसों के झुंड की बदौलत) यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत एक दशक के भीतर 100 प्रतिशत साक्षर न हो जाए, क्या मैंने ऐसा कहा कि नेहरू अक्षम थे? माफ कीजिए, मेरा मतलब था कि नेहरू आपराधिक तौर पर अक्षम थे।” (यू.आर.एल.35ए) 

आई.आई.टी., आई.आई.एम., ए.आई.आई.एम.एस., 
आर. ऐंड डी., एस. ऐंड टी.—नेहरू की देन नहीं हैं 

जहाँ तक नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की बात है तो वे राजकुमार अमृत कौर थीं, जो इसकी स्थापना के पीछे का सबसे बड़ा कारण थीं और इसकी पहली अध्यक्ष बनीं। (यू.आर.एल.100) भारत के सन् 1947 में कड़ी मेहनत से स्वतंत्रता प्राप्त कर लेने के बाद कौर भारत में केंद्रीय मंत्री पद सँभालनेवाली पहली महिला बनीं। उन्होंने देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री के रूप में ट्‍यूबरक्लोसिस एसोसिएशन अ‍ॉफ इंडिया, इंडियन काउंसिल अ‍ॉफ चाइल्ड वेलफेयर, सेंट्रल लैप्रोसी ऐंड रिसर्च इंस्टीट्‍यूट तथा राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज अ‍ॉफ नर्सिंग की स्थापना की। हालाँकि, उन्हें सबसे अधिक उस स्वप्नदर्शी के रूप में जाना जाता है, जो एम्स AIIMS के अस्तित्व में आने की वजह हैं। कौर को सन् 1950 में विश्व स्वास्थ्य सभा (डब्‍ल्यू.एच.ओ. को नियंत्रित करनेवाला) की अध्यक्षा चुना गया। वे इस प्रतिष्ठित पद को सँभालनेवाली पहली महिला और पहली एशियाई बनीं। उन्होंने सात साल बाद एम्स की स्थापना करने के लिए न्यूजीलैंड, अ‍ॉस्ट्रेलिया, स्वीडन, पश्चिम जर्मनी और अमेरिका से सहायता प्राप्त की।

नेहरूवादी इस बात पर अकड़ते हैं कि आई.आई.टी. और आई.आई.एम. की स्थापना नेहरूवादी युग के दौरान हुई। सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ पाँच आई.आई.टी. और सिर्फ कुछ चुनिंदा आई.आई.एम. भारत जैसे बड़े आकार वाले देश के लिए पर्याप्त थे? क्या प्रत्येक राज्य में कई आई.आई.टी. और आई.आई.एम. की स्थापना नहीं की जानी चाहिए थी? संयोग से, स्वतंत्रता से पूर्व ही सी.एस.आई.आर. और आई.आई.टी. की अवधारणा करनेवाले व्यक्तियों में शामिल लोगों में से एक थे—वायसराय की कार्यकारी परिषद् (वी.ई.सी.) के सदस्य सर आर्देशिर दलाल। बाद में इस विचार को वी.ई.सी. के ही सर बी.सी. रॉय, सर जे.सी. घोष, सर जोगेंद्र सिंह के साथ सर नलिनी रंजन सरकार, एल.एस. चंद्रकांत और बिमान सेन द्वारा आगे बढ़ाया गया। (यू.आर.एल.73) 

SundayGuardianLive.com के एक लेख के अंश—
 “वास्तव में, यह अरकोट रामास्वामी मुदलियार की दूरदृष्टि और प्रयासों का ही नतीजा था कि वैज्ञानिक परिषद् और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् वर्ष 1940 में अस्तित्व में आई और वह डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी थे, जिन्होंने इसे बनाया। डॉ. मुकर्जी द्वारा कई प्रयोगशालाएँ स्थापित की गईं, जिनमें राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला, ईंधन अनुसंधान संस्थान, सिरेमिक अनुसंधान संस्थान, केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान और केंद्रीय इलेक्ट्रो रासायनिक अनुसंधान संस्थान शामिल हैं। 

“1940 के दशक तक भारत के पास वैज्ञानिक गतिविधियों को समर्थन देने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचा पहले से ही मौजूद था और इसके अलावा, भारत की हिंदू सभ्यता ने हजारों वर्षों के दौरान कई वैज्ञानिक विचार और वैज्ञानिकों को जन्म दिया था। पं. मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, इंडियन इंस्टीट्‍यूट अ‍ॉफ साइंस, सन् 1876 में स्थापित किया गया इंडियन एसोसिएशन अ‍ॉफ द कल्टिवेशन अ‍ॉफ साइंस, भारतीय सांख्यिकी संस्थान का केंद्र और टाटा इंस्टीट्‍यूट अ‍ॉफ फंडामेंटल रिसर्च—ये सभी नेहरू के दौर से पहले से ही कार्यरत थे; लेकिन नेहरू और उनके समर्थक इन प्रतिष्ठानों के निर्माण का श्रेय लूटते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की स्थापना वालचंद हीराचंद द्वारा एक निजी व्यवसाय के रूप में की गई थी; इसने युद्ध के समय ब्रिटेन को अत्याधुनिक विमानों की आपूर्ति की थी, लेकिन एक बार सरकार के हाथों में जाने के बाद इसकी स्थिति भी दिनोदिन बिगड़ती ही चली गई। 

“भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की स्थापना में भी जवाहरलाल नेहरू की कोई भूमिका नहीं थी। एक तरफ जहाँ सन् 1945 की एन.एम. सरकार कमेटी की रिपोर्ट में आई.आई.टी. के प्रारंभ की बात की गई थी तो चिकित्सीय संस्थानों की स्थापना के प्रति नेहरू की उदासीनता डॉ. मुकर्जी और एन.जी. रंगा के बीच संविधान सभा में बहस में सामने आ गई थी। डॉ. मुकर्जी ने जब इस बात का उल्लेख किया कि अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान की स्थापना के लिए डॉ. अरकोट लक्ष्मणस्वामी मुदलियार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है तो एन.जी. रंगा ने दिल्ली में अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान के निर्माण के विरोध में नेहरू के उस बयान पर प्रकाश डाला, जिसमें उन्होंने कहा था कि पहले आवास की समस्या का हल निकाला जाना चाहिए। 

“इसी संकुचित दृष्टिकोण के चलते नेहरू अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् के प्रबंध संस्थानों को स्थापित करने की सिफारिशों को लेकर उदासीन बने रहे। 

“नेहरू की विज्ञान के प्रति उदासीनता और ‘समाजवादी’ छद्म विज्ञान को उनके समर्थन का सबसे जीवंत उदाहरण है—श्रीनिवास सौरिराजन एवं अन्य वैज्ञानिकों के प्रति उनका रवैया और व्यवहार। नेहरू ने अपने समर्थकों को आगे बढ़ाया और उन्हें प्रमुख पदों पर आसीन कर दिया, जिन्होंने अगले कुछ दशकों में ही भारतीय वैज्ञानिक संस्थानों को अपने प्रभाव में ले लिया। बहुत जल्द ही ‘विज्ञान पूँजीपति वर्ग’ की शिकायतें सामने आने लगीं, जो उत्पीड़क थे और जिन्होंने प्रतिभा को कुचला, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में वैज्ञानिक देश छोड़ने को मजबूर हो गए; एक ऐसी समस्या, जिसे ‘प्रतिभा-पलायन’ का नाम दिया गया। 

“इसके अलावा, नेहरू ने मिसाइलों और परमाणु बम को हासिल करने का भी विरोध किया।” (डब्‍ल्यू.एन.16)