Antarnihit 21 in Hindi Classic Stories by Vrajesh Shashikant Dave books and stories PDF | अन्तर्निहित - 21

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अन्तर्निहित - 21

[21]

येला की कार्यशाला में भोजन के उपरांत सारा तथा शैल चिंतन करने लगे कि अब इस मंजूषा में आगे कैसे बढ़ा जाए? दोनों में से किसी को भी कोई मार्ग दिख नहीं रह था। दोनों इसी कारण मौन थे। तभी उर्मिला ने आकर कहा, “आप जब जाना चाहो, हमारा वाहन आप को स्टेशन तक छोड़ देगा।”

सुनते ही दोनों को झटका लगा, “हम को यहाँ से जाने का आदेश दे रही है येला।” सारा ने कहा। 

“तो हमें चले जाना चाहिए।”

“बात तो ठीक है किन्तु..।” सारा रुकी। घड़ी भर विचार कर बोली, “हमें यहाँ से चलना ही चाहिए। यही उचित होगा, हैं न?” 

“आप जो बात किन्तु शब्द के पश्चात करना चाहती थी वह क्या है?”

“कुछ नहीं। वह तो..।”

“कहो, जो भी बात है।” 

“मेरा मत है कि वत्सर को भी साथ ले चलें?” शैल ने सारा की तरफ देखा। शैल की आँखों में चमक थी, कुटिल स्मित अधरों पर। सारा उन भावों का अर्थ समझती थी। उसने भी कुटिल प्रतिभव दिया। 

“उर्मिला, हम अभी येला से मिलना चाहते हैं। कहाँ होगी वह?” शैल ने पूछा । 

“मैं उसे सूचना देती हूँ। आप मेरे साथ चलें।” दोनों उर्मिला के पीछे येला के कक्ष में गए। वत्सर वहीं था। 

“येला, हम कल प्रात: काल यहाँ से जाना चाहेंगे।”

“ठीक है। आप दोनों के लिए उचित्त व्यवस्था कर दी जाएगी।”

“दो नहीं, तीन व्यक्तियों के लिए व्यवस्था करनी होगी आपको।”

“तीसरा कौन?”

“वत्सर! वह भी हमारे साथ फिरोजपुर चल रहा है।” शैल ने वत्सर के मुख भावों को देखा। वह स्थिर था। शैल के शब्दों से बिल्कुल अविचल। शैल और सारा के लिए वत्सर की स्थितप्रज्ञता विचलित करने वाली थी। 

“वत्सर, क्या तुम भी दोनों के साथ जाने को तत्पर हो?”

येला को उत्तर देते हुए वत्सर ने कहा, “इस मंजूषा के अन्वेषण में मैं मेरा प्रत्येक दायित्व निभाने को सदैव तत्पर रहूँगा।”

“किन्तु बिना किसी प्रमाण के, बिना किसी वैधानिक आधार के वह तुम्हें कैसे ले जा सकते हैं?”

“येला जी, हम वत्सर को बंदी नहीं बना रहे हैं। केवल कुछ औपचारिकताएं पूर्ण करके उसे मुक्त कर देंगे।” शैल ने आश्वस्त किया। 

“शैल, आप के व्यवहार को मैं देख चुकी हूँ। अत: आपके आश्वासन से मैं आश्वस्त नहीं हो सकती।”

“हम चाहें तो आपको भी बलात साथ ले जा सकते हैं। किसी को भी ले जा सकते हैं।” सारा ने अपना पुलिसवाला चरित्र प्रकट कर दिया। 

“सारा, मैं इस दश में वर्षों से रह रही हूँ। अब तो मैं इस देश की नागरिक भी हूँ। यहाँ के नियम, यहाँ के विविध विधि विधान से पूर्ण रूप से परिचित हूँ। आप भी इससे परिचय कर लें तो उचित होगा क्यों कि इस मंजूषा के अन्वेषण में आपको इसकी आवश्यकता पड़ने वाली है।”

सारा को येला के शब्दों से गहरा आघात लगा। 

“मेरे विदेशी होने के कारण येला मुझे ऐसे शब्दों से प्रहार कर रही है। काश! मैं भी भारतीय होती।” सारा ने कहा। 

“सारा जी, आप मूलत: भारतीय ही हैं।” शैल ने कहा। 

“येला, आप तो अभी अभी इस देश की नागरिक बनी हो। मैं तो मूलत: भारतीय ही हूँ।”

“आप थीं। अब नहीं हो। यह स्मरण रखो सारा जी। यह अधिकार आप 1947 में ही खो चुकी हो।”

सारा के पास इस तर्क का कोई उत्तर नहीं था, वह मौन हो गई। 

“वत्सर, आप को हमारे साथ चलना होगा, कल ही।” शैल ने आदेश दे दिया। 

“ऐसे आप उसे नहीं ले जा सकते, इन्स्पेक्टर शैल।” 

“येला, उन्हें अपना काम करने दो। तुम निश्चिंत रहो। मुझे कुछ नहीं होगा। मुझे मेरे कृष्ण पर, उसके न्याय पर पूर्ण विश्वास है।” वत्सर ने अपने अधरों पर बाँसुरी लगा दी। पहाड़ों की घाटियों में बाँसुरी के स्वर के साथ रात व्यतीत होने लगी। प्रात: काल येला ने तीनों को विदा कर दिया। 

***** ***** 

“श्रीमान, सतलुज वाली मंजूषा का पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट आ गया है।” 

“कहाँ है?” 

“अभी लाकर देता हु।“ विजेंदर चल गया। शीघ्र ही वह शैल के पास लौट आया। 

“क्या मैं इसे देख सकती हूँ?” 

“देख लीजिए, साराजी। इसमें कुछ भी नहीं है।” विजेंदर ने कहा। 

“क्या?” सारा और शैल एक साथ बोल पड़े। 

“मेरा तात्पर्य ..।”

“रिपोर्ट में कुछ भी नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता है?” शैल ने पुछा । 

“जी, आप स्वयं इसे देख लीजिए।” विजेंदर ने रिपोर्ट धर दी। 

सारा ने विजेंदर से रिपोर्ट ली और उसे पढ़ने लगी। शैल सारा के मुख के भावों को पढ़ने लगा। विजेंदर चला गया। 

रिपोर्ट पढ़ने से सारा को कोई दिशा नहीं मिली, न ही सारा के मुख को पढ़कर शैल को कोई दिशा मिली। सारा ने उस रिपोर्ट को बंद कर टेबल पर रख दी। शैल की तरफ देखा, शैल की आँखों में प्रश्न था – ‘क्या कहती है यह रिपोर्ट?’ 

सारा की आँखों में उत्तर था – ‘रिपोर्ट कुछ नहीं कह रही है।’

कुछ क्षण व्यतीत हो गए। दोनों विचार करने लगे। सहसा शैल ने रिपोर्ट उठाई और उसे पढ़ने लगा। पढ़कर बंद कर दिया। 

“वास्तव में इस रिपोर्ट में कुछ नहीं है। इससे अन्वेषण को तो कोई दिशा नहीं मिल रही।”

“शैल, मृत्यु कैसे हुई? कहाँ हुई? कब हुई? देह पर कोई घाव के या रक्त के कोई चिह्न आदि विषय पर कुछ भी नहीं बता रहा यह रिपोर्ट।”

“लिखा है कि पानी के बहाव से क्षत विक्षत इस देह में रक्त शेष नहीं रहा है। घाव के भी कोई संकेत नहीं है। इसकी मृत्यु के पश्चात अधिक समय व्यतीत हो गया है कि कोई स्पष्ट संकेत प्राप्त करना संभव नहीं है।”

“और अंत में लिखते हैं कि – कोई निर्णय नहीं निकलता है अत: इसकी फोरेंसिक जांच कराने का परामर्श दिया जाता है।” 

“क्या काम का यह रिपोर्ट?” सारा ने निराशा प्रकट की। 

“इस रिपोर्ट में इतना सब लिखा है तो एक पंक्ति और जोड़ देते तो ठीक होता।”

“कौन सी पंक्ति, शैल?”

“यही कि – संभव है कि इसकी मृत्यु प्राकृतिक रूप से हुई हो।”

“इससे से क्या होता?”

“इस संभावना को पकड़कर इस मंजूषा को बंद कर देते। बात वहीं सम्पन्न हो जाती। आप अपने देश चली जाती, मैं अपने मुख्यालय लौट जाता।”

“नहीं ..।” सारा चीख पड़ी।