⭐ ▲ चित्रा की पहली शादी — दर्द, अपमान और टूटन
चित्रा की शादी को दो महीने भी नहीं हुए थे।
पर ससुराल वालों का असली चेहरा उसी दिन दिखाई दे गया।
पति मानवीर एक ऐसा आदमी था
जो अपना घर बसाने की जगह
बाहर औरतों में दिल लगाता था।
वह दिन-रात
किसी न किसी रखैल के साथ रहता—
और दोष किस पर डालता?
चित्रा पर।
गंदी बातें, गंदे इल्ज़ाम,
और हर रोज़ नए ताने…
फिर भी चित्रा चुप रही—
“शायद मेरा पति सुधर जाए।”
“शायद मेरा घर बच जाए।”
1 महीने, 6 महीने,
पूरा 1 साल…
चित्रा ने अपनी शादी को खींच लिया, सिर्फ एक उम्मीद पर।
लेकिन एक दिन—
उम्मीद की मौत हो गई।
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⭐ ▲ वह दिन जब चित्रा की दुनिया लुट गई
एक शाम मानवीर ने उसके हाथों पर काग़ज़ रख दिए—
तलाक़ के कागज़।
चित्रा जैसे पत्थर बन गई।
पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी थी।
रोते हुए उसने पूछा—
“मेरी कौन-सी कमी रह गई थी मानवी?
मैंने तुम्हें सब कुछ दिया… तुम्हारी हर गलती सहती रही…
फिर क्यों?”
मानवीर हँसा।
ठंडा, क्रूर हँसी।
“तुम मेरी रोशनी जैसी नहीं हो सकती।
मेरी नई दुल्हन… मेरी असल मोहब्बत…
वही मेरी पत्नी है।
तुम नहीं।”
उसके शब्द
चित्रा के दिल पर हथौड़े की तरह लगे।
ससुराल ने भी साथ नहीं दिया।
सास ने तो साफ कहा था—
“मैं अपनी बहू की दूसरी शादी करवाकर ही दम लूँगी।
तुझे इस घर से निकलना होगा।”
और आखिरकार
चित्रा को घर से निकाल दिया गया।
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⭐ ▲ मायके में भी कोई ठिकाना नहीं
चित्रा रोती हुई अपनी माँ के घर पहुँची।
पर वहाँ भी शांति नहीं मिली।
रिश्तेदारों की फुसफुसाहट—
“नई लड़की है… साल भर हो गया…
कब तक इस घर में रहेगी?”
“अब इसके हाथ पीले करने ही पड़ेंगे…”
माँ की आँखों में दर्द था।
वह रात को रोते हुए बोली—
“जब तक मैं हूँ, तुझे सहारा है बेटी।
पर मेरे बाद?
तू कहाँ जाएगी? किस पर टिकेगी?”
यह बात चित्रा को भीतर तक चीर गई।
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⭐ ▲ परिवार का फ़ैसला — दिव्यम की ओर कदम
चित्रा के मामा ने एक रिश्ता सुझाया—
दूसरे शहर से, दूर परिवार का रिश्तेदार दिव्यम।
उन्होंने सच-सच बताया—
दिव्यम की पत्नी अंशिका मर चुकी है
एक छोटा बच्चा है
दिव्यम अच्छा है, इमानदार है
बच्चे को “मां” की जरूरत है,
पत्नी की नहीं।
लेकिन चित्रा ने इनकार कर दिया।
“मेरे लिए पति एक ही है…
तलाक़ हो गया, पर मेरे मन में नहीं।”
“मैं दूसरी शादी नहीं करूँगी।”
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⭐ ▲ आखिरी समझाइश
माँ ने सिर सहलाते हुए कहा—
“बेटा, शादी सिर्फ रस्म नहीं।
जिंदगी भर का सहारा है।
तेरा पहला पति तुझे यातना देकर गया है।
क्या तू वही दर्द जिंदगी भर ढोएगी?”
सहेलियों ने भी समझाया—
“दिव्यम वैसा नहीं है।
वह अच्छा इंसान है।
कम से कम एक बार देख तो लो।”
एक महीना…
काफी आँसू…
काफी संघर्ष…
और फिर
चित्रा ने धीरे से कहा—
“ठीक है… मैं शादी करूंगी।
पर दिल कभी नहीं दूँगी।”
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⭐ ▲ दिव्यम की मजबूरी
दिव्यम भी शादी नहीं करना चाहता था।
पर घर की हालत ने उसे मजबूर कर दिया—
बूढ़े पिता जिन्हें देखभाल चाहिए
एक छोटा बच्चा
क्रोधित, लापरवाह भाभी
रोज़ की लड़ाई, तनाव
बाहर नौकरी, यात्रा
बच्चे को माँ का प्यार चाहिए था,
दिव्यम को नहीं।
दिव्यम बोला—
“मैं पत्नी तो ला सकता हूँ…
पर दिल नहीं दे सकता।”
और इसी तरह
दो लोग—
दो टूटे हुए दिल—
एक मजबूरी—
एक रिश्ता—
एक छत के नीचे आ गए।
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“दो वचन, एक सच”
चित्रा अपने अतीत में खोई हुई थी।
आँखें खुली थीं…
पर वह उस कमरे में नहीं थी।
तभी दिव्यम ने हल्की-सी आवाज़ में कहा—
“तुम्हें कुछ खाना है?”
चित्रा जैसे चौंक गई।
नई दुल्हन की झिझक…
पुराने दर्द की परछाईं…
उसने सिर झुका लिया।
“न… नहीं।”
दिव्यम कुछ पल चुप रहा।
फिर जैसे उसने अपने भीतर का बोझ उतारने का फैसला कर लिया।
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🕯️ दिव्यम का सच
“चित्रा…”
उसकी आवाज़ भारी थी।
“मैं तुम्हें कुछ साफ़-साफ़ बताना चाहता हूँ।
ताकि आगे कभी कोई भ्रम न रहे।”
चित्रा ने चुपचाप उसकी ओर देखा।
दिव्यम बोला—
“मैं तुम्हें कभी छोड़ूंगा नहीं।
लेकिन…
मैं तुम्हें अपना दिल भी नहीं दे पाऊंगा।”
चित्रा की पलकें काँप गईं।
“मेरा पहला प्रेम…
मेरी पत्नी अंशिका…”
उसकी आवाज़ भर्रा गई।
“वह चली गई इस दुनिया से।
पर मेरा प्यार…
मेरा सब कुछ…
आज भी वही है।”
उसने गहरी साँस ली।
“उसकी जगह तुम कभी नहीं ले पाओगी।
मैं प्यार नहीं कर पाऊंगा…
पति जैसा हक़ नहीं जता पाऊंगा।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
“मैंने शादी सिर्फ इसलिए की है…
क्योंकि मेरे बच्चे को माँ चाहिए थी।
बस एक माँ।”
दिव्यम ने सिर झुकाकर कहा—
“मैं तुमसे बस इतनी प्रार्थना करता हूँ—
मेरे बच्चे को अपना समझकर पाल लेना।
मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा।”