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मम्मटिया - 2

मम्मटिया

By

धर्मेन्द्र राजमंगल

आदिराज अपने घर पहुंचा तो शोभराज को सामने बैठा पाया. आदिराज ने सारी बात अपने भाई को कह सुनाई. शोभराज का मन खिल उठा. जिस काम को करने के लिए दोनों भाई अपनी जी जान लगा चुके थे और वो हुआ भी नही था लेकिन आज वही काम इतनी आसानी से हो गया था. जिसका अंदाज़ा इन लोगों को सपने में भी नही था लेकिन अभी काम इतना आसन भी नही था.

शोभराज के दिमाग में सौ तरह के सवाल थे और मुश्किलों की तो बाढ़ सी थी. अपने बड़े भाई से बोला, “भाईसाहब हम लोग इस काम को जितना आसान समझ रहे हैं दरअसल ये काम इतना आसन नही है. आज हम लोग रणवीर के इलाज में पैसा दे दें तो भी उसकी जमीन लिखवाना इतना आसान नही होगा. रणवीर ठीक होते ही हमारे पैसे बापिस कर सकता है. साथ ही रणवीर यह भी सवाल उठा सकता है कि इतने रूपये खर्च कहाँ हुए जितने आप लोगों ने लिखे हैं. हमें कुछ और सोचना पड़ेगा.”

आदिराज को अपने छोटे भाई की बात सच लगी लेकिन फिर ऐसा क्या किया जाय जिससे रणवीर की जमीन हडपी जा सके. आदिराज सोचते हुए अपने भाई से बोला, “शोभराज तुम्हारे हिसाब से कोई और तरकीब है जिससे सब कुछ ठीक हो सके. क्योंकि यही मौका है जब हम रणवीर से उसकी जमीन हथिया सकते हैं.”

शोभराज ने सोचते हुए हाँ में सर हिला दिया. बोला, “तरकीब तो है भाईसाहब लेकिन उसको करना कैसे है ये मुझको नही पता. अगर आप कुछ कर सको तो बताउं?”

आदिराज तो ऐसी तरकीब सुनने को बेताब था जिससे उसके मंसूबे सफल हो सकें. बोला, “अरे भाई शोभराज मेरे लिए कोई काम कठिन नही. कम से कम ये काम खेत में हल चलाने से तो सरल होगा न. तू बता डाल. मैं इस सब के लिए कोई भी काम करने को तैयार हूँ.”

आदिराज के चेहरे पर राक्षसपना साफ़ झलक रहा था. अंदर से कुछ ऐसी उत्तेजना थी जो बता रही थी कि वो रणवीर की जमीन को अपना करने के लिए कुछ भी कर सकता है.

शोभराज बड़े आत्मविश्वास से बोला, “रणवीर किसी तरह मर जाय तो अपना काम बहुत आसान हो जायेगा और उसे मारने के लिए हमें ही कुछ करना पड़ेगा. क्योंकि उसकी बीमारी इतना बड़ी नही जो उसकी जान ले सके. अगर आप मेरी राय जानना चाहें तो में रणवीर को जहर देने की बात कहूँगा. अगर किसी तरह आप रणवीर को जहर दे दें तो हमारी योजना बड़े आराम से पूरी हो जाएगी.”

आदिराज कितना ही निकम्मा था लेकिन उसके दिल में इतनी हिम्मत नही थी कि रणवीर के घर जा उसको जहर खिला सके. बोला, “अरे पागल हो गया है तू शोभराज? मैं रणवीर को जहर खिलाऊंगा तो किसी को पता नही पड़ेगा और किसी को पता पड़ा तो में जेल में होऊंगा और जमीन भी मिलने से रही. नही भाई तेरी ये योजना मुझे खतरे से भरी लगती है. कोई और तरकीब हो तो बता?”

शोभराज अपने भाई को समझता हुआ बोला, “अरे भाई साहब पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो. मैं जिस जहर की बार कर रहा हूँ वो ये जहर नही है जो आप समझ रहे हो. मेरे पास किसी और तरह का जहर है. इस जहर से आदमी तुरंत नही मरता.

कम से कम एकाध घंटे में इसका असर होना शुरू होता है. ये समझो कि मैं जो जहर आपको दूंगा उसमे जहर की मात्रा बहुत कम होगी. इस कारण वो एकदम से ज्यादा दिक्कत नही करेगा लेकिन रणवीर दिल्ली तक जाते जाते मर जायेगा.”

आदिराज अपने छोटे भाई की बात ध्यान से सुन रहा था. बोला, “लेकिन मैं ये जहर रणवीर को खिलाऊंगा कैसे?” शोभराज ने थोडा सोचा और बोला, “देखो. रणवीर के लगातार दर्द तो होता ही है और जब हम लोग उसे दिल्ली लेकर चलने लगेंगे तो मेरी दी हुई जहर वाली दवाई तुम ये कहकर खिलाना कि ये दर्द की दवाई है. मुझे पूरी उम्मीद है कि ये तरकीब बहुत जबरदस्त रहेगी. रणवीर की हालत खराब तो है ही. अगर वो रास्ते में मर भी गया तो कोई हम पर शक नही करेगा.”

आदिराज का मन हल्का होकर खिल उठा. वो इस काम को बहुत कठिन समझ रहा था लेकिन शोभराज ने चुटकियों सरल कर दिया. आदिराज बोला, “तो फिर वो जहर मुझे जल्दी से दे दे और तू भी मेरे साथ चल. उस रणवीर को दिल्ली लेकर चलना होगा. मैं पैसे ले लूँ तू वो जहर ला.” इतना कह आदिराज अपने कमरे में घुस गया. शोभराज भी उठकर चला गया. दोनों के दिमाग शातिरों की तरह तेज चल रहे थे.

थोड़ी ही देर में दोनों एक जगह आ इकट्ठे हो गये. आदिराज हाथ में पैसों का बटुआ लिए था और शोभराज हाथ में कागज की छोटी सी पुडिया. आदिराज ने हैरत में भर शोभराज से पूंछा, “शोभराज क्या तेरे दिमाग में ये प्लान पहले से था जो तू ये जहर लिए घूम रहा था?” शोभराज की आँखों में लाली थी. बोला, “मुझे महीने भर से इस दिन का इन्तजार था लेकिन कोई ऐसा मौका नही मिला जब मैं आपको ये सब बता पाता.”

आदिराज अपने भाई के दिमाग पर गर्व कर उठा. बोला, “भाई शोभराज तू वाकई में बहुत तेज दिमाग है. अच्छा चल अब रणवीर के घर चलते है. ज्यादा देर करना ठीक नही.” शोभराज ने अपने बड़े भाई की बात पर हाँ में सर हिलाया और उसके साथ चल पड़ा.

एक अबला स्त्री को विधवा बनाने की योजना. पांच बच्चों को बिना बाप के जिन्दगी जीने को मजबूर करने की योजना बना चुके इन दोनों भाइयों के दिल में तनिक भी भय या भावना नही थी.

रणवीर के घर कमला के पिता और भाई भी आ चुके थे. इन लोगों को देख आदिराज और शोभराज को थोड़ी मायूसी हुई लेकिन इनका इरादा नही बदला. कमला चलने के लिए तैयार हो चुकी थी.

रणवीर के पेट में हल्का दर्द इस वक्त भी हो रहा था. जो लगभग चौबीसों घंटे होता ही रहता था. शोभराज ने रणवीर के पास बैठ बड़े प्यार से पूंछा, “भाई रणवीर अब कैसी हालत है तुम्हारी? पहले से कुछ अंतर महसूस होता है या नही?”

रणवीर को दर्द हो रहा था. जो दर्द की गोलियों से कम तो हो जाता था लेकिन पूरी तरह ठीक न हो रहा था. रणवीर को अपनी बीमारी जानलेवा लगती थी. रणवीर ने कराहते हुए कहा, “भाईसाहब मुझे तो लगता है अब मैं ठीक नही हो सकूँगा. आप लोग बेकार में ही डॉक्टरों के पास चक्कर लगा रहे हैं. मेरी बीमारी पहले से बढ़ गयी है.”

शोभराज झूटे मन से बोला, “रणवीर तुम कैसी बात करते हो. अरे कुछ भी नही होगा तुम्हें. अच्छा ये बताओ कि तुमने बीमार होने से पहले कुछ खाया था क्या? ये बीमारी की शुरुआत कैसे हुई?”

रणवीर ने दर्द को आवाज में भरते हुए कहा, “कुछ नही भाईसाहब बस पैठ में जा अमरुद खाए थे. बाकी कोई ऐसी चीज नही खायी जिससे बीमारी हो सके. पता नही कहाँ से इस बीमारी ने मुझे आ घेरा.” शोभराज ने झूटे दुःख में हो सर हिलाया और बोला, “अच्छा अभी अगर तुम्हारे दर्द हो रहा हो तो दवाई खालो. आदिराज भाईसाहब तुम्हारे लिए दवाई लेते आये थे. इससे दिल्ली जाने पर रास्ते भर तुम आराम से रह सकोगे.”

रणवीर को आदिराज की दवाई खाने से बहुत डर लगता था. आदिराज ने पहले भी रणवीर को दवाई दी थी जिससे रोग बढ़ गया था. साथ ही आदिराज के हाथ इलाज कराने से एक छोटा बच्चा भी मर चुका था लेकिन पेट में हो रहे दर्द को देख रणवीर कुछ कह न सके.

कमला भी बीच में बोल पड़ी, “हाँ खा लीजिये न दवाई. कम से कम आराम से दिल्ली तक पहुंच जायेंगे. नही तो सफर में दर्द होने से दोगुनी परेशानी रहेगी.”

शोभराज ने आदिराज की तरफ देख कर कहा, “भाईसाहब वो दवाई निकालिए और कमला तुम एक गिलास ताज़ा पानी ले आओ.” कमला गिलास में पानी लेने चली गयी. आदिराज ने कांपते हाथों से धीमे जहर की पुडिया निकाल शोभराज की तरफ बढ़ा दी.

शोभराज ने पुडिया खोली. उसमें निकली दो गोली रणवीर के हाथ पर रख दी. कमला पानी का गिलास लेकर आ पहुंची. रणवीर ने गोलियों को बड़े ध्यान देखा. मानो वो गोली न हो कुछ और हो. कमला ने रणवीर के हाथ में पानी पकड़ा दिया. रणवीर ने न चाहते हुए भी पानी के साथ उन दो गोलियों को खा लिया.

रणवीर को नही पता था कि उसने किस चीज की गोलियां खा ली हैं. कमला तो शोभराज और आदिराज की एहसानमन्द हो गयी थी. उसे लगता था कि उन दोनों भाइयों को रणवीर की बहुत फिकर है. बेचारी नही जानती थी कि आज उसके सुहाग पर बन पड़ेगी. वो ये नही जानती थी कि ये एहसान नही सरासर हैवानियत है. काश वो समझ जाती”

शोभराज ने आदिराज की तरफ आनंदित हो देखा लेकिन आदिराज की आँखों में थोडा खौंफ था. शोभराज ने कमला से कहा, “कमला यहाँ से रणवीर को किस वाहन में लेकर चलना है. क्या एम्बुलेंस वगैरह का इंतजाम है?” कमला घूँघट किये वहीं खड़ी थी. बड़े अदब से बोली, “जी दद्दा गाँव से बैलगाड़ी में लेकर चलेंगे. फिर बस स्टैंड पर पहुंच बस में बैठ जायेंगे. क्योंकि यहाँ तो कोई गाडी या एम्बुलेंस नही मिलती.”

शोभराज ने थोडा सोचा फिर बोला, “अच्छा. चलो फिर उस बैलगाड़ी को जल्दी से बुलवा लो.” कमला ने शोभराज की बात सुन अपने एक बच्चे को पड़ोसी के घर भेज दिया. जिसकी बैलगाड़ी इन सब लोगों बस स्टैंड तक छोड़कर आने वाली थी.

पडोसी थोड़ी ही देर में अपनी बैलगाड़ी तैयार कर रणवीर के घर के बाहर आ खड़ा हुआ. रणवीर को सहारा दे लोगों ने बैलगाड़ी में लिटा दिया गया. कमला के बच्चे अपने माँ और बाप के साथ जाना चाहते थे लेकिन कमला बच्चों को दिल्ली नही ले जाना चाहती थी.

अभी कुछ समय पहले पैदा हुआ छोटू तो सिर्फ एक डेढ़ साल का ही था. जो अभी तक अपनी माँ कमला का दूध पीता था लेकिन कमला आज उसे भी घर छोड़कर जा रही थी. छोटू को सम्हालने की जिम्मेदारी सीमा की थी. जो घर में इस वक्त सबसे बड़ी लडकी थी.

कमला बच्चो को रोता बिलखता छोड़ अपने पति व अन्य लोगों के साथ बैलगाड़ी में बैठ चुकी थी. जिनमें शोभराज, आदिराज, कमला के पिता रामचरन और कमला का एक भाई शामिल था. बैलगाड़ी इन लोगों को सीधे बस स्टैंड पर ले पहुंच गयी.

वहां से सब लोग रणवीर को ले बस में बैठ गये. जो इन लोगों को ले दिल्ली की तरफ दौड़ चली. बस के पहिये के साथ रणवीर की उलटी गिनती शुरू हो चुकी थी. एक एक क्षण रणवीर के लिए पहाड़ों सा कठिन था.

रणवीर का शरीर बलिष्ठ था. शरीर की ताकत दर्द की तीव्रता को झेले जा रही थी लेकिन ऐसा भी कब तक हो सकता था? दिल्ली के नजदीक आते आते रणवीर का सारा बदन निढाल होता चला गया. दिल्ली के बस स्टैंड पर बस रुकी तो रणवीर से खड़ा भी न हुआ गया.

चेहरे पर भयावह लकीरें थीं जिन्हें देख कमला का कलेजा गले को आता था. शोभराज और आदिराज मन में बहुत खुश थे लेकिन उपरी दुःख दिखाते हुए चल रहे थे.

कमला के पिता और भाई भी बहुत घबरा रहे थे. बस स्टैंड से अस्पताल तक के लिए एम्बुलेंस कर ली गयी. रणवीर शायद अंतिम साँसे गिन रहे थे. कमला हर क्षण भगवान से अपने सुहाग की रक्षा करने की भीख मांग रही थी.

उसी एम्बुलेंस में बैठे आदिराज और शोभराज भगवान से रणवीर की मौत मांग रहे थे. एम्बुलेंस कुछ ही देर में दिल्ली के मशहूर सरकारी अस्पताल में जा पहुंची लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी. रणवीर की सांसे तो चल रही थीं लेकिन जीने की ताकत अब बाकी नही थी.

रणवीर की गम्भीर हालत देख डॉक्टरों ने जल्दी से इलाज शुरू कर दिया लेकिन इसका कुछ भी फायदा न हुआ. रणवीर को उलटी हुई जिसमें खून काफी मात्रा में था और थोड़ी ही देर में रणवीर की सांसे थमने लगीं.

डॉक्टरों ने जल्दी जल्दी रणवीर की छाती को दवाना शुरू कर दिया लेकिन इसका भी कुछ फायदा न हुआ. देखते ही देखते रणवीर का बलिष्ठ शरीर प्राणहीन हो गया. डॉक्टरों ने अपनी आखिरी कोशिश करनी भी रोक दी. जानते थे कि इस मरीज में अब कुछ नही है.

वार्ड के बाहर बैठी अभागन सुहागन कमला को अभी तक नही पता था कि वो विधवा हो चुकी है. वो तो दिल में अपने पति को ठीक होते देखने की कामना लिए हुई थी. भला कोई स्त्री पहले से अपने पति के प्रति ऐसी कामना क्यों रखने लगी.

उसी समय डॉक्टर का कम्पाउंडर बाहर आया और बोला, “भैया ये रणवीर नाम के मरीज के साथ कौन है?” कमला बिजली के करंट की गति से खड़ी हो बोली, “हाँ भैय्या बताओ. हम हैं उनके साथ.”

कमला के साथ शोभराज और आदिराज के साथ साथ उसके पिता और भाई भी बैठे हुए थे. घूंघट किये बैठी कमला को किसी का ध्यान न रहा. उसे तो बस अपने पति की कुशलक्षेम जाननी थी. अभी कम्पाउंडर कुछ कहता उससे पहले ही शोभराज बोल पड़ा, “हाँ भाई बताओ क्या बात है? कोई दवाई बगैरह आनी है क्या?” कम्पाउंडर अधीरता से बोला, “आना कुछ नही है बस आप मेरे साथ आ जाओ.”

इतना कह कम्पाउंडर अंदर की तरफ चल पड़ा. शोभराज उसके पीछे पीछे चल दिया. कमला का मन नही माना तो वो भी इन दोनों के पीछे पीछे चल दी. अंदर पहुंचते ही डॉक्टर ने शोभराज से पूंछा, “आप कौन है रणवीर नाम के मरीज के?”

शोभराज ने झट से उत्तर दिया, “जी भाई है वो मेरा और ये कमला उसकी बीबी है.” डॉक्टर का दिल बताने में घबरा रहा था. बोला, “देखिये सब्र से काम लीजियेगा. मुझे बताते हुए बहुत खेद है कि रणवीर को हम लोग बचा नही सके.”

कमला तो जैसे इस बात को सुन ही न पायी थी. उसे डॉक्टर की बात का जरा भी यकीन नही हुआ. घूंघट किये खड़ी कमला ने अपना घूँघट ऊपर किया और डॉक्टर की तरफ भयावह नजरों से देख बोली, “ये क्या बोल रहे हैं डॉक्टर साहब आप? अरे शुभ शुभ बोलिए.”

डॉक्टर चुपचाप बैठा रहा. वो जानता था ये औरत अपने पति के लिए ऐसा क्यों कह रही है. उसने कमला से कहा, “आप इस कम्पाउंडर के साथ जा अपने पति को देख सकती हैं.” शोभराज ऊपर से दुखी और अंदर से अत्यंत खुश हो रहा था.

कमला कम्पाउंडर से आगे आगे चल पड़ी. अभी तक उसकी आँखों में एक आसूं भी नही था. शायद कमला का दिल डॉक्टर की बात पर यकीन ही नही कर पा रहा था. अंदर पहुंच कमला ने जैसे ही रणवीर को देखा तो उसे यही लगा कि रणवीर अभी तक जिन्दा है.

शांत हो मृत पड़े रणवीर को देख शायद ही कोई कह पाता कि वो मर चुका है. कमला ने रणवीर के सर को अपने हाथों में ले हिलाकर देखा. अब मन माने या न माने किन्तु रणवीर अब इस दुनिया में नही था.

कमला की रोने की दहाड़ें वार्ड में गूँज रहीं थीं. डॉक्टर ने आ कमला को न रोने की हिदायत दे दी लेकिन कमला पर इस हिदायत का कोई फर्क नही पड़ा. शोभराज से डॉक्टर ने कहा, “अच्छा आप इन्हें बाहर ले जाइए. हमें अभी मरीज का पोस्टमार्टम करना है.”

शोभराज ने पोस्टमार्टम की बात सुनी तो उसके पैरों से जमीन खिसक गयी. उसे पता था कि पोस्टमार्टम में जहर वाली बात का पता चल जायेगा. झट से डॉक्टर से बोला, “डॉक्टर साहब पोस्टमार्टम की क्या जरूरत है? आदमी मर चुका है. कम से कम मरने के बाद तो चैन से रहने दीजिये.”

इतना कह शोभराज ने डॉक्टर की जेब में कुछ रूपये रख दिया. डॉक्टर हडबडा गया. बोला, “अरे अरे आप ये क्या कर रहे हैं?” शोभराज डॉक्टर की तरफ देख बोल पड़ा, “रख लीजिये डॉक्टर साहब. मैं भी आपके बिभाग का ही आदमी हूँ और एक कृपा ये कर दीजिये कि इस मरीज को जितनी जल्दी हो सके बाहर करवा दीजिये. हमारा गाँव यहाँ से काफी दूर है.” डॉक्टर को रिश्वत मिल चुकी थी. उसने झट पट से रणवीर को अस्पताल से बाहर करवा दिया.

शोभराज ने अस्पताल से गाँव तक के लिए एम्बुलेंस भाड़े पर ले ली. कमला का हाल बेहाल था. उसके पिता और भाई उसे बहुत सम्हाल रहे थे लेकिन आज उसे सम्हलना ही नही था. शोभराज और आदिराज भी कभी कभी घडियाली आंसू बहा देते थे लेकिन जब भी दोनों की नजरें मिलती तो सिर्फ ख़ुशी हो रही होती थी. आज इन दोनों की योजना कामयाब हो गयी थी. न कोई जान पाया और न ही किसी को इन लोगों पर कोई शक ही हुआ था.

कमला की सिसकियों में अब वो जोर नही था जो अस्पताल में उसकी दहाड़ो में था. कोई दुखी आदमी भी भला कब तक रो सकता था. सुबह से सिर्फ पानी पर जी रही कमला नही जानती थी कि आज उसका पति उसका साथ छोड़ चला जायेगा.

कमला की कोख में छह सात महीने का एक नन्हा बच्चा भी पल रहा था. जो अब अपने पिता की शक्ल तक नही देख सकता था. एम्बुलेंस घर की तरफ दौड़ी चली जा रही थी.

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