Andhayug aur Naari - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्धायुग और नारी--भाग(१२)

सुबह मैं जागा तो हवेली में कौतूहल सा मचा था,क्योंकि दादाजी ने अपने लठैतों को रात को भेजा होगा तुलसीलता के पास लेकिन उन्हें वहाँ तुलसीलता नहीं मिली और दादाजी इस बात से बहुत नाराज़ थे,उनकी नाराजगी इस बात पर नहीं थी कि तुलसीलता उन्हें नहीं मिली,उनकी नाराजगी की वजह कुछ और ही थी और वें नाराज होकर हवेली के आँगन में चहलकदमी कर रहे थे,शायद उन्हें किसी के आने का बेसब्री से इन्तज़ार था और तभी एक लठैत उनके पास आकर बोला....
"सरकार! छोटे मालिक आ चुके हैं"
"उसे फौरन मेरे पास भेजो",दादा जी बोलें....
मतलब दादाजी चाचा जी का इन्तज़ार कर रहे थे,लेकिन क्यों? उन्होंने ऐसा क्या किया है जिससे दादाजी उनसे इतने ख़फा हैं,मैं ये सब सोच ही रहा था कि चाचाजी आँगन में एक मुजरिम की तरह हाजिर हुए और उन्हें देखकर दादाजी गुस्से से बोले....
"तो तूने छुपाकर रखा है उस देवदासी को",
"जी! बाबूजी!",चाचाजी गरदन झुकाकर आँखें नीचीं करके बोले....
"लेकिन क्यों? क्या तू अपने बाप को नीचा दिखाना चाहता है इसलिए", दादाजी बोलें....
"नहीं! बाबूजी! ऐसी कोई बात नहीं है,मुझे वो देवदासी पसंद है, बस इसलिए मैनें उसे छुपाया", चाचाजी बोलें....
"लेकिन कहाँ छुपाया है तूने उसे"?,दादा जी ने पूछा...
"मैं आपको सब बता दूँगा लेकिन वादा कीजिए कि आप उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचाऐगें",चाचा जी बोलें...
"अब एक देवदासी के लिए तू मुझसे वादे की बात कर रहा है,क्या तुझे मुझ पर जरा भी भरोसा नहीं है", दादाजी बोलें....
"भरोसा है बाबूजी! तभी तो आपको मैनें सबकुछ बता दिया है",चाचाजी बोले...
"ठीक है,मैं उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा और अब मुझे ये भी नहीं जानना कि तूने उसे कहाँ छुपा रखा है, अगर तुझे वो पसंद है तो आज के बाद मैं उसके बारें में कोई बात नहीं करूँगा,जा ऐश कर"
फिर ऐसा कहकर दादाजी वहाँ से चले गए और मेरी जान में जान आ गई,लेकिन अब तुलसीलता दादाजी के चंगुल से छूटकर चाचाजी के चंगुल में फँस गई थी,ये तो वही बात हो गई थी कि आसमान से गिरे और खजूर पर अटके,चाचाजी भी तो अच्छे इन्सान नहीं थे और तुलसीलता फिर से एक बार मुसीबत में फँस गई थी,लेकिन फर्क बस इतना था कि चाचा जी दादाजी से कम खतरनाक थे,लेकिन कुछ भी हो चाचाजी जी कम खतरनाक ही सही लेकिन थे तो ना खतरनाक ,इसलिए तुलसीलता के प्रति अभी भी मेरी चिन्ता कम नहीं हुई थी....
और फिर चाचाजी ने तुलसीलता को उस जगह से जहाँ उन्होंने उसे छुपाकर रखा था, वापस बुलाकर उसे उसकी कोठरी में वापस भेज दिया और जब मुझे ये बात चली तो मैं तुलसीलता से मिलने उसकी कोठरी पहुँच ही गया,पहले तो वो मुझे देखकर थोड़ा गुस्सा हुई लेकिन फिर बोली....
"तेरे खानदान में तुझे छोड़कर सब मर्द घटिया ही हैं क्या"?,
"इतना गुस्सा क्यों कर रही हो"?,मैं ने उससे पूछा....
"गुस्सा ना करूँ तो क्या करूँ? एक हवेली में कैद करता है तो दूसरा किसी अनाज के गोदाम में कैद करता है", तुलसीलता बोली...
"तुम ठीक तो हो ना!",मैने पूछा...
"मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे और चला जा यहाँ से,",तुलसीलता गुस्से से बोली....
"तुम मुझ पे नाहक ही बिगड़ रही हो,भला मेरी इसमें क्या गलती है?,मैं तो तुम्हारा हाल चाल पूछने आया था और तुम मुझे कुत्ते की तरह दुत्कार रही हो",मैं गुस्से से बोला....
मेरी तेज आवाज़ पर उसकी आवाज़ धीमी हो गई और वो मुझसे धीरे से बोली....
"क्या करूँ परेशान थी,इसलिए सारा गुस्सा तुझ पर ही उतार दिया",तुलसीलता बोली...
"कोई बात नहीं,गलती मेरी भी तो है,मुझे भी तुम पर नाराज़ नहीं होना चाहिए था",मैं तुलसीलता से बोला...
"आजा कोठरी के भीतर आजा,कुछ देर बातें करते हैं",तुलसीलता बोली....
"ना बाबा! किसी को कुछ पता चल गया तो फिर से मेरी मरम्मत हो जाएगी",मैं तुलसीलता से बोला....
"क्यों होगी मरम्मत और कौन करेगा तेरी मरम्मत"?,तुलसीलता ने पूछा....
"दादाजी और कौन? तुझे छुड़ाया तो दादाजी ने मुझे मार मारकर छाता तोड़ दिया,पूरी पीठ दर्द के मारे अकड़ी जा रही है",मैं तुलसीलता से बोला....
"इतना मारा उस राक्षस ने तुझे",तुलसीलता ने पूछा....
"हाँ! और क्या",मैं बोला....
"किसी ने रोका नहीं",तुलसीलता ने पूछा...
"कौन रोकता भला! किसी में हिम्मत नहीं होती दादाजी के सामने आवाज उठाने की",मैने तुलसीलता से कहा...
"अच्छा! तू भीतर चल,मुझे दिखा तो सही कितनी चोट आई है तुझे",तुलसीलता बोली...
"ना रहने दो,तुम देखकर क्या करोगी",मैने तुलसीलता से कहा....
"देख! ज्यादा हट मत किया कर,मेरा कहा मान लिया कर,मैं तुझसे उम्र में बढ़ी हूँ ना तो कभी कभी मेरी बात का मान भी रख लिया कर",तुलसीलता बोली....
और फिर तुलसीलता के कहने पर मुझे कोठरी में जाना पड़ा और मैने अपनी बुशर्ट निकालकर उसे अपनी पीठ का हाल दिखाया तो वो बोली....
"हाय राम! ऐसे मारता है भला कोई,बिन माँ बाप का बच्चा है तो कोई कुछ भी ज्यादती करता रहेगा,चल मैं तेरी पीठ पर मरहम लगा देती हूँ,मुआँ एक चाहने वाला दे गया था ये मरहम,डाक्टर था,मुझे बहुत पसंद करता था", तुलसीलता बोली....
"तुम ऐसे कैसें किसी के भी साथ चली जाती हो,तुम्हारी आत्मा तुम्हें दिक्कारती नहीं है",मैने तुलसीलता से पूछा....
"जब पेट में रोटी नहीं जाती ना तो तब आत्मा भी भूख से व्याकुल होकर सोचना समझना बंद कर देती है,ये पापी पेट ना हो तो काहे के लिए इन्सान अपनी इन्सानियत छोड़कर हैवान बन जाएं,तुझे हमेशा से रोटी मिलती रही है ना इसलिए तुझे रोटी का मोल पता नहीं है,एक दिन भूखा रहकर देख तब पता चलता है कि गरीब को किस तरह रोटी मिलती है", तुलसीलता मेरी पीठ पर मरहम लगाते हुए बोली....
"हाँ! जहाँ तक मुझे याद है मैं तो कभी भूखा नहीं रहा,चाची रसोई में चूल्हे के सामने बैठाकर गरमागरम खाना परोसती है मुझे",मैने तुलसीलता से कहा...
"नसीब वाला है,इसलिए गरम गरम रोटी मिलती है,हम लोगों से पूछो कि हम कैसें अपना गुजारा करते हैं, कभी कभी आ जाता है मंदिर का भोग तो खा लेते हैं,नहीं तो जो मंदिर से आटा,नून-तेल मिला तो उसी सामान से कच्ची पक्की पकाकर खा लेते हैं",तुलसीलता बोली....
"और तुम लोंग जो रुपया कमाती हो वो रुपया कहाँ जाता है?",मैने तुलसीलता से पूछा...
"वो सब छीन लिया जाता है,जो नरक हम लोग भोग रहे हैं वो हम ही जानते हैं,तू उसका अन्दाजा भी नहीं लगा सकता",तुलसीलता बोली....
"तुम्हारा कभी मन नहीं करता कि तुम्हारा भी कोई घर हो ,बच्चे हों",मैने तुलसीलता से पूछा....
"मन करने से क्या होता है,हमारा ब्याह तो भगवान के साथ हो चुका है और अब वहीं हमारे पति हैं और ये कोठरी ही हमारा घर है,सुनहरे सपने देखने का अधिकार नहीं होता हमें",
"बस अब रहने दो,ज्यादा मरहम मत लगाओ दुखता है",मैने तुलसीलता से कहा...
"ठीक है ले नहीं लगाती मरहम,चल अपनी बुशर्ट पहन ले",तुलसीलता बोली....
और जैसे ही मैं बुशर्ट पहन रहा था तो वैसे ही किशोरी कोठरी में चली आई ,क्योंकि कोठरी के किवाड़ पूरी तरह से नहीं लगे थे और मुझे बुशर्ट पहनता देख उसने अपनी आँखें मीचते हुए कहा....
"लगता है मैं गलत वक्त पर आ गई,आखिर तूने इस मासूम लड़के को फँसा ही लिया",
"पागल हो गई है क्या? मैं तो इसकी पीठ पर मरहम लगा रही थी,देख तो इसके जालिम दादा ने कितना मारा है इसे",तुलसीलता बोली....
"मैं तो कुछ और ही समझी थी",किशोरी मुस्कुराते हुए बोली....
"ये तो मेरे छोटे भाई जैसा है,है ना छोटू",तुलसीलता बोली.....
और तुलसीलता की इस बात पर मैं भावुक हो उठा.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....