Andhayug aur Naari - 17 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्धायुग और नारी--भाग(१७)

कोठरी के किवाड़ खुलते ही किशोरी तुलसीलता से बोली...
"उदय है क्या तेरी कोठरी में"?
"हाँ! है",तुलसीलता बोली...
"तो फिर फौरन उसे बाहर जाने को कह,पुजारी के लठैत इधर ही आ रहे हैं उसे मारने के लिए",किशोरी बोली....
"आने दो जो आता है,मैं क्या डरता हूँ किसी से",उदयवीर कोठरी के बाहर आकर बोला....
"नहीं! उदय! तुम जाओ यहाँ से,अगर तुम्हें कुछ हो गया तो हम सभी का यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता बंद हो जाएगा,हमारे बारें में भी तो जरा सोचो,तुम पहले इन्सान हो जिसने इस काम को पूरा करने का बीड़ा उठाया है, क्यों अपनी जान जोखिम में डालते हो,हाथ जोड़ती हूँ ,भगवान के लिए चले जाओ यहाँ से", किशोरी हाथ जोड़ते हुए बोली...
"हाँ! उदय! किशोरी ठीक कह रही है,जाओ यहाँ से",तुलसीलता बोली...
"ठीक है! तुम कहती हो तो जाता हूँ",
और ऐसा कहकर फौरन ही उदयवीर वहाँ से भाग निकला,इधर किशोरी और तुलसीलता भी अपनी अपनी कोठरियों में जाकर कैंद हो गईं और जब पुजारी अपने लठैतों के साथ वहाँ पहुँचा तो उसे वहाँ उदयवीर नहीं मिला,उदयवीर को वहाँ पर नदारद देखकर पुजारी का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया,लेकिन वो बोला कुछ नहीं और वो अब अपनी अर्जी लेकर मेरे दादाजी शिवबदन सिंह के पास पहुँचा, उन्हें हवेली में हाजिर होता देखकर दादा जी ने उस से पूछा....
"पुजारी जी! आप! कहिए कैसें आना हुआ,चढ़ावा वगैरह चाहिए क्या,जो चाहिए सो बताएंँ हमारी तिजोरी सदैव आपके लिए खुली है",
"सरकार! ये सब नहीं चाहिए मुझे",पुजारी जी बोले...
"तो फिर क्या चाहिए आपको?,दादाजी ने पूछा....
"जी! बड़ी विपदा आन पड़ी है मुझ पर ,लगता है मेरी रोजी रोटी छिनने वाली है",पुजारी जी बोले.....
"ऐसा क्या हुआ पुजारी जी! आप और विपदा में,वो भला कैसें ?,आपकी तो चाँदी ही चाँदी है,पूरे वक्त आप तो देवियों से घिरे रहते हैं, भला आपको रोजी रोटी की चिन्ता क्यों होने लगी",दादाजी ने मुस्कुराते हुए पूछा...
"अब आप भी मेरे मज़े ले रहे हैं हूजूर! सच कहा है किसी ने कि जब इन्सान पर बुरा वक्त आता है तो कोई साथ नहीं देता",पुजारी जी मायूस होकर बोले....
"मैंने तो आपका साथ देने से इनकार नहीं किया और आप बात को जलेबी की तरह गोल गोल क्यों घुमा रहे हैं? पहले ये बताइए कि बात क्या है?",दादाजी ने पूछा...
"सरकार! कोई वकील आया है विलायत से वकालत पढ़ के और कहता है कि देवदासियों से मंदिर में नृत्य करवाना गैरकानूनी है,वो उन सभी देवदासियों को आजाद करवाना चाहता है,उसने गोरों की हुकूमत के बड़े साहब के यहाँ इस बात की अर्जी भी लगा दी है और तो और उसने देवदासियों के बयान भी दर्ज कर लिए है,वो तो अच्छा हुआ कि सभी देवदासियों ने मेरे खिलाफ बयान नहीं दिया,नहीं तो अभी मैं जेल की सलाखों के पीछे होता",पुजारी जी बोलें....
"तो आप मुझसे क्या चाहते हैं पुजारी जी"?,दादाजी ने पूछा....
"बस मैं इतना चाहता हूँ कि या तो आप उस वकील के मुँह में रुपया ठूसकर उसे खरीद लीजिए और अगर वो नहीं मानता तो फिर भी उसे कटवाकर किसी नदी तालाब में फिकवा दीजिए",पुजारी से बोले...
"किसी को कटवाना इतना आसान थोड़े ही है,दाल रोटी थोड़ी ही है कि पका ली और खा ली,अंग्रेजी हूकूमत को नहीं जानते आप,वो सरकारी मुलाज़िम है,कहीं उसे कुछ हो गया तो लेने के देने पड़ जाऐगें,गोरे हम हिन्दुस्तानियों की चमड़ी उधेड़कर उसमें भूसा भर देगें",दादा जी बोलें....
"लेकिन हुजूर! देवदासियों के जाने पर मैं तो भूखा मरूँगा ही लेकिन आप सभी अमीर लोग अपनी रात काटने कहाँ जाया करेगें,देवदासियाँ उतने दाम नहीं लेतीं जितना की तवायफ़े लेती हैं,जरा सोचिए फिर आप सभी का क्या होगा"?पुजारी जी बोलें....
"पुजारी जी! ये आपने कैसीं ओछी बात कह दी,क्या अब मेरी इतनी औकात भी नहीं है कि मैं उन तवायफों के दाम चुका सकूँ",दादाजी बोलें...
"मेरा वो मतलब नहीं था हुजूर! मैं तो बस ये कह रहा था कि जब चींजे पास के बाजार में सस्ते दामों पर मिल रहीं हैं तो फिर महंँगें बाजारों में क्यों जाना?",पुजारी जी बोलें....
"ठीक है! लेकिन आइन्दा से ये याद रहे ,ऐसी कोई भी बात आपके मुँह से नहीं निकलनी चाहिए जो मुझे बुरी लग जाए,अब आप बेफिक्र होकर जाइए,मैं आज ही सुजान को उस वकील के पास रुपया देकर भेजता हूँ,जब उसे मुँहमाँगे दाम मिलेगें तो उसकी सारी इन्सानियत धरी की धरी रह जाएगी,बड़ा आया भगीरथ बनने, देवदासियों को तारने चला है,उसके मन्सूबे कभी पूरे नहीं होगें"दादाजी बोलें...
"तो फिर मैं ये समझूँ कि मेरा काम पूरा हो गया",पुजारी जी बोलें...
"और क्या? आप निश्चिन्त होकर जाइए,कल आपको खबर मिलेगी कि उस वकील की अर्जी खारिज़ कर दी गई है",दादाजी बोले....
"बस यही होना चाहिए",पुजारी जी बोले....
"यही होगा,आप नाहक चिन्ता ना करें",दादाजी बोले....
"तो फिर मैं चलता हूँ",
और ऐसा कहकर पुजारी जी हवेली से वापस आ गए और शाम को दादाजी ने चाचाजी को ढ़ेर सा रुपया देकर उदयवीर के पास भेजा,उदयवीर ने एक छोटा सा कमरा किराएँ पर ले लिया था और एक सरदार के ढ़ाबे पर खाना खा लिया करता था,उदयवीर का पता पूछते पूछते चाचाजी उसके कमरें पहुँचे,दरवाजे पर दस्तक दी तो उदयवीर ने दरवाजा खोला,चाचाजी को सामने खड़ा देखकर उदयवीर ने चाचाजी जी से पूछा....
"जी! आप!",
"तो आप ही हैं वकील बाबू!",चाचाजी बोले....
"लेकिन मैने आपको नहीं पहचाना",उदयवीर बोला....
"अरे! मुझे भी पहचान जाऐगें,पहले घर के भीतर तो आने दीजिए",
और फिर चाचाजी ऐसा कहकर उदयवीर के कमरें में बिना इजाजत के घुस गए और कमरें को बड़े गौर से देखने लगे,एक तरफ छोटी सी चारपाई,एक कुर्सी और एक टेबल था,जिस पर कुछ किताबें और जलता हुआ लैम्प रखा था,कमरें को देखते हुए चाचाजी जी बोलें....
"लगता है अभी वकील बाबू ने ब्याह नहीं किया",
"नहीं!,अभी मेरी शादी नहीं हुई",उदयवीर बोला....
"तभी...तभी आपको डर नहीं है कि आपकी घरवाली विधवा हो जाएगी",चाचाजी बोलें....
"कहना क्या चाहते हैं आप?",उदयवीर ने गुस्से से पूछा....
"यही कि अपना केस वापस ले लीजिए,नहीं तो कहीं ऐसा ना हो कि आपकी बोटियाँ चील कौएंँ खाएँ", चाचाजी बोलें....
"क्या बकते हैं आप"?,उदयवीर गुस्से से बोला....
"बक नहीं रहा हूँ वकील बाबू! आपको समझा रहा हूँ,चिन्ता मत कीजिए मैं केस वापस लेने की कीमत भी लाया हूँ",चाचाजी बोले....
"तो आप मुझे खरीदना चाहते हैं",उदयवीर बोला....
"अब आप कुछ भी समझ लीजिए",चाचाजी बोलें....
"ले जाइए! अपना ये रुपया वापस,नहीं तो मुझसे ज्यादा बुरा और कोई ना होगा",उदयवीर दहाड़ा....
"अब इतने भी ईमानदार मत बनिए वकील बाबू! पहले देख तो लीजिए कि कितना रुपया है, ये जो आप फटेहाल रह रहें हैं ना! तो एक ही रात में आप दौलत के ढ़ेर पर बैठें हुए दिखाई देगें,बस आप अपनी अर्जी खारिज़ करवा दीजिए",चाचाजी बोलें.....
"ये कभी नहीं हो सकता,मैं अपना ईमान कभी नहीं बेचूँगा",उदयवीर बोला....
"सीधी तरह बात मान जाइए,नहीं तो और भी तरीके हैं मेरे पास आपकी अर्जी खारिज़ करवाने के", चाचाजी बोलें....
"पहले ये बताइए कि नाम क्या है आप का? जो आप मुझे धमकी देने यहाँ तक आ पहुँचे",उदयवीर ने पूछा....
"नाचीज़ को सुजान सिंह कहते हैं और उन देवदासियों के कद्रदानों में से एक हम भी हैं,तो ये बात सुनकर जरा दिल दुख गया हमारा,आप जब हमारे विलासी जीवन में टाँग अड़ाऐगें तो फिर हमें भी आपकी टाँग तो हटानी होगी ना!,अगर सीधी तरह से टाँग हटा ली आपने तो ठीक,वरना फिर हम टाँग कटवा भी देते हैं",चाचाजी बोलें....
"ओह....तो ये बात है",उदयवीर बोला....
"तो फिर क्या सोचा आपने?",चाचाजी ने मुस्कुराते हुए पूछा....
"मुझे थोड़ी मोहलत दीजिए,फिर बताता हूँ",उदयवीर बोला....
"आ गई ना अकल ठिकाने",चाचाजी बोलें....
"अब आपने इतनी अच्छी तरह समझाया तो आनी ही थी मेरी अकल ठिकाने में,लाइए ये रुपये मुझे दीजिए",उदयवीर मुस्कुराकर बोला....
और फिर चाचाजी ने खुशी खुशी वो रुपयों का थैला उदयवीर के हाथों में दे दिया और फिर उदयवीर ने टेबल पर रखें लैम्प को उठाया,किताब में से एक पेपर फाड़ा,उसे लैम्प से जलाया और रुपयों के थैले में आग लगा दी...

क्रमशः....
सरोज वर्मा....